फिल्म ‘आर्टिकल 15’ पर बोले आयुष्मान खुराना

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ऐक्टर आयुष्मान खुराना का कहना है कि उनकी आने वाली फिल्म ‘आर्टिकल 15’ किसी का भी पक्ष नहीं ले रही है और न ही इसमें किसी समुदाय के बारे में कुछ गलत दिखाने का इसका इरादा है. आयुष्मान खुराना ने कहा, ‘मैंने नोटिस किया कि फिल्म ‘आर्टिकल 15′ को लेकर चारों ओर कई विवाद हैं. मैं उन सभी से आग्रह करना चाहूंगा जो विरोध कर रहे हैं और यह दावा कर रहे हैं कि यह फिल्म ब्राह्मण विरोधी है, कृपया इस फिल्म को देखे. सेंसर बोर्ड के द्वारा इस फिल्म का निरीक्षण किया जा चुका है.’

आयुष्मान खुराना ने कहा, ‘हमारी फिल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और यह किसी एक विशेष घटना पर आधारित नहीं है. यह हमारे देश में हो रही घटनाओं का एक संयोजन है. हां, यह आपको असहज महसूस कराएगी, लेकिन यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित फिल्म है. मैं सभी से इस फिल्म को देखने का और निर्देशक के दृष्टिकोण और इरादे पर कोई धारणा न बनाने का आग्रह करता हूं.’

मई में रिलीज हुए फिल्म के ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे मजदूरी करने वाली लड़कियों को सिर्फ 3 रुपये दिहाड़ी बढ़ाने कि मांग के बदले उनके साथ गैंगरेप कर हत्या कर दी जाती है और बॉडी को पेड़ से लटका दिया जाता है, क्योंकि वह दलित हैं. इसके बाद फिल्म में पुलिस अधिकारी बने आयुष्मान खुराना इस केस में जांच करते हुए नजर आते हैं.

फिल्म की कहानी को मरोड़कर दिखाए जाने को लेकर फिल्म के निर्देशक अनुभव सिन्हा को उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय के गुस्से का सामना करना पड़ा. चूंकि फिल्म में आरोपी व्यक्ति ब्राह्मण समुदाय से हैं, इस वजह से लोगों को लगता है कि इससे उनके समुदाय की बदनामी होगी. इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया कि किस तरह से क्षेत्र में जातिगत असमानता प्रचलित है.

फिल्म में आयुष्मान के अलावा ईशा तलवार, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, एम.नास्सर, आशीष वर्मा, सुशील पांडेय, शुभ्रज्योति भारत, रोन्जिनी चक्रवर्ती और जीशान अयूब जैसे कलाकार भी हैं. यह फिल्म 28 जून को रिलीज होगी.

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संसद में राष्ट्रपति के संबोधन के बाद बोले राहुल गांधी- मेरा रुख आज भी वही, राफेल सौदे में चोरी हुई

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को कहा कि आज भी उनका वही रुख है कि राफेल विमान सौदे में चोरी हुई है. संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद, बाहर आते हुए गांधी ने संसद भवन में यह टिप्पणी की. अभिभाषण के बारे में पूछे जाने पर गांधी ने कहा, ‘मेरा रुख आज भी वही है कि राफेल विमान सौदे में चोरी हुई है.’ बता दें, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को संसद के दोनों सदनों को संयुक्त सत्र में संबोधित किया. सेना एवं सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण का काम तेजी से आगे बढ़ने की ओर ध्यान दिलाते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारत को पहला राफेल लड़ाकू विमान और ‘अपाचे’ हेलीकॉप्टर निकट भविष्य में मिलने जा रहे हैं.

संसद के ऐतिहासिक कक्ष में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ के तहत आधुनिक अस्त्र-शस्त्र बनाने पर विशेष बल दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि भारत को पहला राफेल लड़ाकू विमान और ‘अपाचे’ हेलीकॉप्टर निकट भविष्य में मिलने जा रहे हैं.

उन्होंने कहा कि आधुनिक राइफल से लेकर तोप, टैंक और लड़ाकू जहाज तक भारत में बनाने की नीति को सफलता के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में बन रहे रक्षा गलियारा इस मिशन को और मजबूती प्रदान करेंगे. अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करते हुए रक्षा उपकरणों के निर्यात को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.

राष्ट्रपति ने कहा कि सैनिकों और शहीदों का सम्मान करने से सैनिकों में आत्म-गौरव और उत्साह बढ़ता है तथा हमारी सैन्य क्षमता मजबूत होती है. इसीलिए सैनिकों और उनके परिवार-जनों का ध्यान रखने की हर संभव कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि ‘वन रैंक वन पेंशन’के माध्यम से पूर्व सैनिकों की पेंशन में बढ़ोतरी करके तथा उनकी स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करके, उनके जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘आजादी के सात दशक के बाद, मेरी सरकार द्वारा दिल्ली में इंडिया गेट के समीप बनाया गया ‘नेशनल वॉर मेमोरियल’ शहीदों के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की विनम्र श्रद्धांजलि है. इसी तरह देश की सुरक्षा में शहीद होने वाले हमारे पुलिस बल के जवानों की स्मृति में, मेरी सरकार ने ‘नेशनल पुलिस मेमोरियल’ का निर्माण किया है.’

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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस: PM मोदी ने रांची में 40 हजार लोगों के साथ किया योग

पांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2019 के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को झारखंड के रांची में योग किया. पीएम मोदी के साथ तकरीबन 40 हजार लोगों ने भी योग किया. इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हरियाणा के रोहतक में राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ योग किया.

योग दिवस पर पीएम मोदी ने कहा कि योग को लोकप्रिय बनाने के लिये आधारभूत ढांचा मजबूत किया जाना चाहिए. हमें समाज के हर वर्ग तक योग को ले जाना चाहिए. शांति और सौहार्द्र योग से जुड़े हैं. विश्वभर में लोगों को अनिवार्य रूप से योग करना चाहिए. उन्होंने कहा कि योग दिवस पर रांची में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि योग हमेशा से हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है, इसके प्रसार के लिये हमें साथ आना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज योग ड्राइंग रूम से बोर्डरूम तक, शहरों के पार्क से लेकर स्पोट्र्स कंपलेक्स तक पहुंच गया है. आज गली-कूचे से वेलनेस सेंटर्स तक चारों तरफ योग को अनुभव किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आज के बदलते हुए समय में बीमारी से बचाव के साथ-साथ वेलनेस पर हमारा फोकस होना जरूरी है. यही शक्ति हमें योग से मिलती है. यही भावना योग और पुरातन भारतीय दर्शन की है.

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SSC GD Result 2019, यहां से सीधे देखिए

नई दिल्ली। SSC GD Result 2019: स्टाफ सेलेक्शन कमीशन ने कॉन्सटेबल जीडी भर्ती परीक्षा का रिजल्ट जारी कर दिया है. उम्मीदवारों के रिजल्ट (SSC GD Constable Result 2019) का इंतजार खत्म हो गया है. उम्मीदवार अपना रिजल्ट (SSC GD 2019 Result) ssc.nic.in पर जाकर चेक कर सकते हैं. स्टाफ सेलेक्शन कमीशन ने पिछले साल कॉन्सटेबल (जनरल ड्यूटी) के 54, 953 पदों पर भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था. इन पदों पर 52 लाख 20 हजार 335 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. कॉन्सटेबल भर्ती परीक्षा 11 फरवरी 2019 से 11 मार्च 2019 तक आयोजित की गई थी. भर्ती परीक्षा में 30 लाख 41 हजार 284 उम्मीदवारों ने भाग लिया था. आपको बता दें कि 54, 953 पदों में से सबसे ज्यादा 21,566 पद CRPF में हैं. इसके बाद BSF में 16,984 पद, एसएसबी में 8,546 पद, आईटीबीपी में 4,126 पद और असम राइफल्स में 3,076 पद हैं. बचे हुए अन्य पद सीआईएसएफ और अन्य सीएपीएफ में हैं.

SSC GD Result 2019 यूं कर पाएंगे चेक

स्टेप 1: उम्मीदवार वेबसाइट ssc.nic.in पर जाएं. स्टेप 2: वेबसाइट पर दिए गए रिजल्ट के लिंक पर क्लिक करें. स्टेप 3: मांगी गई जानकारी भरकर सबमिट करें. स्टेप 4: आपका रिजल्ट स्क्रीन पर आ जाएगा. स्टेप 5: आप रिजल्ट का प्रिंट ऑउट भी ले सकते हैं.

