
आप मौनी बाबा नहीं हैं,कि कुछ नहीं बोल सकते, आप बहुत वाचाल हैं। जब सारी दुनिया और भारत की जनता कोरोना के खिलाफ लड़ रही थी, आपने राम के अवतारी बनकर भारत को कोरोना से मुक्त होने की घोषणा कर दी। आपके अंध भक्तों ने ‘मोदी है तो मुमकिन है’, का उद्घोष कर आपको विश्व गुरु बना दिया। यह सब आपने मुदित मन से स्वीकार किया। इस सब के कारण दुनिया भर में आपकी जो जग हँसायी और थू-थू हुई है सो हुई है, भारत की छवि को भी जबरदस्त धक्का लगा है। इतना बढ़ चढ़कर बोलने वाले मोदी जी आज चुप क्यों हैं? आज भी क्यों नहीं अपना मुंह खोलते और देश की जनता को संबोधित कर कोरोना के कारण हो रहे इस जन संहार की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इसके लिए देश से माफी मांगते। आप देश के नायक हैं, आगे आइये। नायक श्रेय लेने के लिए ही नहीं होता, जिम्मेदारी और जवाबदेही के लिए भी होता है।

लेखक देश के वरिष्ठ एवं अग्रणी साहित्यकार हैं। लेखन की तमाम विधाओं में पिछले तकरीबन चार दशक से सक्रिय हैं। केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान (राजभाषा विभाग भारत सरकार, नई दिल्ली) के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हैं। कविता संग्रह ‘गूंगा नहीं था मैं’, उपन्यास ‘छप्पर’ एवं ‘उत्कोच’, कहानी संग्रह ‘तलाश’ और ‘खरोंच’, यात्रा वृतांत ‘जर्मनी में दलित साहित्य: अनुभव और स्मृतियां’ उनकी बहुचर्चित कृतियां हैं। साथ ही दलित साहित्य (वार्षिकी) का सन 1999 से निरंतर संपादन कर रहे हैं। कई विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
