अब प्रियंका गांधी ने बनाया व्हाट्सएप ग्रुप

0

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने के मिशन पर लगीं प्रियंका गांधी कार्यकर्ताओं से जुड़ने के लिए हर तरीके अपना रही हैं. प्रियंका जहां लगातार प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं से मिल रही हैं तो वहीं ट्विटर पर आने के बाद अब उन्होंने पापुलर सोशल मीडिया प्लेटफार्म व्हाट्सएप की राह भी चुनी है.

कार्यकर्ताओं से संपर्क के लिए प्रियंका गांधी ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप भी बनाया है. इस ग्रुप का नाम उन्होंने ‘चौपाल’ रखा है. उन्होंने कार्यकर्ताओं से हर बूथ पर 10-10 कार्यकर्ताओं को जोड़ने के लिए कहा है. इसका इस्तेमाल वह टिकट के उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जानने के अलावा वो व्हाट्सऐप और ट्विटर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता की भी जानकारी ले रही है. दरअसल प्रियंका का यह अनुभव नया नहीं है. इससे पहले भी अमेठी और रायबरेली के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को साथ जोड़ने के लिए उन्होंने व्हाट्सएप पर ‘चौपाल’ नाम का ग्रुप बनाया था. बताया जा रहा है कि इन ग्रुप्स के जरिये प्रियंका ग्राउंड रिपोर्ट कार्यकर्ताओं से लेंगी.

Read it also-प्रियंका गांधी ने की महाबैठक, दिया यह बयान    

अवसरों और संसाधनों पर पहला हक़ : मूलनिवासी वंचित वर्गों का!

भारत वर्ष आरक्षण का देश है.अगर महान समाज विज्ञानी कार्ल मार्क्स के अनुसार अगर अबतक विद्यमान समाजो का लिखित इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है तो भारत में वह आरक्षण पर केन्द्रित संघर्ष का इतिहास है. इसलिए यहाँ शक्ति के स्रोतों पर काबिज विशेषाधिकारयुक्त सुविधासंपन्न तबकों और वंचित बहुजनों के मध्य समय-समय पर आरक्षण पर संघर्ष संगठित होते रहता है ,जिसमें में 7 से 22 जनवरी,2019 के मध्य कुछ नए अध्याय जुड़ गए.7 जनवरी को मोदी सरकार ने नाटकीय रूप से गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया जिसे अगले दो दिनों में संविधान में आवश्यक संशोधन करते हुए उस विधेयक को संसद में पारित भी करा लिया. त्वरित गति से पास हुए सवर्ण आरक्षण के विस्मय से राष्ट्र उबर भी नहीं था कि 22 जनवरी को विभागवार आरक्षण पर मोहर लग गयी. अब आरक्षित वर्ग इस आरक्षण को लेकर सड़को से लेकर संसद तक आंदोलित है.आन्दोलन के दबाव में केंद्र सरकार द्वारा यह आश्वासन दिए जाने के बावजूद कि रिव्यू पिटीशन ख़ारिज होने पर सरकार अध्यादेश लाएगी, आन्दोलनकारी 13 पॉइंट रोस्टर के खात्मे और 200 पॉइंट रोस्टर लागू करवाने के लिए आर-पार की लड़ाई लगे हुए. एक नया विचार:रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर!

बहरहाल वंचित आरक्षित वर्गों के छात्र और गुरुजन 13 पॉइंट रोस्टर की जगह पहले वाला 200 पॉइंट रोस्टर लागू करवाने की जो लड़ाई लड़ रहे हैं,उसमें अब एक नया आयाम जुड़ने लगा हैं. वंचित वर्गों के ही कुछ नेता और बुद्धिजीवी यह मांग उठाने लगे हैं कि 200 पॉइंट लागू करवाने की लड़ाई लड़ने के बजाय 13 पॉइंट रोस्टर को ही सशर्त मान लिया जाय. उनकी शर्त यह है कि रोस्टर 13 पॉइंट वाला ही रहे, किन्तु इसे रिवर्स अर्थात उल्टा कर दिया जाय. अर्थात जो भी भर्ती निकले उसमें 1-3 तक क्रमशः एसटी, एससी और ओबीसी को अवसर मिले. चौथे नंबर से सामान्य वर्ग की भर्ती हो. कुख्यात 13 पॉइंट रोस्टर को रिवर्स करने करने की पहलकदमी वर्रिष्ठ पत्रकार व अंतर्राष्ट्रीयख्याति प्राप्त कई किताबों के अनुवादक Mahendra Yadav ने फेसबुक के जरिये की है,जिसे बड़ी तेजी से व्यापक समर्थन मिलता नजर आ रहा है. उन्होंने 7 फरवरी को अपने टाइम लाइन पर यह पोस्ट डाला-‘आंदोलन तो ठीक है, लेकिन अपनी मांग भी स्पष्ट होनी चाहिए। 200 पॉइंट रोस्टर भी किस काम का था! अगर काम का होता तो कुछ तो फायदा दिखता। अब तो रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर ही चाहिए, जिसमें पहले एसटी, फिर एससी और ओबीसी, उसके बाद जनरल का नंबर आए।फालतू के 200 पॉइंट रोस्टर की कोई जरूरत नही.’

रिवर्स रोस्टर के विचार को मिला व्यापक समर्थन

उनके उस पोस्ट को 208 लोगों ने लाइक और 7 लोगों ने शेयर किया था, जबकि 22 लोगों ने कमेंट्स दिया. भारी आश्चर्य की बात थी कि 22 में से सिर्फ 3 लोगों ने ही कुछ उदासीनता दिखाई थी, हालाँकि उन्होंने महेंद्र यादव जी के विचार को ख़ारिज भी नहीं किया था. इनमें चर्चित राजनीति विज्ञानी Arvind kumaar का कमेन्ट था-‘फिलहाल तो 200 पॉइंट रोस्टर ही बच जाये, वही बहुत है. विश्वविद्यालयों ने 200 पॉइंट रोस्टर भी लागू नहीं किया था, इसलिए इसका कोई फायदा भी नहीं दिखा’. अरविन्द कुमार की ही बात का कुछ-कुछ समर्थन करते हुए dharmveer yadaw ने कहा था-‘आपकी बात सही है, लेकिन फिलहाल 200 पॉइंट ही बच जाय, यही बहुत है’. उनकी बात का जवाब देते हुए महेंद्र यादव ने कहा था,’पहले से कमतर मांग करेंगे तो क्या मिलेगा ! जब आन्दोलन ही कर रहे हैं तो सही मांग उठाना चाहिए.’अरविन्द कुमार और धर्मवीर यादव की तरह थोड़ा सा अलग कमेन्ट वरिष्ठ पत्रकार upendra Prasad का था.’रोस्टर सिस्टम ख़त्म हो. सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के लिए इंडियन एजुकेशन सिस्टम बने और इस सर्विस के लिए upsc सेलेक्शन करे .स्टेट लेवल पर यही काम स्टेट पीसीएस करे’,कहना था उपेन्द्र प्रसाद का. उनका जवाब देते हुए महेंद्र यादव ने लिखा था-‘ यही तो ! हमें क्या चाहिए,ये स्पष्ट तो होना चाहिए. आन्दोलन का मकसद क्या है.. 200 पॉइंट रोस्टर तो लग ही नहीं पाया.’ बहरहाल अरविन्द कुमार, धर्मवीर यादव और उपेन्द्र प्रसाद को छोड़कर बाकी लोगों खुलकर महेंद्र यादव के विचार का समर्थन किया था.एडवोकेट lalbabu lalit ने कहा था-that is what i wanted to say. 200 point roster system is faulty’. Gantes kumar ने महेंद्र यादव के विचार का सोत्साह समर्थन करते हुए लिखा था-‘सही कहा भाई साहब आपने’. Bhawesh chaudhry का कहना था-‘हाँ जी अब इसके लिए आन्दोलन करना चाहिए. Prabuddh bhartiy ने नए विचार का समर्थन करते हुए कहा था,’ये बढ़िया कहा ..200 होकर भी 40 यूनिवर्सिटियों में ओबीसी 0 है और एसटी 0.7 इसका भी फायदा नहीं ..13 ही रखों लेकिन रिवर्स क्रम में’. Anil Raj ने रिवर्स क्रम का समर्थन करते हुए कमेन्ट किया था,’ बिल्कुल सही बात रिवर्स मे 13 पॉइंट रोस्टर ही चलना चाहिए। पहले एसटी फिर एससी फिर ओबीसी और बाद मे जनरल। तब जाके कुछ संतुलन बन पायेगा।‘ amit k.yadav saifai ने बड़े जोश के साथ लिखा था-‘यही बात सदन में सपा से सांसद धर्मेन्द्र भैया ने कही है कि हम 13 पॉइंट रोस्टर के समर्थन में हैं.बस उसे उलट दीजिये.पहला, एससी, दूसरा एसटी, तीसरा ओबीसी और चौथा..’ इसी तरह से बाकि लोगों ने भी महेंद्र यादव के विचार का समर्थन किया था.शायद रिवर्स रोस्टर के विचार का बढ़ता असर ही कहा जायेगा कि मशहूर पत्रकार Dilp mandal के इस पोस्ट-‘50% आरक्षण है. हर दूसरा पोस्ट एसटी-एससी-ओबीसी को मिलनी चाहिए. अगर सरकारें बेईमान और कमीनी न होतीं, तो ये होता रोस्टर सिस्टम .लेकिन सरकार बेईमान व कमीनी है. और दलित-पिछड़ों-आदिवासियों की बात करने वाला नेता… क्यों जुबान ख़राब करूं’– पर prabuddh bhartiy को यह लिखने में कोई कुंठा नहीं हुई-‘200 वाला कोणसे काम का था?

रिवर्स रोस्टर प्रणाली के चैम्पियन पैरोकार : सांसद धर्मेन्द्र यादव

बहरहाल रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर प्रणाली की पहलकदमी भले ही पत्रकार महेंद्र यादव ने की हो,किन्तु इसे जनप्रिय बनाने में अग्रणी भूमिका सांसद धर्मेन्द्र यादव कि ही है,इसका साक्ष्य इस लेखक को 11 जनवरी की शाम को मिल गए. 11 जनवरी,2019 को वंचित वर्गों के छात्र और गुरुजनों ने दिल्ली के आईटीओ अवस्थित यूजीसी के ऑफिस से मानव संसाधन विकास मंत्रालय तक की जो ‘न्याय यात्रा’ निकाली, उसमें यह लेखक भी शामिल था. इस मार्च के जनपथ पहुचने के बाद जब पुलिस ने जुलुस में शामिल लोगों को मारपीट कर पार्लियामेंट थाने में बंद कर दिया, तब सांसद सावित्री बाई फुले के कुछ अन्तराल बाद आन्दोलनकारियों का हौसला बढ़ाने धर्मेन्द्र यादव भी थाने आये. यहाँ पहुंचकर उन्होंने अपने संबोधन में सरकार की मंशा और विपक्ष की रणनीति पर विस्तार से रौशनी डाली, जिसपर लोगों ने बार-बार तलियां बजायी .लेकिन सबसे ज्यादा ताली उन्हें उस बात पर मिली जब उन्होंने यह कहा-‘ 13 पॉइंट रोस्टर के समर्थन में हैं. बस उसे उलट दीजिये.पहला, एससी, दूसरा एसटी, तीसरा ओबीसी और चौथा जेनरल को दे दीजिये.’ उनके इस कथन पर जब उनके निकट जाकर मैंने बधाई दिया,उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर कर यह बात कही,’ कई बार कहा हूँ और आगे भी कहता रहूँगा.’ धर्मेन्द्र यादव की इस सोच से शायद औरों की तरह पत्रकार दिलीप मंडल भी रोमांचित हैं, इसलिए उन्होंने सोत्साह 11 जनवरी की देर रात फेसबुक यह पोस्ट डाला जिस पर कुछेक घंटों मध्य ही सैकड़ों लोगों ने अपने पसंद कि मोहर लगा दी. उनका वह पोस्ट था,’रोस्टर लागू करने का लोहियावादी फॉर्मूला- धर्मेंद्र यादव, सांसद. जहां एक ही सीट है, वह आदिवासी को दो, दूसरी सीट एससी को. तीसरी ओबीसी को. इसके बाद चौथी, पांचवीं और छठी अनरिजर्व करो. ऐसे ही 200 प्वायंट तक ले जाओ, जिसमें 30 एससी, 15 एसटी और 54 ओबीसी को दो. बाकी अनरिजर्व रखो खुले मुकाबले के लिए, अगर रोस्टर इस नियम से लागू हुआ तो जज लोग खुद ही कहेंगे कि नौकरी यूनिवर्सिटी और कॉलेज के हिसाब से दो नहीं तो बेचारे सवर्णों को नौकरी कैसे मिलेगी.’