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डिक्की, डीएआईसी ने दलित उद्यमिता पर शोध के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए

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नयी दिल्ली। दलित उद्यमिता पर अनुसंधान के माध्यम से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के सशक्तीकरण के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत आने वाले डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र (डीएआईसी) और दलित भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (डिक्की) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया. केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने संयुक्त प्रयास की सराहना की और कहा कि समझौता ज्ञापन का उद्देश्य दलित उद्यमिता पर शोध और इन समुदायों की महिलाओं और युवाओं के बीच कौशल विकास की क्षमता विकसित कर एससी और एसटी समुदायों का सशक्तिकरण करना है. डिक्की सभी दलित उद्यमियों को एक साथ लाता है, और उनकी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए युवाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर उनके लिए वन-स्टॉप संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करता है.

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Dear society, I have question’sfor you!

My dear society, do you know that I heard the word ‘society’ for the first time when I was in 11th standard when one of the teachers who loved me a lot taught us one day the valuable words ofMaclver and Page, “Society is the web of Relationships.’ During that time I haven’t had the lens to think on it critically but when today I go through the same definition I realize that if society is the web of relations, then the relations with whom? And I arrived at the answer that society is web of the relation and the interconnected relationswith all living beings,animals as well as human beings. But today I see people don’t live with people in a healthy manner let alone animals. It may be that they are showing care about animals but they don’t care about people.We people are not honest and truthful with our relations. In the relationships with our mother,father, sister, brother, teacher, friend or stranger, we are either honest with it or we play with them diplomatically.

Before that I heard about the word, ‘society’, I used to confuse it with ‘people’. My father used to talk about it, they said, what people say, what people think,etc.Actually, what he was trying to tell me indirectly was about people who arein society or the society where people lived. If society is the web of humans’ interrelations with each other then, their relation with each other should be ideal, loving and caring. At that time I felt how beautiful and kind the society is but today when I grew up, I developed a dilemma about it. At this very young age and the very beginning of life, I felt like the society is so ridiculous. May be its because at only 22 years of age, I have undergone much and tried to overcome it. The society where I was born at that time, it wanted to kill me in my mother’s womb because I was a girl child. The society lovesa boy child more than a girl child. Because of this partial society and its system of patriarchy, people’s minds are like that. Till this day, we are denied gender equality and are living under a masculine attitude and manner.

When I grew up this society tells me till now not to speak more, not to smile loudly because you are a girl. Iwas always told that the society has different values and norms for girls and boys. The society discriminates between girls and boys from their childhood when it tells us not to play with boys and now it tells me men are only like this. Who made the society like this?The men or women or both of them shapethe society. Who is the responsible to construct society like this? We make the society or society makes us? If we made society so why did we make it like this? Why the absence of humanity and mankind and no freedom?I have seen in the street if two people love each other publicly, people beat them, shame them but on the same street, if people fight each other, no one goes and stops it. They think it is their personal affairs but when they love each other, it becomes public affairs. We have the right to express our emotions but if we express it, allegations are thrown against us. We have right to think out of the box or we ever think to break the glass ceiling. Do we ever think why caste is so rigid and whether we really need the long history attached to it, or do we have any profit out of patriarchy?

However, the society where I live is theIndian society and is the bitter truth of this. For me this society and his system like patriarchy is very close to link to class, to caste,and to heteronormativity, as a Indian Dalit middle class women where we aredivided in the name of caste,class and gender. It is very basic system which is present. Others many more like religion, language, culture, education,disability,etc.are present and may be other women and men are also suffering through it. Many people are victims of this various intersections which are not good enough.For it, now the big term is intersectionality. The number of intersections in our society makes our mind exclusive and we follow the socio-cultural norms of society. For some it is good and the same is bad for someone else. People treat everyone differently. Why they are not able to equally treat all of them? Why marriage is mandatory? Marriage is everyone’s personal choice. Who makes the rule after marriage only people live together, why not before? It is like they are taking permission or grant of society (who is this society this people who never cooperate them.is they fear of society if they beat us, boycott us) tofulfil their sexual desire or they both are not enough trust to each other so they restrict their self on the name of marriage. It is the same with having children that we really need only biological child.

Why we can’t adopt make his/her life happy. Why a woman need one man always exist her life on the name of father, brother or a husband? Why she is not capable to live single? And who makesthe culture? Or does culture make society or society make culture? As per my lens,cultures don’t make human beings,human being make cultures. Culture need to change with time and today our culture, our religious practices should change according to Indian constitution, which says all human beings are equal whatever their caste, class, sex or religion. We live for society orsociety lives for us?Today in our society there is so much hatred, jealousy, ignorance, inequality, exclusion, injustice, slavery,etc.and many more negative bunch of dialogue has been enhanced. Which are all against the constitution? Which tells us justice,liberty,equality and fraternity but we against the constitution, may not follow it and we accept the society which taught us violence and discrimination. Can we live without society? I don’t feel so. If there were no socirty, where do we communicate, where we make our relations and make it sustain.

We need a societywho never harmed us physically and emotionally too. Do you feel weneed to change society? Do you as readers feel we can change it? If yes, then firstly we need to carefully listen to our inner voices. If then we find negative traits we need to change our minds firstly then others and one day we will meet a prosperous,equal, free society.That day we will be born again with emancipated minds and that will be a perfect thing for Humanity. I recall here Ambedkar as he said, ours is a battle not for wealth or for power. It is a battle for freedom. It is a battle for the reclamation of human personality.

I put here the composed verse of mine, which is requesting society for its betterment.

Dear society, you are the bunch of rules and norms.. I mould myself for you but yet you judge me.. Dear society, why you divided us on the name and fame of degraded systems..We need equality and sovereign in our spaces.. Dear society, why you make us betray us and why you reach out us to a point of committing suicide? How we enjoy this society where too much pain, misery and various burden and restrictions in all domain.We don’t able to tolerate anymore.

Dear society, why I have fear of you, you are evil or what I want to live fearless and without danger. Dear society, why you put yourself and us in box, just free us and break the glass ceiling..

I want you convert rigid society to become chainless and ideal society.. Dear society, please, try to understand that I am here to call all change in a positive way and save us all towards fresh, free days…

Shivani TISS,Mumbai.

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हुक्का पार्टी पर सानिया मिर्जा के समर्थन में उतरे शोएब अख्तर

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शोएब मलिक का अगर प्रदर्शन अच्छा नहीं है तो उसे पाकिस्तान क्रिकेट टीम से बाहर कर दो लेकिन सानिया को बेवजह बीच में मत घसीटो’ पूर्व पाक तेज गेंदबाज शोएब अख्तर ने भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को सपोर्ट करते हुए ये बात कही है. शोएब अख्तर ने अपने यूट्यूब वीडियो में सानिया मिर्जा को सपोर्ट किया है. अख्तर ने सानिया मिर्जा का साथ देते हुए कहा कि क्यों सानिया को बार- बार ट्रोल किया जाता है. बता दें कि भारत-पाक मैच से पहले रेस्टोरेंट में खाना क्या खाया लोग ट्रोल करने लगे. मुझे उनके लिए बुरा लगता है.
शोएब अख्तर के साथ यूट्यूब चैनल पर शामिल वीरेंद्र सहवाग ने कहा कि अगर पाकिस्तान टीम ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो किसी को खिलाड़ियों के निजी जीवन के बारे में बात करने का अधिकार नहीं है. वीरेंद्र सहवाग ने कहा कि, ‘मुझे नहीं लगता कि आप निजी जीवन को खिलाड़ियों के पेशेवर करियर से जोड़ सकते हैं. मैंने इससे पहले भी विराट कोहली के आउट होने और अनुष्का शर्मा के मैच को देखने पर ऐसा कहा था. मैंने कहा कि आप किसी के परिवार पर टिप्पणी नहीं कर सकते. कोई बात नहीं. आप अपनी टीम और अपने खिलाड़ियों को लेकर कितने भावुक हैं लेकिन आप उनके निजी जीवन में नहीं जा सकते.’
हालांकि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और मलिक ने यह साफ स्पष्ट किया कि यह वीडियो 15 जून की नही बल्कि 13 जून की है, लेकिन फैंस कहा किसी की सुनने वाले थे. सानिया ने बाद में अपनी गोपनीयता का उल्लंघन करते हुए तस्वीर लेने के लिए प्रशंसकों को लताड़ लगाई थी.

