योगी सरकार में उपेक्षा से परेशान पिछड़े समाज के मंत्री ने खोला मोर्चा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार सत्ता का पहला साल पूरा होने पर जहां अपनी उपलब्धियां गिना रही है. वहीं, सपा और बसपा विकास की गति रुक जाने का आरोप लगा रहे हैं. इस बीच अब योगी आदित्यनाथ सरकार में एक मंत्री ने ही मुख्यमंत्री योगी की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी कैबिनेट में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने अपनी ही सरकार पर बड़ा हमला बोला है. राजभर ने आरोप लगाया है कि मौजूदा यूपी सरकार सिर्फ मंदिरों पर ध्यान दे रही है. और जिन गरीबों ने उसे वोट दिया, उन पर सरकार तवज्जो नहीं दे रही है. राजभर ने ये भी आरोप लगाया कि सरकार की तरफ से दावे बहुत किए जाते हैं, लेकिन जमीन पर कुछ होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा. ओपी राजभर ने सरकार पर गठबंधन धर्म का पालन नहीं करने का भी आरोप लगाया है और कहा है कि भाजपा के लोग 325 सीट के नशें में पागल होकर घूम रहे हैं.

दूसरी ओर राजभर के बयान पर यूपी के स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता सिद्धार्थनाथ सिंह ने जवाबी हमला बोला है. सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि राजभर हमारी सरकार में मंत्री हैं और अगर उन्हें कुछ समस्या है तो कैबिनेट में अपनी बात रखें. सिंह ने कहा कि आप सरकार में रहकर इस तरीके से सार्वजनिक तौर पर आलोचना नहीं कर सकते.

असल में केंद्र और उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत मिलने के कारण भारतीय जनता पार्टी सहयोगी दलों को कोई तव्वजो नहीं दे रही है. खासकर दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं और उनसे जुड़ी पार्टियों को भाजपा और उसके नेता बिल्कुल तव्वजो नहीं दे रहे हैं. इसी कारण बिहार में जीतन राम मांझी एनडीए को छोड़कर महागठबंधन में शामिल हो गए हैं. उदित राज भी लगातार हाशिए पर हैं. बसपा छोड़कर भाजपा में पहुंचे स्वामी प्रसाद मौर्या और दारा सिंह चौहान को भी भाजपा में उतनी तव्वजो नहीं मिल रही है, जितनी बसपा में थी. इसी सूची में नया नाम ओपी राजभर का आया है. ओम प्रकाश राजभर अक्सर योगी सरकार को घेरते रहे हैं. लेकिन अब वो आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं.

सीसीटीवी से नहीं, शिक्षा व्यवस्था की खोखली जड़ में खाद डालने से होगा सुधार

CCTV कैमरे लगवा दिए गए, नकलबाजी पर लगाम लगा दी गयी. हजारों-लाखों छात्रों ने पेपर बीच में छोड़ दिये, नकलबाजों ने डर कर परीक्षा छोड़ दी यह कहकर सरकार ने खूब अपनी पीठ थपथपाई… चलो नकल रोकने के लिए आपकी तारीफ की जानी चाहिए.

पर इस राज्य शिक्षा का नासूर सा घाव कब ठीक करोगे, उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की हालत यह है कि अध्यापक खुद खराब अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषयों की कमजोरी से जूझ रहे हैं और जानकार अध्यापक पढ़ाने में मानसिक दिक्कत समझते हैं ये न जाने क्यों है कभी पता नहीं लगा !

सरकारी स्कूलों में आज भी उपस्थिति को लेकर कोई खास नियम नहीं, और छुट्टियां तो इतनी मिलती हैं जिनका कोई ठिकाना नहीं. न जाने कितने स्कूलों में बच्चे पहले- दूसरे घण्टे के बाद गायब हो जाते हैं जिसकी अध्यापक को आदत सी हो गयी है जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता.

किसी को उत्तर प्रदेश राज्य बोर्ड की शिक्षा का स्तर नापना है तो 2 दिन की क्लास जॉइन करके देखिएगा की वहाँ भविष्य के लिए किस तरह खच्चर तैयार किये जा रहे हैं.

किसी भी छात्र की शिक्षा, अगर उसके पास 11th में विज्ञान, गणित है तो 4 ट्यूशन के बिना अधूरी है. कम से कम तीन ट्यूशन तो लगाने ही लगाने हैं गणित, भौतिक, रसायन… इसमें भी अगर अंग्रेजी विषय खुद से कर पाया तो ठीक बाकी इनमें कहीं भी चूक कर दी तो फेल होना पक्का है.

कभी कोई अध्यापक आने वाले रेगुलर फार्म्स, तरह-तरह की सरकारी नौकरियां, फ़ैशन डिजाइनिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग जैसे Creative कोर्स के बारे में बताकर कोई अपना दिमाग खर्च नहीं करना चाहता, कोई भविष्य का मोटिवेशन ज्ञान न के बराबर.

कुछ इस तरह का अनुभव मेरा है बाकी वर्तमान स्कूली छात्र तो इस शिक्षा व्यवस्था को लेकर सर पकड़ लेते हैं.

हर तकनीकी पढ़ाई में अंग्रेजी.. दिल्ली विश्वविद्यालय का हर कोर्स अंग्रेजी में.. भारत की टॉप की यूनिवर्सिटी का हर कोर्स अंग्रेजी में.. IIT, IIM, PMT, B-Tech, B.SC Polytechnic सारे कोर्स अंग्रेजी में और उत्तर प्रदेश राज्य बोर्ड के स्कूलों की अंग्रेजी गड्ढे में.

तो बताएं कैसे बच्चा शिक्षित बनें? कैसे वो रोजगार के लायक हो, कैसे वह सरकारी नौकरी ले, कैसे वह प्रोफेशनल कोर्स सम्भालें और क्यों न वह बेरोजगार बने.

CCTV लगाकर वाहवाही लूटना आसान है पर जमीनी हकीकत खुलती है तो पाँव के नीचे से जमीन सरक जाती है और सच यही है जो साफ साफ लिखा है.

अरे करो ठीक सीसीटीवी लगाकर ही, फुटेज क्लास के पढ़ाते अध्यापकों की भी तो चेक करो, शिक्षा के स्तर पर भी तो सीसीटीवी लगाओ.

सीसीटीवी पुलिस थाने, तहसील, कोर्ट, हर सरकारी विभाग में भी तो लगवाओ जहाँ से भ्रष्टाचार का जन्म होता है जब कर रहे तो सबके साथ समान व्यवहार करो, दोगला रवैया क्यों और कब तक ?

–Ankur sethi

ग्राउंड रिपोर्ट: मां से जानिए कैसा था उनका बेटा मधु

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तीन हफ़्ते पहले केरल के जंगल में मधु नामक जिस आदिवासी युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, वो हमेशा अपनी मां से कहते थे कि गुफ़ाओं में रहने को लेकर वो उनकी चिंता न किया करें. मधु अपनी मां से कहते थे कि उनके बारे में वो फ़िक्र न किया करें क्योंकि वो जानवरों के साथ वहां सुरक्षित हैं. मधु की मां बेटी के साथ खाना खाते हुए एकाएक रोने लगती हैं.

मधु ने कभी नहीं सोचा होगा कि लोग उनकी हत्या कर देंगे. खाना चोरी करने के शक़ में 23 फ़रवरी को जब उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई तब उसमें से कुछ युवा सेल्फ़ी ले रहे थे.

मधु की 56 वर्षीय मां मल्ली अपने बेटे के जंगल की गुफ़ा में रहने के विचार को कभी भी पसंद नहीं करती थीं. वो अट्टापडी क्षेत्र के साइलेंट वेली नेशनल पार्क के अपने छोटे से घर से कुछ किलोमीटर दूर रहते थे.

मल्ली ने बीबीसी हिंदी से कहा, “मधु जब जंगल में सुरक्षित रहने की बात करता था तो मुझे भरोसा था. लोगों ने चोरी का इल्ज़ाम लगाकर मेरे बेटे की हत्या कर दी.”