वास्तव में किसी भी विचार को जन्म देने में बुद्धिजीवियों का योगदान भले ही खास हो,किन्तु उसे जनप्रिय बनाने में नेता ही सक्षम होते है.यही रिवर्स रोस्टर के साथ हो रहा है. तेजस्वी यादव के बाद वर्तमान बहुजन नेताओं में धर्मेन्द्र यादव दूसरे ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं, जो सवर्ण आरक्षण के बाद विभागवार आरक्षण से उपजे निराशाजनक हालात में हर समय वंचितों के बीच पहुंचकर मनोबल बढ़ा रहे हैं.और सोशल मीडिया के सौजन्य से विद्युत् गति से उनका सन्देश लोगो तक जा रहा है,जिस कारण रिवर्स रोस्टर का विचार भी फ़ैल रहा. यही कारण है, 12 जनवरी की दोपहर जब इस लेख को लिख रहा हूँ,फेसबुक पर इससे जुड़े दो और पोस्ट बरबस दृष्टि आकर्षित कर रहे हैं. सावित्री बाई फुले महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष NIRDESH SINGH ने आज 12 जनवरी की सुबह 10 बजे यह पोस्ट डाला –‘सरकारें चाहती है कि गरीब और वंचित को उसका हक मिले तो ठीक है 13 पॉइंट रोस्टर लागू कर दो, लेकिन इसको उल्टा करो. पहले ST को दो , दूसरा SC को दो, उसके बाद OBC को, फिर जनरल को .हम इसका समर्थन करेंगे तब न्यायपूर्ण बंटवारा होगा और गरीब को उसका हक मिलेगा,. देश में सबसे ज्यादा सताया और हक वंचित समाज ST है. सबसे पहले उसको दो जिससे वह देश की मुख्यधारा में जुड़ सके और देश तरक्की की राह पर अग्रसर हो.’लेकिन इस मामले में अबतक का सबसे जोरदार पोस्ट KAPILESH PRASAD की ओर से आया है. उन्होंने आज 12 जनवरी की दोपहर में लिखा है.

SC/ST/OBC वर्ग के संवैधानिक आरक्षण के प्रावधानों को लेकर देश भर के अनुसूचित जाति /जनजाति और पिछड़े वर्ग के लो आक्रोश और आन्दोलित हैं। संघ भाजपा की संविधान और आरक्षण विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ संसद से लेकर सड़कों तक गतिरोध और बग़ावत के स्वर फुट रहे हैं। 5 मार्च को 13 प्वाइंट रोस्टर रिजर्वेशन प्रणाली आने के बाद से ही देश का सामाजिक और राजनीतिक तापमान उत्तरोत्तर भीषण वृद्धि को अग्रसर है। आरक्षण व्यवस्था और इसकी पूरी प्रणाली को खत्म करने और इसकी हत्या करने की साज़िश के ख़िलाफ़ सबसे पहले यूनिवर्सिटी स्तरीय शिक्षकों, छात्रों, शोधार्थियों सहिंत सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पहल की। रोस्टर को लेकर इनका आन्दोलन धारदार बना और देशव्यापी जन समर्थन के साथ-साथ देश कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने इसको अपने नैतिक रूप से भौतिक धरातल पर पुरजोर समर्थन दिया और आज भी ये निरन्तर इस मनुवादी षडयंत्र के ख़िलाफ़ आन्दोलित हैं। 200 प्वाइंट रोस्टर पर संसद में बिल नहीं लाए जाने तक तथा यूनिवर्सिटीज में अगली किसी भी प्रकार नियुक्तियों पर देश की सड़कों और संसद में यह गतिरोध बना रहेगा। संवैधानिक आरक्षण को लेकर इस देशव्यापी आन्दोलन की पृष्ठभूमि मे 13 पॉइंट रोस्टर सिस्टम में देश में शक्ति के तमाम स्रोतों और संसाधनों में बहुजनों की भागीदारी का मुद्दा गरमाया रहेगा।

इसमें कोई शक-संदेह नहीं कि SC/ST/OBC की इस राष्ट्रीय अस्मिता की लड़ाई का अगुआ दस्ता शिक्षकों, छात्रों, शोधार्थियों और सामाजिक /राजनीति कार्यकर्ताओं की टीम ने राजनीतिक महकमे के शीर्ष राजनेताओं, सांसदों, विधायकों एव अन्य जन प्रतिनिधियों को विरोध की कतार में ला खड़ा किया है। बहरहाल सरकार इस ज्वलंत मुद्दे को लेकर फंसी जरूर है पर वह अपनी सुनियोजित साज़िशों से बाज नहीं आने वाली! सो बेहतर हो विरोध का यह स्वर और आन्दोलन और मुखर हो, धारदार हो और देश की 85 % बहुसंख्यकों की प्रतिभागिता इसमें बनी रहे।

किन्तु देश की प्रबुद्ध ताक़तों, सामाजिक न्याय की नेतृत्वकारी शक्तियों और वंचित जमात के सच्चे, समर्पित सिपहसालारों व रहनुमाओं को 200 प्वाइंट रोस्टर को पुनः यथावत बहाल करने सम्बन्धी बिल की हठधर्मिता से आगे निकल कर संघ – भाजपा और मोदी सरकार को उनके ही जाल में क्यों न फांसा जाए? इससे देश की समस्त सेवाओं, शक्ति के तमाम स्रोतों, न्यायपालिका आदि में बहुजनों की भागीदारी ” जनसंख्यानुपातिक भागीदारी ” की लड़ाई को संबल और आधार मिले? कहने का आशय यह कि आरक्षण के असल हकदार और देश के वंचितों के साथ संवैधानिक न्याय हो, सो 13 प्वाइंट भी मंजूर है बशर्ते 13 पॉइंट रोस्टर रिजर्वेशन सिस्टम के वर्तमान क्रमानुसार नियुक्तियों के प्रावधानों को सरकार ठीक उल्टे क्रम में संवैधानिक रूप से लागू करने की तत्काल घोषणा करे। रोस्टर क्रम आरक्षित /अनारक्षित वर्ग.1. ST,2. SC,3. OBC ,4.General @kapileshprasad 12/02/2019

संसाधनों पर पहला हक़ किसका!

बहरहाल वंचित समाजों के बुद्धिजीवियों और नेतृत्व वर्ग के मध्य बड़ी तेजी से उभरता रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर का विचार, बारह साल पुराने एक सवाल को बदले हालात में नए सिरे से और बड़े आकार में राष्ट्र के समक्ष खड़ा दिया है. स्मरण रहे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कभी यह कहकर राष्ट्र को चौका दिया था कि संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है. वह बयान उन्होंने मुस्लिम समुदाय की बदहाली को उजागर करने वाली सच्चर रिपोर्ट के 30 नवम्बर, 2006 को संसद के पटल पर रखे जाने के कुछ ही दिन बाद 10 दिसंबर,2006 को राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की बैठक में दिया था. एनडीसी की उस बैठक में उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक पिछड़े व अल्पसंख्यक वर्गों और विशेषकर मुसलमानों का है। डॉ. सिंह के उस बयान का कांग्रेस ने भी समर्थन किया था। उनका वह बयान उस वक्त आया था, जब कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे। लिहाजा उनके उस बयान ने काफी तूल पकड़ लिया। भाजपा ने पूर्व प्रधानमंत्री के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उसके बाद एनडीसी का मंच राजनीति का अखाड़ा बन गया था और उसी मंच से भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री के बयान का कड़ा विरोध जताया था।विरोध इतना बढ़ गया था कि बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता संजय बारू को मनमोहन सिंह के बयान पर सफाई देनी पड़ गयी थी। उन्हें कहना पड़ा था कि प्रधानमंत्री अल्पसंख्यकों की बात कर रहे थे, केवल मुसलमानों की नहीं। तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह ने मनमोहन सिंह के बयान को देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बताया था।

नरेन्द्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान और रमण सिंह की कड़ी आपत्ति के कुछ अंतराल बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर निशाना साधते हुए कहा था कि केंद्र सरकार अपने स्वार्थों के लिए सरकारी खजाने पर अल्पसंख्यकों का हक़ बताकर अलगाववाद और अल्पसंख्यकवाद को हवा दे रही है. लोग सोच सकते हैं बात आई गयी हो गयी होगी. किन्तु नहीं ! 2006 मे पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा कही गयी उस बात को भाजपा के लोग आज भी नहीं भूले हैं: वे मौका माहौल देखकर समय-समय पर कांग्रेस और डॉ. सिंह को निशाने पर लेते रहे हैं. इसी क्रम में अभी 30 जनवरी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय सम्मलेन में कह दिया,’जो लोग दावा करते थे कि संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है, उन्होंने उनके हक़ के लिए कुछ नहीं किया. जबकि हमारा मानना है देश के संसाधनों पर पहला हक़ गरीबों का है.’अमित शाह के दो दिन बाद 1 फ़रवरी, 2019 को बजट पेश करते हुए केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने फिर एक बार मनमोहन सिंह पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते एवं भाजपा के रुख से अवगत कराते हुए कह दिया,’संसाधनों पर पहला हक़ गरीबों का है.’ यही नहीं पुराने दलित भाजपाई रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बनने के बाद भी मनमोहन सिंह कि बात नहीं भूले ,लिहाजा 70 वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति के पारम्परिक संबोधन में उन्होंने 25 जनववरी,2019 की शाम कह दिया,’देश के संसाधनों पर हम सभी का बराबर का अधिकार है.चाहे हम किसी भी समूह, समुदाय या क्षेत्र के हों.समग्रता की भावना को अपनाये बगैर भारत के विकास कि अवधारणा साकार नहीं हो सकती. भारत की बहुलता हमारी सबसे बड़ी शक्ति है. भारतीय मॉडल विविधता, लोकतंत्र और विकास के तीन स्तंभों पर टिका है.’ अवसरों और संसाधनों पर पहला हक़ : सवर्णों या एसटी-एससी-ओबीसी का!

बहरहाल अब रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर के जरिये एसटी,एससी ,ओबीसी के बाद सामान्य वर्ग को देने का जो सवाल बहुजन नेतृत्व और बुद्धिजीवियों की ओर से खड़ा किया जा रहा है , वह यक्ष प्रश्न बनकर अब राष्ट्र के समक्ष खड़ा होने जा रहा है. स्मरण रहे ढेरों जानकार लोगों के मुताबिक़ जो 13 पॉइंट रोस्टर उच्च शिक्षा में नियुक्तियों का आधार बनने जा रहा है , वह कल उच्च शिक्षा के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी लागू हो सकता है. अतः इसका असर कॉलेज/विश्वविद्यालयों से आगे भी होने जा रहा है. बहरहाल यह बात ढंकी-छिपी नहीं रह गयी है कि इसका पूरा ताना– बाना उन बहुजनों को नॉलेज सेक्टर आउट करने के मकसद से तैयार किया गया है, जिनका राज-सत्ता और अर्थ-सत्ता के साथ ज्ञान-सत्ता में अभी ठीक से प्रवेश भी नहीं हो पाया है. दूसरी ओर इसके जरिये ऐसे तबकों का ज्ञान-सत्ता में अप्रतिरोध्य एकाधिकार स्थापित करने का सफल उपक्रम चलाया गया है, जिनके शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक और शैक्षिक) पर वर्चस्व की दुनिया में कोई मिसाल ही नहीं है. इन्ही सवर्णों को संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में आरक्षण सुलभ कराने के एक पखवाड़े के मध्य 13 पॉइंट रोस्टर के जरिये शिक्षा के क्षेत्र में उनके एकाधिकार को पुष्ट कराने की व्यवस्था करा दी गयी है.बहरहाल 13 पॉइंट रोस्टर के लाभकारी वर्ग की स्थिति का एक बार ठीक से जायजा लेने पर किसी का भी सर चकरा जायेगा.

केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी 2016 को जारी आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार में ग्रुप ‘ए’ की कुल नौकिरयों की संख्या 84 हजार 521 है। इसमें 57 हजार 202 पर सामान्य वर्गो ( सवर्णों ) का कब्जा है। यह कुल नौकरियों का 67.66 प्रतिशत होता है। इसका अर्थ है कि 15-16 प्रतिशत सवर्णों ने करीब 68 प्रतिशत ग्रुप ए के पदों पर कब्जा कर रखा है और देश की आबादी को 85 प्रतिशत ओबीसी, दलित और आदिवासियों के हि्स्से सिर्फ 32 प्रतिशत पद हैं। अब गुप ‘बी’ के पदों को लेते हैं। इस ग्रुप में 2 लाख 90 हजार 598 पद हैं। इसमें से 1 लाख 80 हजार 130 पदों पर अनारक्षित वर्गों का कब्जा है। यह ग्रुप बी की कुल नौकरियों का 61.98 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि ग्रुप बी के पदों पर भी सर्वण जातियों का ही कब्जा है। यहां भी 85 प्रतिशत आरक्षित संवर्ग के लोगों को सिर्फ 28 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी है। कुछ ज्यादा बेहतर स्थिति ग्रुप ‘सी’ में भी नहीं है। ग्रुप सी के 28 लाख 33 हजार 696 पदों में से 14 लाख 55 हजार 389 पदों पर अनारक्षित वर्गों ( अधिकांश सवर्ण )का ही कब्जा है। यानी 51.36 प्रतिशत पदों पर। आधे से अधिक है।हां, सफाई कर्मचारियों का एक ऐसा संवर्ग है, जिसमें एससी,एसटी और ओबीसी 50 प्रतिशत से अधिक है। जहां तक उच्च शिक्षा में नौकरियों का प्रश्न है इन पंक्तियों के लिखे जाने के एक सप्ताह पूर्व आरटीआई के सूत्रों से पता चला कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसर, एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पदों पर सवर्णों की उपस्थित क्रमशः 95.2 , 92.90 और 76.12 प्रतिशत है. आंबेडकर के हिसाब से शक्ति के स्रोत के रूप में जो धर्म आर्थिक शक्ति के समतुल्य है, उस पर आज भी 100 प्रतिशत आरक्षण इसी वर्ग के लीडर समुदाय का है. धार्मिक आरक्षण सहित सरकारी नौकरियों के ये आंकडे चीख-चीख कह रहे हैं कि आजादी के 70 सालों बाद भी हजारों साल पूर्व की भांति सवर्ण ही इस देश के मालिक हैं.

सरकारी नौकरियों से आगे बढ़कर यदि कोई गौर से देखे तो पता चलेगा कि पूरे देश में जो असंख्य गगनचुम्बी भवन खड़े हैं, उनमें 80-90 प्रतिशत फ्लैट्स इन्ही मालिकों के हैं. मेट्रोपोलिटन शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में 80-90 प्रतिशत दूकाने इन्ही की है. चार से आठ-आठ लेन की सड़कों पर चमचमाती गाड़ियों का जो सैलाब नजर आता है, उनमें 90 प्रतिशत से ज्यादे गाडियां इन्हीं की होती हैं. देश के जनमत निर्माण में लगे छोटे-बड़े अख़बारों से लेकर तमाम चैनल्स प्राय इन्ही के हैं. फिल्म और मनोरंजन तथा ज्ञान-उद्योग पर 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा इन्ही का है. संसद विधान सभाओं में वंचित वर्गों के जनप्रतिनिधियों की संख्या भले ही ठीक-ठाक हो, किन्तु मंत्रिमंडलों में दबदबा इन्ही का है. मंत्रिमंडलों में लिए गए फैसलों को अमलीजामा पहनाने वाले 80-90 प्रतिशत अधिकारी इन्ही वर्गों से हैं. न्यायिक सेवा, शासन-प्रशासन,उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया,धर्म और ज्ञान क्षेत्र में भारत के सवर्णों जैसा दबदबा आज की तारीख में दुनिया में कहीं भी किसी समुदाय विशेष का नहीं है.अतः भारत के जिस तबके की प्रगति में न तो अतीत में कोई अवरोध खड़ा किया गया और न आज किया जा रहा है ; जिनका आज भी शक्ति के समस्त स्रोतों पर औसतन 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा है,वैसे शक्तिसंपन्न सवर्णों को 13 रोस्टर के जरिये कॉलेज/विश्वविद्यालय की नौकरियों या अन्य किसी भी क्षेत्र में पहले अवसर सुलभ कराने का कोई औचित्य है ! नहीं है!नहीं है नहीं है!!!

ऐसे में दुनिया की कोई भी अदालत: कोई भी लोकतान्त्रिक व विवेकसंपन्न समाज रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर का समर्थन करेगा ही करेगा. कम से कम बहुजन समाज तो करने लगा है. काबिले गौर है कि रिवर्स 13 पॉइंट रोस्टर के समर्थन में आ रहे पोस्टों की देखादेखी कल अर्थात 12 जनवरी की शाम एक छोटा सा यह पोस्ट डाला-अवसरों और संसाधनों पर पहला हक़ वंचित (एसटी-एससी-ओबीसी) वगों का .इससे आप कितना सहमत हैं?’मेरे इस छोटे से पोस्ट पर आज 13 जनवरी की सुबह 10.40 तक 55 कमेन्ट आये हैं, और 90 प्रतिशत ज्यादा लोगों ने 100 प्रतिशत समर्थन जताया है,जो बताता है यदि बहुजन नेतृत्व और बुद्धिजीवी वर्ग अवसरों और संसाधनों के बंटवारे में पहला हक़ किनका के मुद्दे पर पर दुनिया कि विशालतम वंचित आबादी के मध्य जाये तो उसके चमत्कारिक परिणाम सामने आ सकते हैं. हाँ जैसे मनमोहन सिंह के बयान को सुविधाभोगी सवर्ण वर्ग के नेता और बुद्धिजीवियों ने अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला करार दिया था वैसे ही वे वंचित जातियों के हक़ की हिमायत को जातिवाद को बढ़ावा देने वाला कह सकते हैं.लेकिन उनके ऐसे आरोपों की परवाह न करते हुए बहुजनों को तमाम क्षेत्रों में ही एसटी,एससी और ओबीसी को प्राथमिकता दिए जाने की लड़ाई में उतरना चाहिए. बिना इसके न तो बहुजनों को उनका वाजिब हक़ मिलेगा और न ही सामाजिक और आर्थिक गैर- बराबरी का खात्मा ही होगा , जिसका सपना हमारे राष्ट निर्माताओं ने देखा था.

Read it also-बिहारः महागठबंधन में सीटों को लेकर रस्सा-कस्सी शुरू, मांझी ने दिखाया तेवर

दिल्ली में केजरीवाल की ‘तानाशाही हटाओ, देश बचाओ’ रैली

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले विभिन्न प्रदेशों में भाजपा को घेरने का सिलसिला जारी है. बिहार और पश्चिम बंगाल के बाद बुधवार को दिल्ली में तमाम विपक्षी दलों ने एक मंच से मोदी सरकार को जमकर घेरा. यह रैली आम आदमी पार्टी की ओर से आयोजित की गई थी. इसे ‘तानाशाही हटाओ, देश बचाओ’ रैली का नाम दिया गया था. इस दौरान केजरीवाल के साथ ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, शरद यादव, डी.राजा, सीताराम येचुरी आदि ने एक मंच से मोदी सरकार पर हल्ला बोला.

आप द्वारा जंतर मंतर पर आयोजित इस रैली को विपक्ष के तमाम नेताओं ने संबोधित किया. विभिन्न राज्यों के मुख्यालयों पर केंद्र के विपक्षी दलों द्वारा किसी न किसी बहाने एक के बाद एक लगातार रैली की जा रही है. ऐसा कर विपक्षी पार्टियां जहां खुद को राजनीतिक धार दे रही हैं तो इसी बहाने विपक्षी एकता को भी दिखा रही है. इससे पहले मंगलवार को भी अखिलेश यादव को इलाहाबाद जाने से रोकने के लिए लखनऊ एयरपोर्ट पर रोक देने के बाद भी सभी विपक्षी दलों ने एक साथ इस घटना की निंदा की थी. बुधवार को संसद में भी यह मुद्दा जमकर गूंजा.

Read it also-यूपी बजट पर बहनजी का ट्विट

बहनजी के ट्विटर अकाउंट में हुआ बदलाव, अब @Mayawati ढूंढ़िए

0
New Tweeter Address of BSP Chief Mayawati

नई दिल्ली। बसपा प्रमुख मायावती के ट्विटर अकाउंट में एक बदलाव किया गया है. ट्विटर पर उनका नाम @Sushrimayawati था, उसकी जगह अब वो @Mayawati नाम से मौजूद रहेंगी. 7 फरवरी को ट्विटर पर सक्रिय होने के बाद मायावती को उनके समर्थक लगातार फॉलो कर रहे हैं. समर्थकों के अलावा अन्य राजनीतिज्ञ और मीडियाकर्मी भी बसपा प्रमुख की गतिविधियों से अवगत रहने के लिए उनको फॉलो कर रहे हैं.

दरअसल सुश्री शब्द अविवाहित महिलाओं के लिए आदरसूचक तौर पर लगाया जाता है. मायावती के आवास पर भी उनके नेम प्लेट पर सुश्री मायावती ही लिखा रहता है. हालांकि अब ट्विटर अकाउंट पर अपने नाम के आगे से सुश्री शब्द हटाने को लेकर आखिर बसपा प्रमुख की मंशा क्या है, यह साफ नहीं है. लेकिन संभव है कि ट्विटर पर ठीक से सर्च में आने के लिए और फॉलोअरों की पहुंच आसान बनाने के लिए यह बदलाव किया गया हो.

बिहारः महागठबंधन में सीटों को लेकर रस्सा-कस्सी शुरू, मांझी ने दिखाया तेवर

फाइल फोटोः जीतनराम मांझी

पटना। 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. गठबंधन में रह कर लड़ने वाले राजनीतिक दल सीटों की रस्सा-कस्सी में फंसे हैं. ऐसे में बिहार में भी सीटों को लेकर खींचतान शुरू हो गई है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा यानि हम के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने ऐलान कर दिया है कि बिहार चुनाव में वह उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे.

उन्होंने कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा को जितनी सीटें मिलेंगी हम को भी उससे कम सीटें मंजूर नहीं होंगी. इसका तर्क देते हुए मांझी ने कहा कि ‘हम’ गठबंधन में काफी पहले से शामिल है, जबकि कुशवाहा हाल ही में गठबंधन में शामिल हुए हैं. कुशवाहा ने यहां तक कह दिया कि अगर ऐसा नहीं होता है तो हम दूसरे विकल्प पर सोचेंगे. आगामी 18 फरवरी को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी अपने आगे की रणनीति तय करेगी.

दरअसल चर्चा है कि रालोसपा प्रदेश की चार सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह भाजपा नीत-राजग द्वारा उसे पेशकश की गई सीटों की दोगुनी संख्या है. इसमें आरएलएसपी को काराकाट सीट दी गई है, जहां से कुशवाहा सांसद हैं. इसके अलावा मोतिहारी, गोपालगंज की सीट भी कुशवाहा को दिए जाने की चर्चा है.