जानिए, राष्ट्रपति के अभिभाषण की 25 प्रमुख बातें

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया. उन्होंने अपने संबोधन में मोदी सरकार 2.0 के एजेंडे को देश के सामने रखा और सरकार किस तरह न्यू इंडिया की नींव रख रही है इसे भी बताया. इस दौरान सदन में लोकसभा, राज्यसभा के सभी सांसद मौजूद रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने राष्ट्रपति का स्वागत किया. राष्ट्रपति ने अपने भाषण में विकास, नीति समेत कई बड़े मुद्दों का जिक्र किया. इसी के साथ उन्होंने नई सरकार को भी बधाई दी. अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति ने किन मुद्दों का जिक्र किया पढ़ें…

1. 61 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने लोकतंत्र का सम्मान किया है, गर्मी में भी वोट दिया और महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. लोकसभा के नए स्पीकर को उनके चयन, चुनाव आयोग को सफलतापूर्वक चुनाव कराने के लिए बधाई.

2. इस लोकसभा में लगभग आधे सांसद पहली बार निर्वाचित हुए हैं. लोकसभा के इतिहास में सबसे बड़ी संख्या में 78 महिला सांसदों का चुना जाना नए भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है. सदन में इस बार हर प्रोफेशन के लोग आए हैं.

3. मेरी सरकार बिना किसी भेदभाव के विकास कार्यों को आगे बढ़ा रही है. देश के लोगों ने लंबे समय तक मूलभूत सुविधाओं के लिए इंतजार किया लेकिन अब स्थिति बदली है. 2014 से पहले देश में निराशा का माहौल था, लेकिन अब हमारी सरकार ने राष्ट्रनिर्माण के लिए कदम बढ़ाएं हैं. मेरी सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति के साथ आगे बढ़ रही है.

4. मेरी सरकार 30 मई को शपथ लेने के तुरंत बाद नए भारत के निर्माण में जुट गई है. ऐसे भारत में युवाओं के सपने पूरे होंगे, उद्योग को ऊंचाईयां मिलेंगी, 21वीं सदी के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा. 21 दिन के कार्यकाल में ही मेरी सरकार ने किसान, जवान के लिए बड़े फैसले किए हैं.

5. किसान हमारे देश का अन्नदाता है, पीएम किसान योजना के तहत अब देश के हर किसान को मदद की जाएगी. साथ ही किसानों के लिए पेंशन योजना भी लागू की जा रही है. पहली बार किसी सरकार ने छोटे दुकानदारों के लिए पेंशन की योजना शुरू की गई है. इससे 3 करोड़ दुकानदारों को लाभ मिलेगा.

6. देश की सुरक्षा में जुटे जवानों के लिए भी मेरी सरकार लगातार फैसले ले रही है. मेरी सरकार ने जवानों के बच्चों को मिलने वाली स्कॉलरशिप में बढ़ोतरी की गई है. पहली बार राज्य पुलिस के जवानों के बेटे-बेटियों को भी शामिल किया गया है.

7. जल संकट को देखते हुए पहली बार भारत सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय का निर्माण किया है. क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए देश में स्वच्छ भारत की तरह ही जल संरक्षण के लिए आंदोलन चलाया जाएगा.

8. मेरी सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक सभी किसानों की आय दोगुनी की जाए. इसके लिए हम दशकों से रुकी हुई सिचाईं योजना को पूरा कर रहे हैं, मतस्य पालन को बढ़ा रहे हैं. किसानों को आधुनिक खेती को लेकर शिक्षित कर रहे हैं, हम ब्लू क्रांति लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

9. ग्रामीण भारत को मजबूत बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया गया है. कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए, आने वाले वर्षों में 25 लाख करोड़ रुपए का और निवेश किया जाएगा. अभी तक किसानों के पास मदद के तौर पर 12 हजार करोड़ रुपये की राशि पहुंचाई जा चुकी है.

10. मेरी सरकार जन धन योजना को आगे बढ़ा रही है, अब हर गरीब के घर तक बैंक को पहुंचाया जा रहा है. हमारा लक्ष्य है कि डाकियों को ही अब चलता फिरता बैंक बनाया जाए.

11. इलाज के खर्च से गरीब परिवारों को बचाने के लिए 50 करोड़ गरीबों के लिए आयुष्मान भारत योजना लागू की गई है. इसके तहत अभी तक 26 लाख गरीब मरीजों का इलाज कराया जा चुका है. देश में 5 हजार से अधिक जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं, यहां गरीबों के लिए सस्ती दवाई उपलब्ध हैं.

12. सरकार के द्वारा सामान्य वर्ग के गरीब युवाओं के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई है. इस दौरान पहले से जारी SC/ST आरक्षण में छेड़छाड़ नहीं की गई है.

13. महिला सशक्तिकरण, मेरी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. नारी का सबल होना तथा समाज और अर्थ-व्यवस्था में उनकी प्रभावी भागीदारी, एक विकसित समाज की कसौटी होती है. सरकार की यह सोच है कि न केवल महिलाओं का विकास हो, बल्कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास हो.

14. मेरी सरकार मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. इसी के लिए तीन तलाक जैसी प्रथा को खत्म किया जा रहा है, इसके लिए कानून बनाने की तैयारी है. आप सभी इस कदम में सरकार का साथ दें. तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाओं का खत्म होना जरूरी है.

15. मुद्रा योजना के तहत अभी तक 19 करोड़ लोन दिए जा चुके हैं, नई सरकार का लक्ष्य 30 करोड़ लोगों को लोन देने का है. ताकि रोजगार बढ़ाया जा सके.

16. भारत विश्व की सबसे देश बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है. महंगाई कम है, जीडीपी बढ़ रही है, विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ रहा है. हमारा लक्ष्य 2024 तक भारत पांच ट्रिलियन की इकॉनोमी बने. जल्द ही नई औद्योगिक नीति का ऐलान भी किया जाएगा.

17. जीएसटी लागू होने से देश में व्यापार जगत को काफी फायदा होगा. इसके तहत छोटे कारोबारियों को फायदा हो रहा है, राज्य सरकारों के साथ मिलकर नियमों को और भी आसान बनाया जा रहा है.

18. Ease of Doing Business’ की रैंकिंग में वर्ष 2014 में भारत 142वें स्थान पर था. पिछले 5 वर्षों में 65 रैंक ऊपर आकर हम 77वें स्थान पर पहुंच गए हैं. अब विश्व के शीर्ष 50 देशों की सूची में आना हमारा लक्ष्य है.

19. काले धन के खिलाफ शुरू की गई मुहिम को और तेज गति से आगे बढ़ाया जाएगा. पिछले 2 वर्ष में, 4 लाख 25 हजार निदेशकों को अयोग्य घोषित किया गया है और 3 लाख 50 हजार संदिग्ध कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा चुका है.

20. मेरी सरकार का लक्ष्य ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना है, इसके लिए शहरों में मेट्रो को बल दिया जा रहा है. इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ाया जा रहा है. साथ ही CNG-PNG के वाहनों की संख्या को भी बढ़ाया जा रहा है.

21. मेरी सरकार गंगा की अविरलता कायम रखने के लिए तैयार है. पिछले कुछ समय में गंगा सफाई की तस्वीरों की विश्व में चर्चा हुई है, इतना ही नहीं अर्ध कुंभ के दौरान हर किसी ने सफाई की तारीफ की है. गंगा के साथ-साथ अन्य नदियों को भी प्रदूषण से मुक्त किया जा रहा है.

22. हमारे वैज्ञानिक मिशन चंद्रयान 2 और गगनयान को सफल बनाने में जुटे हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान मिशन शक्ति भी सफल तरीके से लॉन्च हुआ.

23. नए भारत की विश्व में अलग पहचान बनी है. भारत 2022 में G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा. 21 जून को संयुक्त राष्ट्र ने योग दिवस घोषित किया, जिसकी पहल भारत ने ही की थी.

24. आतंकवाद के खिलाफ मेरी सरकार कड़े कदम उठा रही है. आतंकवाद के मुद्दे पर दुनिया भारत के साथ खड़ी है, यही कारण है कि आतंकी आका मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र ने भी ग्लोबल आतंकी घोषित किया है. सीमा के पार पहले सर्जिकल स्ट्राइक, फिर एयरस्ट्राइक करके भारत ने अपने इरादों को दर्शा दिया है. भविष्य में ऐसे ही कदम उठाए जाएंगे.