आंसू पोंछते हुए मल्ली कहती हैं, “वह चोर नहीं था. वो वैसा नहीं था कि चोरी करेगा. किसी की इजाज़त के बिना दूसरे का खाना खाना हमारी संस्कृति में ही नहीं है. ज़रूरत पड़ने पर वो हमेशा पूछता था.” कुछ लोगों के समूह ने जब ज़बर्दस्ती मधु को रोका तो उनके पास एक छोटा सा बैग था, जिसमें कुछ खाने के पैकेट थे. तब उन्होंने उनके बैग को टटोला और उसमें उन्हें कुछ पैकेट मिले. इसके बाद भीड़ ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया. बाद में किसी ने पुलिस को बुला लिया. अस्पताल ले जाते समय पुलिस की जीप में ही उनकी मौत हो गई.

पालक्काड ज़िले में मन्नारकड से मुक्कली पहुंचने के बाद कार छोड़नी पड़ती है और जीप शटल सेवा लेनी होती है. यह शटल सेवा पथरीले इलाक़े में जनजातीय अस्पताल तक पहुंचाती है. यहां के रास्तों को रोड नहीं कहा जा सकता है. अस्पताल से 100 मीटर पहले जंगल में जाने के लिए एक पगडंडी जाती है जहां कोई भी शख़्स मधु का घर बता सकता है.

मधु के दादा का घर चिंदकीपाज़ायुर में था. तीन दशक पहले शादी के बाद मल्ली वहां चली गई थीं. पति की अचनाक मौत के बाद वह अपनी मां के घर आ गईं और बच्चों को पालने लगीं. दोनों बेटियों सरासु (29) और चंद्रिका (28) ने पड़ोसी ज़िले वायनाड के आदिवासी स्कूल में 12वीं तक की पढ़ाई की.

सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े मधु ने कोकमपलाय सरकारी स्कूल में छठी क्लास तक की पढ़ाई की. इसके बाद वह जंगल से शहद और जड़ी-बूटी इकट्ठा करने में लग गए जिसे वह चिंडक्की के कुरुम्बा अनुसूचित जनजाति सहकारी समिति में बेचा करते थे.

मल्ली ने आंगनवाड़ी केंद्र में सहायक के रूप में काम करना शुरू किया तो उन्हें 196 रुपए मिलते थे. उनकी बेटी जब बड़ी हुईं तो वो अपने पति के घर वापस लौट आईं.

16 वर्ष की उम्र में मधु अजीब सा बर्ताव करने लगे. वो शांत रहते या कभी हिंसक हो जाते. उनका परिवार उन्हों कोझिकोड के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान लेकर गया.

मल्ली कहती हैं, “उन्होंने दवाई दी और वह कुछ दिनों तक खाता रहा, लेकिन बाद में उसने खाने से इनक़ार कर दिया.” उन्होंने कहा, “लेकिन कुछ समय बाद मधु ने गुफ़ा में जाना और वहां रहना शुरू कर दिया. एक बार जब वह ग़ायब हो गया था तो हमने पुलिस में शिकायत की थी. पुलिस ने उन्हें गुफ़ा में पाया था, लेकिन उसने घर वापस आने से इनकार कर दिया था.” मल्ली का कहना है कि वह अपने बेटे को दिन में दो बार खाना देने में समर्थ थीं. मधु जब गुफ़ा में रहते थे तो वह यह सुनिश्चित करती थीं कि उन्हें खाना मिले. उनकी आय 6000 तक पहुंच गई है और उनके दामाद भी घर में मदद करते हैं. मधु की मौत का कारण क्या भूख थी या मानसिक रूप से बीमार लोगों को लेकर उदासीनता?

ज़िले के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रभु दास बताते हैं, “वह अकेले रहता था और इस कारण से भूखा था. वह किसी को नुक़सान पहुंचाना नहीं चाहता था.”

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की परियोजना निदेशक सीमा भास्कर कहती हैं, “आदिवासी संस्कृति में खाने को लेकर भावना अलग होती है. वे सोचते हैं कि खाना सिर्फ़ एक व्यक्ति से जुड़ा है. लोग आपको कई दिनों तक साथ खाना खिलाते हैं. इसी वजह से मैं सोचती हूं कि वह नहीं जानते होंगे कि खाना लेना चोरी होती है.”

अट्टापडी में मधु में अकेले मानसिक रूप से बीमार शख़्स नहीं थे. डॉ. दास कहते हैं, “राज्य के मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 350 मरीज़ दर्ज़ हैं लेकिन 50 मरीज़ ही नियमित रूप से इलाज के लिए आते हैं.”

पहचान न ज़ाहिर करने की शर्त पर एक कार्यकर्ता ने अलग ही सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “यह साफ़ है कि यह भूख की वजह से नहीं था. यह मानसिक बीमारी के कारण भी हो सकता है. यह भी हो सकता है कि वह किसी ग़ैर-क़ानूनी चीज़ के बारे में जान गए हों. आमतौर पर मधु जिस गुफ़ा में रहते थे वहां आसानी से कोई नहीं जाता है. उस क्षेत्र में दाख़िल होने से पहले वनकर्मियों को भी अनुमति लेनी होती है. तो वहां कैसे कई लोग पहुंचे और उन्हें पीट-पीटकर मार डाला.” मधु की कथित हत्या मामले में पुलिस ने 14 लोगों को गिरफ़्तार किया है.

साभार बीबीसी

एक्टर इरफ़ान खान ने ट्विटर के जरिये किया अपनी बीमारी का खुलासा

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एक्टर इरफ़ान खान ने 5 मार्च को बताया था कि वो एक ख़तरनाक बीमारी से पीड़ित हैं, जिसके बाद उनके सभी फैंस बीमारी के बारे में अंदाजा लगा रहे है के उनके चहेते एक्टर को क्या बीमारी हो सकती है

शुक्रवार को ट्वीट कर इरफ़ान ने बताया कि उन्हें ‘न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर’ हैट्वीट में उन्होंने लिखा है, “जीवन में अनपेक्षित बदलाव आपको आगे बढ़ना सिखाते हैं. मेरे बीते कुछ दिनों का लब्बोलुआब यही है. पता चला है कि मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर हो गया है. इसे स्वीकार कर माना मुश्किल है. लेकिन मेरे आसपास जो लोग हैं, उनका प्यार और उनकी दुआओं ने मुझे शक्ति दी है. कुछ उम्मीद भी बंधी है. फ़िलहाल बीमारी के इलाज के लिए मुझे देश से दूर जाना पड़ रहा है. लेकिन मैं चाहूंगा कि आप अपने संदेश भेजते रहें.”

अपनी बीमारी के बारे में इरफ़ान ने आगे लिखा है, “न्यूरो सुनकर लोगों को लगता है कि ये समस्या ज़रूर सिर से जुड़ी बीमारी होगी. लेकिन ऐसा नहीं है. इसके बारे में अधिक जानने के लिए आप गूगल कर सकते हैं. जिन लोगों ने मेरे शब्दों की प्रतीक्षा की, इंतज़ार किया कि मैं अपनी बीमारी के बारे में कुछ कहूं, उनके लिए मैं कई और कहानियों के साथ ज़रूर लौटूंगा.”

एनएचएस डॉट यूके के मुताबिक़, ‘न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर’ एक दुर्लभ किस्म का ट्यूमर होता है जो शरीर में कई अंगों में भी विकसित हो सकता है.

हालांकि मरीज़ों की संख्या बताती है कि ये ट्यूमर सबसे ज़्यादा आँतों में होता है. इसका सबसे शुरुआती असर उन ब्लड सेल्स पर होता है जो ख़ून में हार्मोन छोड़ते हैं.

मरीज़ के शरीर में ये ट्यूमर किस हिस्से में हुआ है, उसी से इसके लक्षण तय होते हैं. मसलन, अगर ये पेट में हो जाए तो मरीज़ को लगातार कब्ज़ की शिक़ायत रहेगी. ये फ़ेफ़डों में हो जाए तो मरीज़ को लगातार बलगम रहेगा. ये बीमारी होने के बाद मरीज़ का ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल बढ़ता-घटता रहता है.

न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के विविध कारण हो सकते हैं. लेकिन ये आनुवांशिक रूप से भी होती है. माना जाता है कि जिनके परिवार में इस तरह के मामले पहले रह चुके हों, वो लोग इसके रिस्क में ज़्यादा होते हैं. कई डिटेल ब्लड टेस्ट, स्कैन और बायोप्सी करने के बाद ही ये बीमारी पकड़ में आती है.

