यूपी पुलिस के निशाने पर क्यों हैं दलित, पिछड़े और मुसलमान

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में दलितों से भेदभाव चरम पर है. आमतौर पर या तो दलितों के मामले दर्ज नहीं किए जा रहे हैं या फिर उन्हें कमजोर करने की कोशिश की जा रही है. यूपी में एक के बाद एक हो रहे एनकाउंटर को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. दलित अधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि इन एनकाउंटर में मारे जाने वाले ज्यादातर लोग दलित, पिछड़े या फिर अल्पसंख्यक समाज के हैं.

यूपी पुलिस दलितों के मामले को किस तरह दबाने की कोशिश कर रही है, उसकी बानगी आप खुद देखिए. बीते 17 फरवरी को बांदा के अतर्रा थाना के महुटा गांव में एक 14 साल की दलित लड़की से गैंगरेप का आरोप लगाते हुए उसकी मां थाने पहुंची. उसने गांव के ही दो सवर्ण गुंडों पर बेटी के साथ गैंगरेप का आरोप लगाया. दूसरे दिन बेटी बेहोशी की हालत में बरामद हुई थी. इस मामले में होना यह चाहिए था कि पुलिस तुरंत पीड़ित युवती का मेडिकल कराती और मामला दर्ज कर आरोपियों को पकड़ती, लेकिन हुआ इसका उल्टा.

आरोप है कि पुलिस ने गैंगरेप जैसे संगीन मामले को रफादफा करने की कोशिश की और FIR दर्ज करने की बजाय NCR दर्ज कर दिया. बता दें कि एनसीआर पुलिस तब दर्ज करती है जब कोई मामला पुलिस के हस्तक्षेप करने योग्य नहीं होता. अमूमन मामूली झगड़े या छोटी-मोटी चोरी के मामले में पुलिस NCR दर्ज करती है. पुलिस ने पीड़ित महिला का मेडिकल भी नहीं कराया और कहा कि अगर आरोपी यह स्वीकार करेगा कि उसने रेप किया है, तब पीड़िता का मेडिकल कराया जाएगा.

इसी तरह बीते 10 महीनों में 1200 से अधिक पुलिस एनकाउंटर और उनमें 40 के करीब कथित अपराधियों की मौत को लेकर भी सवाल उठने लगा है. पुलिसिया एनकाउंटर की एक तस्वीर यह भी है कि मथुरा में 18 जनवरी को एक बच्चे की गोली लगने से मौत हुई थी तो वहीं 15 सितंबर को नोएडा में हुई एक कथित मुठभेड़ में भी एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को गोली लगी थी. नोएडा में ही एक जिम ट्रेनर और अम्बेडकरनगर क्षेत्र में राजभर समाज के एक आम युवक का एनकाउंटर किए जाने पर भी पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं.

रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर और उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व आईजी एस.आर. दारापुरी का बयान गौर करने लायक है. दारापुरी कहते हैं-

“पुलिस एनकाउंटर अधिकतर राज्य प्रायोजित होते हैं और 90 फ़ीसदी एनकाउंटर फ़र्ज़ी होते हैं. जब राजनीतिक रूप से प्रायोजित एनकाउंटर होते हैं तो उनमें उस तबके के लोग होते हैं जो सत्ताधारी दल के लिए किसी काम के नहीं हैं या जिन्हें वो दबाना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार को यहां आंकड़ा जारी करना चाहिए कि एनकाउंटर में मारे गए लोग किस समुदाय के थे और जिन लोगों के सिर्फ़ पैर में गोली मारकर छोड़ दी गई है, वे किस समुदाय के थे. मेरी जानकारी के अनुसार एनकाउंटर में जितने लोग मारे गए हैं, उनमें अधिकतर संख्या मुसलमानों, अति पिछड़ों और दलितों की है,सवर्णों में शायद ही कोई हो.”

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का यह बयान यूपी पुलिस के रवैये को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है. सवाल उठता है कि आखिर यूपी पुलिस के निशाने पर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोग ही क्यों हैं?

अखिलेश कृष्ण मोहन

दलितों को जगाने बिहार में घूम रही है दलित चेतना रथयात्रा

गोपालगंज। भारत भर में दलित समाज के लोग अपने ऊपर हो रहे अन्याय से परेशान हैं. जाहिर सी बात है, इससे बचने और मुकाबला करने के लिए समाज के लोगों को सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक आधार पर सजग होना होगा. जगह जगह पर तमाम अम्बेडकरी संगठन और वंचित समाज के जागरूक लोग पीछे छूट गए लोगों को जगाने की कोशिश करने में जुटे हैं.

बुद्धभूमि बिहार के गोपालगंज से इसी कोशिश के तहत एक रथयात्रा की शुरुआत की गई है. 11 फरवरी को शुरू हुई यह रथयात्रा प्रदेश के विभिन्न जिलों में वंचित समाज के बीच जाकर उन्हें जागरूक करने का काम करेगी. इस रथ यात्रा को “बिहार दलित चेतना रथ यात्रा” का नाम दिया गया है. यह यात्रा जिले के जय भीम फाउंडेशन के जरिए निकाली गई है. दलित चेतना रथयात्रा का उद्देश्य बिहार के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों में सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति पर चेतना लाना है.

यात्रा को शहर के वरिष्ठ डॉक्टर आलोक कुमार सुमन ने नीला झंडा दिखाकर रवाना किया. मनोज कुमार रंजन, डाक्टर रंजय कुमार पासवान एवं चंदन अम्बेडकर को यात्रा को सफल करने के लिए शुभकामनाएं दी. गोपालगंज से निकली यह चेतना रथयात्रा सिवान, छपरा, मोतिहारी, बेतिया, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी विभिन्न जिलों में जाएगी. 23 मार्च 2018 को पटना में इसका समापन होगा.