25. मेरी सरकार आधुनिक हथियार बनाने पर बल दे रही है, इसके लिए मेक इन इंडिया पर तेजी से काम चल रहा है. जल्द ही भारत सरकार को राफेल लड़ाकू विमान भी मिलने वाला है. सरकार जवानों के परिवार का ध्यान रख रही है, पूर्व सैनिकों की पेंशन में भी बढ़ोतरी की जा रही है.

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17वीं लोस में सबसे कम उम्र की सांसद हैं आदिवासी समाज की चंद्राणी मुर्मू

लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को लेकर कई बार बहस होती रहती है लेकिन आजतक संसद में यह बिल पास नहीं हो पाया है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस बार अपने मैनिफेस्टो में कहा था कि अगर वो सत्ता में आती है तो महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखेगी. महिलाओं के लिए लोकसभा में 33 प्रतिशत सीट आरक्षण को लेकर सभी पार्टियां बात तो करती हैं लेकिन असलियत में इस आरक्षण को लेकर गंभीर नज़र नहीं आती हैं. इस बार एनडीए को बहुमत मिला है और बीजेपी के पास एक मौका है कि अपने वादे को निभाये. अक्सर तमाम दल महिलाओं को 33 फीसदी टिकट देने की बात करते हैं लेकिन वक्त आने पर मुकर जाते हैं. लेकिन 17वीं लोकसभा के चुनाव में एक ऐसी पार्टी जिसने 33 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिया था वो है बीजू जनता दल.

17वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा 78 महिलाएं संसद पहुंची हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है. इनमें से सात सांसद ओडिशा से भी हैं. जिनमें से 5 सांसद बीजू जनता दल यानि (BJD) से हैं जबकि दो महिला सांसद भाजपा से. बीजेडी की इन सांसदों में अब तक की सबसे कम उम्र की सांसद चंद्राणी मुर्मू भी शामिल हैं. मुर्मू की उम्र अभी केवल 25 साल और 11 महीने है. मुर्मू ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की हैं. आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाली मुर्मू ने ओडिशा की केन्झार लोकसभा सीट से जीत दर्ज की है. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने चुनाव से पहले कहा था कि इस बार के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी 33 प्रतिशत सीट महिलाओं को देगी. उन्होंने अपना वादा निभाया और 21 सीटों में से 7 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को लड़ाया. इन सात में से पांच उम्मीदवारों ने जीत भी हासिल की. बीजेपी ने छह महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था.

जीतने वाली इन सांसदों में प्रमिला बिसोयी (आसका, बीजद), मंजुलता मंडल (भद्रक, बीजद), राजश्री मलिक (जगतसिंहपुर, बीजद), शर्मिष्ठा सेठी (जाजपुर, बीजद) चंद्राणी मुर्मू (क्योंझर, बीजद), अपराजिता सडांगी (भुवनेश्वर, बीजेपी) और संगीता कुमारी सिंहदेव (बलंगिरी, बीजेपी) शामिल हैं. इन चुनावों में पूरे देश से सिर्फ 14 प्रतिशत के करीब महिला उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंच रही हैं, वहीं ओडिशा से 33 प्रतिशत महिलाओं ने जीत हासिल की है. ओडिशा के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है जब इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं एक साथ लोकसभा पहुंच रही हैं. जीती सांसदों में केवल प्रमिला बिसोयी को छोड़कर सभी पढ़ी लिखी हैं. कोई ग्रेजुएट है तो कोई पोस्ट ग्रेजुएट. इसके अलावा किसी भी सांसद के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस नहीं है.

केन्झार से जीती मुर्मू ओडिशा की सबसे कम उम्र की सांसद होने के साथ-साथ देश की भी सबसे कम्र उम्र की सांसद हैं. राजनीति में चंद्राणी का ज्यादा अनुभव नहीं है. 2017 में चंद्राणी ने भुवनेश्वर से अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की. डिग्री मिलने के बाद जब चंद्राणी नौकरी ढूंढ रही थी तभी उन्हें बीजद की ओर से टिकट की पेशकश कर दी गयी. चंद्राणी इस मौके को गंवाना नहीं चाहती थीं. उन्होंने पार्टी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और चुनाव मैदान में उतर गईं. उन्होंने जीत हासिल की और सबसे कम उम्र की सांसद बन गईं.

चंद्राणी के परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं है. चंद्राणी के माता-पिता सरकारी नौकरी करते हैं. चंद्राणी ने चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार अनंत नायक को करीब 66200 मतों के अंतर से हराया है. अनंत नायक बीजेपी के टिकट से क्योंझर से दो बार सांसद रह चुके हैं. सबसे पहले उन्होंने 1999 में जीत हासिल की थी. फिर 2004 में भी जीत हासिल कर वह लोकसभा पहुंचे थे. इसके बाद 2009 और 2014 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

चंद्राणी की बात करें तो उनके पास न खुद की गाड़ी है, न घर और न ही ज्यादा बैंक बैलेंस. चुनावी हलफ़नामे में बताई संपत्ति के अनुसार चंद्राणी मुर्मू के पास सिर्फ 20000 कैश है. उनके पास दो बैंक अकाउंट है. उनमें से एक में 287 रुपए हैं और दूसरे में 293 रुपए हैं. चंद्राणी का किसी कंपनी में कोई शेयर नहीं है, और न ही कोई सेविंग्स. चंद्राणी के पास कोई लाइफ इंश्योकरेंस पॉलिसी भी नहीं है. चंद्राणी के पास 100 ग्राम के करीब गोल्ड है जो उनके माता पिता ने उन्हें दिया है. चंद्राणी के पास चुनाव का अनुभव भी नहीं है. चंद्राणी ने अपने चुनाव कैंपेन के बारे में कहा, ‘इस कैंपेन के दौरान लोगों से बहुत सारा प्यार मिला. जीत के बाद अब मैं अपने क्षेत्र के लोगों के लिए खूब काम करुंगी. उनकी समस्याओं का समाधान करने की पूरी कोशिश करुंगी.

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क्या ‘जय श्री राम’ की राजनीति का उत्तर ‘जय भीम’ का नारा है?

भारतीय जनमानस पर कथित धर्म और उनके आदर्शोने निसंशय रूप से अपनी अमिट छाप छोड़ी है. केवल किसी एक व्यक्ति, संस्था, समाज एवं प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के समस्त लोकजीवन को बदलने वाली राजनीति धर्माधिष्ठित है. सन नब्बे के दशक में देश में उभरे राम मंदिर आन्दोलन से देश में निर्मित वातावरण को समकालीन वास्तविकता में भी महसूस किया जा सकता है. क्या राम नाम की राजनीति ही इस देश का भवितव्य है ? नि:संशय भारत जैसे बहुलतावादी देश में कोई भी एक धर्मीय राजनीति सर्वांगीन कटुता को जन्म देने में कारीगर साबित होगी. मात्र, क्या धर्मवादी राजनीति का कोई पर्याय हो सकता है? अर्थात जरुर हो सकता है.

खैर, मूलतः देखे तो केवल हमारे देश में कानूनी तौर पर तो जाती-धर्म के नाम पर ‘वोट’ नहीं मांगे जा सकते. लेकिन हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव को देखे तो अनेक पार्टीयों के नेताओं को इसका धड़ल्ले से उलंघन करता पाया गया. यही नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव के पश्चात सांसदों के शपथग्रहण समारोह में भी इस तरिके की नारेबाजी जोर शोर से चलती रही. इसी बिच देखने को मिले एक वाकिये ने सबका ध्यान अपनी और आकर्षित किया है. जो की निश्चित ही अधोरेखित करने लायक है. किस्सा यह था की, देश में मुस्लिम अल्पसंख्यांक समाज की राजनीति का चेहरा समझे जाने वाले ‘मजलिस-ऐ-इत्तिहादुल मुसल्लमिन’ के नेता असदुद्दीन ओवेसी, जैसे ही संसद में शपथ ग्रहण के लिए उठे वैसे ही कुछ सांसदों ने ‘वन्दे मातरम्’ और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाना शुरू किया. इसी बिच ओवेसी जी उपरोधकता से इशारों में ही ज़रा और जोर से नारे लगाने को कहते रहे. नारे चलते रहे और शपथ भी. मात्र, अपने शपथग्रहण समाप्ति के उपरांत ओवेसी जी ने जो ‘जय भीम’ का नारा बुलंद किया वह भी उल्लेखनीय है. किन्तु क्या केवल सर्वसामान्य दृष्टिकोण से इस घटना को देखा जा सकता है ? और क्या देखा जाना चाहिए ?