ट्यूमर किस स्टेज में है, वो शरीर में किस हिस्से में है और मरीज़ की सेहत कैसी है. इन सबके आधार पर ही ये तय होता है कि मरीज़ का इलाज कैसे किया जाएगा, सर्जरी के ज़रिए इसे निकाला जा सकता है.

समाजवादी पार्टी के दफ्तर में क्यों लगी बहनजी की तस्वीर

उत्तर प्रदेश। गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में बसपा के समर्थन से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को मिली जीत ने कई चीजें बदल दी है. इस चुनाव के बाद से लेकर अब तक कई बातें ऐसी हुई है, जिसकी कुछ वक्त पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. मसलन अखिलेश यादव का मायावती के घर जाना और दोनों के बीच घंटे भऱ की मुलाकात. इस मुलाकात ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसा बदलाव किया है, जिसके बारे में राजनीतिक दिग्गजों ने भी नहीं सोचा होगा.

असल में लखनऊ स्थित समाजवादी पार्टी के दफ्तर के बाहर लगे पोस्टर में अखिलेश यादव के साथ बसपा सुप्रीमो मायावती की तस्वीर भी नजर आ रही है.पोस्टर में फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव में मिली जीत के लिए आभार प्रकट किया है. पोस्टर में मुलायम सिंह यादव और आजम खान की तस्वीर ऊपर की तरफ बनी है. और नीचे दाएं तरफ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती की तस्वीर साथ-साथ लगी है. खास बात यह भी है कि इसमें अखिलेश यादव से ज्यादा बड़ी तस्वीर बसपा प्रमुख मायावती की लगी है. इसे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता तारिक अहमद लारी ने लगवाया है.

तस्वीर समाचार एजेंसी एएनआई ने ट्वीट की है. यह तस्वीर हर किसी का ध्यान खींच रही है, क्योंकि उपचुनाव से पहले तक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक दूसरे के प्रति कठोर रुख रखती रही हैं. अब दोनों पार्टियों के बीच इस करीबी को देखकर सभी लोग भौचक हैं.

छत्तीसगढ़ में मायावती ​ने दिग्गज नेताओं की करवाई घर वापसी

छत्तीसगढ़। चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी के लिए एक बड़ी खबर है. पार्टी अध्यक्ष कुमारी मायावती के निर्देश के बाद तीन दिग्गज नेताओं की घरवापसी करवा ली गई है. 16 मार्च की देर रात पामगढ़ से तीन बार विधायक रहे वरिष्ठ नेता दाऊ राम रत्नाकर सहित सीपत से विधायक रह चुके रामेश्वर खरे, उदल किरण और आर सी बांझिल को वापस पार्टी में शामिल कर लिया गया है. बसपा प्रमुख मायावती के इस कदम को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

22 मार्च 2011 को इन चारों नेताओं समेत अन्य नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधि में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. पार्टी ने दाऊ राम रत्नाकर पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के करीबी और उन्हें अंदरूनी रुप से लाभ पहुंचाने का आरोप भी लगाया था. लंबे समय तक पार्टी का नेतृत्व करने के कारण रत्नाकर की पार्टी कार्यकर्ताओं में दखल काफी अच्छी थी, लिहाजा उनके निष्कासन के बाद बहुत से कार्यकर्ताओं ने पार्टी से अलविदा कह दिया था, इसके बाद वे रत्नाकर की बनाई हुई “बहुजन समाज मुक्ति मोर्चा” में शामिल हो गए थे. इसके बाद प्रदेश में बसपा पटरी पर नहीं आ सकी. लेकिन अब इस दिग्गज नेता की वापसी से बसपा लड़ाई में आ गई है.

प्रदेश चुनाव को लेकर बसपा कितनी गंभीर है यह रत्नाकर समेत अन्य नेताओं की घर वापसी से साफ समझा जा सकता है. छत्तीसगढ़ संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ बसपा अपनी खोई हुई सीटों पर भी वापसी करने का मन बना चुकी है. रत्नाकर की वापसी के फैसले से जहां पुराने कार्यकर्ताओं में खुशी का माहौल है वही आगामी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद जाग उठी है. 15 मार्च को कांशीराम के जन्मदिन पर ‘सत्ता प्राप्त करो संकल्प’ लेकर बसपा ने विधानसभा चुनाव का बिगुल भी फूंक दिया है.

प्रदेश में बसपा के ताकत की बात करें तो यहां बसपा के 5 लाख 35 हजार से ज्यादा मतदाता हैं, जो राजनीतिक गणित बनाने और बिगाड़ने के लिए काफी है. जब राज्य का गठन हुआ था, तब साल 2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा के 3 विधायक चुने गए थे. 2008 में 2 विधायक और साल 2013 में बसपा का एक विधायक हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा और कांग्रेस के बीच भी गठबंधन की बात चल रही हैं. छत्तीसगढ़ में इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं.

कांग्रेस महाअधिवेशन में जारी बुकलेट की पांच खास बातें

नई दिल्ली। दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में कांग्रेस का 84वां अधिवेशन चल रहा है. इसमें पार्टी अगले पांच साल की दशा-दिशा तय करने में जुटी है. इस दौरान आर्थिक और विदेशी मामलों सहित चार महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए जाएंगे. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने किसानों को मुख्य रूप से अपने एजेंडे में शामिल किया है. साथ ही रोजगार, अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी कांग्रेस ने प्रमुखता से अपने एजेंडे का हिस्सा बनाया है. इस संबंध में पार्टी ने बुकलेट जारी की हैं, जो पार्टी कार्यकर्ताओं को बांटी जाएंगी. इसमें कांग्रेस ने मोदी सरकार की तमाम योजानओं को नए नारे देकर घेरने की कोशिश की है. बुकलेट की खास बातें यूं है.

1. रोजगार … अच्छे दिन, नौकरी बिन

रोजगार के मामले को राहुल गांधी ने सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है. कांग्रेस पार्टी के महाधिवेशन हो रहा है, तो उसमें भी रोजगार की समस्या को उठाया जा रहा है. बुकलेट में एक नारा भी दिया गया कि अच्छे दिन, नौकरी बिन.

2. अर्थव्यवस्था … मेक इन इंडिया प्रोग्राम का शेर दहाड़ने में नाकामयाब रहा

अर्थव्यवस्था से जुड़े सवालों पर मोदी सरकार की योजनाओं को भी कठघरे में खड़ा किया गया है. उज्जवला योजना जैसे फ्लैगशिप प्रोग्राम की सच्चाई बताने का दावा किया है. इसके अलावा मेक इन इंडिया प्रोग्राम का शेर दहाड़ने में नाकामयाब रहा, ऐसे भी आरोप बुकलेट में हैं. आम आदमी की जेब पर पड़ने वाले असर को भी रेखांकित किया गया है. एनपीए को भी इसमें शामिल किया है.

3. किसान

पूरे देश में किसान कर्ज माफी और फसल के सही दामों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. कांग्रेस ने भी मोदी सरकार और बीजेपी की राज्य सरकारों के खिलाफ उपजे किसानों के गुस्से को अपने एजेंडे में शामिल किया है कार्यकर्ताओं से ये मुद्दे उठाने का आह्वान किया है.

4. मोदी सरकार के दौरान लूट

विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे उदाहरणों के साथ इन घटनाओं को कांग्रेस ने मोदी सरकार की लूट का नाम दिया है. साथ ही ये बताया गया है कि कैसे देश का पैसा लूटने वाले इन बड़े कारोबारियों को विदेश जाने दिया गया.

5. राष्ट्रीय सुरक्षा

सरकार में आने से पहले बीजेपी पाकिस्तान और कश्मीर पर सख्त रुख की पैरोकारी करती थी. कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं कि मौजूदा सरकार पाकिस्तान की मदद कर रही है. बुकलेट में कहा गया है कि चीनी सेना पाकिस्तान में बैठे आतंकी मसूद अजहर की मदद करती है और भारत सरकार चीन से लगातार कारोबार बढ़ा रही है और आयात कर रही है. कश्मीर के हालत का भी जिक्र है.