विराट कोहली ने रचा एक और इतिहास

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नई दिल्ली। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और धुरंदर  बल्लेबाजों में शुमार विराट कोहली ने 27 साल में पहली बार आईसीसी की सर्वाधिक वनडे रेटिंग (909) हासिल कर इतिहास रच डाला है. विराट वनडे में 900 से ज्यादा रेटिंग हासिल करने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज हैं. इसके साथ ही विराट दक्षिण अफ्रीका के एबी डिविलियर्स के बाद एक साथ वनडे और टेस्ट रैंकिंग में 900 अंक के आंकड़े को पार करने वाले दूसरे बल्लेबाज हैं.

विराट ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरीज के छह मैचों में 186.00 की अद्भुत औसत के साथ 558 रन ठोक डाले थे, जिसका उन्हें इनाम मिला. इस दौरान वह तीन ही बार आउट हुए, जिसमें उनके तीन शतक शामिल हैं.

मंगलवार को जारी आईसीसी वनडे रैंकिंग में कोहली को 33 रेटिंग प्वाइंट हासिल हुए. नंबर-1 पर काबिज विराट अब अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी (दूसरे स्थान पर) एबी डिविलियर्स से 65 अंक आगे हो चुके हैं.

विराट की यह रेटिंग- 909 ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज डीन जोन्स के बाद सर्वाधिक हैं, जिन्हें 1991 में 918 की रेटिंग हासिल हुई थी. इसके साथ ही ओवरऑल रेटिंग में विराट को सातवीं उच्चतम रेटिंग मिली है. विव रिचर्ड्स (935), जहीर अब्बास (931), ग्रेग चैपल (921), डेविड गॉवर (919), डीन जोन्स (918) और जावेद मियांदाद (910) ही उनसे आगे हैं.

केजरीवाल सरकार के खिलाफ सचिवालय के अधिकारियों ने ठप्प किया काम

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नई दिल्ली। दिल्ली में केजरीवाल और राज्यपाल के बीच अक्सर मतभेद की खबरें सामने आती रहती हैं. तो तमाम अधिकारियों पर भी राज्यपाल के प्रति जवाबदेही की बात कह कर आप नेताओं को कमतर दिखाने का आरोप लगता रहता है. दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार एक बार फिर विवादों में घिरती दिख रही है. दिल्ली के चीफ सेक्रेट्री अंशु प्रकाश ने आरोप लगाया है कि सोमवार देर शाम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास पर हुई एक मीटिंग के दौरान आप विधायकों ने उनके साथ धक्का-मुक्की और बदतमीजी की.

चीफ सेक्रेटरी ने उपराज्यपाल अनिल बैजल से इस मामले को लेकर मुलाकात की और आप के दो विधायकों अजय दत्त और प्रकाश झारवाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. उनका आरोप है कि सीएम केजरीवाल के सामने ही उनके साथ बदतमीजी की गई. इस बीच आप नेता आशीष खेतान ने आरोप लगाया कि सचिवालय में लोगों ने उनसे मारपीट की है. उन्होंने बताया कि भीड़ ने मंत्री इमरान हुसैन को भी घेर लिया था. सचिवालय में लगातार ‘मारो-मारो’ के नारे लगाए जा रहे थे. आशीष खेतान ने दिल्ली पुलिस को भी फोन कर इसकी शिकायत की, जिसके बाद पर मौके पर आई पुलिस ने मामले को शांत कराया.

वहीं इस मामले से भड़के दिल्ली के IAS असोसिएशन ने AAP विधायकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए सारा काम रोकने का ऐलान किया है. दिल्ली प्रशासनिक अधीनस्थ सेवा के अध्यक्ष डीएन सिंह, ‘हम तत्काल प्रभाव से हड़ताल पर जा रहे हैं. जब तक दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता, हम काम पर नहीं लौटेंगे.’ दूसरी ओर केजरीवाल के ऑफिस ने इस तरह की किसी घटना से इंकार किया है.

झारखंड: अपनों ने ही डायन बताकर मां-बेटी के कपड़े उतरवाए

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रांची। झारखंड में डायन बता कर औरतों को प्रताड़ित करने का मामला कोई नया नहीं है. आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं और निशाना दलित और आदिवासी महिलाएं बनती हैं. डायन कह कर प्रताड़ित करने वाले कभी दूसरे लोग होते हैं तो कभी अपने ही, जो अपना हित साधने के लिए यह सारा प्रपंच रचते हैं. हद तो यह है कि लगातार इस तरह की खबरें आने के बाद भी प्रशासन इस कुप्रथा को रोकने के लिए ठोस कार्रवाई कर इसे जड़ से खत्म करने की कोशिश नहीं कर रहा है.

रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर सोनाहातू थाने के बोंगादार दुलमी गांव में एक ऐसी ही घटना घटी है, जिसमें गांव वालों ने एक महिला और उसकी बेटी को डायन करार देकर पहले तो उनके कपड़े उतरवा दिए और फिर मैला भी पिलाया. घटना 15 फरवरी की है. असल में पीड़ित महिलाओं की रिश्तेदारी में ही लंबे समय से बीमार महिला की मौत हो गई. इसके बाद परिवार के ही तीन लोग और बीमार हो गए. बजाय डॉक्टर को दिखाने के उनलोगों ने ओझा को बुला लिया, जिसने मां-बेटी को डायन करार दे दिया और यह सारी घटना घटी.

 बीबीसी की खबर में महिला के मुताबिक- “हम लोग अपने घर में थे. तभी मेरे भैयाद (पट्टीदारी) के लोग घर का दरवाज़ा पीटने लगे. इन लोगों ने हम माँ-बेटी पर डायन होने का आरोप लगाया. हमें जबरन श्मशान घाट ले गए. वहाँ हमारे कपड़ों पर इंसानी मल और पेशाब फेंका. फिर हमारे मुँह में भी डाल दिया. नाई से हमारा मुंडन करा दिया. हमारे कपड़े खुलवा दिए. इसके बाद हमें पहनने के लिए सफ़ेद साड़ी दी लेकिन ब्लाउज और पेटीकोट नहीं दिया. सिर्फ साड़ी से हमने अपना शरीर ढंका.

