सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने की कोशिश- रिहाई मंच

0

लखनऊ। रिहाई मंच ने मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकारों के जाने-माने पैरोकारों के घरों पर हुई छापेमारी और उनकी गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करते हुए तत्काल रिहाई की मांग की. मंच ने सुधा भारद्ववाज, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, वेराॅन गोंजाल्विस, आनंद तेलतुंबडे, वरवर राव, फादर स्टेन स्वामी, सुसान अब्राहम, क्रांति और नसीम जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं पर इस हमले को अघोषित आपातकाल कहा.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मोदी जब भी राजनीतिक रुप से फंसते हैं उनकी जानपर खतरे का हौव्वा खड़ा हो जाता है- कभी इशरत जहां को मार दिया जाता है तो आज मानवाधिकार-लोकतांत्रिक अधिकारवादी नेताओं, वकीलों और षिक्षाविदों की गिरफ्तारी हो रही है. अच्छे दिनोें के नाम पर जिस मध्यवर्ग को वोट बैंक बनाया गया सरकार उसे कुछ भी दे पाने में विफल रही. इस असफलता को छुपाने के लिए ‘अरबन नक्सली‘ की झूठी कहानी गढ़ी गई है.

सुधा भारद्वाज का बस इतना जुर्म है कि वो आदिवासी जनता के हक-हुकूक की बात करती हैं तो वहीं गौतम नवलखा सरकारी दमन की मुखालफत करते हैं. तो वहीं आनंद तेलतुबंडे बाबा साहेब के विचारों को एक राजनीतिक षिक्षाविद के रुप में काम करते हैं. दरअसल सच्चाई तो यह है कि छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में चुनाव होने को हैं और जनता भाजपा के खिलाफ है. ऐसे में जनता की लड़ाई लड़ने वालों की गिरफ्तारी सरकार की खुली धमकी है.

मुहम्मद शुऐब कहते हैं कि सनातन संस्था की उजागर हुई आतंकी गतिविधियों से ध्यान बंटाने की यह आपराधिक कोषिष है जिसकी कमान मोदी-षाह के हाथ में है. एक तरफ पंसारे, कलबुर्गी, दाभोलकर, लंकेष की सनातन संस्था हत्या कर रही है दूसरी ओर मोदी पर हमले के नाम पर इस तरह की गिरफ्तारियां साफ करती हैं कि जो तर्क करेगा वो मारा जाएगा या उसे जेल में सड़ाया जाएगा.

रिहाई मंच ने कहा कि यह कार्रवाई असंतोष की आवाजों को दबाने और सामाजिक न्याय के सवाल को पीछे ढकेलने की सिलसिलेवार कोषिष का चरम हिस्सा है. भीमा कोरेगांव मामले को माओवाद से जोड़ा जा रहा है और उसके मुख्य अभियुक्त संभाजी भिडे को संरक्षण दिया जा रहा है. यह मोदी की दलित विरोधी नीति नया पैतरा है.

Read it also-गुजरात पुलिस ने बैन की सचिवालय में दलित कार्यकर्ताओं की एंट्री!
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast
 

पूँजीवादी ब्राह्मणवाद के नायक हैं अटल बिहारी वाजपेयी

पिछले लगभग दस वर्षों से सक्रिय राजनीतिक जीवन से विरत व अस्वस्थ रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की 16 अगस्त 2018 को मृत्यु हो गयी. उन्होंने सामान्य व्यक्ति से कहीं ज्यादा 93 वर्ष का जीवन जिया. उन्होंने 80 वर्ष की उम्र तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया एवं उसके पश्चात भी सक्रिय थे. वे ‘जी भर जिए और मन से मरे.’ कोई ऐसा व्यक्ति जो सामान्य परिवार में पैदा हुआ हो, भारत के प्रधानमंत्री का पद प्राप्त करे और उसकी 93 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो, तो उस व्यक्ति के जीवन को शानदार कहा जा सकता है. लेकिन जिस तरह भारतीय जनता पार्टी व मीडिया इनको महान बनाने का अभियान चला रही है वह न केवल निन्दनीय है बल्कि महान विभूतियों का अपमान भी है. हालांकि इस अभियान में न तो भाजपा, न ही मीडिया, वाजपेयी को महान बनाने वाले तथ्यों व तर्कों का विवरण उपलब्ध करा पा रही है, सिवाय इसके कि वे कवि हृदय, प्रखर वक्ता व विरोधियों की भी पसन्द थे.