कांग्रेस के महाअधिवेशन में राहुल गांधी के भाषण की 10 बड़ी बातें

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नई दिल्ली। कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि देश को बांटने की कोशिश हो रही है. राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि विपक्ष लोगों में जहर घोलने का काम कर रही है. इससे पहले कांग्रेस अधिवेशन के लिए पहुंचे राहुल गांधी को पारंपरिक टोपी पहनाई गई और वंदे मातरम् के साथ झंडा फहराया गया. कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ 5 बुकलेट जारी कर सरकार पर सवाल उठाया है. राहुल गांधी के भाषण की 10 बड़ी बातें-

1. ये देश सबका है, हर धर्म का है, हर जात का है हर व्यक्ति का है, जो भी काम कांग्रेस पार्टी करेगी वो पूरे देश के लिए करेगी. देश के हर व्यक्ति के लिए करेगी और किसी को पीछे नहीं छोड़ेगी.

2. देश के एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से लड़ाया जा रहा है. लेकिन हमारा और हमारी पार्टी का काम जोड़ने का काम है.

3. देश में गुस्सा फैलाया जा रहा है, देश को बांटा जा रहा है.

4. युवा कांग्रेस पार्टी को आगे ले जाएंगे तो वरिष्ठ नेताओं के बिना हमारी पार्टी आगे नहीं बढ़ सकती.

5. मेरा काम वरिष्ठ और युवा नेताओं को जोड़ने का है. इन दोनों के साथ मिलकर पार्टी को एक नई दिशा दिखाने का काम है.

6. देश के करोड़ों थके युवा, जो मोदी जी की ओर देखते हैं तो उन्हें रास्ता नहीं दिखाई देता है. उन्हें समझ नहीं आता कि उन्हें रोजगार कहां से मिलेगा. किसानों को सही दाम कब मिलेगा.

7. देश रास्ता खोज रहा है. ऐसे में देश को सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही रास्ता दिखा सकती है.

8. कांग्रेस पार्टी और विपक्ष में बहुत बड़ा फर्क है. वो क्रोध और गुस्से का प्रयोग करते हैं और हम प्यार और भाईचारे में यकीन रखते हैं.

9. हम महाधिवेशन के जरिए भविष्य की बात कर रहे हैं. हमारी परंपरा में बदलाव किया जाता है लेकिन बीते हुए समय को भूला नहीं जाता.

10. सेशन का लक्ष्य देश को और कांग्रेस को रास्ता दिखाना है. ये अधिवेशन नेतृत्व का नहीं, कार्यकर्ताओं का है.

महाधिवेशन में दोपहर 3 बजे सोनिया गांधी भी पार्टी नेताओं को संबोधित करेंगी और तमाम बड़े मसलों पर राय रखेंगी. बता दें कि दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में कांग्रेस इस अधिवेशन का आयोजन किया गया है.

अम्बेडकरवादी होने के कारण 15 महीने में 8 ट्रांसफर, सैलरी भी रोकी

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भीलवाड़ा। बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर की बात करना और उनकी प्रतिमा को स्थापित करने के लिए खड़ा होना एक अम्बेडकरवादी के लिए इतना भारी पड़ गया कि उस पर सरकार और विभाग की नजर टेढ़ी हो गई. नतीजा उस पर मनगढंत आरोप लगाकर पिछले पंद्रह महीनों में उसका 8 ट्रांसफर किया जा चुका है और 15 महीनों से विभाग ने उसकी सैलरी रोक दी है. पीड़ित के साथ उत्पीड़न की यह इंतहा तब है जब न तो उसके ऊपर कोई आपराधिक मुकदमा है और न ही विभागीय शिकायत. मामला विधानसभा तक में उठ चुका है लेकिन उसे अभी तक न्याय नहीं मिला है.

घटना राजस्थान के भीलवाड़ा की है. वाल्मीकि जाति के अशोक कुमार चिन्नाल यहां स्वास्थ विभाग में नौकरी करते हैं. अशोक अम्बेडकरवादी हैं और सामाजिक मंचों पर भी सक्रिय रहते हैं. अशोक के गांव भीलवाड़ा जिले के हलेड़ में एक सरकारी जमीन खाली पड़ी थी. 2013 में अशोक सहित तमाम अम्बेडकरवादी इस पर बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे. गांव के सरपंच से NOC मिलने के बाद 25 दिसंबर 2013 को वहां बाबासाहेब की प्रतिमा लगा दी गई. सत्ताधारी दल भाजपा के कार्यकर्ताओं ने इसे अपनी जमीन बताते हुए बाबासाहेब की प्रतिमा को तोड़ दिया, हालांकि अशोक सहित अन्य अम्बेडकरवादियों के विरोध के कारण वह इस पर कब्जा नहीं कर सकें. चूंकि अशोक ज्यादा सक्रिय और मुखर थे सो उनको घेरने की कोशिशें शुरू हो गई. 2015 में उन्हें बाबासाहेब की जयंती के बाद एक मामूली शिकायत पर अशोक को घेरने का मौका मिल गया.

अशोक पर न सिर्फ हमला हुआ, बल्कि उनके विभाग ने भी उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा. आलम यह हुआ कि किसी खास व्यक्ति के इशारे पर विभाग ने उन्हें लगातार परेशान करना शुरू कर दिया. उनके एक के बाद एक ट्रांसफर किए गए और पिछले कई महीनों से उनकी सैलरी रोक दी गई. अशोक का आरोप है कि उनपर हमले किए गए. एक ट्रक दुर्घटना में अशोक के भाई की मौत हो गई, जबकि अशोक गंभीर रूप से घायल हो गए.

अशोक के पक्ष में राजस्थान में बसपा के विधायकों ने मामला विधानसभा तक में उठाया. झूंझुनू के खेतरी से बसपा विधायक पूरण मल सैनी ने विधानसभा में मामले को उठाते हुए अशोक को फिर से पहले की तरह मुख्यालय पर ट्रांसफऱ करने और उनका वेतन बहाल करने की मांग की. उन्होंने बाबासाहेब की खंडित की गई प्रतिमा को भी ठीक कर फिर से स्थापित करने की मांग की, लेकिन इसके बावजूद भी अशोक की परेशानी कम नहीं हुई है.

अशोक का कहना है कि अगर मैंने कोई गलती की है तो पुलिस मुझ पर एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करे. विभाग मुझे क्यों परेशान कर रहा है और मेरा वेतन क्यों रोक दिया गया है, यह मेरी समझ से परे है. अशोक राजस्थान में न्याय का हर दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला है. अशोक चिन्नाल के पक्ष में अब अम्बेडकरवादी संगठन एकजुट होने लगे हैं. डॉ. भीमराव अम्बेडकर विकास समिति ने राज्यपाल कल्याण सिंह को पत्र लिखकर अशोक के लिए न्याय मांगा है और न्याय नहीं मिलने की सूरत में बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है. लेकिन अम्बेडकरवादी होने और बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा स्थापित करने के कारण अशोक जिस तरह पूरे प्रदेश सरकार की नजरों में चुभ गए हैं वह सरकार की सोच पर सवाल उठाता है.

उपचुनावों में मिली जीत बीएसपी और सपा के लिए एक सबक

2014 के लोकसभा और उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधान सभाई चुनावों में बी. एस. पी. को मिली हार को देखते हुए यह लगने लगा था कि बी. एस. पी. का वोट बैंक खिसक रहा है. उस दौरान पड़े वोटों का प्रतिशत जिस गति से बढ़ा, उससे लग तो रहा था कि बी.एस.पी. निश्चित रूप से नीचे खिसकेगी, किंतु इतना बुरा हाल होगा यह कतई नहीं सोचा था. यह भी नहीं लग रहा था कि बढ़ा हुआ वोट किसी एक करवट बैठ जाएगा, जैसा कि हुआ. सभी दलों की सभाओं में अप्रत्याशित भीड़ जुटी. क्षेत्रीय दलों की सभाओं में भी अच्छी- भीड़ देखी गई.  किन्तु वो मतों में परिवर्तित नहीं हो सकी. सोचा था कि बढ़ा हुआ वोट बिखरेगा, किंतु ऐसा हुखासीआ नहीं. आखिर क्यों? यह एक सोचनीय विषय है. किंतु उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनावों में बसपा को मिली कामयाबी और फूलपुर और गोरखपुर में हुए हालिया दो उपचुनावों में बसपा के समर्थन से सपा को मिली जीत ने सिद्ध कर दिया कि बसपा का वोटर आज भी कायम है.