हमें उन्हीं कपड़ों में पूरे गाँव में घुमाया गया. बाद में उनलोगों ने हमें हमारे घर छोड़ दिया. अगली सुबह 16 फ़रवरी को मैं अपनी बेटी के साथ अपने मायके पीलित (ईचागढ़) चली गई. वहाँ भाई के बेटे को सारी बात बताई. उसने हमें हिम्मत दी. हमारे साथ थाने आया. हमलोगों ने सोनाहातू थाने में इसकी नामजद रिपोर्ट दर्ज करवाई.”

आलम यह है कि न तो घटना के दौरान न तो उसके बाद गाँव का कोई भी आदमी मां-बेटी की मदद के लिए तैयार नहीं है. हालांकि मामला पुलिस के पास पहुंचने पर पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन अब भी वे दोनों गांव लौटने से डर रहे हैं. सबसे ज्यादा डर प्रतिष्ठा को लेकर है. क्योंकि महिला की बेटी शादीशुदा है. और जिस ओझा ने इन दोनों को डायन करार दिया, वह उसी गांव का है, जहां बेटी की शादी हुई है.

– साभार- बीबीसी हिन्दी

बंगाल भाजपा में घमासान, रुपा गांगुली ने लगाया बड़ा आरोप

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल में अपने पैर मजबूत करने में लगी बीजेपी को झटका लगा है. प्रदेश में पार्टी के भीतर ही विवाद हो गया है. पार्टी की सांसद और पश्चिम बंगाल में बीजेपी नेता रूपा गांगुली ने पार्टी के राज्य प्रभारी दिलीप घोष पर अभद्रता करने का आरोप लगाया है. रूपा गांगुली के इस आरोप के बाद बंगाल भाजपा में बवाल मच गया है.

पूर्व अभिनेत्री और सांसद ने सोमवार 19 फरवरी को रात करीब साढ़े 12 बजे एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने प्रभारी दिलीप घोष पर खुद को सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत करने का आरोप लगाया. रूपा गांगुली ने यह कह कर भी घोष पर निशाना साधा कि वह पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से तो संपर्क कर सकती हैं, लेकिन दिलीप घोष से संपर्क करना मुश्किल हो गया है.

उन्होंने लिखा- ‘मैं मोदी जी को भी मैसेज कर सकती हूं. लेकिन मुझे आपको मैसेज करने से रोका गया है. मैं अमित भाईसाहब से भी बात कर सकती हूं… लेकिन आप मुझपर लोगों के बीच में चिल्लाए, मुझे गाली दी. मैं चुप रही, क्योंकि मेरे पापा ने मुझे सिखाया था कि बड़ों की बात सुन लो और उनका कहना मानो. आपने सार्वजनिक रूप से मुझ पर टिप्पणी की और परेशान किया.’ पार्टी के भीतर मचे इस घमासान से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर करने के भाजपा के एजेंडे को झटका लग सकता है. बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपने पैर जमाने की कोशिश में है. बीजेपी के सामने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर करने की चुनौती है. तो वहीं 2021 विधानसभा चुनावों में भी भाजपा खुद को बंगाल में साबित करना चाहती है. ऐसे में राज्य स्तर पर अपने नेताओं में पड़ी फूट बीजेपी के लिए चिंता का सबब हो सकती है. पश्चिम बंगाल, ओडिसा और तामिलनाडु ही ऐसे प्रमुख राज्य हैं, जहां भाजपा अब भी कोई बड़ा चमत्कार नहीं कर पाई है और यहां मोदी-शाह का जादू बेअसर रहा है.

चंद्रशेखर रावण की रिहाई के लिए फिल्म जगत भी आया सामने

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मुंबई। भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण की रिहाई के लिए पिछले कई महीनों से तमाम संगठन अपने-अपने तरीके से आंदोलन कर रहे हैं. इसमें दलित आंदोलन से जुड़े लोगों के अलावा अन्य एक्टिविस्ट, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सिविल सोसाइटी के लोग शामिल हैं. इसी कड़ी में अब चंद्रशेखर रावण की रिहाई के लिए फिल्म जगत से जुड़े लोग भी सामने आ गए हैं. मशहूर फिल्म निर्माता और ‘जय भीम कामरेड’ सहित कई महत्वपू्र्ण डाक्यूमेंट्री बनाने वाले डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर आनंद पटवर्धन ने भी चंद्रशेखर रावण की रिहाई की मांग की है.

मुंबई में पटवर्धन ने चंद्रशेखर की रिहाई के लिए सिविल सोसाइटी द्वारा चलाए जा रहे अभियान पर हस्ताक्षर कर अपना समर्थन दिया है. इस अभियान में आनंद पटवर्धन के अलावा सिविल राइट एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवार और जावेद आनंद, सीपीआईएम के नेता प्रकाश रेड्डी, ऑल इंडिया सेक्युलर फोरम के नेता और प्रख्यात लेखक राम पुनियानी के अलावा कई लोगों ने हिस्सा लिया और चंद्रशेखर की रिहाई के लिए अपना समर्थन दिया है.

असल में चंद्रशेखर आजाद रावण की गिरफ्तारी और उसके बाद उनपर दो बार रासुका लगाने की देश भर के एक्टिविस्टों ने निंदा की है. देश में नागरिक अधिकार और मानवाधिकार के पक्षधरों ने इसे बदले की भावना से लिया गया कदम बताते हुए भाजपा और योगी सरकार को निशाने पर लिया है. तीन महीने की रासुका की अवधि पूरी होने पर चंद्रशेखर के खिलाफ दुबारा रासुका लगाने पर लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है.

बसपा प्रमुख ने नेताओं से की अपील

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने पार्टी कार्यकर्ताओं से एक अहम अपील की है. पार्टी अध्यक्ष मायावती ने कार्यकर्ताओं से अपील की है कि उनसे मुलाकात के दौरान वह उनके पैर न छुएं. उन्होंने कार्यकर्ताओं से सिर्फ ‘जय भीम’ बोल कर अभिवादन करने का आग्रह किया है. बसपा सुप्रीमों की इस अपील के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपने नेता की इस अपील को सराहा है.