जो व्यक्ति तीन बार प्रधानमंत्री रहा हो क्या उसके खाते में एक भी कार्य ऐसा नहीं है जिसको गिनाकर कहा जाये कि वाजपेयी जी ने यह कार्य किया है जिससे भारत की सामान्य जनता को लाभ हुआ है. जिस दौर में वी.पी. सिंह जैसे न्यूनतम कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सरकारी सेवाओं में मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू किया, जिससे देश की लगभग 52 प्रतिशत पिछड़ी जनंसख्या के लिए अवसर की समानता का अधिकार प्राप्त हुआ. ऐसे दौर में अटल बिहारी वाजपेयी के 6 वर्ष के कार्यकाल में ऐसा कोई कार्य है जिससे सामान्य जन का भला हुआ है? उत्तर होगा नहीं. वास्तव में वाजपेयी ने ऐसा कोई कार्य किया ही नहीं है जिसे भाजपा व मीडिया गिना सके. उल्टे उन्होंने ऐसे कई किये हैं जिससे पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों/जनजातियों, मजदूरों व नौकरीपेशा जनता के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. भाजपा जिस विचारधारा की पोषक है उसमें इसी तरह के व्यक्तियों को महान बनाया जाता है. शुरुआत राम से होती है, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी जैसे व्यक्तियों की इसी तरह महान बनाया गया.

आइये अब वाजपेयी जी के कार्यों का विवरण देखते हैं जो उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में किया जिससे साधारण जन के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. इन कार्यों का प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ा है वरना ये कार्य इतने बड़े हैं कि भाजपा व मीडिया इसकी चर्चा करने से अपने आपको रोक नहीं पाते. पहला कार्य उन्होंने अपने 13 दिन के कार्यकाल में किया था जब वे संवैधानिक व नैतिक रूप से सक्षम नहीं थे. क्योंकि उन्होंने केवल प्रधानमंत्री पद की शपथ लिया था, लोक सभा का विश्वासमत उन्हें प्राप्त नहीं हुआ था और उस लोकसभा का विश्वास उन्हें मिला भी नहीं. अन्ततः तेरहवें दिन उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा. वह कार्य था- एक अमेरिकी कम्पनी ‘एनरान’ को बिजली बनाने की अनुमति देना. उनहोंने न केवल अनुमति दिया था बल्कि उसके द्वारा बनायी गयी बिजली को रु.2.40 की दर से खरीदने की गारण्टी भी दिया था और यह दर डालर का मूल्य बढ़ने के साथ बढ़ती रहनी थी. उस समय यह आकलन किया गया था कि पांच साल बाद जब एनरान कम्पनी बिजली बनाकर देगी तो डालर का मूल्य बढ़ा होगा और बिजली रु. 6.0 से रु 7.0 प्रति यूनिट की दर से खरीदनी पड़ेगी. जबकि अन्य पब्लिक सेक्टर की कम्पनियाँ उस समय रु. 00.70 से रु. 1.50 की दर से बिजली देने को तैयार थीं. हालांकि एनराॅन कम्पनी अब बंद हो चुकी है. क्या इसका उल्लेख भाजपा और मीडिया कर सकती हैं?

वाजपेयी जी को याद करने का एक और कारण हो सकता है कि उन्होंने कांग्रेस द्वारा लागू की गयी नई आर्थिक नीतियों को और तेज गति से लागू किया. नई आर्थिक नीति का एक प्रमुख घटक था निजीकरण. इसके लिए वाजपेयी जी ने एक मंत्रालय बनाया जिसका नाम रखा ‘विनिवेश मंत्रालय’. इसके मंत्री बनाये गये थे अरुण शौरी. अरुण शौरी पत्रकार थे और बाबासाहब अम्बेडकर को ‘तुच्छ व्यक्ति’ सिद्ध करने के लिए एक पुस्तक लिखे थे ‘Worshiping of False God’ . वाजपेयी ने उनकी प्रतिभा और दृष्टि को पहचान कर सरकारी संस्थाओं को बेचने का कार्य सौंपा. भला सरकारी संस्थाओं को बेचने के लिए ‘अम्बेडकर विरोधी’व्यक्ति से बेहतर कौन हो सकता था. क्योंकि बाबासाहब राष्ट्रीयकरण के समर्थक जो थे. अरुण शौरी ने इस कार्य को बखूबी किया. अरुण शौरी ने जिन संस्थाओं को बेचा उनमें ‘बाल्को’ का मामला काफी चर्चित हुआ. दरअसल 2001 में बाल्को की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रु.551.5 करोड़ में बेची गयी. 51 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का मतलब होता है मालिकाना हक बेचना. जबकि बाल्को के पास उस समय रु. 300.00 करोड़ का फिक्स डिपाजिट था और रु.200.00 करोड़ का निवेश बाल्को ने अन्य कम्पनियों में किया था. बाल्को को रु. 551.50 करोड़ में खरीदने वाले को रु. 500.00 करोड़ एफ.डी. और निवेश के रूप में तुरंत मिल गये साथ ही साथ 3000 एकड़ की बाल्को की जमीन भी मिली. इस सौदे पर काफी हो हल्ला भी हुआ. वास्तव में उस समय बाल्को की कीमत रु. 4000.00 करोड़ से ज्यादा थी. जिसे ओने-पौने दामों में बेच दिया गया. क्या भाजपा और मीडिया को इसका जिक्र कर सकती है?