वर्ष 2007 के विधान सभा चुनावों में बी.एस.पी. को 85 आरक्षित सीटों में से 61 आरक्षित सीटों पर जीत मिली थी. जबकि इस बार बी.एस.पी. की सबसे बड़ी हार केवल दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर ही हुई थी. इसका कारण यह रहा कि अन्य दलों ने बी.एस.पी. के दलित उम्मीदवारों के खिलाफ कई-कई निर्दलीय दलित उम्मीदवार मैदान में उतार दिए. परिणाम यह हुआ कि दलित वोटों का तो बिखराव हो गया और गैर-दलित मत बी.एस.पी. के खाते में आए ही नहीं. फलत: आरक्षित सीटों पर बी.एस.पी. के उम्मीदवार ही ज्यादा हारे. यह एक सोची-समझी साजिश थी. प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से कहा जा सकता है कि आरक्षित सीटों पर समाज विरोधी दलितों ने अन्य दलों के जाल में फंसकर बी.एस.पी. के खिलाफ काम किया. यहाँ यह सवाल भी उठ सकता है कि फिर सामान्य सीटों पर बी.एस.पी. के उम्मीदवार कैसे जीत जाते हैं. प्रश्न बेशक जायज है. इसके उत्तर में इतना ही कहा जा सकता है कि सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ रहे बी.एस.पी. के उम्मीदवारों के हक में दलित मतों का लगभग 80-85 प्रतिशत मत तो मिल ही जाते हैं, साथ ही गैर-दलितों के मत भी बी.एस.पी. के खाते में चले जाते हैं. किंतु 2017 के चुनावों में ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया.

 बी.एस.पी. के आला कमान को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बी.एस.पी. का जमीनी कार्यकर्त्ता हवाई यानी गली-कूचे की नेतागीरी करने में ज्यादा रुचि लेने लगा है. काम करने में कम. यहां तक कि वोटरों के घरों तक वोटर-पर्चीयां तक नहीं पहुँचा पाते. नतीजा ये होता है कि बी.एस.पी. के वोटरों का लगभग 10-12 प्रतिशत वोट ही नहीं डाल पाता. यहां तक कि ज्यादातर वोटरों को अपने पोलिंग बूथ का ही पता नहीं होता. इलाकाई कार्यकर्त्ताओं से पूछने पर भी कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिलता. बूथ पर व्यवस्था के नाम पर कुछ भी दिखाई नहीं देता.

  दिक्कत एक और भी है कि दलितों में शामिल कुछेक जातियां अपने आपको दलित मानने को ही तैयार नहीं हैं.  संविधान के आर्टिकल 16.4 के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग भी दलितों में आता है. किंतु अफसोस कि वो अपने आप को ब्राह्मण ही मानने पर उतारू है जिसके चलते समूचे दलित समाज का अनहित हो रहा है.

इस संबंध में जे.एन.यू के प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार कहते हैं, “इस प्रकार हिन्दुत्व बहुजनवाद पर भारी पड़ गया. 1978 के पश्चात जातीय अस्मिताओं का प्रयोग कर जिस उत्तर प्रदेश में बामसेफ, डीएस-4 तथा बहुजन समाज पार्टी के सहारे “बहुजन” का एक बड़ा समीकरण बना था, उस समीकरण को बीजेपी ने अपने तौर पर चुनौती दी. इस जातीय अस्मिता के नवीन समीकरण का सूत्रपात करने वाले स्वयं नरेन्द्र मोदी थे. मोदी ने उप्र की जनसभाओं में अपनी अस्मिता को खूब उछाला. उन्होंने अपने आपको पिछड़े वर्ग का बताया. उन्होंने एक रैली में यहाँ तक कहा – “आने वाला दशक पिछड़ों एवं दलितों का होगा.”  मैं समझता हूँ कि मोदी यहाँ दलितों और पिछड़ों के नाम एक अप्रत्यक्ष सवाल भी छोड़ जाते हैं. और वह सवाल है कि अब दलितों और पिछड़ों को सोचना होगा कि वो परम्परागत जातिगत और धार्मिक व्यवस्था अर्थात साम्प्रदायिकता का हिस्सा बनकर जीना चाहते हैं अथवा दलितों और पिछड़ों के तमाम के तमाम राजनीतिक घटक तमाम मतभेदों को भुलाकर एक होकर समाज के दमित और वंचित वर्ग को आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं.

 जाहिर है कि मोदी तो यही चाहेंगे कि दलित और पिछड़े लोग बीजेपी के साथ ही बने रहें. आखिर मोदी के भी तो अपने निजी निहित हैं. अब यह दलितों और पिछड़ों को सोचना है कि उनका भला कहाँ है. यह भी जाहिर है कि यदि दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले तमाम नेता यदि अपने-अपने निजी स्वार्थो और जातीय अहम को छोड़कर पिछले चुनावों में प्राप्त मतों के प्रतिशत के आधार पर एक होकर चुनाव लड़ते हैं तो 2019 के आम चुनावों के नतीजे कुछ अलग ही होंगे. यदि ऐसा हो पाता है तो उम्मीद की जा सकती है कि भारत में मानवाधिकारों की किसी हद तक रक्षा हो सकती है, अन्यथा नहीं.

दिक्कत एक और भी है कि दलितों में शामिल कुछेक जातियां अपने आपको दलित मानने को ही तैयार नहीं हैं. संविधान के आर्टिकल 16.4 के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग भी दलितों में आता है, किन्तु अफसोस कि वो अपने आप को ब्राह्मण ही मानने पर उतारू है जिसके चलते समूचे दलित समाज का अनहित हो रहा है.  मेरा मानना है कि यदि बी.एस.पी. और सपा आपस में एक हो जाएं तो इनके हाथों में न केवल राज्यों की सता होगी अपितु केंद्रीय-सत्ता भी इनके हाथों में ही होगी. अक्सर देखा गया है कि किसी भी उपचुनाव में प्राय: सत्ताधारी दल की ही जीत होती है, मगर उत्तर प्रदेश में इस बार ऐसा न हो सका. अत: हाल ही में उत्तर प्रदेश में फूलपुर और गोरखपुर में हुए उपचुनावो में बी. एस. पी. के समर्थन से सपा के प्रत्याशियों की भारी जीत तो इस ओर ही संकेत कर रही है. पर इन्हें समझाए कौन? जरूरत है तो केवल निजित्व की भावना से उबरकर सामाजिक हितों की साधना हेतु काम करने की. अब 2019 के लोकसभा चुनाव होने हैं, देखते हैं क्या होगा?

 लेखक:  तेजपाल सिंह तेज चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक, आजीवक विजन के प्रधान संपादक तथा अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक के संपादक रहे हैं. स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर आप इन दिनों स्वतंत्र लेखन के रत हैं. हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित किए जा चुके हैं.

 

क्या दलित और मुसलमान तय करेंगे कर्नाटक का राजनीति भविष्य?

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न्यूज 18 ने जनगणना के आंकड़ों में जो पाया उसके मुताबिक, दलितों और मुस्लिमों की संख्या लिंगायत और वोक्कालिगा की जनसंख्या से अधिक है. राज्य में अनुसूचित जातियों की संख्या कुल आबादी की 19.5% है जो कि राज्य में सबसे बड़े जातीय समूह के रूप में उभरा है. इसके बाद मुस्लिमों का स्थान है जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का 17 प्रतिशत हैं. इन दोनों समुदायों के बाद लिंगायत व वोक्कालिगा का स्थान आता है जो कि क्रमशः 14 फीसदी व 11 फीसदी हैं.