मूलतः भारतीय संविधान के अनुच्छेद ९९ में ‘संसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा’ यह नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के लिए निर्देशित है. संविधान का संबंधित अनुच्छेद तथा तीसरी अनुसूची में निर्देशित शपथ का प्रारूप अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया को अधोरेखित करता है.

सामान्यतः, संसदीय मर्यादा तथा गांभीर्य का पालन करते हुवे निसंशय सांसदों को आपने विवेक को उजागर रखना चाहिए. मात्र लोकतंत्र का सर्वोच्य अधिष्ठान कहे जाने वाले संसद सभागार में अगर ‘जय श्री राम’ की नारे लगने लगे तो मूलतः सामजिक विकास और स्तरीय ढाचे में सबसे निचे नरंतर वंचितता और पिछड़ेपन के साथ ही नकार और वृथा संशय का शिकार होता दलित, बहुजन, आदिवासी, मुस्लिम तथा अन्य अल्पसंख्यांक समाज किस जगह अपनी गुहार लगाए ? और कोनसी शासकीय प्रणाली पर अपना विशवास रखे ? भारतीय राज्यघटना जहा ऐसे दबे-कुचले समुदाय को स्वातंत्र्य, समता, न्याय और बंधुता का अधिकार देती हो वही धर्म विशेष की थोती राजनीति उन्ही संविधानिक मूल्यों को ध्वस्त करने में साबित ना हो.

निसंशय, संसद में गूंजे ‘जय श्री राम’ के नारे जहा देश भर के दलित, बहुजन, आदिवासी और अल्पसंख्यांक तबके में नकारात्मकता का भाव पैदा करेंगे वहि उसी वक्त ‘जय भीम’ का नारा संविधान के मार्ग पर चलने को प्रोत्साहित करता रहेगा. लेकिन नारों के बदले नारों की राजनीति जबतक सकल समाज के विकास की कांक्षा में नहीं बदलती तब तक देश के संविधानकर्ताओं का सपना साकार हुवा ऐसा हमें नहीं मानना चाहिए.

अर्थात जब भी आप और हम ‘जय भीम’ का नारा लागाते है, तब आत्यंतिक नैसर्गिक रूप से शोषणाधिष्टित धर्म और उसका थोता तत्वज्ञान और उसके द्वारा बनाई हुई अनैसर्गिक समाजरचना के विरुद्ध प्रतिरोध का स्वर उजागर करते है. अर्थात इस नारे के बाद हमें अन्य किसी नारे तथा घोषणापत्र देने की जरुरत नहीं. लेकिन नि:संशय नारे भी जहा हमारी राजनीति है वहि राजनीति केवल नारों तक सिमित न रहे.

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4 दिन की बच्ची को एक विंग से दूसरे विंग भेजते रहे डॉक्टर, सीढ़ियों पर तोड़ा दम

बरेली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली के सरकारी अस्पताल के दो विंगों में तीन घंटे तक उलझे रहने पर चार दिन के एक शिशु की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश सरकार ने अस्पताल के एक विंग के पीठासीन डॉक्टर को निलंबित कर दिया है, जबकि दूसरे विंग के प्रभारी अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी है. उर्वशी नाम की इस बच्ची का जन्म 15 जून को एक प्राइवेट अस्पताल में हुआ था. बुधवार सुबह उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी, जिसके बाद उसे बरेली शहर के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया. सरकारी अस्पताल में पुरुष विंग में ले जाने पर ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों ने बच्चे की जांच करने से इनकार कर दिया और बच्ची को उसी परिसर में स्थित महिला विंग में ले जाने के लिए कहा. परिजन बच्ची को लेकर महिला विंग पहुंचे तो वहां डॉक्टरों ने बताया कि यहां बेड कम हैं. इसे वापस पुरुष विंग लेकर जाइए. बच्ची की दादी कुसमा देवी ने बताया, ‘हम लोग तीन घंटे तक इधर-उधर घूमते रहे. क्योंकि उन्होंने एडमिट करने से मना कर दिया. आखिरकार हम लोगों ने उसे घर वापस ले जाने का फैसला किया. लेकिन उसने अस्पताल की सीढ़ियों पर ही दम तोड़ दिया.’

परिसर में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में माता-पिता को निर्देश देने के रिकॉर्ड बच्चे की मेडिकल पर्ची में दर्ज किए गए हैं. वहीं बच्ची की मौत के बाद दोनों विंगों के डॉक्टरों की बीच बहस भी हुई. स्थानीय लोग और पत्रकारों द्वारा शूट किए गए वीडियो में पुरुष विंग के इंचार्ज डॉ. कमलेंद्र स्वरूप और महिला विंग की इंचार्ज डॉ. अलका शर्मा बच्चे की मौत का आरोप एक दूसरे पर लगाते रहे. दोनों ने इसकी जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया.

इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार रात को ट्वीट किया, ‘ड्यूटी पर लापरवाही बरतने पर बरेली अस्पताल के पुरुष विंग के चीफ मेडिकल सुपरिटेंडेंट को निलंबित करने का आदेश दिया है और महिला विंग की सुपरिटेंडेंट के खिलाफ विभागीय कार्यवाही के आदेश दिए गए हैं. नए उत्तर प्रदेश में अधिकारियों की कोई असंवेदनशीलता सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी.’

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फिल्म ‘धड़क’ की तर्ज पर साले ने दलित समाज के जीजा को मार डाला

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प्रतीकात्मक चित्र

भोपाल। हिन्दी फिल्म ‘धड़क’ (मराठी फिल्म- सैराट) की तर्ज पर तीन अप्रैल, 2019 को पंजाब के लुधियाना जिले में एक दलित राजमिस्त्री राजकुमार अहिरवार की हत्या कर दी गई. हत्या के आरोप में राजकुमार के साले और उसके दोस्त को गिरफ्तार किया गया है. ककरदा गांव के मूल निवासी 24 साल के अंकित सिंह और 23 साल के भूपेंद्र सिंह को लुधियाना पुलिस की टीम ने छतरपुर पुलिस की मदद से गिरफ्तार किया. पुलिस के मुताबिक 2011 में राजकुमार ने अपने गांव की दीपा से शादी की. दीपा के परिजन ठाकुर हैं. बाद में परिवार के डर से दोनों अपने गांव से भागकर दिल्ली आ गए और बाद में लुधियाना में बस गए जहां राजकुमार राजमिस्त्री का काम करने लगे. कुछ महीनों पहले अंकित ने अपनी बहन का पता लगाया और उससे कहा कि वह चाहता है कि उनके रिश्ते फिर से पहले जैसे हो जाएं. अप्रैल 2019 में अंकित भूपेंद्र के साथ लुधियाना गया और राजकुमार के घर पर कुछ दिनों के लिए रहा. तीन अप्रैल को अंकित और उसके दोस्त ने लुधियाना के घंटाघर इलाके से चाकू खरीदे और फिर राजकुमार को अपनी बाइक पर उन्हें रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए कहा.

अपने साले के प्लान से बेख़बर राजकुमार साहनेवाल शहर में एक नहर पर पहुंचा, तो अंकित ने राजकुमार का गला पीछे से काट दिया. इसके बाद वह जमीन पर गिर गया. अंकित और उसके दोस्त दोनों ने बाद में राजकुमार को कई बार चाकू से गोद दिया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसकी मौत हो गई है. हत्या के बाद अंकित ने राजकुमार के फोन का इस्तेमाल किया और दीपा को सूचित किया कि उसने राजकुमार को परिवार और ठाकुरों की इज्ज़त के लिए मार दिया है.

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दलित सरपंच के पति की पीट-पीटकर हत्या

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नई दिल्ली। एक दलित सरपंच के पति की छह लोगों ने लाठियों और पाइपों से कथित तौर पर पीट-पीट कर बुधवार को हत्या कर दी. यह घटना उस समय हुई जब पीड़ित अपनी मोटरसाइकिल से रणपुर-बरवाला सड़क से गुजर रहे थे. पुलिस ने यह जानकारी दी.

