भारत बंद का जातिशास्त्र

आखिर सवर्ण समाज ने दिखा दिया कि वो भी भारत बंद कर सकते हैं. 6 सितंबर को सवर्णों का भारत बंद था. यानि कि ऐसा दावा किया गया कि सवर्ण समाज ने भारत बंद किया है. ये बंद एससी-एसटी एक्ट में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के विरोध में बुलाया गया था. हालांकि सोशल मीडिया पर देश भऱ के लोग यह बताते रहें कि बंद का असर उतना भर है, जितना दिन विशेष पर बाजार के बंद होने पर रहता है.

लेकिन दाद देनी होगी मीडिया कि… ज्यादातर ने जिस तरह से बंद दिखाया और लिखा… लगा कि 6 सितंबर को भारत ठहर गया है. तमाम चैनलों और वेबसाइटों में खूब खबर चली. अखबारों में भी छपेगी.

आज चल रही खबरें मीडिया में सवर्णों की ताकत को साफ दिखाती है, क्योंकि बंद जमीन से ज्यादा मीडिया में दिखा. यहां हैरान करने वाली बात यह है कि जब 2 अप्रैल को देश के वंचित तबके द्वारा भारत बंद किया गया था तो इसी मीडिया ने चुप्पी साध रखी थी, बल्कि इस खबर को ब्लैक आउट किया गया. लेकिन बंद का असर इतना व्यापक था कि सरकार हिल गई. यहां तक की मीडिया को भी इसकी खबर चलाने को मजबूर होना पड़ा. 2 अप्रैल के बंद को लेकर जो भी खबरें आईं, 2 अप्रैल के बाद आईं.

6 सितंबर के बंद ने यह बता दिया है कि सवर्ण समाज ने किस तरह सत्ता की तमाम संस्थाओं पर कब्जा कर रखा है. आप गूगल पर जाकर भारत बंद सर्च करिए, शुरुआती 10 पन्नों में आज के बंद की खबर चल रही है. ये मीडिया के भीतर का जातिवाद बताने के लिए काफी है. लेकिन देश के वंचितों के पास नंबर की ताकत है, जो हर शीर्ष सत्ता को अपने पक्ष में फैसला लेने को मजबूर कर सकती है. 2 अप्रैल के आंदोलन के बाद एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ अध्यादेश लाने के लिए सरकार को बाध्य कर देना इस बात का सबूत है.

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