अन्य पिछड़ा वर्गों में कुरुबा राज्य की कुल जनसंख्या में अकेले 7 फीसदी हैं. बता दें कि राज्य में 20 फीसदी जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग की है. आंकड़ों के अनुसार राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मुसलमान व कुरुबा की जनसंख्या को मिला दें तो ये राज्य की कुल जनसंख्या की 47.5 फीसदी जनसंख्या हो जाती है. मुख्यमंत्री के AHINDA (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग व दलित) वर्ग को अपनी ओर करने का समीकरण अचूक है, जिसकी सफलता कांग्रेस को जीत के काफी नज़दीक ला सकती है. हालांकि लिंगायत व वोक्कालिगा दोनों जातियों ने इस डेटा को नकारा है. वीराशैव-लिंगायत महासभा की राष्ट्रीय सचिव एचएम रेणुका प्रसन्ना ने कहा कि जस्टिस ‘चिन्नप्पा रेड्डी कमीशन’ की रिपोर्ट के अनुसार 1980 में हमारी जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या की 16.92 फीसदी थी और ‘हवनूर कमीशन’ के अनुसार हमारी जनसंख्या 17.23 फीसदी थी. तो ये कैसे संभव है कि 30 सालों बाद हमारी आबादी अब घटकर मात्र 14 फीसदी रह गई हो. प्रसन्ना ने आरोप लगाया कि सिद्धारमैया वास्तविक आंकड़ों के साथ अपने लाभ के अनुसार खेल रहे हैं. वोक्कालिगा समुदाय का भी यही मानना है. सरकार में ही वोक्कालिगा समुदाय के एक मंत्री ने कहा कि वोक्कालिगा की कुल जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या की 16 फीसदी है न कि 11 फीसदी. एक वोक्कालिगा ब्यूरोक्रेट ने कहा कि यदि ये आंकड़े सही हैं तो पिछले 70 सालों से जो दबदबा कर्नाटक की राजनीति में वोक्कालिगा और लिंगायत का बना हुआ था वो खत्म हो जाएगा और आगे से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, कुरुबा व मुसलमान ही कर्नाटक के भाग्य का निर्णय करेंगे. हालांकि मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने इसे अफवाह बताया और कहा कि सरकार ने ऐसा कोई डेटा जारी ही नहीं किया है. उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया. कर्नाटक के बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा और जेडीएस के राज्य प्रमुख एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि सिद्धारमैया सरकार राज्य को फिर एक बार जातिगत आधार पर बांटने की कोशिश कर रही हैं. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस सरकार अभी दुविधा में है कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए कि नहीं क्योंकि इससे वोक्कालिगा व लिंगायत समुदाय नाराज़ हो सकता है और इससे सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल मच सकती है. एक अधिकारी ने बताया कि चुनावों के पहले जातिगत जनगणना के आधार पर मिले आंकड़ों को जारी नहीं किया जायेगा, क्योंकि ये बहुत खतरनाक साबित हो सकता है. जातिगत जनगणना के अनुसार राज्य में दलित 19.5 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 5 प्रतिशत, मुसलमान 16 प्रतिशत, कुरुबा 7 प्रतिशत, बाकी के ओबीसी 16 प्रतिशत, लिंगायत 14 प्रतिशत, वोक्कालिगा 11 प्रतिशत, ब्राह्मण 3 प्रतिशत, ईसाई 3 प्रतिशत, बौद्ध व जैन 2 प्रतिशत बाकी के 4 प्रतिशत हैं.  कर्नाटक की कुल जनसंख्या 6 करोड़ है जिसमें 4.90 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाता हैं. साभार न्यूज 18

केजरीवाल के खिलाफ आप के पंजाब इकाई में बगावत

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल द्वारा अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया से लिखित में माफी मांगने के बाद आप के भीतर बगावत छिड़ गया है. इस माफी से पार्टी के सांसद और पंजाब अध्यक्ष भगवंत मान ने पंजाब प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.

मान ने खुद ही ट्विट कर इसकी जानकारी दी. भगवंत मान ने ट्वीट किया, ”मैं पंजाब प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे रहा हूं. ड्रग माफिया के ख़िलाफ मेरी लड़ाई जारी रहेगी. पंजाब के आम आदमी होने के नाते मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई भी जारी रखूंगा.” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के एक कोर्ट में हलफ़नामा दाख़िल कर शिरोमणि अकाली दल के महासचिव बिक्रम सिंह मजीठिया से माफ़ी मांगी थी.

पिछले साल हुए पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने बिक्रम सिंह मजीठिया के कथित तौर पर पंजाब के ड्रग माफ़िया के साथ संबंध होने के आरोप लगाए थे. इन आरोपों को ग़लत बताते हुए बिक्रम सिंह मजीठिया ने केजरीवाल, आप सांसद संजय सिंह और पार्टी प्रवक्ता आशीष खेतान के ख़िलाफ़ अमृतसर कोर्ट में मानहानि का मुक़दमा कर दिया था. केजरीवाल के माफी मांगने के बाद उन्होंने भी मामला खत्म कर दिया. गुरुवार शाम को मजीठिया ने केजरीवाल का माफ़ीनामा ट्वीट किया था.

तो क्या 2019 में मायावती बनेंगी विपक्ष की धुरी!

गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में सपा-बसपा गठबंधन को मिली जीत के बाद देश की राजनीतिक फिजां बदलने लगी है. वैसे तो भाजपा को मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार उपचुनाव में भी हार का मुंह देखना पड़ा था, लेकिन यूपी की हार सिर्फ दो सीटों की हार नहीं थी. असल में गोरखपुर और फूलपुर की हार भाजपा के किले के दरकने जैसा है. पिछले तीन दशक से पूर्वांचल का सबसे मजबूत गढ़ बने गोरखपुर की हार भाजपा के एक मजबूत किले के ढहने जैसा है. गोरखपुर और फूलपुर देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की हार है. भाजपा को मिली इस हार के पीछे सबसे बड़ा कारण बहुजन समाज पार्टी और इसकी मुखिया मायावती बन कर उभरी हैं.

भाजपा की हार के बाद उनके बयान से विपक्षी दलों की सुगबुगाहट तेज हो गई है. गोरखपुर और फूलपुर की जीत के बाद कुमारी मायावती ने कहा कि उन्होंने भाजपा को सबक सिखाने के लिए सपा को समर्थन दिया था. साथ ही उनका यह बयान भी चर्चा में है कि भाजपा के खिलाफ समूचे विपक्ष को साथ आना चाहिए. बसपा प्रमुख के इस बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि मायावती 2019 चुनाव के केंद्र में रहेंगी. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जिस तरह से मायावती को लेकर अपनी रुचि दिखाई है, उससे यह भी लग रहा है कि सपा को मायावती को आगे रखकर चुनाव लड़ने में कोई दिक्कत नहीं होगी.

भाजपा को हराने के लिए जिस तरह से विपक्ष गोलबंद हो रहा है उसमें बसपा की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. अब तक गठबंधन की राजनीति से दूर रही बसपा का नजरिया भी अब गठबंधन की राजनीति को लेकर बदलने लगा है. 15 मार्च को चंडीगढ़ की रैली में भी मायावती ने गठबंधन की राजनीति का संकेत दे दिया है. ऐसे में अगर राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबंधन होता है तो मायावती एक महत्वपूर्ण फैक्टर बनकर सामने आएंगी. कांग्रेस के अलावा तमाम विपक्षी दलों में मायावती इकलौती ऐसी नेता और बहुजन समाज पार्टी इकलौती ऐसी पार्टी है, जिसके समर्थक देश भर में हैं. और वह हर प्रदेश में सहयोगी पार्टी को अपना वोट ट्रांसफर करवाने में सक्षम है.

विश्व बैंक ने जीएसटी को लेकर मोदी सरकार पर उठाए गंभीर सवाल

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नई दिल्ली। माल एवं सेवा कर (GST) को बेहतर बनाने की कोशिश में जुटी मोदी सरकार के लिए एक और बुरी खबर आई है. विश्व बैंक ने भारत में लागू इस नई कर प्रणाली को लेकर कई गंभीर सवाल उठाए हैं. विश्व बैंक ने इसे काफी जटिल बताया है. इसके साथ ही कहा है कि भारत में लागू टैक्स स्लैब 115 देशों में दूसरा सबसे ज्यादा है. यह बात विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कही गई है.

इस रिपोर्ट में उन देशों के टैक्स रेट और स्लैब की तुलना की है, जहां जीएसटी लागू है. इस रिपोर्ट में कुल 115 ऐसे देश शामिल किए गए. भारत में जहां 5 टैक्स स्लैब हैं. वहीं, दुनियाभर के 49 देशों में एक ही जीएसटी रेट है. रिपोर्ट के मुताबिक 28 देशों में 2 टैक्स स्लैब इस्तेमाल किए जाते हैं. वहीं, भारत समेत 5 ऐसे देश हैं, जहां 4 टैक्स टैक्स स्लैब प्रभावी हैं. 4 और इससे ज्यादा जीएसटी टैक्स स्लैब लागू करने वाले देशों में इटली, लग्जमबर्ग, पाकिस्तान और घाना है.