घायल होने की वजह से आखिरी सांस लेने से पहले पीड़ित मांजीभाई सोलंकी ने अपने एक संबंधी को फोन पर दिए गए बयान में दावा किया कि पहले उनकी बाइक में एक कार ने टक्कर मार दी और इसके बाद उस कार में सवार पांच से छह लोगों ने उनकी पिटाई की.

सोलंकी का एक वीडियो भी सामने आया है जिसमें वह लगभग बेहोशी की स्थिति में हैं. इसी दौरान यह भी प्रकाश में आया है कि पीड़ित और उनकी पत्नी ने पिछले साल पुलिस से सुरक्षा मांगी थी.

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न तो अध्यक्षी पार्ट टाइम है और न ही गृहमंत्रालय

17 जून को भारतीय राजनीति में एक ऐसी घटना घटी जो किसी प्रहसन से कम नहीं. भारतीय जनता पार्टी में जगत प्रकाश नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया. कार्यकारी अध्यक्ष ? इससे पहले तो कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बनाए जाते रहे हैं फिर अचानक पार्टी के संविधान और चलन के विपरीत क्यों कदम उठाया गया है ? इससे पहले भी तो कई अध्यक्ष रहे हैं जो पार्टी और सरकार के कई ओहदों पर आज भी काम कर रहे हैं, लेकिन अमित शाह में ऐसा क्या है कि पार्टी उनको अध्यक्ष बनाए रखना चाहती है अथवा वे अध्यक्ष बने रहना चाहते हैं. असल में जगत प्रकाश नड्डा की ताजपोशी ये बताती है कि भारतीय जनता पार्टी की संसदीय बोर्ड नाम की संस्था कमजोर हुई है. इस बोर्ड में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है जो ये कह सके कि न तो भाजपा अध्यक्ष का पद पार्ट टाम जॉब के रूप में संभाला जा सकता और न ही गृह मंत्रालय. ये बेहद चौंकाने वाली स्थिति है, जबकि इसमें मातृ संस्था संघ को भी दखल देना चाहिए था. दूसरा चौंकाने वाला पहलू ये है कि मीडिया की तरफ से भी इस तरह का कोई सवाल खड़ा नहीं किया गया. बड़े-बड़े राजनीतिक समीक्षक चुप्पी साधे बैठे हैं. जब भी कोई इस तरह का गैर पारंपरिक कदम उठाया जाता है उसके परिणाम-दुष्परिणाम दूरगामी होते हैं.

अभी के राजनीतिक परिदृश्य में यदि देखा जाए तो बाकी पार्टियों से अधिक लोकतंत्र है. बाकी पार्टियों में उनके प्रमुख परिवार से ही बनते आ रहे हैं, चाहे वह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ही क्यों न हो. पार्टियों में लोकतंत्रात्मक दायरा बढ़ाने के लिए इस तरह के घटनाक्रम का भारत की सिविल सोसायटी, मीडिया, राजनीति के जानकारों की ओर से सवाल उठाए जाने चाहिए. जगत प्रकाश नड्डा की कार्यकारी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी से ऐसा संदेश गया है कि अमित शाह की ओर से भाजपा के ऊपर एक तरह से एहसान किया गया है अगर वे चाहते तो गृहमंत्री और पार्टी अध्यक्ष दोनों बने रह सकते थे, क्योंकि उनका कद अब इतना बढ़ गया है कि उनसे कोई सवाल करने की किसी हिम्मत नहीं है, जबकि स्थिति इसके उलट भी हो सकती है. भारतीय राजनीति में इस तरह के कुछ ताजा घटनाक्रमों का अवलोकन किया जा सकता है कि उनका क्या असर हुआ.

वर्ष 2003 में जब मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की हार हुई और उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद तिरंगा यात्रा निकालने की वजह से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अपने सबसे भरोसेमंद सिपहसालार बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया. जब तिरंगा यात्रा खत्म हुई तो उमा भारती ने गौर से कुर्सी खाली करने के लिए कहा, लेकिन गौर ने गच्चा दे दिया. उसके बाद क्या-क्या हुआ किसी से छिपा नहीं. एक बार नीतिश कुमार ने जीतनराम मांझी के लिए कुर्सी खाली की, बाद में नीतिश कुमार को बिना सीएम कुर्सी के बेचैनी होने लगी तो रोज नई-नई नौटंकियां सामने आने लगीं. हालात अगर भाजपा में भी इस तरह के बनने लगें तो चौंकिएगा नहीं. सबसे अच्छा तरीका ये होता कि अमित शाह भी लालकृष्ण आडवाणी, वैंकेया नायडू, नितिन गड़करी, राजनाथ सिंह की तरह अध्यक्षी छोड़कर गृहमंत्रालय संभालते. पार्टी किसी और को पूरी तरह से अध्यक्ष बनाती और स्वतंत्र रूप से काम करने का मौका देती. इसके बाद सरकार और पार्टी प्रमुखों का दायित्व होता कि वे आपस में तालमेल बनाकर रखें.

अमित शाह का पद छोडऩा क्यों जरूरी?

ये बहुत पहले से तय था कि और लोग समझ भी रहे थे कि यदि केंद्र में मोदी सरकार की वापसी होती है तो अमित शाह ही गृहमंत्री होंगे. गृहमंत्री होने का मतलब है कि लगभग डेढ़ अरब आबादी की आंतरिक चुनौतियों से सुरक्षा का जिम्मा. ये कोई छोटी जिम्मेदारी नहीं है. जब देश में आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर एक नहीं कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं ऐसी स्थिति में अमित शाह आधी अध्यक्षी कैसे संभाल सकते हैं. अमित शाह से भारत की जानता को दो बड़े मोर्चों पर निर्णायक कदम उठाने की उम्मीद है और जनता ये भी जानती है कि अमित शाह इसमें सक्षम भी हैं. ये दो बड़ी चुनौतियां हैं कश्मीर में आतंकवाद और देश में कई हिस्सों में फैला नक्सलवाद. आंतरिक सुरक्षा के मोर्च पर राजनाथ सिंह ने अपने कार्यकाल में बेहतर काम किया लेकिन जनता इस पर निर्णायक प्रहार चाह रही है. यह तभी संभव है जब अमित शाह पूरी तरह से गृहमंत्रालय संभालेंगे और संगठन के काम से मुक्त कर दिए जाएंगे. इन दो बड़े कामों के अलावा इस देश में कानून व्यवस्थाओं से जुड़े कई मामले है. इसके अलावा उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार दूसरे कार्यकाल में पुलिस सुधार पर कुछ कदम उठाएगी. भारतीय पुलिस के कामकाज में गुणात्मक सुधार लाने के लिए इस पर बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है. अंडर परफार्मर हैं जेपी नड्डा

एक तो जेपी नड्डा को पूरी तरह से अध्यक्षी नहीं दी गई है, यानि वे अमित शाह के मार्गदर्शन में काम करेंगे. स्वंय से कोई निर्णय नहीं ले पाएंगे, यानि अमित शाह से उनकी मुलाकात तभी हो पाएगी जब वे गृहमंत्रालय के कामों से फुरसत पाएंगे. ऐसी स्थिति में पार्टी के कामों में लेतलतीफी होगी जिससे स्वाभाविक है कि जेपी नड्डा का संगठन के मोर्चे पर प्रदर्शन प्रभावित होगा. दूसरी स्थिति ये बनेगी कि संगठन जो भी उपलब्धि हासिल करेगा वह अमित शाह के खाते में जाएगी और विफलताएं जेपी नड्डा के खाते में इसके पार्टी में खींचतान बढ़ेगी. जेपी नड्डा वैसे भी अंडर परफार्मर हैं. नड्डा पांच साल तक देश के स्वास्थ्य मंत्री रहे लेकिन उन्होंने उस मोर्चे पर कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया. जबकि मोदी सरकार के ही कई मंत्रियों ने अपने कामकाज से रिकार्ड कायम किए हैं. इनमें नितिन गड़करी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण के नाम उल्लेखनीय हैं. संगठन में सत्ता के दो बिंदु होने से पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी भ्रमित रहेंगे. ऐसी स्थिति में केंद्र में भले ही अनुशासनहीनता के मामले सामने न आएं लेकिन राज्य इकाइयों में अनुशासनहीता और निष्क्रियता बढ़ेगी. ऐसी स्थिति में भारतीय राजनीति में अस्थिरता का दौर शुरू हो सकता है, जिससे फिलहाल भारतीय राजनीति उबरती हुई लग रही है.

