रायपुर। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के जाति मामले में छानबीन कमेटी की रिपोर्ट आ गई है. कमेटी ने अजीत जोगी को आदिवासी नहीं माना है. जोगी ने बीते बुधवार (28 जून) को इसके खिलाफ अदालत की शरण लेने की बात कही. जोगी की जाति के मामले में छानबीन कमेटी की बैठक मंगलवार को हुई, जिसमें याचिकाकर्ताओं, ग्रामीणों एवं आवेदक संतकुमार नेताम तथा नंदकुमार साय की याचिकाओं को ध्यान में रखकर फैसला लिया गया. कमेटी ने तय किया है कि अजीत जोगी को अनुसूचित जनजाति के लाभ की पात्रता नहीं होगी.
संतकुमार नेताम ने पूर्व मुख्यमंत्री जोगी के मामले को लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में आवेदन कर शिकायत की थी. फैसला 16 अक्टूबर, 2001 को आया था, जिस पर आयोग द्वारा कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे. अजीत जोगी ने उस दौरान बिलासपुर उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी. उच्च न्यायालय ने भी फैसला लिया था कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग को जाति का निर्धारण करने, जांच करने और फैसला देने का अधिकार नहीं है. इस फैसले को लेकर संतकुमार नेताम सर्वोच्च न्यायालय भी गए थे, जिस पर नेताम की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई थी.
सर्वोच्च न्यायालय ने 13 अक्टूबर, 2011 को फैसला लिया था कि सरकार हाईपावर कमेटी बनाकर अजीत जोगी के जाति प्रकरण का निराकरण करे. जोगी के जाति मामले के लिए गठित कमेटी के छह सदस्यों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य सचिव रीना बाब साहब कंगाले, सदस्य जीआर चुरेंद्र, एस.आर. टंडन और जीएम झा थे. इस रिपोर्ट को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने बुधवार को पत्रकार वार्ता में कहा, “मुझे विश्वसनीय सूत्रों से पता चला कि समिति ने मेरे खिलाफ फैसला लिया है. समिति का मानना है कि मैं आदिवासी नहीं हूं. यदि समिति का यही निर्णय है तो वे यह भी बता दें कि मैं कौन सी जाति का हूं.”
जोगी ने कहा कि वह इस मामले को लेकर न्यायालय जाएंगे. उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. इससे पहले भी उन्हें न्याय मिला था. उन्होंने कहा, “छानबीन कमेटी के पांच पदों में से तीन में एक ही अपर सचिव रैंक के अधिकारी ने हस्ताक्षर किए हैं, दो सदस्य स्वतंत्र थे, बाकी के पद रिक्त थे. सीधा-सीधा कमेटी ने नियम का पालन नहीं किया. आनन-फानन में फैसला लिया गया है, जिसे हम न्यायालय में चुनौती देंगे. मैं मुड़ी गोत्र का कंवर आदिवासी हूं.”
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।