लखनऊ। 14 मार्च को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कों पर एक अलग ही नजारा था. काफी वक्त बाद ऐसा हुआ था कि किसी चुनाव के बाद सड़कों पर भाजपा नहीं बल्कि सपा और बसपा के कार्यकर्ता थे. और जो सबसे बड़ी बात थी कि सपा और बसपा के कार्यकर्ता साथ-साथ थे. साईकिल और हाथी के झंडे एक ही डंडे में गुथे हुए थे. उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर सीट को भाजपा से छिनने के बाद ‘बुआ और भतीजा’ की जोड़ी के खूब नारे लग रहे थे. सबकी नजर इस पर थी कि अखिलेश यादव बुआ मायावती का शुक्रिया कैसे अदा करते हैं. औऱ फिर एक ऐसी मुलाकात हुई, जिसका इंतजार बहुजन समाज के सजग लोग पिछले काफी वक्त से कर रहे थे.
अखिलेश यादव शाम 7:25 पर अपने काफिले के साथ बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के लखनऊ स्थित घर पहुंचे. मायावती के समर्थन से ही अखिलेश यादव को यह जीत नसीब हुई थी इसलिए अखिलेश यादव ने सबसे पहला शुक्रिया मायावती का अदा किया. दोनों के बीच ये मुलाकात करीब 1 घंटे 5 मिनट तक चली. जाहिर है कि एक घंटे की मुलाकात कम नहीं होती. खबर है कि दोनों की मुलाकात काफी अच्छी थी. और दोनों काफी सहज थे.
इस बैठक में तीन खास बातें हुईं. उसमें सबसे बड़ी बात जो निकल कर आई है, वह यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस गठबंधन को जारी रखने पर चर्चा हुई. एक शुरुआती चर्चा सीटों को लेकर भी हुई कि गठबंधन होने पर कौन कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा.
इस मुलाकात की दूसरी खास बात यह रही कि इस दौरान 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के बीच हुई मुलाकात को भी याद किया गया. तब इन दोनों पार्टियों के साथ आने से जो राजनैतिक सफलता मिली थी, उसकी चर्चा हुई. हालांकि इस दौरान दोनों नेताओं ने उसके बाद आई तल्खियों का कोई जिक्र नहीं किया. यह दिखाता है कि मायावती भी अब उस बात को भूल कर आगे बढ़ना चाहती हैं. वैसे भी उन्हें मुलायम सिंह से नहीं बल्कि अखिलेश यादव से बात करनी है.
मुलाकात की जो तीसरी खास बात रही वह राज्यसभा चुनाव था. राज्यसभा में भाजपा, बीएसपी और समाजवादी पार्टी दोनों का खेल बिगाड़ने की कोशिश में लगी है. बीजेपी ने राज्यसभा के लिए नौवां कैंडिडेट उतार दिया है, ऐसे में सीधा खतरा बसपा के उम्मीदवार को है, क्योंकि नरेश अग्रवाल और राजा भैया का खेमा बीजेपी उम्मीदवार को जिताने के लिए जुट गया है. उपचुनाव में हार के बाद भाजपा किसी भी कीमत पर इसका बदला राज्यसभा में लेना चाहेगी. इसे रोकने के लिए और बसपा के उम्मीदवार को जीताने के लिए दोनों ने रणनीति पर चर्चा की.
बहरहाल इस मुलाकात के बड़े राजनैतिक मायने हैं. यह मुलाकात भारत की राजनीति को बदल देने वाला है. यह सभी जानते हैं कि देश की सत्ता का रास्ता यूपी की 80 लोकसभा सीटों से होकर ही गुजरता है. 1993 में पहले भी दोनों मिलकर भाजपा को हरा चुके हैं, 2019 में अगर दोनों साथ आते हैं तो एक बार फिर विजय के रथ पर सवार होकर उड़ रही भाजपा धाराशायी हो सकती है. मायावती और अखिलेश मिलकर भाजपा के हार और अपनी जीत की इबारत लिख सकते हैं. वक्त और बहुजन समाज की यही मांग है.

शासक बनना है तो बहुजन थ्योरी अपनानी ही होगी
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