असल में आमतौर पर यह देखा गया है कि बसपा कार्यकर्ताओं में पार्टी अध्यक्ष मायावती का पैर छूने की होड़ मची रहती है. कार्यक्रम के दौरान मंच पर मौजूद तमाम कार्यकर्ता अपनी पार्टी अध्यक्ष के पहुंचते ही उनके पैर छूने लगते थे. यही नहीं, संसद भवन में भी मायावती के पहुंचने पर उनके राज्यसभा सांसद उनके पैर छूने लगते थे. कई बार विपक्षी इसकी आलोचना भी करते हैं.

हालांकि ऐसा नहीं है कि अपने नेता का पैर छूने का रिवाज सिर्फ बसपा में ही है, बल्कि बसपा के पहले से मौजूद तमाम राजनैतिक दलों में बड़े नेताओं के पैर छूने की परंपरा रही है. लेकिन जब पहली बार बसपा सत्ता में आई और एक दलित महिला को मुख्यमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ तो नजारा कुछ और था. मायावती यूपी की जनता के साथ-साथ उस समाज का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, जिसका हजारों सालों से शोषण हो रहा था. ऐसे में उनके मुख्यमंत्री बनते ही बड़े-बड़े धन्नासेठों और कथित ऊंची जाति के लोग अपना मतलब निकालने के लिए बसपा प्रमुख के पास पहुंचने लगे. इसमें यूपी के वो ब्राह्मण और ठाकुर भी शामिल थे, जिन्होंने दलितों का खूब शोषण किया था. स्वार्थवश इन्होंने सावर्जनिक तौर पर मायावती का खूब पैर पकड़ा और मायावती ने उन्हें मना भी नहीं किया. बल्कि माना जाता है कि उन्होंने इसका आनंद लिया.

इससे यूपी सहित देश के तमाम हिस्सों में मौजूद दलितों और पिछड़ों को खूब शांति मिली. असल में वो अपने शोषकों को अपने समाज की नेता के पैरों में देख रहे थे. यही वजह रही कि बसपा और मायावती को बहुत तेजी से देश के वंचित तबके का सहयोग मिला. लेकिन तब से तीन दशक बीत चुके हैं. ऐसे में मायावती का कार्यकर्ताओं से पैर न छूने की अपील से जाहिर है कि कार्यकर्ताओं के बीच साकारात्मक मैसेज जाएगा.

पीएम मोदी के परीक्षा पर चर्चा में दलित बच्चों को अस्तबल में बैठाया

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हिमाचल प्रदेश।16 फरवरी को जब देश भर में नीरव मोदी द्वारा पंजाब नेशनल बैंक से हजारों करोड़ रुपये गबन करने की खबर से हड़कंप मचा था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश भर के बच्चों के साथ ‘परीक्षा पर चर्चा’ कर रहे थे. लेकिन पीएम मोदी के इस कार्यक्रम पर कलंक लग गया है. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में परीक्षा पर चर्चा के दौरान चेस्था ग्राम पंचायत में दलित बच्चों को घोड़े के अस्तबल में बैठाने की खबर है.

असल में कार्यक्रम को टीवी पर देखने के लिए बच्चों को गर्वनमेंट हाई स्कूल, कुल्लू के स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के हेड के घर बुलाया गया था. इस दौरान सामान्य वर्ग के बच्चे घर के अंदर चले गए जबकि दलित समाज के बच्चों को मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष के घर के बाहर अस्तबल में घोड़े की लीद के बीच बैठाया गया. बच्चों ने इस संबंध में शुक्रवार को कुल्लू के डिप्टी कमिश्नर युनूस को लिखित शिकायत दी, जिसके बाद मामला गरमा गया.

बच्चों का आरोप है कि टीचर मेहरचंद ने उन्हें बाहर अस्तबल में बैठने को कहा. बच्चों ने यह भी आरोप लगाया कि टीचर ने उन्हें बीच से प्रोग्राम छोड़कर नहीं जाने को लेकर भी हिदायत दी. इस दौरान बच्चे अस्तबल के दुर्गंध से परेशान रहे. इस घटना के बाद बच्चों से भेदभाव के अन्य मामले भी खुलने लगे. बच्चों का आरोप है कि उन्हें मीड डे मिल के दौरान भी जातिगत भेदभाव झेलना पड़ता है और अलग बैठाया जाता है.

घटना सामने आने के बाद स्थानीय अनुसूचित जाति कल्याण संघ ने विरोध प्रदर्शन किया, और स्कूल के प्रधानाचार्य राजन भारद्वाज और कुल्लू के डिप्टी डायरेक्टर एजुकेशन जगदीश पठानिया के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.

प्रधानाचार्य राजन ने हालांकि घटना को लेकर मांफी मांगी है और भविष्य में ऐसा नहीं होने देने की बात कही है. मामला बढ़ने के बाद राज्य के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने इस बारे में शिक्षा विभाग के सचिव से रिपोर्ट मांगी है. जहां तक प्रधानमंत्री मोदी की बात है तो जैसे वो नीरव मोदी के मामले पर चुप हैं, वैसे ही अपने ही कार्यक्रम के दौरान दलित बच्चों के साथ हुए इस अमानवीय व्यवहार पर उनकी कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है.

गुजरात में दलितों ने भाजपा विधायक को दौड़ा कर पीटा

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अहमदाबाद। भाजपा और दलित समाज के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं. दोनों के बीच एक रंजिश भरा माहौल बनता जा रहा है. इस माहौल से पार्टी अपने राजनीतिक गढ़ गुजरात में भी नहीं बच पा रही है. असल में इन दिनों एक वीडियो खूब वायरल हुआ है, जिसमें लोग एक विधायक को दौड़ा कर पीट रहे हैं. विधायक अपनी जान बचाकर जनता के बीच से पुलिस के पास जाता है. एक पुलिसकर्मी विधायक को सुरक्षा में लेकर वहां से ले जाता है.