शिव मंगल सिंह

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विवादों में फिल्म ‘आर्टिकल 15’, फिल्म निर्माता को कानूनी नोटिस

नई दिल्ली। फिल्म ‘आर्टिकल 15’ विवादों में घिरती नजर आ रही है. अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद ने फिल्म को जाति के आधार पर समाज को बांटने वाला और ब्राह्मणों का अपमान करने वाली बताते हुए आपत्ति उठाई है. अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद ने फिल्म के निर्माता निर्देशक को कानूनी नोटिस जारी कर फिल्म से आपत्तिजनक हिस्सा हटाने की मांग की है. इस फिल्म का ट्रेलर 30 मई को रिलीज हुआ था और 28 जून को फिल्म रिलीज होने वाली है.

 

आपत्ति की वजह- फिल्म के ट्रेलर के मुताबिक फिल्म में ऊंची जाति के अभियुक्तों द्वारा नीची जाति से दुष्कर्म और हत्या का अपराध करने का जिक्र है साथ ही जाति आधारित संवाद और टिप्पणियां हैं. संस्था की ओर से वकील सुनील कुमार तिवारी ने कानूनी नोटिस भेज कर नोटिस मिलने के 24 घंटे के भीतर फिल्म के जारी ट्रेलर की वीडियो क्लिप से आपत्तिजनक भाग हटाने की मांग की है.

फिल्‍म निर्माता को कानूनी नोटिस- नोटिस में कहा गया है कि अगर तय समय में यू-ट्यूब, सोशल मीडिया आदि पर जारी वीडियो क्लिप से आपत्तिजनक हिस्सा नहीं हटाया गया तो संस्था आपराधिक व दीवानी कानूनी कार्यवाही करेगी. नोटिस में कहा गया है कि गत 30 मई को यूट्यूब ऑनलाइन चैनल और सोशल मीडिया पर जारी फिल्म ‘आर्टिकल 15 के ट्रेलर से हिंदू ब्राह्मणों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं. यह सिनेमेटोग्राफी एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन है. इसके अलावा फिल्म संविधान की भावना और प्रावधानों का भी उल्लंघन करती है. इस फिल्म में ब्राह्मणों और अन्य हिंदू जातियों की प्रतिष्ठा खराब करने की कोशिश हुई है जो कि अपराध है.

नोटिस में यह भी उल्‍लेख किया गया है कि संविधान मौलिक अधिकारों के हनन की इजाजत नहीं देता. किसी को भी आम जनता की निगाह में किसी व्यक्ति, समूह और उसकी परंपराओँ, उसकी जाति या धर्म को कमतर करने का अधिकार नहीं है. यह फिल्म ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचा सकती है जो कि आइपीसी की धारा 499 में दंडनीय अपराध है.

कानूनी नोटिस में वकील ने कहा है कि एक समूह विशेष हिंदू ब्राह्मण से ताल्लुक रखने वाले उनके क्लाइंट को अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान पूर्वक जीवन जीने का मौलिक अधिकार है. सेंसर बोर्ड ऑफ इंडिया नागरिकों के मानवीय, मौलिक और प्राकृतिक अधिकारों का संरक्षक है. इसलिए सेंसर बोर्ड प्रमाणपत्र की आड़ में लोगों की प्रतिष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली कोई भी ऑडियो वीडियो फिल्म जारी नहीं की जा सकती. अगर ऐसी कोई गैर कानूनी इजाजत दी गई है तो उसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए.

समाज में शांति भंग हो सकती है- इस फिल्म से समाज में विभिन्न जातियों और धर्मों का आपसी सौहार्द बिगड़ सकता है. शांति भंग हो सकती है. इतना ही नहीं फिल्म का जारी किया गया ट्रेलर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के आत्मसम्मान के खिलाफ है. उसमें उन्हें दुष्कर्म और हत्या जैसे जघन्य अपराध का पीड़ित दिखाया गया है. आरोप लगाया गया है कि इस फिल्म में जानबूझकर ब्राह्मणों की भावनाओं को आहत करने और अन्य समुदायों के धार्मिक विश्वास को अपमानित करने की कोशिश की गई है. जो कि दंडनीय अपराध है.

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जानलेवा बीमारियों से निपटने के लिए ठोस उपाय क्यों नहीं करती सरकार

आप इसे चमकी बीमारी का नाम दे सकते हैं. डिजीटल युग में थोड़ा हैपनिंग और नया भी लगता है. लेकिन मुद्दे पर मेरी अपनी समझ कहती है कि ये दिमागी बुखार (एक्यूट एंसेफिलाइटिस सिंड्रोम) ही है. 100 नवजातों से ज्यादा दम तोड़ चुके हैं, जनता को गुस्सा तो आएगा ही – ये सोशल मीडिया में नीतीश कुमार और मोदी सरकार को पानी पी – पीकर कोसने और गाली देने से कुछ नहीं होगा. हर साल, इसी मौसम में आपको गुस्सा क्यों नहीं आता? ये बीमारी मुजफ्फरपुर में कोई नई नहीं है. सालाना 100 से ज्यादा नवजातों का यहां मर जाना नया तो नहीं है. हर साल इससे भी ज्यादा बच्चे स बीमारी से मरते हैं. आम लोग इसे चमकी बीमारी कह रहे हैं, डॉक्टर इसे एंसेफिलाइटिस का नाम देते हैं. कई साइंटिस्टों ने यहां तक कहा है कि लीची बागानों के आसपास रहने वाले बच्चे इस संक्रमण से मरते हैं.

क्या मेरे सोशल मीडिया में चीखने या वहां जाकर लोगो की मदद करने से समस्या हल होगी? नहीं, मेरा मानना है कि फिलहाल वहां जाकर कोई मदद भी मददगार नहीं हो सकती. दरअसल, अस्पताल पूरी समस्या के आखिरी पड़ाव पर आता है. बच्चे आखिरकार अस्पतालों में जाकर ही दम तोड़ते हैं इसीलिए स्वास्थ्य विभाग या स्वास्थ्य मंत्रालय पर नाकामी का ठीकरा फोड़ना आसान है. जबकि हकीकत ये है कि मुजफ्फरपुर में कुपोषण, साफ पीने का पानी और मच्छरों का संक्रमण सबसे बड़ी चुनौती है. खबरों में बच्चों के चमकी बीमारी से मरने की खबर तो आ रही है लेकिन कोई भी इस जिले में अति-कुपोषित और कुपोषित बच्चों को लेकर कोई बात नहीं कर रहा. बिहार के ‘सुशासन’ में बच्चों के भूखे रहने की बात कोई करता ही नहीं है. दूसरा इस क्षेत्र में मच्छरों का प्रकोप अन्य जिलों से ज्यादा है. ये एक खास किस्म के मच्छर हैं जो इस बीमारी को बच्चों में पहुंचाने का काम करते हैं.

कमाल की बात यह है कि गोरखपुर में इसी बीमारी से लड़ने के लिए 4000 करोड़ रुपए खर्च करके रिसर्च सेंटर बनाया गया, अस्पतालों में खास विभाग बनाए गए. मच्छरों से निबटने के लिए राज्य और केंद्र सरकार पैसा देती रही है. यहां कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी काम कर रही है. लेकिन इसके उलट मुजफ्फरपुर में सिर्फ केंद्र सरकार की एक टीम हर साल पहुंचती है और अपनी वाहियात सी रिपोर्ट बनाती और सरकार को सौंप देती है. इससे आगे कुछ नहीं.

जरुरत है कि मुजफ्फरपुर में भी कम से कम दो रिसर्च सेंटर बने. कुपोषण से लड़ने के लिए राज्य व केंद्र सरकार परिवारों को अनाज दें. मच्छरों की समस्या से निबटने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय साथ मिलकर काम करे और इन्हें पनपने से रोकें. साफ पीने के पानी का बंदोबस्त किया जाए. बिना इन ठोस कदमों के इस समस्या का निदान नहीं हो सकता.

PS: आमिर खान और प्रसून जोशी को “कुपोषण भारत छोड़ो” ऐड पर 400 करोड़ रुपए लूटा दिया गया. अच्छा होता अगर यही पैसा इन गरीबों को राशन देने में लगा देते.

