मटकी से पानी पी लेने के कारण मार दिये गए नौ साल के मासूम इंद्र कुमार के मामले में हर रोज नई जानकारी सामने आ रही है। इस घटना से देश भर में दलित समाज के भीतर गुस्सा है और हर रोज देश के तमाम हिस्सों में लगातार प्रदर्शन जारी है।
राजस्थान की बात करें तो वहां कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, टोंक, बांसवाड़ा, सवाईमाधोपुर, करोली, दौसा में प्रदर्शन किए गए। इस घटना से नाराज बारा-अटरु के विधायक पन्नालाल मेघवाल ने इस्तीफा दे दिया है। तो ताजा घटनाक्रम में उनका समर्थन करते हुए बारां नगर निकाय के 25 कांग्रेस पार्षदों में से 12 ने दलितों के खिलाफ अत्याचार के विरोध में इस्तीफा दे दिया। तो वहीं बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए विधायकों ने भी पीड़ित को न्याय न मिलने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार से इस्तीफा लेने की बात कही है।
इंद्र कुमार की मौत के 40 घंटे बाद उसके अंतिम संस्कार को राजी हुए उसके परिजन बेटे को खो चुकने के बाद टूट गए हैं। परिजन 50 लाख मुआवजा, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और स्कूल की मान्यता रद्द करने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर सरकार से लेकर प्रशासन तक मामले की लीपापोती में लगा है और जाति के कारण हत्या की बात मानने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर मनुवादी मीडिया भी गांव के सवर्णों से बातचीत के आधार पर अपना मत बना रहा है।
जबकि दूसरी ओर मृतक इंद्र कुमार मेघवाल के चाचा और मामले में शिकायतकर्ता किशोर कुमार मेघवाल का कहना है कि मेरे भतीजे की मृत्यु उसकी जाति के कारण हुई। हमारे क्षेत्र में दलितों के साथ अमानवीय व्यवहार होता है। आज भी हमें नाइयों को खोजने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है जो हमारे बाल काट सकते हैं। जबसे हमने मुकदमा दर्ज कराया है, हम अपनी सुरक्षा के लिए डर रहे हैं।
तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और पुलिस अधिकारी गांव वालों का हवाला देकर मटकी की बात से इंकार कर रहे हैं। लेकिन यहां सवाल यह है कि सरकार और गैर दलित गांव वालों की बात मानी जाय या फिर परिजनों की।

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