प्रियंका गांधी ने की महाबैठक, दिया यह बयान

लखनऊ दफ्तर में पार्टी कार्यकर्ताओं संग प्रियंका गांधी

लखनऊ। पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार मिलने और पार्टी में महासचिव पद मिलने के बाद प्रियंका गांधी सक्रिय हो गई हैं. रोड शो से यूपी की सड़कों पर उतरने वाली प्रियंका गांधी लगातार बैठक कर रही हैं. इस दौरान वह अलग-अलग लोकसभा के प्रमुख लोगों से मुलाकात कर रही हैं. मंगलवार की दोपहर को प्रियंका गांधी ने महाबैठक की. यह बैठक दोपहर से शुरू होकर पूरी रात चली और बुधवार को सुबह 5.30 बजे खत्म हुई.

इस दौरान प्रियंका गांधी ने प्रदेश में चुनाव जीतने के तरीकों पर बात की. बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में प्रियंका गांधी ने कहा कि मैं लोगों की राय सुन रही हूं कि आखिर चुनाव कैसे जीता जाए. पीएम मोदी से मुकाबले के सवाल पर उन्होंने कहा कि पीएम मोदी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मुकाबला है और राहुल लगातार लड़ रहे हैं. तो वहीं रॉबर्ट वाड्रा से ईडी की पूछताछ पर उन्होंने कहा कि यह सब चीजें चलती रहेंगी, मैं अपना काम कर रही हूं. गौरतलब है कि सालों बाद गांधी परिवार का कोई व्यक्ति लखनऊ में पार्टी ऑफिस में बैठ रहा है. इससे प्रदेश भर के कांग्रेस कार्यकर्ता खासे उत्साहित हैं.

दुबई (यु. ए. इ.) यात्रा : एक अनुभव

दुबई में रह रहे बहुजन भारतियों नें पहली बार सत्तरवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक प्रोग्राम का आयोजन किया जिसका विषय था –“भारतीय संविधान और प्रजातंत्र”. 25 जनवरी 2019 को कार्यक्रम आयोजित था. मेरे अलावें डॉ मुन्नी भारती, भू-वैज्ञानिक सरविंद जी और सेल जी एम महेश कुमार राजन जी भी आमंत्रित थे. इस प्रकार हम चार लोगों की टीम 22 जनवरी को 10 बजे रात्रि में दुबई शहर पहुँच गए. दिल्ली एयरपोर्ट पर वापसी 27 जनवरी को हुआ. हम लोगों नें दुबई और शारजाह के प्रमुख स्थानों में तीन दिन भ्रमण किया. इस दौरान जो मैंने दुबई के संबंध में अनुभव किया उसे पन्नो पर उतारने से मैं अपने आप को नहीं रोक पाया क्योंकि दुबई ने मुझे बेहद प्रभावित और प्रेरित किया है.

बेशक, भारत में स्वच्छता अभियान चल रहा है परंतु असर दुबई में दिखाई दे रहा है. यहां कोई स्वच्छता अभियान जैसी हरकत नहीं है फिर भी दुबई दुनियां का सबसे स्वच्छतम सिटी है. दुबई मॉल दुनियां का सबसे बड़ा मॉल और बुर्ज़ खलीफा दुनियां का सबसे ऊँचा उर्ध्व सिटी (verticle city) है जिसकी ऊँचाई 828 मीटर है जिसमें 165 मंजिलें है. इसमें लगी लिफ्ट कमाल की है, यह एक सेकेण्ड से भी कम समय में प्रति मंजिल चलती है. यहाँ दिन भर वैसे भीड़-भाड़ रहती है जैसे कलकते में स्प्लेनेड और दिल्ली में कनॉट पलेश में. शाम के समय बुर्ज़ खलीफा की बहुरंगी रोशनियों की आतिशबाजी देखती ही बनती है. साथ में उसके नीचे म्यूजिकल दुबई फाउन्टेन का नज़ारा मन मोह लेता है. दुबई बुर्ज़ अल अरब दुनियां का एकमात्र सेवेन स्टार होटल है जो समुद्र में खड़ा है.

दुबई के सड़क या फर्श पर कागज़ का एक टुकड़ा भी नहीं दिखाई देता. कोई सड़क पर या कोने में थूकता नहीं. सभी नियत स्थान पर रखे डस्टबिन में ही कचरा डालते है. वहाँ के लोगों में स्वच्छता की स्वाभाविक समझ है. जब मन स्वच्छ होता है तब ही वातावरण स्वच्छ रखने की संकल्प जगती है. ये संकल्प दुबई वासियों में कूट-कूट कर भरी हुई है. यहां लोगों में नागरिक विवेक (Civics sence) इतना है कि कोई चालक हॉर्न बजा कर साइड नहीं लेता, वहाँ दिन में भी हॉर्न बजाना अगले को अपमान माना जाता है. अगर आप सड़क पार कर रहे है तो चालक कुछ दुरी पर ही कार रोक देता है ताकि आप सुरक्षित सड़क पार कर सकें. हमारे यहाँ तो ठोक ही देगा, ऊपर से गाली भी देगा. दुबई में प्रत्येक चीजें निर्धारित समय, नियम, प्रावधान औऱ कानून के अनुसार होता है. सभी लोग कानून का पूरा-पूरा सम्मान करते हैं. जिस बस्तु का जितना कीमत है, उसका उतना ही कीमत वसूला जाता है. ईमानदारी इतनी है कि यदि आपका कोई समान गिर गया है तो जब भी आपको याद आये आप वहाँ आ कर ले सकते है. आपका गिरा समान कोई नहीं उठाएगा. काश ऐसा भारत में होता!

दुबई में कांस्टीट्यूशनल मोनार्की है जो यूनाईटेड अरब अमीरात (UAE) का एक अंग है. दुबई के अलावें अबू धाबी, शारजाह, रस अल खेम, अजमान, उम अल कुवैन और फुजराह यु. ए. इ. के अंग हैं. यु. ए. इ. 83,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है जिसमें दुबई का क्षेत्रफल 4,14l वर्ग किलो मीटर है. अरेबिक और अंग्रेजी यहाँ की मुख्य भाषा है. यहाँ की जनसंख्या लगभग ढाई करोड़ है. दुबई एक मुस्लिम देश है फिर भी कोई भेद-भाव नहीं देखने को मिलता. सभी धर्म के लोगों को उनके धर्म के अनुसार रहने की छूट है. सभी जाति, धर्म वर्ग के लोगों में परस्पर मैत्री भावना है. यहां के शासक हिज हाईनेस शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकदूम हैं. वे बड़े ही दूरदर्शी (Visionary) हुक्मरान है. ये दुबई में वह संभव कर चुके हैं जो दुनियां अभी सोच रही है. इनका कहना है-“कुछ भी असंभव नहीं है, सर्वश्रेष्ठ से कुछ भी कम नहीं.“ इनका स्लोगन है- In Dubai we do not wait things to happen, We make them happen. इतना ही नहीं, इनका संकल्प है- ये जो करेंगे वह दुनियां में एकलौता होगा या नम्बर एक होगा (either only one or number one)”. इसके लिए ये दुनियां के सभी देशों से चुन-चुन कर सर्व श्रेष्ठ विशेषज्ञों को बुलाते हैं, उनके साथ मीटिंग करते हैं और फिर कार्य रूप देने में लग जाते हैं. नई नई तकनीकों के ईजाद और उत्पादकता के बढोतरी की इन्हे सनक है जिससे दुबई की अर्थव्यवस्था दुनियां की सर्वश्रेष्ठ और सिटी हाई टेक हो गई है. इनके इस सोच से वहां की जनता शांति और खुशहाली से रहती है. दस साल आगे का प्लान करते हैं ; सिर्फ योजना ही नहीं बनाते, उस पर अमल भी करते हैं. यहाँ सिर्फ जनता के विकास के लिए काम होता है. इन्होंने रेगिस्तान में जो हाईटेक,आधुनातम, अनुशासित और मनमोहक शहर विकसित किया है उसका विश्व में कोई जोड़ नहीं. हर कुछ अव्वल है, देखने के बाद मन बोलता है आह!

दुबई में 20% स्थानीय और 80% बाहरी लोग है. आमदनी का 1 % प्रतिशत पेट्रोलियम पदार्थ और 80 % बिजिनेज़, टूरिज्म, रियल स्टेट, मनोरंजन, फ़ूड प्रोसेसिंग, कपड़ा उद्योग, अल्युमिनियम उत्पादन, गोल्ड बिजिनेस आदि है . तेल उत्पाद का मुख्य केंद्र अबूधाबी है. दुबई विश्व बिजिनेश हब है. यहां कॉरपोरेट वर्ल्ड बेहिचक बिजिनेज़ स्थापित करते है. यहां आतंकवाद नाम की कोई चीज़ नहीं है, परम् शांति और सुरक्षा का माहौल है. यहाँ सभी लोग सुरक्षित और सुखी हैं. यहाँ मजदूरों की मासिक आमदनी 12,000 से 20,000 भारतीय मुद्रा है जबकि टैक्सी चालक एक लाख भारतीय मुद्रा कमाता है. ये सब यहां के शासक के विजनरी सोच का प्रतिफल है. यदि भारतीय शासक वर्ग में ये सोच आ जाये तो क्या कहना! भारत फिर से सोने की चिड़िया वाला देश बन जाएगा . मैंने यहाँ कहीं कोई भीखारी नहीं देखा. सड़कों पर रिक्शा, ऑटो, सायकल और मोटरसायकल नहीं देखा. हां, शाम के वक़्त बुर्ज़ खलीफा के नीचे दुबई फाउन्टेन के पास महँगी-महँगी कुछ बाईक ज़रूर दिखाई पड़े. सभी लोगों के पास महँगी महँगी चार पहिये निजी वाहन है. एयर कंडीशन्स बेहतरीन टैक्सी और लोकल बसें भी वहां की 16 लेन की सड़कों पर खूब दौड़ती है. भारत में सड़कों से सटे किनारे पर चाय, पकौड़ी, अंडा, इडली आदि के ठेले पग-पग पर दिखाई देते हैं ; इसके अलावें छोटे-छोटे गंदे होटल्स भी देखने को मिल जायेंगे, परन्तु दुबई के सड़कों पर ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते, कोई ऐसा करने के लिए सोच भी नहीं सकता. सभी चीजें सड़क के किनारे बने बड़े-बड़े विश्व प्रसिद्द माँल में ही मिलेंगे.

दुबई रेगिस्तान की बालू और समुन्द्र में बसाया हुआ दुनियां का अल्ट्रा मॉडर्न और हाई टेक सिटी है. यह सब कुछ पूर्व योजना बद्ध विधि से बसा हुआ शहर है. सच कहें तो कहना पड़ेगा दुबई में रेत में हीरा उगता है. यहां पर प्रत्येक स्थान पर भारतीय छाए हुए हैं. बड़े-बड़े रेस्टूरेंट के मालिक भारतीय ही हैं. इसके अलावे ट्रेंडिंग, इंजियरिंग, मेडिकल, आयल कॉर्पोरेशन, एजुकेशन आदि में अपनी पहचान बनाए हुए है. ड्राईवर और लेबर भी अधिकांशतः इंडियन हैं. सारे इंडियन्स दुबई के अनुशासन में ढले हुए है. लेबर से ले कर अफसर तक अपना-अपना काम सही समय पर शुरू करते है और ईमानदारी पूर्वक करते हैं. कोई किसी को ठगने की सोचता भी नहीं. इस्लामिक देश है किन्तु मस्जिद खास-खास जगहों पर ही निर्मित है जहाँ पर कोई सभ्य कपड़ों में ही जा सकता है. यहाँ सभी धर्मों का सम्मान है. सभी अपने-अपने धर्म के अनुसार रहने के लिए स्वतंत्र हैं. किन्तु भारत में! यहाँ गली, कुचे, चौक, चौराहे पर बजरंग बली और शिव जी का मंदिर मिल जायेगा जो श्रद्धा के केंद्र से ज्यादा ब्राह्मण पुजारियों के पेट भराई का साधन ज्यादा है. हिन्दुओ को मुस्लिमों की देश के प्रति वफादारी पर सदैव सन्देश होता है जिससे भारत में सांप्रदायिक माहौल सदा ही बिगड़ा रहता है.