घटना शुक्रवार की है. गुजरात में दलित कार्यकर्ता भानुभाई वानकर की मौत के बाद उनके परिवार वालों से मिलने गये बीजेपी विधायक कर्षण सोलंकी को लोगों को जबर्दस्त गुस्से का सामना करना पड़ा. सोलंकी गांधीनगर के सिविल अस्पताल गये थे. अस्पताल के बाहर कई लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इस दौरान जब कर्षण सोलंकी ने भानुभाई के परिवार वालों से मुलाकात करने की कोशिश की तो प्रदर्शन कर रहे लोग काफी गुस्से में आ गये. लोगों को गुस्से को देखते हुए उन्हें वहां से दौड़कर भागना पड़ा. इस दौरान लोगों ने विधायक से हाथा-पाई भी की.

असल में देश में जिस तरह का माहौल बन रहा है और कट्टर हिंदुत्व के नाम पर गुजरात के ऊना से लेकर महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव तक में दलितों के साथ जो रहा है. उसकी प्रतिक्रियाएं अब देखी जाने लगी हैं.

मोदी सरकार से नहीं डरता भगोड़ा नीरव मोदी, देखिए क्या कि

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नई दिल्ली। पंजाब नेशनल बैंक में घोटाला कर देश का हजारों करोड़ रुपये गबन करने वाला नीरव मोदी मजे में है. उसे इस बात की कोई फिक्र नहीं है कि देश में उसके घोटाले से हड़कंप मचा हुआ है. असल में नीरव मोदी ने कुछ ही दिन पहले ही अपने दो नए स्टोर्स खोले हैं.

ये स्टोर्स मकाऊ और कुआलालंपुर में खोले गए हैं. ये दोनों नए स्टोर्स नीरव मोदी ने खुद पर एफआईआर दर्ज होने के बाद खोले हैं, जिससे साफ है कि देश का पैसा लेकर भागा मोदी बिना किसी चिंता के देश के बाहर अपने बिजनेस को बढ़ाने में जुटा है. दूसरी ओर सीबीआई ने इंटरपोल के जरिए दुनिया के सभी एयरपोर्ट को अलर्ट कर दिया है. यानी देश से लेकर विदेश तक नीरव मोदी की तलाश जारी है. बता दें कि नीरव मोदी के खिलाफ एलओयू की मदद से बैंकों से लोन लेने का आरोप है.

विलुप्त होने के कगार पर 42 भारतीय भाषाएं

नई दिल्ली। भारत ऐसा देश है जहां माना जाता है कि हर 3 कोस यानि की 9 किलोमीटर के बाद भाषा बदल जाती है. एक ही राज्य में एक ही स्थानीयता में भी पचास सौ किलोमीटर की दूरी पर आपको बिल्कुल अलग भाषा सुनने को मिल सकती है. इस लिहाज से भारत देश में भाषाओं और उनसे जुड़ी संस्कृतियों का खजाना है. लेकिन भाषाओं के इसी खजाने में भारत में 42 बोलियां पर संकट मंडरा रहा है. ऐसा माना जाता है कि संकटग्रस्त इन भाषाओं को बोलने वाले कुछ हजार लोग ही हैं.

गृह मंत्रालय के अधिकारी के अनुसार इन 42 भाषाओं में से कुछ भाषाएं विलुप्त प्राय भी हैं. संयुक्त राष्ट्र ने भी ऐसी 42 भारतीय भाषाओं या बोलियों की सूची तैयार की है. यह सभी खतरे में हैं और धीरे-धीरे विलुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं. जिन भाषाओं पर संकट है, उनमें 11 अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की हैं. ये भाषाएं ग्रेट अंडमानीज, जरावा, लामोंगजी, लुरो, मियोत, ओंगे, पु, सनेन्यो, सेंतिलीज, शोम्पेन और तकाहनयिलांग हैं. जबकि मणिपुर की सात संकटग्रस्त भाषाएं एमोल, अक्का, कोइरेन, लामगैंग, लैंगरोंग, पुरुम और तराओ हैं. तो वहीं हिमाचल प्रदेश की चार भाषाएं- बघाती, हंदुरी, पंगवाली और सिरमौदी भी खतरे में हैं.

अन्य संकटग्रस्त भाषाओं में ओडिशा की मंडा, परजी और पेंगो हैं. कर्नाटक की कोरागा और कुरुबा जबकि आंध्र प्रदेश की गडाबा और नैकी हैं. तमिलनाडु की कोटा और टोडा विलुप्त प्राय हैं. असम की नोरा और ताई रोंग भी खतरे में हैं. उत्तराखंड की बंगानी, झारखंड की बिरहोर, महाराष्ट्र की निहाली, मेघालय की रुगा और पश्चिम बंगाल की टोटो भी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रही हैं.

इस स्थिति को लेकर सरकार भी चिंतित है. सरकार मैसूर स्थित भारतीय भाषाओं के केंद्रीय संस्थान देश की खतरे में पड़ी भाषाओं के संरक्षण और अस्तित्व की रक्षा करने के लिए केंद्रीय योजनाओं के तहत कई उपाय कर रहा है. इन कार्यक्रमों के तहत व्याकरण संबंधी विस्तृत जानकारी जुटाना, एक भाषा और दो भाषाओं में डिक्शनरी तैयार करने के काम किए जा रहे हैं. इसके अलावा, भाषा के मूल नियम, उन भाषाओं की लोककथाओं, इन सभी भाषाओं या बोलियों की खासियत को लिखित में संरक्षित किया जा रहा है.

मध्यप्रदेश में मतदाताओं को धमका रहे हैं शिवराज सरकार के मंत्री

भोपाल। राजस्थान के उपचुनाव में मिली हार के बाद भाजपा बौखलाई और डरी हुई सी है. भाजपा के डर का आलम यह है कि अब उसके नेता जनता को यह कह कर धमकाने लगे हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ उन्हीं लोगों को मिलेगा जिन लोगों ने भाजपा को वोट दिया है.

मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया द्वारा कोलारस में चुनाव प्रचार के दौरान सियासी बवाल मच गया है. मंत्रीजी ने वोटरों से कहा कि सरकारी योजना का फायदा कमल पर बटन दबाने वालों को ही मिलेगा, पंजे वालों को नहीं. इस बयान के बाद जहां कांग्रेस ने भाजपा को घेरा है तो वहीं भाजपा सफाई देने लगी है. बयान सामने आने के बाद भाजपा ने सफाई में कहा कि यशोधरा का मतलब धमकाना नहीं समझाना था कि बीजेपी विधायक के चुने जाने से तालमेल बेहतर होगा.

दूसरी ओर इस मामले में कांग्रेस की शिकायत पर निर्वाचन आयोग ने मध्यप्रदेश की खेल एवं युवा विकास मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को नोटिस जारी कर 20 फरवरी तक उनसे जवाब मांगा गया है. असल में राजस्थान उपचुनाव में हार के बाद भाजपा डरी हुई है. राजस्थान के बाद अब मध्य प्रदेश की दो सीटों कोलारस-मुंगावली पर उपचुनाव होने हैं. ये दोनों क्षेत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र में आते हैं, इसलिए कांग्रेस के लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न है. तो भाजपा ने भी इन दोनों सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को उतार दिया है. इन दिनों सीटों का परिणाम 24 फरवरी को आएगा.

मायावती ने मोदी से पूछा क्या हुआ आपका वादा

नई दिल्ली। पंजाब नेशनल बैंक प्रकरण में अब भाजपा और पीएम मोदी चारो ओर से घिरने लगे हैं. बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने पीएम मोदी को उनका वह बयान याद दिलवाया है, जिसमें मोदी ने कहा था कि ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा.’

एक बयान जारी कर बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पूछा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की नाक के नीचे 20 हज़ार करोड़ रूपये का बैंक महाघोटाला हो गया और सरकार सोती रही, यह कैसी जनहितैषी सरकार है. उन्होंने कहा कि मोदी द्वारा देश को दिये गये इस आश्वासन का क्या हुआ कि ना खायेंगे और ना खाने देंगे? मोदी पर सवाल दागते हुए उन्होंने कि क्या जनधन योजना के अन्तर्गत करोड़ों गरीबों व मेहनतकश लोगों की गाढ़ी कमाई का हजारों करोड़ रूपया अपने चहेते उद्योगपतियों व धन्नासेंठों को ग़बन करने के लिये ही सरकारी बैंकों में जमा कराया गया था?

यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि देश में आर्थिक महाघोटालों व अर्थव्यवस्था में मज़बूती के दावों के बावजूद रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं होने आदि से यह साफ तौर पर लगता है कि मोदी सरकार में सरकारी व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है.

इधर महाराष्ट्र और केंद्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने भी मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि नीरव मोदी जो पैसा लेकर भाग गया वह राष्ट्रीय खजाने का था, जिसे उसने स्पष्ट रूप से लूट लिया. अब इस घोटाले से उजागर होता है कि पीएम मोदी का प्रसिद्ध नारा ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ खोखला वादा था. शिवसेना ने सवाल उठाया कि क्या उसका आधार कार्ड बैंक खातों से जुड़ा था? इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का कहना था कि बिडंबना यह है कि आम आदमी को आधार कार्ड के बिना अस्पताल में इलाज भी नहीं मिल सकता है, लेकिन नीरव मोदी जैसा आदमी बिना आधार कार्ड के भी किसी बैंक से 11,500 करोड़ रुपये बेईमानी से निकाल सकता है.’ ठाकरे ने घोषणा की है कि भविष्य में वह मोदी के साथ कोई भी मंच साझा नहीं करेंगे.

गुजरात में दलितों के सामने बैकफुट पर भाजपा, माननी पड़ी सारी मांगे

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अहमदाबाद। थानगढ़ और ऊना में दलित उत्पीड़न की घटना के बाद पाटण में दलित सामाजिक कार्यकर्ता के आत्मदाह ने गुजरात सरकार को मुश्किल में डाल दिया है. दलितों को जमीनों के पट्टे व कब्जे दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भानुभाई वणकर ने 15 फरवरी को जिला कलेक्ट्रेट के सामने आत्महत्या कर लिया था. इसके बाद शुरू हुए आंदोलन के बाद आखिरकार गुजरात सरकार को दलितों के सामने झुकना पड़ा. रविवार को जिग्नेश मेवाणी और तमाम अन्य दलित संगठनों द्वारा बुलाए बंद और देर शाम तक चले ड्रामे के बाद आखिरकार सरकार और प्रशासन ने दलितों के विद्रोह के आगे सरेंडर कर दिया और उनकी सारी मांगे मान ली.

इससे पहले मामला तब बिगड़ गया जब भानुभाई के घर वालों ने उनके द्वारा की जा रही मांगे नहीं माने जाने तक उनका शव लेने से मना कर दिया था. तो घटना के बाद दलित संगठनों और जिग्नेश मेवाणी ने 18 फरवरी को अहमदाबाद व गांधीनगर बंद का आवाह्न किया था, जिससे दलित समाज के लोग सड़क पर आ गए. पति की मौत के बाद से ही उपवास पर बैठी भानुभाई वणकर की पत्नी इंदूबेन की भी रविवार को हालत बिगड़ गई.

गुजरात सरकार के लिए मामला इसलिए भी पेंचिदा हो गया था कि 19 फरवरी से गुजरात विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है. तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ गुजरात यात्रा पर आ रहे थे. ऐसे में दलित आंदोलन के चलते सरकार व प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. जिग्नेश मेवाणी द्वारा भी एक के बाद एक ट्विट से सारी जानकारियां सामने आती रही. मेवाणी की टीम ने जब उनकी गिरफ्तारी का वीडियो शेयर किया तो देश भर में गुजरात पुलिस की ज्यादती पर बहस होने लगी, इससे भी प्रशासन दबाव में आ गया.

मेवाणी का कहना है कि गुजरात के 50 लाख दलितों का भरोसा अब गुजरात सरकार पर नहीं रह गया है. यह सरकार दलित विरोधी है. उन्होंने गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की.

