नई दिल्ली। कुलभूषण जाधव के मामले में एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच का अंतर साफ देखने को मिला. भारतीय वकील हरीश साल्वे ने कुलभूषण जाधव का केस अंतरराष्ट्रीय अदालत में लड़ने के लिए जहां फीस के रूप में सिर्फ एक रुपया लिया, वहीं पाकिस्तान ने जाधव को जासूस साबित करने के लिए अपने वकील पर 20 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिए. हालांकि, इसके बावजूद भी भारत के पक्ष में आया और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. एक रुपये की फीस वाले हरीश साल्वे ने पाकिस्तान के 20 करोड़ रुपये के वकील खावर कुरैशी को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में हर मोर्चे पर मात दी.
आइसीजे में कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान को मिली करारी मात के बाद सोशल मीडिया पर वकील हरीश साल्वे की जमकर तारीफ हो रही है. बता दें कि पाकिस्तान ने ICJ में जहां दो वकील बदले, वहीं साल्वे अकेले ही दोनों पर भारी पड़े और जाधव की फांसी रुकवाने में कामयाबी हासिल कर ली. पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस हार को शायद ही प्रधानमंत्री इमरान खान पचा पाएं. दरअसल, हरीश साल्वे ने जहां जाधव के मामले को देश की प्रतिष्ठा और मान समझकर लड़ा, वहीं खावर कुरैशी ने सिर्फ इसे एक केस के रूप में लड़ा. शायद यही वजह रही कि कुरैशी को हर मोर्चे पर साल्वे ने पस्त कर दिया. आइसीजे ने 15-1 से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया है. जाधव की फांसी पर भी रोक लगा दी गई है.
वैसे बता दें कि हरीश साल्वे की गिनती देश के बड़े वकीलों में होती है. वह सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील हैं और उनका नाम देश के सबसे महंगे वकीलों में शुमार है. खबरों के मुताबिक, साल्वे की एक दिन की फीस करीब 35 लाख रुपये के लगभग है. इसके बावजूद उन्होंने जाधव का केस सिर्फ एक रुपये में लड़ा. साल्वे के पिता एनकेपी साल्वे पूर्व कांग्रेस सांसद और क्रिकेट प्रशासक थे. दूसरी, ओर कुरैशी की बात करें, तो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून में स्नातक वह आइसीजे में केस लड़ने वाले सबसे कम उम्र के वकील हैं. पाकिस्तान सरकार ने पिछले साल देश की संसद में बजट दस्तावेज पेश करते समय बताया था कि द हेग में अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाधव का केस लड़ने वाले वकील खावर कुरैशी को 20 करोड़ रुपये दिए गए हैं.
पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के आदेश पर कितना अमल करता है, यह देखने वाली बात होगी. यहां गौर करने वाली बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत के पास अपने आदेश को लागू करवाने के लिए सीधे कोई शक्ति नहीं होती. ऐसे में किसी देश को अगर लगता है कि दूसरे देश ने ICJ के आदेश की तामील नहीं की, तो वह इस पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में गुहार लगा सकता है. इस पर फिर सुरक्षा परिषद उस आदेश को लागू करवाने के लिए उस देश के खिलाफ कदम उठा सकता है.
Read it also-BSP प्रमुख मायावती बोलीं, मोदी सरकार का बजट धन्नासेठों के लिए

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