एक और कार्य का जिक्र भाजपा और ‘मीडिया को वाजपेयी के द्वारा किये गये महान कार्यों में करना चाहिए. वह कार्य है नई पेंशन योजना को लागू करना. वाजपेयी की सरकार ने 1 अप्रैल 2004 के पश्चात सरकारी नौकरी पाने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए नई पेंशन योजना लागू किया. इसका भी जिक्र भाजपा और मीडिया के लोग नहीं कर रहे हैं. वे इसका जिक्र कर भी नहीं सकते. क्योंकि जैसे ही नई पेंशन योजना का जिक्र करेंगे तो सवाल खड़ा होगा कि पुरानी पेंशन योजना में क्या था, तो वाजपेयी की महानता खतरे में पड़ जायेगी. वाजपेयी सरकार ने केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए 01/04/2004 से पेंशन बन्द कर दिया. तत्पश्चात धीरे-धीरे राज्य सरकारों ने भी राज्य कर्मचारियों का पेंशन छीन लिया. केवल तमिलनाडु में राज्य कर्मचारियों को पेंशन दी जाती है शायद इसलिए कि वहाँ कोई ब्राह्मणवादी सत्ता में नहीं आया. पेंशन से जुड़े एक और पहलू का जिक्र यहाँ आवश्यक है. वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में जहाँ कर्मचारियों से पेंशन छीन ली गयी वहीं उन्हीं के कार्यकाल में राज्य विधानमण्डलों, लोकसभा और राज्य सभा के सभी सदस्यों के पेंशन को न केवल बढ़ाया गया बल्कि पेंशन की शर्तों में छूट भी दी गयी. 2004 में यह संशोधन लागू किया गया कि चुनाव आयोग द्वारा गजट होने के पश्चात ही माननीय सदस्यगण पेंशन पाने के हकदार हो जायेंगे, जबकि इसके पूर्व निश्चित कार्यकाल पूरा करने के पश्चात ही सदस्यगण पेंशन के हकदार होते थे.

एनरान समझौता, बाल्को विनिवेश, पेंशन बन्द करने के साथ एक और उदाहरण देना उचित होगा जिससे अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व की उचित समीक्षा की जा सके. वह उदाहरण है 1999 में शहरी भूमि सीलिंग एण्ड रेगुलेशन एक्ट 1976 को निरस्त करना. कानून बनाते समय इसके उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया गया था कि व्यापक जनहित में नगरीय समूह में भूमि के न्यायसंगत वितरण हेतु इस कानून को बनाया जाना आवश्यक है. क्या 1999 तक शहरी भूमि का न्यासंगत वितरण हो चुका था जो 1999 में इस कानून को निरस्त कर दिया गया?

