महिलाओं को लेकर हाल ही में आई यूएन की रिपोर्ट चौंकाने वाली है. यह रिपोर्ट भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति का आंकलन करती है. साथ ही दलित और उच्च वर्ग की महिलाओं के बीच के अंतर को भी सामने लेकर आती है. साथ ही इस बहस को और गहरा करती है कि महिला होने के बावजूद दलित औऱ सवर्ण समाज की महिलाओं की स्थिति अलग है.
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक दलित समाज की महिलाएं सवर्ण समाज की महिलाओं से कम जीती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि दलित महिला सवर्ण महिला से 14.6 यानि करीब साढे 14 साल कम जीती हैं. इसकी वजह पूरी स्वच्छता का न होना, पूरी तरह से साफ पानी की सप्लाई नहीं होना और स्वास्थ सुविधाओं की कमी है. यूएन ने इस स्थिति को बेहतर करने के लिए सन् 2030 तक लैंगिक समानता को अपना एजेंडा घोषित किया है.
इस रिपोर्ट पर राष्ट्रीय दलित महिला आंदोलन की संयोजक रजनी तिलक कहती हैं-
“देश में दलित महिलाओं का बहुत शोषण होता है. वह आर्थिक औऱ सामाजिक रूप से बहुत पिछड़ी हैं. मध्यमवर्गीय महिलाएं भी एक दबाव में अपनी जिंदगी जीती है. सफाईकर्मी समाज की महिलाओं की हालत तो बहुत खराब है. उनके पास इतनी सहूलियत भी नहीं होती कि वह ठीक से खाना भी खा पाए, इसलिए वो कुपोषण की शिकार हो जाती हैं. साथ ही शिक्षा के अभाव के कारण वह जागरूक नहीं होती और बीमारियों का शिकार हो जाती है. झुग्गियों और ठेठ गांव में रहने वाली महिलाओं के सामने तो स्वच्छता की चुनौतियां बढ़ जाती है. मेरा मानना है कि अगर और जमीनी स्तर पर सर्वे किया जाए तो स्थिति इससे भी बुरी मिलेगी.”
सर्वे के मुताबिक दलित महिलाओं की औसत उम्र 39.5 जबकि उच्च जाति की महिलाओं की औसत उम्र 54.1 साल है. इस रिपोर्ट में 89 देशों का सर्वे किया गया है. य़ही नहीं विकासशील देशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा शहरी महिलाओं और लड़कियों को साफ पानी, स्वच्छता और जरूरत के हिसाब से रहने की जगह में से किसी न किसी समस्या से गुजरना पड़ता है.
असल में इस अहम रिपोर्ट के पीछे की सच्चाई की ओर झांकना भी जरूरी है. आज भी दलित समाज की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गांवों में घोर गरीबी में जीती है. वहां न उनको साफ पानी मिल पाता है और न ही स्वच्छता. खासकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को शौच की समस्या का सामना करना पड़ता है. इस रिपोर्ट से भारतीय महिलाओं के अंतर की एक बड़ी सच्चाई सामने आती है.

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