लेखक- प्रदीप सुरीन वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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पश्चिम बंगाल : दलित प्रोफेसरों के अपमान को लेकर विभागीय प्रमुखों व अध्यक्षों का इस्तीफा

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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित रबींद्र भारतीय विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति (एससी) के चार प्रोफेसरों का कथित रूप से जाति के आधार पर अपमान किए जाने की घटना सामने आई है. मामला तब और बढ़ गया जब इसके विरोध में विश्वविद्यालय के चार विभागों के प्रमुखों और तीन अध्यक्षों (डीन) ने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को मंगलवार को विश्वविद्यायल का दौरान करना पड़ा.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक कक्षा में अनुपस्थिति को लेकर (दलित) शिक्षकों की कुछ छात्रों के समूह से बहस हो गई थी. उसी दौरान उनका अपमान किया गया. विश्वविद्यालय के कई छात्र और स्टाफ इस घटना के लिए सतारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि टीएमसी की यूनियनों ने ही प्रोफेसरों का अपमान किया है. इस बीच, विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (वीसी) बासु राय चौधरी ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं.

साभार- हिंदुस्तान टाइम्स Read it also- यूपी: हार पर कांग्रेस का मंथन, कई द‍िग्‍गज नदारद

‘एक देश, एक चुनाव’ को मायावती ने बताया छलावा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ पर सभी राजनीतिक पार्टियों की बैठक बुलाई है. बैठक में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती शामिल नहीं होंगी. मायावती ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है. ईवीएम पर बैठक होती तो मैं जरूर शामिल होती.

मायावती ने ट्विटर पर लिखा, ‘किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है और न ही चुनाव को कभी धन के व्यय-अपव्यय से तौलना उचित है. देश में ‘एक देश, एक चुनाव’ की बात वास्तव में गरीबी, महंगाई, बेरोजबारी, बढ़ती हिंसा जैसी ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है.’

बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा, ‘बैलेट पेपर के बजाए ईवीएम के माध्यम से चुनाव की सरकारी जिद से देश के लोकतंत्र व संविधान को असली खतरे का सामना है. ईवीएम के प्रति जनता का विश्वास चिन्ताजनक स्तर तक घट गया है. ऐसे में इस घातक समस्या पर विचार करने हेतु अगर आज की बैठक बुलाई गई होती तो मैं अवश्य ही उसमें शामिल होती.’ देश में पिछले काफी समय से एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराने को लेकर चर्चा छिड़ी है. इसी बहस को आगे बढ़ाने के लिए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों की बैठक बुलाई है. इस बैठक में राष्ट्रीय पार्टियों, क्षेत्रीय पार्टियों के अध्यक्ष को शामिल होना है. ये बैठक बुधवार दोपहर 3 बजे संसद भवन की लाइब्रेरी में होगी. तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बैठक में आने से इनकार कर दिया है.

इस बैठक में वन नेशन वन पोल के अलावा भी कई मुद्दों पर बात होगी. 2022 में भारत अपनी आजादी के 75 साल पूरा कर लेगा, इसे मोदी सरकार बड़े रूप में मनाना चाहती है, जिस पर सभी दलों से बात हो सकती है. साथ ही महात्मा गांधी की 150वीं जयंती का जश्न और सदन में कामकाज के सुचारू रूप से चलने को लेकर बैठक में प्रधानमंत्री बात करेंगे.

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अब बसपा ने प्रत्याशी चयन पर लगाई निगाहें

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लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती मंगलवार दोपहर राजधानी लखनऊ पहुंचीं और पदाधिकारियों से फोन पर बात की. इस बातचीत के आधार पर ही उपचुनाव में प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. मायावती ने उपचुनाव के संबंध में 23 जून को एक बैठक बुलाई है, जिसमें वह उपचुनाव वाले जिलों के को-ऑर्डिनेटरों और प्रदेश पदाधिकारियों के साथ बातचीत करेंगी.

सपा और बसपा ने मिलकर इस बार लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि, अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद मायावती ने पहली बार उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है. इस उपचुनाव में सपा से अलग होकर बसपा लड़ेगी. लिहाजा, अभी से मायावती ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं. सूत्र बताते हैं कि मायावती ने दिल्ली में समीक्षा करने के बाद लखनऊ पहुंचते ही पदाधिकारियों से फोन पर बात की. उन्होंने पदाधिकारियों से चुनाव बाद के हालात और पार्टी की स्थिति का जायजा लिया. माना जा रहा है कि यह फीडबैक ही प्रत्याशी चयन के लिए आधार बनेगा. कुछ पदाधिकारियों ने संभावित प्रत्याशियों के नाम पर भी मायावती से चर्चा की. इसके बाद उन्होंने 23 जून को बैठक बुलाई है, जिसमें वह विस्तृत बातचीत करेंगी.

सूत्र बताते हैं कि मायावती की निगाहें उपचुनाव पर बेहद संजीदगी से लगी हैं. 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें मायावती अपने खाते में चाहती हैं, ताकि विधानसभा में वह खुद को और मजबूत कर सकें. ऐसी स्थिति में और सपा के साथ तालमेल बेहतर रहते हुए विधान परिषद और राज्यसभा की सीटों की संभावना को भी जिंदा रखा जा सकता है. 2017 में बसपा को 19 सीटें मिली थीं. लोकसभा चुनाव में बसपा के एक विधायक के सांसद बनने की वजह से विधायकों की संख्या 18 रह गई है.

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चमकी बुखारः लापरवाही की वजह मरीजों की पृष्ठभूमि तो नहीं

बिहार के मुजफ्फरपुर में जिस तरह एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार की वजह से अभी तक 108 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं, वह कोई आम खबर नहीं है. जिस देश में चार सैनिकों के मारे जाने पर हर जिले में लोग कैंडल मार्च निकालने लगते हैं, उसी देश में 100 से ज्यादा मां-बाप के आंखों के सामने उनके बच्चों की जान चले जाना और उस पर शासन, सरकार और व्यवस्था की कमान संभाले अधिकारियों और नेताओं-मंत्रियों की चुप्पी गंभीर सवाल उठाती है.

हद तो यह है कि मरने वाले बच्चों की संख्या 100 पार कर जाने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल जानने मुजफ्फरपुर पहुंचे. यह तब है जब मुजफ्फरपुर जिला पटना से महज डेढ़ से दो घंटे की दूरी पर है. नीतीश के पहुंचने पर मृतक के परिवार वालों और इस घटना से भड़के लोगों ने जिस तरह ‘गो बैक’ के नारे लगाएं वह भी अचंभित करने वाला नहीं था. लोग परेशान है. खबर है कि अभी भी अस्पतालों में भर्ती बीमार बच्चों की संख्या 414 हो गई है. चमकी बुखार से पीड़ित ज्यादातर मरीज मुजफ्फरपुर के सरकारी श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल (एसकेएमसीएच) और केजरीवाल अस्पताल में एडमिट हैं.

अब तक एसकेएमसीएच हॉस्पिटल में 89 और केजरीवाल अस्पताल में 19 बच्चों की मौत हो गई है. जिन बच्चों की मौत हुई है, तकरीबन सारे के सारे बच्चे गरीब परिवार के और दलित-पिछड़े समाज के बच्चे हैं. ऐसे में क्या यह सवाल गलत होगा कि इन बच्चों को इसलिए मरने के लिए छोड़ दिया गया क्योंकि ये सब गरीब थे. खुदा न करे कि इस बुखार की चपेट में अब एक भी बच्चा आए. सिर्फ मुजफ्फरपुर ही नहीं, बल्कि देश के हर कोने के बच्चे सुरक्षित रहें. लेकिन क्या इस बुखार की चपेट में सभ्य समाज के लोगों के बच्चों के आने के बाद भी सरकार इसी तरह सोई रहती, जाहिर है नहीं. अफसोस के साथ यह सवाल इसलिए पूछना पर रहा है क्योंकि भारत में हर वक्त ऐसा ही होता है. यहां हर किसी की हैसियत अमीरी और गरीबी के साथ उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि से तय होती है. चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों के इलाज को लेकर सरकार और प्रशासन ने जिस तरह से लापरवाही बरती है, उसका प्रायश्चित यही है कि अब इस बुखार से किसी भी बच्चे की जान न जाए, किसी भी मां की गोद सूनी न हो.

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