जहाँ भाजपा और मीडिया मिलकर भी वाजपेयी को महान बनाने वाले एक कार्य का भी उल्लेख नहीं कर पा रही हो वहाँ उपरोक्त चारों कार्यों का उल्लेख वाजपेयी की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है. यदि वाजपेयी जी पर लगे आरोपों जैसे 1942 में स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी तथा सजा माफ गवाह बनना, 1992 में बाबरी ढाँचा गिराने में भूमिका, 2002 में गुजरात दंगा के पश्चात मोदी को मुख्यमंत्री पद से बर्खस्त न करना, आदि को नजरअंदाज कर दिया जाये तो भी उनके व्यक्तित्व में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे उन्हें महान माना जाये. उन्होंने और उनके मातृ संगठन ने सामन्तों, रजवाड़ों एवं पूंजीपतियों के हित में कार्य किया है. बैंकों व बीमा कम्पनियों के राष्ट्रीकरण का विरोध, प्रिवी पर्स समाप्त करने का विरोध, मंडल कमीशन का विरोध जैसे कार्यों से वाजपेयी की प्रतिबद्धता स्वंय सिद्ध है. अटल बिहारी वाजपेयी ब्राह्मण जाति में पैदा हुए थे, ब्राह्मणों की श्रेष्ठता स्थापित करने वाले ‘मनु’को आदर्श मानते थे, वर्ण व्यवस्था को पुष्पित-पल्लवित करने वाले अदृश्य संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’की पाठशाला में शिक्षित प्रशिक्षित हुए थे, संघ की रणनीति के अनुसार ही अपने व्यक्तित्व को उदार चेहरे से ढके हुए रहते थे. उन्होंने आजीवन पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की नीतियों का पक्ष लिया तथा प्रधानमंत्री बनने पर उन नीतियों को बढ़-चढ़कर लागू किया एवं जाति जनगणना के प्रस्ताव को निरस्त किया. वाजपेयी को पूंजीवादी ब्राह्मणवाद के नायक के रूप में याद किया जायेगा.

डा. अलख निरंजन Read it also-अटलजी को लेकर बहुजनों और सवर्णों में वैचारिक टकराव कितना जायज
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

आरक्षण के खिलाफ उतरी भाजपा, तेज हुआ संघर्ष

नई दिल्ली। बिहार में इन दिनों आरक्षण को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई है। कोई दलित आरक्षण के विरोध में बयान दे रहे हैं तो कोई सवर्णों को भी आरक्षण देने की मांग करने लगे हैं। राजनीतिक मंच से निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की जा रही है।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद सीपी ठाकुर ने 26 अगस्त को दलित आरक्षण का विरोध करते हुए आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने की मांग की. सीपी ठाकुर ने कहा कि, “दलितों की सिर्फ दो पीढ़ियों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाना चाहिए, और इसके बाद उन्हें आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए.

दलित आईएएस अधिकारी के बेटे को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.” उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए कहा कि, “आज देश में सवर्णों की हालत काफी खराब हो चुकी है. इस समाज के पिछड़े लोगों को भी आरक्षण मिलना चाहिए.”

यह पहली बार नहीं है जब भाजपा सांसद ने आरक्षण को लेकर इस तरह का बयान दिया है. इससे पहले भी वे जाति आधारित आरक्षण को समाप्त करने की वकालत कर चुके हैं. वे आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने के पक्ष में हैं.

वहीं, दूसरी ओर एनडीए के घटक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने एक राजनीतिक मंच से निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग की. उन्होंने कहा कि, “सरकारी क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही है. इसलिए निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करने की जरूरत है. साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे लोगों के अधिकार का हनन हो रहा है. जज अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं. दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब सवर्ण के मेधावी बच्चे जज नहीं बन सकते हैं. यह संविधान का उल्लंघन है. इसलिए इस प्रणाली में भी बदलाव होना चाहिए.”

Read it also- दलित संगठनों की 25 अगस्त को महाबैठक
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

एशियाड में पदक जीत आदिवासी खिलाड़ी ने देश को दिलाया गौरव

नई दिल्ली। ओडिशा के जो आदिवासी इलाके अभी तक नक्सली हिंसा के लिए चर्चा में थे, अब वे दुति चंद की वजह से सुर्खियों में है. जकार्ता में चल रहे एशियाड खेलों में दुति चंद ने रजत पदक जीता है. दुति स्वर्ण पदक जीतने से महज 0.02 सेकंड से पिछड़ गई. इस शानदार खिलाड़ी की जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरे दो दशक बाद भारत के किसी खिलाड़ी ने 100 मीटर की रेस में कोई पदक जीता है. दुति ओडिशा से हैं और आदिवासी हैं.

दुति के साथ ही जिन दो और महिला खिलाड़ियों से देश को पदक की उम्मीद है, उनका नाम जौना मुर्मू और पूर्णिमा हेम्ब्रम है. ये दोनों भी आदिवासी हैं और ओडिशा की हैं. जहां तक दुति की बात है, वो 2016 के रियो ओलिम्पिक में भी फर्राटा दौड़ी थीं. दुति की सफलता में उस माहौल का खासा योगदान है जिसमें वो पली-बढ़ी हैं.