दुबई में कार्यरत पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, इंडियन्स सभी परस्पर मैत्री-भाव का व्यवहार करते हैं. सिक्युरिटी ईमानदारी पूर्वक और भय, पक्षपात रहित हो कर अपना काम करता है. किसी प्रकार की गड़बड़ी होने पर दो मिनिट में पुलिस घटनास्थल पर पहुंचती है और पीड़ित को मदद करती है. दोषी को फाइन लगता है. चाहे कोई भी हो, कानून अपना निर्बाध काम करता है. भारत मे तो दबंग और भीड़ पुलिस को ही क़त्ल कर देते है. भारत मे लगता है कानून के रखवाले की ही सुरक्षा की गारंटी नहीं है अथवा कानून का रखवाला ही कानून तोड़ता है. परन्तु दुबई में क्या कहना! किसी की हिम्मत नहीं कि कानून को कोई ठेंगा दिखाए चाहे वह कोई भी हस्ती हो.

यहाँ के शासक के शासन में प्रत्येक जनता सुख शांति और सुरक्षा का अनुभव करता है. शासन, प्रशासन, कानून व्यवस्था बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त है. कोई लड़की किसी भी समय रात हो या दिन, अकेले सड़क पर चल सकती है, उसके तरफ बुरी निगाह से कोई देख नहीं सकता. एक फोन पर तत्काल पुलिस सहायता उपलब्ध हो जाती है. भारत में साधारण नेता अथवा नेता का कार्यकर्ता शासक के रोब में रहता है तथा दबंगई कर कानून को प्रभावित करता है और बॉडीगार्ड रखना सम्मान का प्रतीक मानता है. भारत में नेताओं की सुरक्षा पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है. परंतु दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद बिना सुरक्षा के सड़क पर चलते हैं और सड़क पार करते समय सड़क पर खड़ा हो कर ट्रैफिक सिग्नल ग्रीन होने का इंतज़ार करते हैं, इसे कहते हैं कानून का सम्मान. आम लोग निर्धारित गतिसीमा में वाहन चलाते हैं. अधिक गति में चलने पर रोड़ पर लगी सेंसर और कार में लगी एलोट्रॉनिक डिवाइस के जरिये स्वतः फाइन बैंक एकाउंट से कट जाता है. इसी प्रकार टोल गेट से पार करते हुए स्वतः निर्धारित चार्ज वाहन में लगी प्रीपेड सिम से कट जाता है. भारत में प्रायः दबंग लोग टोल का गेट तोड़ते हुए पार होते देखे जाते हैं.

दुबई में काफी संख्या में आम्बेडकरवादी लोग हैं. ये बड़े ही धूमधाम से डॉ आम्बेडकर की जयंती बड़े पैमाने पर मानते हैं. यहाँ इनकी एक आम्बेकेराईट इंटरनेशनल मिशन (AIM) नमक संस्था है. हमें AIM द्वारा ही आमंत्रित किया गया था. पुणे, महाराष्ट्र के एक बड़े बिजिनेस मैन मान्यवर भगवान गवई बड़े ही उद्धम शील और मिशनरी व्यक्ति हैं, ये AIM के संरक्षक हैं. हम सभी उन्हीं के मकान में ठहरे थे. उनकी आतिथ्य को सिर्फ अनुभूत किया जा सकता है, वर्णन नहीं.

संजय काम्बले (महाराष्ट्र) और संजय राज (झारखण्ड) वहां सक्रीय मिशनरी भूमिका में रहते है. मेरा यह ख्याल था की भारत से सभी जाति-धर्म के लोग विदेशों में जा कर भेद-भाव और संकीर्णता से ऊपर उठ कर सामाजिक और मानसिक रूप से अपने में बहुत कुछ बदलाव ले लातें हैं, परन्तु यह सत्य नहीं है. सभी लोग बदल सकते हैं किन्तु ब्राह्मण अपनी जातिवादी सोच में कभी बदलाव नहीं ला सकता. वह जहाँ-जहाँ जायेगा जात्तिवाद का ज़हर ले कर ही जायेगा. हुआ यह कि रिपब्लिक डे कार्यक्रम के लिए AIM के सदस्यों नें एक रेस्टुरेंट बुक किया था जिसका मालिक ब्राह्मण था. परन्तु जैसे ही रेस्टुरेंट के ब्राह्मण मालिक को यह पता चला की डॉ. आम्बेडकर के कार्यक्रम के लिए रेस्टुरेंट बुक किया गया है, उसने बुकिंग कैंसिल कर दी. तब जा कर संस्था को दूसरा रेस्टुरेंट बुक करना पड़ा जिसका मालिक केरल का एक मुसलमान था ; संयोग वश यह रेस्टुरेंट पहले वाला से बेहतर था. रेस्टुरेंट का नाम केरल के एक गावं के नाम पर है-‘थैलेसरी रेस्टुरेंट’l कार्यक्रम के दिन जब मेरा भाषण खत्म हुआ तो रेस्टुरेंट का मैनेजर, जो मुस्लिम था, ने मुझसे आ कर हाथ मिलते हुए कहा की “आपने क्या शानदार बोला! हमारे देश का संविधान सबसे अच्छा है.” वह पुरे कार्यक्रम को देखा और सुना था. भारत में संघवादी यह भ्रम फैलाते हैं की मुस्लिम हिन्दुओं का दुश्मन है और दलित हिन्दू का अभिन्न अंग हैं: जबकि उक्त घटना यह सिद्ध करती है की दलित हिन्दू नहीं है और हमारा दुश्मन मुस्लिम नहीं, बल्कि मनु के वंशज हैं.

दुबई में हेल्थ हाइजीन का काफी ख्याल रखा जाता है. यहां प्रत्येक होटल के वेटर, कुक का प्रशिक्षण होता है जो होटल की स्वक्षता के महत्व को समझे. भारत में ग्राहकों का तो मक्खियों से स्वागत होता है. दुबई में अगर आप कार गन्दा कर के रखें है तो आपको फाईन देने पड़ेंगे. कार भी धुलवाना है तो प्रशिक्षित कार वाशर बॉय से. फ़्लैट के बहार निर्धारित मार्किंग के अन्दर कार पार्किंग करने होते हैं. इधर-उधर कार खड़ा करने पर फाईन देना पड़ेगा.

यदि भारत में भी कानून व्यवस्था का निष्पक्ष पालन हो, शाहक वर्ग ईमानदार हो और समाज में परस्पर मैत्री भावना और समानता हो तो भारत दुबई से भी बेहतर बन सकता है.

*भवतु सब्ब मंगलम *

डॉ विजय कुमार त्रिशरण Read it also-दलित वोटों के लिए कांग्रेस ने बनाई है यह खास रणनीति

अखिलेश यादव को इलाहाबाद जाने से रोकने पर भड़कीं मायावती, योगी को लताड़ा

लखनऊ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के वार्षिकोत्सव में जाने से रोकने के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत गरमा गई है. समाजवादी छात्र सभा ने अखिलेश यादव को इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया था, लेकिन युनिवर्सिटी ने उनके कार्यक्रम पर रोक लगा दी, जिसके बाद अखिलेश यादव को लखनऊ एयरपोर्ट पर ही रोक दिया गया. इसको लेकर समाजवादी पार्टी ने जहां जमकर बवाल काटा तो वहीं उसे बसपा का भी साथ मिला है.

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती ने एक बयान जारी कर योगी सरकार के इस कदम की आलोचना की और सीएम योगी को जमकर घेरा. बसपा प्रमुख ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद श्री अखिलेश यादव को इलाहाबाद जाने से रोकने की निंदा करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित कदम बताया. उन्होंने कहा कि योगी सरकार का ऐसा कदम भाजपा सरकार की तानाशाही और लोकतंत्र की हत्या का प्रतीक भी है. सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री ने इस घटना पर भाजपा को घेरते हुए कहा कि क्या बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकार बी.एस.पी व सपा गठबंधन से इतनी ज्यादा भयभीत व बौखला गई है कि अब वह उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधि व पार्टी प्रोग्राम आदि करने पर भी रोक लगाने पर तुल गई है. यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है. बसपा प्रमुख ने कहा कि ऐसी अलोकतांत्रिक कार्रवाईयों का हर स्तर पर डट कर मुकाबला किया जाएगा.

योगीराज में गायों की दुर्दशा

0

उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद मुज़फ्फरनगर में लगभग 150 से ज्यादा गाय की मौत का मामला सामना आया है. इस पूरी घटना को देखते हुए सबसे बड़ा चोकाने वाली बात ये है. कि आखिरकार भारतीय जनता पार्टी के मुख्य मंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ के राज में गाय की मौतों की तादात बढ़ने के साथ आखिर क्यों मर रही है लगातार गाय, ये यूपी सरकार के साथ साथ जिला प्रसाशन के लिए एक बड़ा सवाल है.

दरअसल ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद मुज़फ्फरनगर का है. हम आपको बतादे की ये जनपद मुज़फ्फरनगर के उसी गांव का मामला है. जहां से केंद्र में बनी थी में भाजपा की सरकार लेकिन फिर भी उसी जनपद में आखिर क्यों मर रही है भाजपा शाशित देश के उत्तर प्रदेश में लगातार गाय ये अब तक का सबसे बड़ा चौका देने वाली घटना है. दरअसल जनपद मुजफ्फरनगर के ब्लॉक मोरना के खादर क्षेत्र क्ष्रेत्र में जहां लगभग 150 गांव की संदिग्ध परिस्थितियों में हो गई है. तो वंही मौत की सूचना पाकर गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है. सूचना के मुताबिक अब से कुछ दिन पूर्व भी ब्लाक मोरना के ही खाई खेड़ा गांव में बुधवार की सुबह भूख प्यास के चलते लगभग 11 गए मरने की बात सामने आई थी लगभग अभी 1 सप्ताह भी नहीं गुजरा था कि मुजफ्फरनगर के शुकरताल क्षेत्र के जंगल में लगभग 150 की संख्या में मृत गायों की सूचना मिलते ही क्षेत्र में मातम सा पसर गया, लेकिन शासन-प्रशासन को मानो भनक भी ना हो आज भगत सिंह गो वंश समिति के अध्यक्ष विकास अग्रवाल अपनी टीम के साथ लगभग 10 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद मृत अवस्था में पड़ी गायो देखने पहुंचे घटनास्थल पर पहुंचने के बाद देखा कि मृत पड़ी गायों को चील कौवे नोच रहे हैं, और जंगल मे गाय के शवों के अंग इधर उधर बिखरे पड़े है. इस दौरान गाय चराने वाले व्यक्ति ने बताया कि शासन-प्रशासन की ओर से सिर्फ खानापूर्ति की गई है. मृत पड़ी गायो का अंतिम संस्कार नहीं किया गया है. वह खुले आसमान में हर दस पंद्रह कदम पर गायों के शव पड़े हैं. जिनको खूंखार पक्षियों ने बुरी तरीके से नोच रखा हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में गायों को मारने वाला कौन है. क्यो योगीराज में गाय के अंतिम संस्कार के लिए शासन-प्रशासन से क्यों नहीं मिली सहायता,

इतना ही नही ग्रामीणों ने यहाँ तक बताया कि शासन प्रशासन की मिलीभगत के चलते कुछ भू माफियाओं ने कर रखा है सरकारी जमीनों पर भारी कब्जा, जिनमें भू माफिया करते है खेती, यदि गांव वालों की मानें तो भू माफियाओं ने अपनी खेती के नुकसान के चलते दिया है गौ माताओं को जहर अब देखना यह है कि क्या जिला प्रशासन इन पूरे मामले पर संज्ञान लेते हुए जांच कर आरोपियों को पहुंचाएगी सलाखों के पीछे ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा, अगर सूत्रों की माने तो अभी तक इस पूरी घटना पर किसी भी तरह की कोई कारवाई नहीं हो पाई है.