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में जीएसटी को लागू करने के लिए किए गए खर्च को लेकर भी सवाल उठाया है. वैश्व‍िक वित्तीय संस्था ने अपनी रिपोर्ट में भविष्य में इसमें जरूरी बदलाव करने का सुझाव दिया है और उम्मीद जताई है कि आगे जाकर इसमें सकारात्मक बदलाव होंगे. रिपोर्ट में टैक्स स्लैब की संख्या कम करने और जीएसटी प्रक्रिया को आसान व सरल बनाने का सुझाव दिया गया है. बता दें कि मोदी सरकार ने 1 जुलाई से जीएसटी लागू किया था. भारत में लागू जीएसटी में 5 टैक्स स्लैब हैं. इसमें 0, 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18% और 28 फीसदी है.

राजनीतिक कट्टरता में एक व्यक्ति का गला काट कर मार डाला

दरभंगा। देश में राजनीतिक कट्टरता के बढ़ते खतरे का एक उदाहरण बिहार के दरभंगा जिले में सामने आया है. यहां एक राजनैतिक दल के समर्थकों ने दूसरे राजनैतिक दल के समर्थक का गला काट कर उसे मार डाला. जानकारी के मुताबिक, दरभंगा में एक परिवार ने अपने इलाके में एक चौक का नाम ‘मोदी चौक’ रख दिया. इसके बाद महागठबंधन समर्थकों ने परिवार के व्यक्ति का गर्दन काटकर उसकी हत्या कर दी. इस हमले में मृतक का बेटा गंभीर रूप से घायल हो गया.

मृतक के परिजन ने कहा कि मोदी के नाम पर चौक का नाम रखने और मोदी की तस्वीर लगाने के कारण महागठबंधन के लोग नाराज थे. इसे लेकर पहले भी मारपीट हुई थी. उपचुनाव में मिली जीत के बाद महागठबंधन से जुड़े लोगों ने अतिउत्साह में आकर इस घटना को अंजाम दिया. दरभंगा के भाजपा जिला अध्यक्ष का आरोप है कि बीजेपी समर्थक द्वारा अपने घर के बाहर वाले चौराहे का ‘मोदी चौक’ नाम रखने पर व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया गया और मृतक के बेटे पर भी हमला कर उसे घायल कर दिया गया. घटना के विरोध में बीजेपी समर्थकों ने दरभंगा में कर्पूरी चौक पर विरोध प्रदर्शन किया और रास्ते को जाम कर दिया. इस तरह की घटना और किसी भी दल और नेता को लेकर इस तरह का पागलपन खतरनाक है, जिसमें किसी की जान चली जाए.

सुशील कुमार

कांग्रेस के महाअधिवेशन में मख्य भूमिका में होंगे कार्यकर्ता

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नई दिल्ली। राहुल गांधी की अध्यक्षता में दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में कांग्रेस का 84वां अधिवेशन शुरू हो गया. इस महाअधिवेशन में राहुल गांधी की पहल के बाद पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. चर्चा है कि इस अधिवेशन में राहुल गांधी कांग्रेस के भविष्य का ब्लू प्रिंट पेश करेंगे. इसके साथ ही पार्टी के भीतर कुछ चीजें भी बदले जाने की खबर है. इस अधिवेशन में संचालन समिति सब्जेक्ट कमेटी में तब्दील हो जाएगी. पहले दिन सब्जेक्ट कमेटी के लोग अलग-अलग प्रस्तावों पर चर्चा करेंगे. तीन दिवसीय इस अधिवेशन में 17 और 18 मार्च के दिन राहुल गांधी भी अधिवेशन में रहेंगे.

अधिवेशन में कई प्रयोग किए जा रहे हैं. इस अधिवेशन में राहुल गांधी की रणनीति जमीनी कार्यकर्ताओं में जोश भरने की है. इसके तहत पार्टी जिला से लेकर ब्लॉक लेबल तक के कार्यकर्ताओं को बोलने का मौका देगी. इस योजना के जरिए सामान्य कार्यकर्ता की बात और जमीन से जुड़े मुद्दे सामने लाने की कोशिश है. राहुल गांधी दो बार इस अधिवेशन को संबोधित करेंगे. 17 मार्च को कांग्रेस अध्यक्ष कार्यकर्ताओं का स्वागत करेंगे. इस दिन दो प्रस्ताव पर चर्चा होगी. 18 मार्च को भी दो प्रस्ताव आएंगे. 18 मार्च को शाम 5 बजे राहुल गांधी का मुख्य भाषण होगा जो समापन भाषण होगा.

इसके साथ ही अधिवेशन में कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ ‘चार्जशीट’ भी लाएगी. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बताया कि इस अधिवेशन में कांग्रेस पांच बुकलेट के जरिए बीजेपी पर चार्जशीट लाएगी. अधिवेशन में AICC प्रतिनिधियों को ये बुकलेट दी जाएगी. प्रत्येक बुक 10 पेज की होगी, जिसमें युवा, किसान, शिक्षा, रोजगार, एसटी/एससी और महिलाओं से संबंधित जानकारियां होंगी. इसमें तथ्य और डाटा के साथ काफी जानकारी होगी, जो मोदी सरकार के झूठ का और बेहतर तरीके से पर्दाफाश करने में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए सहायक होगी.

इस दौरान ड्राफ्टिंग कमेटी से जुड़ी चार उपसमिति बनाई गई है. इसमें राजनीतिक मसलों पर उपसमिति, आर्थिक मसलों पर उपसमिति, अंतरराष्ट्रीय मसलों पर उपसमिति और कृषि, रोजगार और गरीबी उन्मूलन पर उपसमिति बनाई जाएगी. तीन दिन के अधिवेशन में तय होगा कि पार्टी राजनैतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय, कृषि, रोजगार और गरीबी उन्मूलन के मसले पर अपनी दिशा तय करेगी.

 

करण कुमार

जयललिता के भतीजे ने बनाई अपनी पार्टी, नाम रखा ‘अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम’

चेन्नई। तमिलनाडु की राजनीति में गुरुवार को एक नई पार्टी का उदय हुआ. एआईएडीएमके के बागी नेता और आरकेनगर से निर्दलीय विधायक जयललिता के भतीजे ने टीटीवी दिनाकरण ने अपनी नई पार्टी ‘अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम’ लॉन्च की.

मदुरई में एआईएडीएमके के बागी विधायकों और भारी संख्या में उमड़े समर्थकों की मौजूदगी में दिनाकरण ने अपनी पार्टी, चुनाव चिह्न और झंडा लॉन्च किया. दिनाकरण ने कहा कि वह दिवंगत जयललिता के असली उत्तराधिकारी हैं. अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए दिनाकरण ने कहा, ‘हम अब अपनी नई पार्टी और झंडे के साथ आने वाले सभी चुनावों को जीतेंगे. इसके अलावा हम दो पत्तयों वाले चुनाव चिह्न को पाने की कोशिश करेंगे. इसके न मिलने तक हम चुनाह चिह्न कूकर का इस्तेमाल करेंगे।’

इससे पहले नौ मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने टी.टी.वी.दिनाकरण के नेतृत्व वाले अन्नाद्रमुक (अम्मा) धड़े को समान चुनाव चिन्ह, संभवत: प्रेशर कुकर, और उनकी पसंद का एक उचित नाम आवंटित करने का निर्देश दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट में दिनाकरन ने प्रेशर कुकर चिन्ह मांगा था, जिसके तहत पार्टी ने पिछले वर्ष दिसंबर में राधा कृष्ण्न नगर विधानसभा सीट पर हुआ उपचुनाव 40 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीता था.

आवेदन पर सुनवाई के दौरान दिनाकरन ने अपने धड़े के लिए तीन नाम भी सुझाए थे -आल इंडिया अम्मा अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम, एमजीआर अम्मा द्रविड़ मुनेत्र कझगम और एमजीआर अम्मा द्रविड कझगम. पलानीस्वामी -पनीरसेल्वम समूह ने कई आधार पर दिनाकरन की याचिका का विरोध किया था. यह भी कहा गया था कि दिनाकरन के धड़े को नाम और चिन्ह हासिल करने के लिए खुद को एक अलग पार्टी के रूप में पंजीकृत कराना होगा.

इन सभी बातों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि दिनाकरन धड़े को एक नए राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण कराने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि उस सूरत में दो पत्ती चिन्ह पर उनका दावा खत्म हो जाएगा.

