नई दिल्ली। भारत सरकार के सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने मीडिया संस्थानों से कहा है कि वो दलित शब्दावली का इस्तेमाल ना करें. मंत्रालय का कहना है कि अनुसूचित जाति एक संवैधानिक शब्दावली है और इसी का इस्तेमाल किया जाए. मंत्रालय के इस फ़ैसले का देश भर के कई दलित संगठन और बुद्धिजीवी विरोध कर रहे हैं. इनका कहना है कि दलित शब्दावली का राजनीतिक महत्व है और यह पहचान का बोध कराता है.
इसी साल मार्च महीने में सामाजिक न्याय मंत्रालय ने भी ऐसा ही आदेश जारी किया था. मंत्रालय ने सभी राज्यों के सरकारों को निर्देश दिया था कि सरकारी संवाद में दलित शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाए. मंत्रालय का कहना है कि दलित शब्दावली का ज़िक्र संविधान में नहीं है. सूचना प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि यह आदेश बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्देश पर दिया गया है.
सवाल है कि मोदी सरकार आखिर दलित शब्द से क्यों डरी है? और दलितों के लिए इस ‘शब्द’ के क्या मायने हैं?
जेएनयू में समाज शास्त्र विभाग के प्रो. विवेक कुमार कहते हैं, दलित शब्द राष्ट्र की नवीन अवधारणा गढ़ रही है. हालांकि सरकार के इस निर्देश पर केंद्र की एनडीए सरकार में ही मतभेद हो गया है. आरपीआई के नेता और मोदी कैबिनेट में सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने सरकार के इस फैसले से नाखुशी जाहिर की है. अठावले का कहना है कि दलित शब्दावली गर्व से जुड़ी रही है. तो उदित राज ने भी सरकार के फैसले का विरोध किया है.
उदित राज कहते हैं, ”दलित शब्द इस्तेमाल होना चाहिए क्योंकि ये देश-विदेश में प्रयोग में आ चुका है, सारे डॉक्युमेंट्स, लिखने-पढ़ने और किताबों में भी प्रयोग में आ चुका है. ये शब्द संघर्ष और एकता का प्रतीक बन गया है. और जब यही सच्चाई है तो ये शब्द रहना चाहिए.”
दलित शब्द का प्रयोग महज राजनीति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि साहित्य में भी यह व्यापक तौर पर प्रचलित शब्द है. मुख्यधारा के साहित्य से इतर दलित साहित्य ने अपनी अलग पहचान बनाई है. साहित्य में दलित शब्द के प्रयोग पर वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम कहते हैं कि सालों तक संघर्ष के बाद दलित शब्द ने अपना एक वजूद, अपनी एक पहचान बनाई है. इस शब्द से जो ताकत बनकर उभरी है, उसे खत्म करने की कोशिश की जा रही है.
इस पूरे मामले में दलित शब्द को संविधान का हवाला देकर असंवैधानिक ठहरा कर इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की कोशिश की जा रही है, हालांकि यहां एक तथ्य यह भी देखना होगा कि भारतीय संविधान में हिन्दुस्तान शब्द भी मौजूद नहीं है. संविधान में साफ लिखा है… इंडिया…. दैट इज भारत.. बावजूद इसके लाल किला के प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री तक हिन्दुस्तान शब्द बोलते सुने जा चुके हैं. ऐसे में जब सरकार और अदालत संविधान का हवाला देकर ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा रही है तो उसे ‘हिन्दुस्तान’ शब्द के इस्तेमाल पर भी रोक लगाना चाहिए. अगर सरकार ऐसा करने को राजी नहीं है तो उसे दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने का भी कोई नैतिक अधिकार नहीं है.
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