वंही कुछ प्रत्यक्ष दर्शियों ने गाय की मौत की वजह पर बात करते हुए ये भी बताया कि ज्यादातर बीमार गाय एक के बाद एक गाय ने दम तोड़ दिया. और क्षेत्र में अन्य गाय के भी बीमार हो जाने की आशंका अभी भी बनी हुई है. वंही ककरौली क्षेत्र के गांव खाईखेड़ा में जिला पंचायत के निर्माणाधीन कांजी हाउस में बेसहारा गोवंश के लिए जिला पंचायत द्वारा एक गाड़ी भरकर हरा चारा भेजा गया तथा अस्थायी शेड की भी व्यवस्था करा दी गई है, जिससे गोवंश को राहत मिलने की उम्मीद बनी हुए है. जिला पंचायत के अवर अभियंता अरविंद कुमार कांजी हाउस में सबमर्सिबल सहित अन्य व्यवस्थाओं को शीघ्र बनाने में जुट गए हैं. मोरना व भोपा के पशु चिकित्सकों की टीम बीमार गोवंश का इलाज कर रही है. वंही मंसूरपुर क्षेत्र के एक गांव में

गोवंश को रख रखाव के उद्देश्य से एकत्र कर एक घर में बंद किया गया है. दरअसल मंसूरपुर क्षेत्र के गांव मुबारिकपुर में आवारा घूम रहे पशुओं से परेशान होकर ग्रामीणों ने उनको एक घर में बंद कर दिया. पशुओ की सूचना पर ग्राम सचिव इनाम भी मौके पर पहुंचे. गांव पुरा के पशु चिकित्सक शरद कुमार ने गांव में पहुंचकर पशुओं का चिकित्सीय परीक्षण किया. गांव में घूम रहे 55 आवारा पशुओं को ग्रामीणों ने एक घर में बंद कर दिया है. ग्राम प्रधान सुभाष त्यागी की ओर से पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था की गई है. ग्राम प्रधान का कहना है कि जिला प्रशासन को शीघ्र इन पशुओं को गोशाला में भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए.

रिपोर्ट- संजय कुमार, मुजफ्फरनगर

Read it also-सीबीआई के बहाने मोदी और ममता की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला

दलित वोटों के लिए कांग्रेस ने बनाई है यह खास रणनीति

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए कांग्रेस ने एक खास योजना पर काम शुरू कर दिया है. इसके लिए कांग्रेस ने 35 सदस्यीय ‘टीम यूपी’ बनाई है. पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा की ओर से बनाई गई इस टीम ने प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना ब्लू प्रिंट भी सौंप दिया है. पार्टी जल्दी ही इसे जमीन पर उतारने जा रहे हैं.

कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष नितिन राउत के मुताबिक पार्ट उन सीटों पर ध्यान देगी जहां दलित मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी या इससे अधिक है. इनमें 17 आरक्षित सीटें भी शामिल हैं. उनका कहना है कि दलित समुदाय तक पहुंचने के लिए पार्टी बड़े पैमाने पर जनसंपर्क, सभाएं और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करेंगे. इसके लिए पार्टी ने पूरी रूपरेखा तैयार कर ली है. इस टीम की अगुवाई अनुसूचित जाति विभाग के प्रवक्ता एसपी सिंह करेंगे.

राफेल को लेकर राहुल गांधी का एक और हमला

0

नई दिल्ली। राफेल को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी काफी सक्रिय हैं. अपने द्वारा उठाए गए इस मुद्दे को लेकर राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमलावर हैं. मंगलवार को एक बार फिर राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लेकर नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा. कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने एक ईमेल का जिक्र करते हुए कहा, ‘एयरबस कंपनी के एग्जक्यूटिव ने ईमेल में लिखा है कि फ्रांस के रक्षा मंत्री के ऑफिस में अनिल अंबानी गए थे.

ईमेल के मुताबिक मीटिंग में अंबानी ने कहा था कि जब पीएम आएंगे तो एक एमओयू साइन होगा, जिसमें अनिल अंबानी का नाम होगा. यानी राफेल डील में. राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि इसके बारे में न तो भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री को मालूम था, न ही एचएएल को न ही विदेश मंत्री को. लेकिन राफेल डील से 10 दिन पहले अनिल अंबानी को इस डील के बारे में मालूम था. इसका मतलब है कि प्रधानमंत्री अनिल अंबानी के मिडिलमैन की तरह काम कर रहे थे. सिर्फ इसी आधार पर टॉप सेक्रेट को किसी के साथ शेयर करने को लेकर प्रधानमंत्री पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए. उन्हें जेल भेजना चाहिए. यह देशद्रोह का मामला है. राहुल गांधी ने कहा कि इस मुद्दे से तीन बातें जुड़ी हैं. ये हैं- करप्शन, प्रोसीजर और देशद्रोह. उन्होंने कहा कि इन तीन मामलों में कोई नहीं बचेगा.

कितना चमत्कार कर पाएगा प्रियंका गांधी का पहला रोड शो

यूं तो सोमवार को लखनऊ की सड़कों पर रोड शो के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, नई-नई पार्टी की सक्रिय राजनीति से जुड़ी प्रियंका गांधी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी और मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक साथ उतरे थे, लेकिन यह साफ था कि यह रोड शो सिर्फ प्रियंका गांधी को प्रोजेक्ट करने के लिए किया गया था, जिसमें राहुल गांधी बस अपनी बहन के साथ थे.

कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए कांग्रेस पार्टी के इन तीनों दिग्गजों ने एयरपोर्ट से लेकर कांग्रेस के कार्यालय तक रोड शो किया. इस दौरान इनके स्वागत के लिए लखनऊ में कई जगह सड़कें बैनरों और पोस्टरों से पटे रहें. कानपुर, उन्नाव, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, अमेठी, रायबरेली, बाराबंकी, फैजाबाद जैसे आसपास के जिलों के कार्यकर्ता प्रियंका और राहुल के स्वागत के लिए पहुंचे. ऐसे में सवाल है कि सूबे में बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस को प्रियंका गांधी क्या संजीवनी दे पाएंगी?

फिलहाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास 2 सांसद और 6 विधायक और एक एमएलसी है. प्रदेश में पार्टी के वोट प्रतिशत की बात करें तो यह दहाई के अंक में भी नहीं है. इससे पार्टी की खस्ता हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में जब प्रियंका गांधी को ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ प्रदेश की कमान मिली है तो प्रियंका गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यहां के संगठन को फिर से खड़ा करने की होगी. लोकसभा चुनाव के करीब होने के कारण बहुत कम समय है. इतने कम समय में संगठन को नए तरीके से खड़ा करना आसान बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है. इस बात को प्रियंका गांधी भी समझ रही है. ऐसे में अगर प्रियंका थोड़ी सी भी कामयाब रहीं तो यूपी की राजनीति में बड़ा कांग्रेस एक बार फिर से भले ही खड़ी न हो पाए, चलने जरूर लगेगी.

पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल में वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, इलाहाबाद, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, चंदौली, कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़, देवरिया, महराजगंज, बस्ती, सोनभद्र, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर जैसे जिले आते हैं. इस इलाके में ब्राह्मण मतदाता भी अच्छे खासे हैं, जो एक दौर में कांग्रेस का मूल वोटबैंक रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि प्रियंका के सहारे कांग्रेस इन्हीं वोटों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है. यह वक्त बताएगा कि प्रियंका कितनी सफल होती हैं.

Read it also-मायावती ने दिखाया मनुवादी मीडिया को आईना

हरियाणाः बसपा इनेलो गठबंधन टूटने के मायने

फाइल फोटोः गठबंधन की घोषणा के बाद मायावती ने अभय चौटाला को बांधी थी राखी

इनेलो से अलग होकर जजपा ने जींद उपचुनाव में शानदार प्रदर्शन करके प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, वहीं भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी के उम्मीदवार ने भी 13000 वोट लेकर दिखाया कि प्रदेश की राजनीति में उनका भी अहम स्थान है. इन दोनों वजहों से बसपा ने इनेलो से अपने 10 महीने के गठबंधन को आज खत्म कर लिया, पिछले वर्ष अप्रैल की गर्मियों से हरियाणा की राजनीति में इनेलो बसपा गठबंधन से शुरू हुई गरमा गरमी  रुकने का नाम नहीं ले रही. हरियाणा की राजनीति में एक नया तूफान आया और इनेलो को उड़ा ले गया, अभय सिंह मैदान में अकेले नजर आ रहे है पहले उनके भतीजे और अब उनकी बहन उनसे अलग हो गई है.

पिछले वर्ष जब इनेलो ने बसपा के साथ समझौता किया था तब इनेलो को साफ तौर पर लग रहा था कि प्रदेश में आने वाली सरकार उनके गठबंधन की है परन्तु धीरे धीरे ये धुंधला होता गया और आज लगभग खत्म ही हो गया. इनेलो का प्रदेश में मुख्यत जाट वोट बैंक है वहीं बसपा के साथ दलित है, जाटों का वोट प्रतिशत 25% के आस-पास है वहीं दलितों का 19%. दोनों दलों ने ये सोच के गठबंधन किया था कि यदि ये वोट बैंक आपस में मिल गया तो प्रदेश में उन्हें कोई भी अन्य दल रोक नहीं पाएगा और पिछले विधानसभा चुनावों में इनेलो 17 सीटें केवल 3000 वोटो से हारी थी और प्रदेश में कोई विधानसभा सीट ऐसी नहीं है जहां बसपा के 3000 वोट ना हो, इनेलो बसपा को प्रदेश में इस बार इन 17 सीटों पर जीत मिलने की पूरी संभावना थी और इन सीटों को मिलाकर  गणित कुछ ऐसा था 19 सीटें जिन पर इनेलो जीती हुई है और 1 सीट बसपा की ये कुल 37 हो  गई और यदि हम थोड़ा गहन और करे तो पाएंगे कि 23 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर गठबंधन हर बार 30000 से ज्यादा वोट लेता है तो इस प्रकार कुल 60 सीटें ऐसी थी जिन पर गठबंधन आसानी से जीत सकता था, और चौटाला साहब को प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बन ने का मौका मिलता परंतु अफसोस ये हो नहीं पाया और ये सोच केवल सोच ही रह गई.

अब बात करते है गठबंधन टूटने से किसे ज्यादा नुकसान है, यदि हम बात बसपा की करे तो ना के बराबर नुकसान होने की सम्भावना है, क्योंकि प्रदेश की राजनीति बसपा कभी भी अहम भूमिका में नहीं रही उसे हर बार 5–6% वोट मिलता है और वो उसे इस बार भी मिलने की पूरी संभावना है. वहीं दूसरी तरफ इनेलो को ज्यादा नुकसान होता दिख रहा है क्योंकि इनेलो का कुछ वोट प्रतिशत तो उनके भतीजे ले गए और उस कमी को बसपा द्वारा पूरा करने की कोशिश  थी,दूसरा अब उनके पास केवल जाटों के वोट बचे है और वो कई धडो में बंटे हुए है तो ऐसे में इनेलो को काफी नुकसान होता दिख रहा है. वहीं यदि इस गठबंधन के टूटने से सबसे ज्यादा अगर किसी को फायदा होने की संभावना है तो वह भाजपा को.

अब प्रदेश की राजनीति में एक नया समीकरण देखने को मिलेगा जहा भाजपा, कांग्रेस मजबूती दिखा रही है वहीं जजपा और आप भी मुकाबले में आ गई है और बसपा भी अपने बहुजन के नारे पर दलितो–पिछड़ों के गठजोड़ के रास्ते पर निकल गई है और राजकुमार सैनी के नए नवेले दल लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है.

कयास ये लगाए जा रहे है कि लोसपा के साथ पिछड़े तथा बसपा के साथ दलित वोट बैंक मिल कर ये गठबंधन प्रदेश में बहुजनो की सरकार देयेगा. इस नए गठबंधन से बसपा को नुक्सान होने के पूरी संभावना है क्योंकि एक तो ये दल बिल्कुल नया है अभी तक ग्रामीण  क्षेत्रों के पिछड़ों तक पहुंचा ही नहीं है ये केवल प्रदेश के कुछ हिस्से तक सीमित है और एक महत्वपूर्ण कारण ये है कि आज तक के चुनावी इतिहास में पिछड़ों ने कभी बसपा को वोट नहीं दिया लगभग कभी छुया ही नहीं तो अब भी पिछड़े वोटो का बसपा की तरफ स्थानांतरण होना मुश्किल ही लग रहा है और ऐसा प्रतीत हो रहा है एक बार फिर बसपा को चुनावों में हार का सामना करना पड़ सकता है.