अपने गोरखनाथ मठ के बूथ पर भी बुरी तरह हारे योगी

गोरखपुर। गोरखपुर लोकसभा सीट को हारने का दर्द यहां के महंथ योगी आदित्यनाथ को लंबे समय तक सालता रहेगा. लेकिन योगी आदित्यानाथ के लिए लोकसभा सीट की हार से भी ज्यादा चौंकाने वाली घटना हो गई, जिससे योगी की इज्जत ही दांव पर लग गई है. और योगी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसा हुआ तो हुआ कैसे??

असल में अब तक पूर्वांचल की गोरखपुर सीट को बीजेपी का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता रहा है, लेकिन उपचुनाव में ये सुरक्षित किला दरक गया है. बीजेपी उम्मीदवार और योगी के प्रतिनिधि की गोरखपुर में हार हुई है. यही नहीं बल्कि योगी को गोरखनाथ मठ के उस बूथ पर भी करारी हार का सामना करना पड़ा है, जिसके महंत योगी आदित्यनाथ हैं.

गोरखनाथ मठ वाले बूथ पर बीजेपी उम्मीदवार को कांग्रेस प्रत्याशी से भी कम वोट मिले हैं. बीजेपी इस बूथ पर 50 वोट भी नहीं पा सकी है. गोरखनाथ मठ वाले बूथ पर बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल को महज 43 वोट मिले. जबकि कांग्रेस को 56 और सपा उम्मीदवार को 1775 वोट मिले हैं. यह तब है जब यह मठ पिछले तीन दशक से योगी और गोरखपुर की सियासत का सबसे बड़ा केंद्र है. यह योगी के लिए इसलिए भी करारी शिकस्त है क्योंकि गोरखपुर के सांसद रहे योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री भी हैं. इतना नहीं वो गोरखपुर से पांच बार के सांसद रहे हैं.

तो क्या यह बिहार से नीतीश की विदाई की पटकथा है

पटना। बिहार और उत्तर प्रदेश हमेशा से देश की राजनीति का रुख तय करते रहे हैं. केंद्र का रास्ता बिहार वाया यूपी होते हुए ही दिल्ली पहुंचता है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इन दोनों राज्यों ने भारत विजय पर निकली भाजपा के लिए मुश्किल संकेत दे दिए हैं. 14 मार्च को उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटें और बिहार की एक लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों का चुनाव परिणाम आया. इन पांच सीटों में से भाजपा के जिम्मे सिर्फ एक बिहार की भभुआ विधानसभा सीट आई, बाकी की पांचों सीटों पर भाजपा चुनाव हार गई.

इस दौरान गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ की हार इतनी भारी थी कि पूरे दिन चर्चा के केंद्र में गोरखपुर का चुनाव बना रहा. जबकि भाजपा को जो झटका यूपी में लगा था वैसा ही झटका उसे बिहार में लालू यादव की पार्टी तेजस्वी यादव ने दिया था. भाजपा और नीतीश कुमार के साथ आने के बावजूद राजद ने अररिया लोकसभा सीट और जहानाबाद विधानसभा सीट बरकरार रखी.

लालू यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेजपाल यादव

लालू यादव के जेल जाने के बाद भाजपा-जदयू इस सीट पर राजद को हराने की कोशिश में लगे थे ताकि लालू यादव का मनोबल टूट जाए. लेकिन पिता के जेल में होने के बावजूद उनके बेटे और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव जिस तरह ये दोनों सीटें न सिर्फ बचा ले गए बल्कि उसका अंतर भी काफी रहा. राजद की इस जीत से बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का कद घटा है. बिहार और यूपी के चुनावी नतीजों ने मोदी और अमित शाह की माथे पर पसीना ला दिया है. और भाजपा के सभी बड़बोले नेताओं ने चुप्पी साध ली है.

जीत की खुशी के बाद पटना में राजद नेता और समर्थक

ऐसी ही एक संभावना को टटोलने के लिए संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डिनर दिया था, जिसमें 20 विपक्षी दलों के नेता एकत्रित हुए थे. 2019 के पहले विपक्षी खेमें में भाजपा को रोकने की बेचैनी साफ देखी जा रही है. संभव है कि यह उपचुनाव केंद्र से मोदी और बिहार से नीतीश के विदाई की पटकथा बन जाए.

मायावती और अखिलेश यादव की मुलाकात में क्या-क्या बात हुई

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लखनऊ। 14 मार्च को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कों पर एक अलग ही नजारा था. काफी वक्त बाद ऐसा हुआ था कि किसी चुनाव के बाद सड़कों पर भाजपा नहीं बल्कि सपा और बसपा के कार्यकर्ता थे. और जो सबसे बड़ी बात थी कि सपा और बसपा के कार्यकर्ता साथ-साथ थे. साईकिल और हाथी के झंडे एक ही डंडे में गुथे हुए थे. उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर सीट को भाजपा से छिनने के बाद ‘बुआ और भतीजा’ की जोड़ी के खूब नारे लग रहे थे. सबकी नजर इस पर थी कि अखिलेश यादव बुआ मायावती का शुक्रिया कैसे अदा करते हैं. औऱ फिर एक ऐसी मुलाकात हुई, जिसका इंतजार बहुजन समाज के सजग लोग पिछले काफी वक्त से कर रहे थे.

अखिलेश यादव शाम 7:25 पर अपने काफिले के साथ बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के लखनऊ स्थित घर पहुंचे. मायावती के समर्थन से ही अखिलेश यादव को यह जीत नसीब हुई थी इसलिए अखिलेश यादव ने सबसे पहला शुक्रिया मायावती का अदा किया. दोनों के बीच ये मुलाकात करीब 1 घंटे 5 मिनट तक चली. जाहिर है कि एक घंटे की मुलाकात कम नहीं होती. खबर है कि दोनों की मुलाकात काफी अच्छी थी. और दोनों काफी सहज थे.

इस बैठक में तीन खास बातें हुईं. उसमें सबसे बड़ी बात जो निकल कर आई है, वह यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस गठबंधन को जारी रखने पर चर्चा हुई. एक शुरुआती चर्चा सीटों को लेकर भी हुई कि गठबंधन होने पर कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा.

इस मुलाकात की दूसरी खास बात यह रही कि इस दौरान 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के बीच हुई मुलाकात को भी याद किया गया. तब इन दोनों पार्टियों के साथ आने से जो राजनैतिक सफलता मिली थी, उसकी चर्चा हुई. हालांकि इस दौरान दोनों नेताओं ने उसके बाद आई तल्खियों का कोई जिक्र नहीं किया. यह दिखाता है कि मायावती भी अब उस बात को भूल कर आगे बढ़ना चाहती हैं. वैसे भी उन्हें मुलायम सिंह से नहीं बल्कि अखिलेश यादव से बात करनी है.

मुलाकात की जो तीसरी खास बात रही वह राज्यसभा चुनाव था. राज्यसभा में भाजपा, बीएसपी और समाजवादी पार्टी दोनों का खेल बिगाड़ने की कोशिश में लगी है. बीजेपी ने राज्यसभा के लिए नौवां कैंडिडेट उतार दिया है, ऐसे में सीधा खतरा बसपा के उम्मीदवार को है, क्योंकि नरेश अग्रवाल और राजा भैया का खेमा बीजेपी उम्मीदवार को जिताने के लिए जुट गया है. उपचुनाव में हार के बाद भाजपा किसी भी कीमत पर इसका बदला राज्यसभा में लेना चाहेगी. इसे रोकने के लिए और बसपा के उम्मीदवार को जीताने के लिए दोनों ने रणनीति पर चर्चा की.

बहरहाल इस मुलाकात के बड़े राजनैतिक मायने हैं. यह मुलाकात भारत की राजनीति को बदल देने वाला है. यह सभी जानते हैं कि देश की सत्ता का रास्ता यूपी की 80 लोकसभा सीटों से होकर ही गुजरता है. 1993 में पहले भी दोनों मिलकर भाजपा को हरा चुके हैं, 2019 में अगर दोनों साथ आते हैं तो एक बार फिर विजय के रथ पर सवार होकर उड़ रही भाजपा धाराशायी हो सकती है. मायावती और अखिलेश मिलकर भाजपा के हार और अपनी जीत की इबारत लिख सकते हैं. वक्त और बहुजन समाज की यही मांग है.