भानूभाई के आत्मदाह के बाद मामला शांत करने के लिए गुजरात सरकार ने फिलहाल तो सारी शर्ते मान ली है, लेकिन मेवाणी के तेवर देखते हुए और विधानसभा सत्र के कारण यह मामला अभी और जोर पकड़ सकता है.

चंद्रशेखर की रिहाई के लिए आंदोलन शुरू, जेल से भेजी चिट्ठी में योगी सरकार को निशाने पर लिया

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नई दिल्ली। जेल में बंद भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण की रिहाई को लेकर भीम आर्मी ने सहारनपुर से एक बड़े आंदोलन का आगाज कर दिया है. 18 फरवरी को सहारनपुर में भीम आर्मी के एससी-एसटी व ओबीसी एवं अल्पसंख्यक महासम्मेलन में सामूहिक रूप से रावण की रिहाई की मांग की गई. इस दौरान चंद्रशेखर की रिहाई की मांग को लेकर भीम आर्मी के साथ तमाम अन्य संगठन भी आ गए हैं. आंदोलनकर्ताओं ने प्रशासन को चेतावनी दी गई कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गई तो ऐतिहासिक आंदोलन किया जाएगा.

महासम्मेलन में उत्तराखंड के प्रदेश प्रभारी महक सिंह ने चंद्रशेखर रावण के भेजे गए आठ पेज का संदेश पढ़ा, जिसमें चंद्रशेखर ने वर्तमान सरकार को काले अंग्रेजों की सरकार घोषित करते हुए इससे मुक्ति की बात कही थी. रावण ने संदेश में कहा कि जब तक भगवा सरकार को खत्म नहीं कर दिया जाएगा, तब तक आंदोलन चलता रहेगा.

महासम्मेलन में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी चंद्रशेखर की रिहाई का समर्थन किया, तो वहीं समर्थन के लिए पूर्व आइपीएस एसआर दारापुरी, हिमाचल प्रदेश के पूर्व डीजीपी पृथ्वीराज, रालोद के जिला अध्यक्ष राव केसर सलीम, के अलावा चंद्रशेखर की मां कमलेश, जेएनयू से आए प्रदीप नरवाल भी मुख्य रूप से उपस्थित रहे. सम्मेलन में यूपी, महाराष्ट्र, उत्तराखंड आदि प्रदेशों से बड़ी तादाद में लोग पहुंचे.

हालांकि इस कार्यक्रम को लेकर पुलिस का रवैया ठीक नहीं रहा. पहले तो पुलिस ने कार्यक्रम को लेकर इजाजत नहीं दी, लेकिन भीम आर्मी के लोगों के तेवर को देखते हुए और किसी भी हाल में आंदोलन पर अड़े रहने के बाद प्रशासन को इसकी इजाजत देनी पड़ी.

बिहार में गूंजा ‘नीतीश-सुशील चोर’ है का नारा

बिहार। पटना में आज से शुरू हुए तीन दिवसीय राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन के दौरान आरजेडी के विधायकों ने जमकर बवाल मचाया और कार्यक्रम के दौरान नारेबाजी की. नाराज आरजेडी के विधायकों ने सम्मेलन का बीच में ही बहिष्कार कर दिया और निकल गए.

सम्मेलन को संबोधित करते समय उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने एक टिप्पणी की जहां उन्होंने कहा कि आज के दिन देश के तीन मुख्यमंत्री जेल की हवा खा रहे हैं. बात साफ है, सुशील मोदी का इशारा कहीं ना कहीं आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की तरफ था और यह टिप्पणी सुनते ही सम्मेलन में मौजूद आरजेडी के सभी विधायकों ने हंगामा करना शुरू कर दिया और नारेबाजी करते हुए कार्यक्रम छोड़ कर बाहर आ गए.

सम्मेलन से बाहर निकलने के दौरान आरजेडी के विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुशील मोदी के विरोध में नारेबाजी भी की और कहा कि नीतीश-सुशील चोर हैं.

आरजेडी के विधायकों ने आरोप लगाया कि सुशील मोदी ने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन जैसे अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम को राजनीतिक मंच बना दिया और लालू प्रसाद के खिलाफ टिप्पणी की.

आजतक से बातचीत करते हुए आरजेडी विधायक शक्ति सिंह यादव ने कहा कि सुशील मोदी ने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन जैसे कार्यक्रम को और बिहार को बदनाम किया है, जहां पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. शक्ति सिंह यादव ने कहा कि अगर चर्चा ही करनी है तो सुशील मोदी भाजपा के भ्रष्टाचार की चर्चा करते और बताते कि डायमंड कारोबारी नीरव मोदी देश से 11 हजार करोड़ लेकर कैसे फरार हो गया

फिर पुराने खेमे में लौटे लवली, फिर कांग्रेस में आएं

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नई दिल्ली। नौ महीने पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले अरविंदर सिंह लवली ने शनिवार को दोबारा कांग्रेस ज्वाइन कर ली है। लवली ने ठीक एमसीडी चुनाव से पहले नाराजगी की वजह से बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। लवली ने कांग्रेस में शामिल होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में अपने दिल की बात बताई और कहा कि भाजपा में जाने का निर्णय लेना मेरे लिए कोई खुशी का निर्णय नहीं था। पीड़ा में लिया हुआ डिसिजन था वो। वैचारिक रूप से मैं वहां मिसफिट था।

अरविंदर सिंह लवली के दोबारा कांग्रेस में शामिल होने की बात पर मुहर लगाते हुए खुद कांग्रेस के दिल्ली अध्यक्ष अजय माकन ने जानकारी दी है कि लवली ने दोबारा कांग्रेस ज्वाइन कर ली है।

कहा जा रहा है कि लवली की वापसी के पीछे राहुल गांधी का हाथ है। सूत्रों का कहना है कि लवली और राहुल गांधी की एक मीटिंग हुई थी और उन्हीं के समझाने पर लवली ने कांग्रेस में शामिल होने का कदम उठाया है।

कल से बदल जाएगा बीजेपी मुख्यालय का पता

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नई दिल्ली। अब भारतीय जनता पार्टी का नया पता होगा 6 दीन दयाल मार्ग. BJP के पुराने दफ्तर 11 अशोक रोड को रविवार को खाली कर दिया जाएगा और पार्टी नए पते 6 दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर चली जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और तमाम टॉप बीजेपी नेतृत्व बीजेपी के नए दफ्तर के उद्घाटन के मौके पर मौजूद रहेंगे. इससे पहले बीजेपी का मुख्यालय 34 साल तक 11 अशोक रोड रहा है.