लेखकः राजेश ओ.पी. सिंह (पूर्व छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय)

दलित दस्तक मैग्जीन का फरवरी 2019 अंक ऑन लाइन पढ़िए

0
दलित दस्तक मासिक पत्रिका ने अपने छह साल पूरे कर लिए हैं. जून 2012 से यह पत्रिका निरंतर प्रकाशित हो रही है. मई 2018 अंक प्रकाशित होने के साथ ही पत्रिका ने अपने छह साल पूरे कर लिए हैं. हम आपके लिए सांतवें साल का 9वां अंक लेकर आए हैं. इस अंक के साथ ही दलित दस्तक ने एक नया बदलाव किया है. इसके तहत अब दलित दस्तक मैग्जीन के किसी एक अंक को भी ऑनलाइन भुगतान कर पढ़ा जा सकता है.

ई-मैगजीन पूरा पढ़े सिर्फ 10/-रुपये के सहयोग राशि 9711666056 पर PAYTM के माध्यम से सहयोग करें

मैगजीन सब्स्क्राइब करने के लिये यहां क्लिक करें मैगजीन गैलरी देखने के लिये यहां क्लिक करें

मायावती ने दिखाया मनुवादी मीडिया को आईना

0

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी के शासनकाल में बनाए गए स्मारक और पार्कों में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती और हाथियों की बनी प्रतिमाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद मनुवादी मीडिया को जैसे बसपा और इसकी प्रमुख मायावती को बदनाम करने का मौका मिल गया. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद मीडिया ने कोर्ट की टिप्पणी से इतर अपनी तरह से इस खबर को लेकर बसपा को कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया. एक बार फिर इसी बहाने पार्क के निर्माण में घोटालों की बात कही जाने लगी. मीडिया की इस मनुवादी सोच पर बसपा प्रमुख मायावती ने तमाम मीडिया संस्थाओं को आड़े-हाथों लिया है. एक बयान जारी कर बसपा प्रमुख ने कहा है कि-

सदियों से तिरस्कृत दलित व पिछड़े वर्ग में जन्मे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के आदर-सम्मान में निर्मित भव्य स्थल/स्मारक/पार्क आदि उत्तर प्रदेश की नई शान, पहचान व व्यस्त पर्यटन स्थल है, जिसके आकर्षण से सरकार को नियमित आय भी होती है. मीडिया कृप्या करके माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश ना करे.

माननीय न्यायालय में अपना पक्ष जरूर पूरी मजबूती के साथ आगे भी रखा जाएगा. हमें पूरा भरोसा है कि इस मामले में भी माननीय न्यायालय से पूरा इंसाफ मिलेगा. मीडिया व बीजेपी के लोग कटी पतंग ना बनें तो बेहतर है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद एक बार फिर से इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. इस मुद्दे पर विमल वरुण ने लिखा है- बीएसपी का चुनाव चिन्ह खड़ा हाथी हैं, जिसकी सूँड़ नीचे जमींन की तरफ है, जबकि इन स्थलों में लगे हाथियों की सूँड़ ऊपर की तरफ है, जो की स्वागत का प्रतीक है. क्या जज साहब को यह भी नहीं दिखता?

दलित प्रेरणा स्थल

तो वहीं इन पार्कों और स्मारकों में बसपा प्रमुख सुश्री मायावती की प्रतिमा लगने के मुद्दे पर समाजशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. विवेक कुमार का कहना है- बहनजी की मूर्ति लगाने का फ़ैसला पहले कैबिनेट में पारित हुआ होगा. फिर यह फ़ैसला विधानसभा के पटल पर पारित हुआ होगा. इसके पश्चात शहरी विकास मंत्रालय के बजट में इसके लिए धनराशि का प्रावधान किया गया होगा जो की उ.प्र. विधान सभा के दोनो सदनों एवम् राज्यपाल ने पारित किया होगा. अत: यह फ़ैसला संवैधानिक प्रक्रिया एवं संवैधानिक संस्था का फ़ैसला है, ना की किसी एक व्यक्ति का. इसलिए बहनजी की प्रतिमा के लिए बहनजी को व्यक्तिगत रूप से कैसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है? अगर भारत के दूसरे राजनैतिक दल अपने नेता की मूर्ति सरकारी पैसे से लगा सकते हैं, सरकारी पैसे से बने हुए भवनों के नाम अपने-अपने नेताओं के नाम पर रख सकते हैं तो फिर बहुजन समाज पार्टी अपने नेता की मूर्ति क्यों नहीं लगा सकती. क्या इस देश में दो क़ानून है – एक सवर्णो के लिए और दूसरा बहुजनो के लिए?

फिलहाल इस मुददे को लेकर बहस जारी है. साथ ही इस घटना ने मीडिया का जातिवादी चेहरा और देश के बहुजनों के लेकर दुर्भावना को एक बार फिर साबित कर दिया है.

13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ अध्यादेश लाएगी केंद्र सरकार!

0
नई दिल्ली। 13 प्वाइंट रोस्टर पर सरकार अध्यादेश लाने की तैयारी में है.सरकार इस मुद्दे पर जारी जन आंदोलन और संसद के भीतर बहुजन राजनीतिक दलों के दबाव के आगे झुकती नजर आ रही है.  अगर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की बात को सच माना जाए तो सरकार इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी और अगर यह खारिज हो जाता है तो सरकार अध्यादेश या विधेयक लाएगी.

संसद में इस मुद्दे पर लगातार जारी गतिरोध के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में नियुक्तियों में आरक्षण संबंधी रोस्टर प्रणाली से एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के आरक्षण को प्रभावित होने से बचाने के लिये सरकार ने विधेयक या अध्यादेश लाने का फैसला किया है. राज्यसभा में इस मुद्दे को लेकर पिछले तीन दिनों से बसपा, सपा, राजद एवं अन्य विपक्षी दल लगातार सरकार को घेर रहे थे. ये तमाम दल 13 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली को रद्द कर वापस 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम लागू करने के लिए अध्यादेश या विधेयक लाने की मांग कर रहे थे.  इस पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुये जावड़ेकर ने शुक्रवार को कहा कि आरक्षण संबंधी रोस्टर प्रणाली पर उच्चतम न्यायालय में सरकार पुनर्विचार याचिका दायर करेगी. उन्होंने कहा कि अदालत में यह याचिका खारिज होने की स्थिति में सरकार ने अध्यादेश या विधेयक लाने का फैसला किया है.

जावडे़कर ने राज्यसभा में बताया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर लागू की गयी 200 सूत्री रोस्टर प्रणाली के खिलाफ केन्द्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज करने के बाद सरकार अब पुनर्विचार याचिका दायर करेगी. जावड़ेकर ने कहा कि पुनर्विचार याचिका खारिज होने की स्थिति में हम अध्यादेश या विधेयक लाने का फैसला किया है’. जावड़ेकर ने इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया पूरा होने तक उच्च शिक्षण संस्थाओं में नियुक्ति या भर्ती प्रक्रिया बंद रहने का भी भरोसा दिलाया.

हालांकि जावड़ेकर के बयान से इतर इस संबंध में बहुजन समाज के अध्यापकों ने शैक्षणिक संस्थानों द्वारा भर्तियां निकाले जाने का आरोप लगाया है. इस मुद्दे पर 31 जनवरी को दिल्ली में बड़े आंदोलन के बाद देश के तमाम हिस्सों में 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर विरोध-प्रदर्शन जारी है. देखना यह होगा कि सरकार आखिर अपने कहे पर कितना कायम रहती है और इसके लिए कितना वक्त लेती है. फिलहाल बहुजन संगठनों के विरोध को देखते हुए साफ है कि जब तक सरकार इस पर अध्यादेश लेकर नहीं आती, तब तक वो आंदोलन जारी रखेंगे.

131 दलित सांसद क्या वास्तव में दलितों का प्रतिनिधित्व करते हैं?

आज पूरे देश में दलित मुद्दों को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है. अभी हाल ही में 13 रोस्टर प्रणाली के उच्च शिक्षण संस्थानों में लागू करने का पूरे भारत मे विरोध हो रहा है. 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण का दलित पिछड़े समाज ने जमकर विरोध किया. इसकी संवैधानिक मान्यता को लेकर उच्चतम न्यायालय को लेकर अपना फैसला देना है. 2 अप्रैल को एससी एसटी एक्ट के विरोध में दलितों द्वारा किया गया देशव्यापी आंदोलन ने पूरे देश की नींव हिलाकर रख दी थी. इस आंदोलन में 10 से भी ज्यादा दलित युवकों की जान चली गयी थी. गुजरात का ऊना कांड, रोहित वेमुला कांड, शब्बीर पुर सहारनपुर का दलित कांड, उत्तराखंड में दलित बालिका के बलात्कार के बाद हत्या और भी न जाने कितने ही दिलों को झकझोर देने वाले दलित अत्यचारों व उत्पीड़न की दास्तां केवल कहानी बन कर रह गयी.

दलितों के विकास की बात करने वाले लोग तथा इन दबे कुचले लोगों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के दावा करने वाली सरकारों ने कभी वास्तविकता जानने की कोशिश की है शायद कभी नही. जिन सरकारी स्कूलों में दलितों के लिये छूट की व्यवस्था है क्या वहां से शिक्षा लेकर एक गरीब दलित प्रतिस्पर्धा के समय मे सरकारी नौकरी पा सकता है, जी नही. लेकिन कभी सरकार ने निजी शिक्षण संस्थानों के बजाय उन्हें अपग्रेड करने की सोची है? सरकारी विभागों का निजीकरण करके दलितों को नौकरी से भी वंचित किया जा रहा है. सरकारी ठेकेदारी में दलितों को कितना प्रतिनिधित्व मिल रहा है. क्या वास्तव में ही भारत मे सभी सरकारी विभागों में दलितों का बैकलॉग कोटा पूरा हो गया है. क्या इस देश की मीडिया में दलितों को कहीं स्थान मिल रहा है. इसलिये नहीं कि दलितों में योग्यता नही है बल्कि इसलिये कि आज भी जातीय भेदभाव फैला हुआ है.

उपरोक्त दो कॉलम इसलिये लिखे कि आज के शीर्षक से जुड़े आलेख को अच्छी तरह समझा जा सके. दलितों पर अत्याचार का मामला हो या उनके विकास से जुड़ी कोई योजनाएं या फिर दलित हितों से जुड़ा कोई मामला. अधिकांशतः हम सभी इसके लिए बसपा की सुप्रीमों बहन मायावती से अपेक्षाएं रखते हैं कि वो विरोध करें, मामला सदन में उठाये, जन आंदोलन करें या मीडिया को चिल्ला चिल्लाकर बताएं लेकिन हम उस वक्त सदन में बैठे आरक्षित वर्ग के 131 सांसदों को भूल जाते हैं. जो डॉ अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त आरक्षण की बदौलत ही सदन में चुनकर आते हैं. लेकिन ये अधिकांशतः 131 सांसद स्वयं दलित होते हुए भी दलितों के मुद्दे पर कुछ बोलते क्यों नही, ये चुप्पी क्यों साध लेते हैं. तो इतना अध्ययन करने के बाद ये समझ आया कि लगभग ये सभी सांसद दलित विरोधी मानसिकता रखने वाली पार्टी के सदस्य हैं. जिनकी अपनी कोई सोच नही होती.

तमाम राजनैतिक विश्लेषक और दलित चिंतक मानते हैं कि ये लगभग सभी 131 दलित सांसद सबसे कमजोर व्यक्ति होते हैं. ये भी एक कड़वा सच है कि आरक्षित सीटों पर कभी भी मजबूत दलित चुनाव नही जीत सकता वहां से हमेशा कमजोर दलित ही सांसद बनकर आते हैं. यहां मजबूत दलित से मतलब है कि जो खुलकर दलित हितों की बात कर सके. दलित अत्यचारों के खिलाफ दलितों का नेतृत्व कर सके. वो स्वयं अम्बेडकरवादी हो तथा आडंबरवाद व पाखण्डवाद से दलितों को दूर रख सके, शोषक वर्ग मतलब उच्च सवर्ण जाति के धन्ना सेठों का चापलूस न हो तब ही उसे मजबूत दलित की संज्ञा दी जा सकती है. अब आप खुद ही समझ गये होंगे कि फिर ऐसा मजबूत दलित चुनाव कैसे जीत सकता है. इसलिये आरक्षित सीटों से कमजोर दलित जो सवर्णों का मित्र हो वही चुनाव जीत सकता है. अब भला ऐसे कमजोर सांसद क्या खाक दलितों की आवाज उठाएंगे. इस मामले में मै ये कह सकता हूँ कि बसपा का दलित सांसद अन्य के मुकाबले बहुत मजबूत होता है. इसी लिए सुरक्षित सीटों पर बसपा का सांसद हार जाता है. 2014 के आंकड़े देखिये कि अकेले भाजपा से 67 दलित सांसद हैं, कांग्रेस से 13, टीएमसी से 12 व ऐडीएमके व बीजद के 7-7 सांसद हैं.

अब आखिर में हम बात करते है कि आखिर 131 दलित सांसद मजबूत कैसे बनेंगे तो आज डॉ अम्बेडकर का वो दो वोट का लिया हुआ अधिकार याद आ गया. कि कितनी दूरदर्शी सोच के साथ उन्होंने दो वोटों का अधिकार मांगा था. कितना अजीब है कि अगर आपको अपने परिवार का मुखिया चुनना हो तो भला इसमे परिवार के अलावा पड़ोसी को क्यों हक मिलना चाहिये. सीटें आरक्षित इसलिए की गयीं थी कि दलितों के प्रतिनिधि भी संसद में पहुंचने चाहिये. जब 131 प्रतिनिधि दलितों के चाहिये तो चुनने का अधिकार भी दलितों को ही मिले. मेरा सुझाव है कि सुरक्षित सीटों पर दलित प्रतिनिधि चुनने का अधिकार केवल दलितों को ही हो. सुरक्षित सीटों पर वोट का अधिकार केवल आरक्षित वर्ग को ही हो. इसलिये 2 वोटों का प्रावधान होना चाहिये. एक सुरक्षित सीट के लिये तथा एक सामान्य सीट के लिए. अगर ऐसा होता है कि केवल दलित प्रतिनिधि दलित ही चुनेंगे तो निश्चित रूप से मजबूत दलित सांसद चुनकर जायेंगे जो सदन में मजबूत ताकत बनेंगे. वरना सुरक्षित सीट पर गैर दलित हमेशा उसे चुनते हैं जो उनका हितैषी हो. दलितों का भला चाहने वाले सभी राजनैतिक दल अगर वास्तव में दलितों का विकास चाहते हैं तो एक बार करके तो देखिए वरना ढोंग भी मत कीजिये.

दीपक मौर्य Read it also-कुशवाहा पर लाठी चार्ज के विरोध में आंदोलन की तैयारी में रालोसपा कार्यकर्ता

सुप्रीम कोर्ट से मायावती को बड़ा झटका

0
दलित प्रेरणा स्थलyawati

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पहले बहुजन समाज पार्टी को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने बसपा प्रमुख सुश्री मायावती को झटका देते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है. एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपनी और हाथियों की मूर्तियां बनाने में जितना पैसा खर्च किया है, उसे वापस करना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होगी.

गौर हो कि इस मामले में 2009 में रविकांत और अन्य व्यक्तियों ने इस बारे में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सुश्री मायावती के वकील को कहा कि अपने क्लाइंट को कह दीजिए कि सबसे पहले वह मूर्तियों पर खर्च हुए पैसों को सरकारी खजाने में जमा कराएं. दरअसल याचिका कर्ताओं को इस बात की शिकायत है कि मायावती ने मुख्यमंत्री रहते खुद की और बहुजन समाज पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की प्रतिमा लगाकर सरकारी पैसों का गलत इस्तेमाल किया है.

रिपोर्ट के मुताबिक इन पार्कों को बनाने में 6000 करोड़ रुपये खर्च हुआ है. जहां तक मूर्तियों की बात है तो दलित प्रेरणा स्थल पर मुख्य गुंबद में बाबासाहब डॉ. आम्बेडकर और मान्यवर कांशीराम के साथ बसपा प्रमुख मायावती की प्रतिमा भी लगी है. इस पार्क में हाथी की 30 मूर्तियां लगाई गई है, जबकि कांसे की 22 प्रतिमाएं लगी हुई है. इसमें 685 करोड़ का खर्च माना जाता है.

हालांकि बहुजन समाज के लोगों की इन पार्कों में गहरी आस्था है. इसकी जायज वजह भी है. यहां जोतिबा फुले, शाहूजी महाराज, नरायणा गुरु, पेरियार, संत गाडगे सहित जिन बहुजन महापुरुषों की प्रतिमाएं लगाई गई हैं, उनका राष्ट्र के निर्माण में काफी अहम योगदान रहा है. हर वर्ष 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती और 15 मार्च को कांशीराम जयंती के लिए इन पार्कों में हजारों की संख्या में लोग जाते हैं.

दलित दस्तक मनाएगा ‘अम्बेडकरी पत्रकारिता के सौ साल’ का महा उत्सव

नई दिल्ली। अम्बेडकरी आंदोलन की सजग प्रहरी बहुचर्चित मासिक पत्रिका “दलित दस्तक” ने बाबासाहेब द्वारा निकाले गए पहले समाचार पत्र ‘मूकनायक’ के सौ वर्ष पूरा होने पर आगामी वर्ष 2020 में 31 जनवरी को भव्य कार्यक्रम करने का ऐलान किया है. दलित दस्तक इस दिन ‘अम्बेडकरी पत्रकारिता के सौ वर्ष’ का महा उत्सव मनाएगी. इसकी घोषणा सोशल मीडिया फेसबुक पर पत्रिका के प्रमुख संपादक और प्रकाशक अशोक दास ने की. गौर हो कि 31 जनवरी 1920 को बाबासाहेब ने ‘मूकनायक’ के नाम से अपना पहला समाचार पत्र निकाला था. दलित दस्तक की टीम इस दिन को यादगार बनाना चाहती है. जहां तक दलित दस्तक की बात है तो यह पत्रिका जून 2012 से निरंतर प्रकाशित हो रही है और बहुजन आंदोलन में इसका एक अहम स्थान है. देश के 25 राज्यों में इसका प्रसार है और इससे लाखों पाठक जुड़े हैं.

दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने आयोजन को लेकर बताया कि “हमारे मन में पिछले चार-पांच सालों से यह योजना थी. हमें लगा कि हम इस महत्वपूर्ण वक्त में हैं और आम्बेडकरी आंदोलन से जुड़े हैं और पेशेवर पत्रकार हैं तो हमें इस दिन को यादगार तरीके से मनाना होगा. बाबा साहेब के जीवन के कई पहलू हैं. वह एक सफल पत्रकार भी थे और उन्हें बतौर पत्रकार दलित दस्तक की टीम की ओर से यह सच्ची श्रद्धांजली होगी.”

अम्बेडकरी पत्रकारिता के सौ साल पर दलित दस्तक द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रम का पहला पोस्टर

इस कार्यक्रम को लेकर योजनाओं का जिक्र करते हुए अशोक दास ने कहा कि हमारा उद्देश्य अम्बेडकरी-फुले मूवमेंट से जुड़ी पिछले सौ सालों के दौरान प्रकाशित हुई या वर्तमान में प्रकाशित हो रही पत्र-पत्रिकाओं का पता लगा कर उन्हें एक मंच पर लाना है. हमारी कोशिश रहेगी कि अम्बेडकरी-फुले आंदोलन के विचार वाली किसी भी भाषा की कोई भी पत्र-पत्रिका देश के किसी भी हिस्से से प्रकाशित हो रही हो, उन सबको महा उत्सव के दिन दिल्ली आमंत्रित किया जाए.

इसके साथ ही संपादक अशोक दास ने यह भी कहा कि मुख्यधारा की मीडिया में कार्यरत एससी-एसटी वर्ग के पत्रकारों को भी इस विशेष दिवस पर आयोजित भव्य समारोह में सम्मानित करने की योजना है. उन्होंने इसके लिए इस काम में लगे तमाम लोगों से भी दलित दस्तक से संपर्क कर सूचना देने की अपील की है ताकि तमाम लोगों को एक साथ मंच पर लाया जा सके.

गौरतलब है कि अशोक दास देश के सर्वोच्च पत्रकारिता संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (IIMC) के 2005-06 बैच के पूर्व छात्र हैं. अमर-उजाला, देशोन्नति, भड़ास4मीडिया सहित लोकमत समाचार से जुड़े रहे हैं. उन्होंने पांच सालों तक राजनीतिक रिपोर्टिंग की है, इस दौरान वह संसद और तमाम मंत्रालयों को कवर करते रहें. लेकिन आम्बेडकरी आंदोलन से जुड़ने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर ‘दलित दस्तक’ के जरिए अम्बेडकरी-फुले विचारधारा के प्रसार और हाशिए पर पड़े लोगों के हक की आवाज बुलंद करने की राह चुनी. फिलहाल मासिक पत्रिका के अलावा, दलित दस्तक यू-ट्यूब चैनल, वेबसाइट और दास प्रकाशन के जरिए सक्रिय हैं.

नोट- ‘दलित दस्तक’ के मुख्य संपादक एवं प्रकाशक अशोक दास से आप मोबाइल नंबर – 9711666056 या ईमेल- editorashokdas@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

यूपी बजट पर बहनजी का ट्विट

नई दिल्ली। ट्विटर पर आने के बाद यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष सुश्री मायावती ने साफ कर दिया है कि अब वह किसी भी मुद्दे पर तुरंत अपनी टिप्पणी देंगी. 6 फरवरी को आधिकारिक तौर पर ट्विटर पर सक्रिय होने के बाद बसपा प्रमुख ने आज आज 7 फरवरी को उत्तर प्रदेश सरकार के बजट पर अपना पहला ट्विट किया. इसमें सूबे की पूर्व मुखिया ने यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है.

बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में बसपा प्रमुख ने कहा है कि –

चुनावी वर्ष में बीजेपी सरकारों का बजट चाहे कितना भी लुभावना क्यों न हो, वास्तव में सरकार का साल भर का जनहित व जनकल्याण एवं अपराध नियंत्रण व कानून-व्यवस्था का काम ही आम जनता के लिए महत्वपूर्ण होता है. और इन मामलों में केंद्र व खासकर उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार बुरी तरह से विफल साबित हुई है जो जगजाहिर है. केवल संगम स्नान से सरकारों के पाप नहीं धुल सकते. जनता बहुत होशियार है और सब जानती-समझती है.

 खास बात यह है कि बहनजी के ट्विट करते ही उनके समर्थकों द्वारा सिर्फ 15 मिनटों में ही डेढ़ सौ से ज्यादा बार रि- ट्विट कर दिया गया. यूं तो अक्टूबर 2018 में ही बसपा प्रमुख का ट्विटर एकाउंट बना चुका था लेकिन आधिकारिक घोषणा के बाद महज 24 घंटे में उनके 50 हजार से ज्यादा फॉलोअर हो गए हैं.

जहां तक बजट की बात है तो योगी सरकार ने इस बार 4 लाख 70 हज़ार 684 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है, जो पिछले साल के बजट से 12 फीसदी ज्यादा है. बजट में गो कल्याण और यूपी के धार्मिक स्थलों और पर्यटन स्थलों पर इस बार ज्यादा जोर दिया गया है. योगी सरकार के बजट में गो कल्याण के लिए 500 करोड़ से अधिक का बजट पेश किया गया. यानि कुल मिलाकर बजट यूपीवासियों के कल्याण से ज्यादा धार्मिक रंग में रंगा हुआ दिख रहा है.