8000 वर्ग मीटर में फैले BJP के इस नए दफ्तर की बिल्डिंग बनने में करीब डेढ़ साल का समय लगा. आधुनिक सुविधाओं के तहत बनाए गए पार्टी का मुख्यालय बहुमंजिला इमारत में होगा, जिसमें तीन ब्लॉक होंगे. मुख्य इमारत सात-मंजिला होगी, और उसके आसपास मौजूद दोनों इमारतें तीन-तीन मंजिल की होंगी. सभी तरह की आधुनिक सुविधाओं से लैस इस दफ्तर के ग्राउंड फ्लोर पर बीजेपी और जनसंघ से जुड़े महापुरुषों की प्रतिमा लगाई गई है. ग्राउंड फ्लोर पर ही आठ प्रवक्ताओं के लिए कमरे होंगे.

बीजेपी अध्यक्ष का दफ्तर बिल्डिंग के सबसे ऊपर के हिस्से यानी तीसरी मंजिल पर होगा. दूसरी मंजिल पर पार्टी के दूसरे नेता, महासचिव, सचिव, उपाध्यक्षों की बैठने की व्यवस्था की गई है. मीडिया के लिए ग्राउंड फ्लोर पर एक हॉल बनाया गया है और वक्ताओं के लिए भी अलग-अलग रूम बनाए गए हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल भी ग्राउंड फ्लोर पर ही बनाया गया है, जिसमें पार्टी की नियमित ब्रीफिंग होगी.

पार्टी दफ्तर में खाने पीने के लिए एक बड़ी कैंटीन की व्यवस्था की गई है. नए पार्टी मुख्यालय में काफी बड़े हिस्से में गार्डेन बनाया गया है. बहुत बड़ी लाइब्रेरी भी पढ़ने लिखने के लिए बनाई गई है. पार्टी दफ्तर में दो बेसमेंट पार्किंग की व्यवस्था की गई है.

बीजेपी के नए मुख्यालय की खास बात यह है कि पार्टी अध्यक्ष के लिए पूरा सचिवालय बनाया गया है. अध्यक्ष के रूम के साथ उनके स्टाफ के लिए एक कार्यालय बनाया गया है. साथ ही में बड़ी बैठकों के लिए बड़े कॉन्फ्रेंस हॉल बनाए गए हैं. वहीं उसी फ्लोर पर ही आम बैठक की भी व्यवस्था की गई है. अब BJP 2019 के चुनावों के लिए नए पते से ही रणनीति बनाएगी.

सवर्ण महिलाओं से 14 साल कम जीती हैं दलित महिलाएः UN Report

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महिलाओं को लेकर हाल ही में आई यूएन की रिपोर्ट चौंकाने वाली है. यह रिपोर्ट भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति का आंकलन करती है. साथ ही दलित और उच्च वर्ग की महिलाओं के बीच के अंतर को भी सामने लेकर आती है. साथ ही इस बहस को और गहरा करती है कि महिला होने के बावजूद दलित औऱ सवर्ण समाज की महिलाओं की स्थिति अलग है.

यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक दलित समाज की महिलाएं सवर्ण समाज की महिलाओं से कम जीती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि दलित महिला सवर्ण महिला से 14.6 यानि करीब साढे 14 साल कम जीती हैं. इसकी वजह पूरी स्वच्छता का न होना, पूरी तरह से साफ पानी की सप्लाई नहीं होना और स्वास्थ सुविधाओं की कमी है. यूएन ने इस स्थिति को बेहतर करने के लिए सन् 2030 तक लैंगिक समानता को अपना एजेंडा घोषित किया है.

इस रिपोर्ट पर राष्ट्रीय दलित महिला आंदोलन की संयोजक रजनी तिलक कहती हैं-

देश में दलित महिलाओं का बहुत शोषण होता है. वह आर्थिक औऱ सामाजिक रूप से बहुत पिछड़ी हैं. मध्यमवर्गीय महिलाएं भी एक दबाव में अपनी जिंदगी जीती है. सफाईकर्मी समाज की महिलाओं की हालत तो बहुत खराब है. उनके पास इतनी सहूलियत भी नहीं होती कि वह ठीक से खाना भी खा पाए, इसलिए वो कुपोषण की शिकार हो जाती हैं. साथ ही शिक्षा के अभाव के कारण वह जागरूक नहीं होती और बीमारियों का शिकार हो जाती है. झुग्गियों और ठेठ गांव में रहने वाली महिलाओं के सामने तो स्वच्छता की चुनौतियां बढ़ जाती है. मेरा मानना है कि अगर और जमीनी स्तर पर सर्वे किया जाए तो स्थिति इससे भी बुरी मिलेगी.

 सर्वे के मुताबिक दलित महिलाओं की औसत उम्र 39.5 जबकि उच्च जाति की महिलाओं की औसत उम्र 54.1 साल है. इस रिपोर्ट में 89 देशों का सर्वे किया गया है. य़ही नहीं विकासशील देशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा शहरी महिलाओं और लड़कियों को साफ पानी, स्वच्छता और जरूरत के हिसाब से रहने की जगह में से किसी न किसी समस्या से गुजरना पड़ता है.

असल में इस अहम रिपोर्ट के पीछे की सच्चाई की ओर झांकना भी जरूरी है. आज भी दलित समाज की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गांवों में घोर गरीबी में जीती है. वहां न उनको साफ पानी मिल पाता है और न ही स्वच्छता. खासकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को शौच की समस्या का सामना करना पड़ता है. इस रिपोर्ट से भारतीय महिलाओं के अंतर की एक बड़ी सच्चाई सामने आती है.