आदिवासी समाज में खेल को लेकर एक खास तरह का रुझान होता है. जंगल की विपरीत परिस्थितियां, मीलों चलकर पानी लाने की मजबूरी, जंगली जानवरों और प्राकृतिक कहर उन्हें चट्टान सा मजबूत बना देता है. इसलिए आदिवासी कुदरती तौर पर खिलाड़ी होते हैं. लेकिन उनको मौकों की कमी और संसाधन के अभाव से जूझना पड़ता है.

हालांकि इस बीच ओडिशा के भुवनेश्वर में चल रहा कलिंगा संस्थान इन आदिवासी खिलाड़ियों के लिए वरदान साबित हुआ है. इस संस्थान की नींव पेशे से शिक्षक अच्युत सावंत ने रखी है. सावंत उन हजारों आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने में जुटे हैं, जो सावंत के न होने पर शायद माओवादिओं की गिरफ्त में होतें.

दुति की सफलता जहां देश के लिए गौरव की बात है तो साथ साथ उन आदिवासी बच्चों के लिए एक प्रेरणा भी है जो आज भी मुख्यधारा में आने के लिए छटपटा रहे हैं.

Read it also- दलित संगठनों की 25 अगस्त को महाबैठक
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

मोदी को क्यों हराना चाहता है ये नोबेल विजेता

नई दिल्ली। नोबल पुरस्कार से सम्मानित ‘भारत रत्न’ अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी गैर सांप्रदायिक पार्टियों से एकजुट होने की अपील की है ताकि एनडीए को सत्ता में आने से रोका जाए.

अमर्त्य सेन ने बीजेपी पर हमला करते हुए उसे एक वो बीमार पार्टी बताया, जिसने 55 फीसदी सीटों के साथ सत्ता हासिल कर ली, जबकि उसे केवल 31 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे. सेन बीजेपी को गलत इरादों से सत्ता में आई पार्टी मानते हैं. क्या माना जाए कि अमर्त्य सेन के मुताबिक देश की जनता ने ‘गलत इरादों वाली पार्टी’ को देश सौंपा है?

सवाल उठता है कि आखिर अमर्त्य सेन को एनडीए या फिर मोदी सरकार से क्या नाराजगी है?

दरअसल साल 2014 में भी अमर्त्य सेन ने मोदी के पीएम पद की दावेदारी का जोरदार विरोध किया था. अमर्त्य सेन की अपील विपक्ष के लिए भाजपा को घेरने का मौका हो सकती है. हालांकि भाजपा ने भी सेन पर पलटवार किया है और अमर्त्य सेन की तुलना उन बुद्धिजीवियों से की है जिन्होंने हमेशा समाज को गुमराह किया.

अमर्त्य सेन को साल 1998 में अर्थशास्त्र के लिये नोबल पुरस्कार मिला था. बंगाल की मिट्टी से उभरे अर्थशास्त्र के नायक अमर्त्य सेन ने गरीबों, स्वास्थ और शिक्षा को लेकर अपने विचारों से दुनिया में सबका ध्यान खींचा था. लेकिन आज वो एनडीए को सत्ता में आने से रोकने की अपील कर देश में सबका ध्यान खींच रहे हैं. खासबात ये है कि अमर्त्य सेन को एनडीए सरकार ने ही ‘भारत-रत्न’ दिया था. उस वक्त एनडीए सरकार के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी थे.

लेकिन साल 2014 आते-आते अमर्त्य सेन की एनडीए को लेकर मानसिकता बदल गई. साल 2014 में जब बीजेपी ने गुजरात के तत्तकालीन सीएम नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तो अमर्त्य सेन ने इसका विरोध किया. सेन ने मोदी की पीएम पद की दावेदारी पर सवाल उठाए. जिसके बाद बीजेपी के पश्चिम बंगाल से नेता चंदन मित्रा ने ‘भारत-रत्न’ वापस लेने तक की मांग कर डाली थी.

अमर्त्य सेन के विचारों को निजी विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता कर कांग्रेस और वामदलों ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला था. इसके बाद से लगातार ही अमर्त्य सेन मोदी सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि पीएम मोदी को आर्थिक विकास के मामलों की समझ नही हैं. उन्होंने नोटबंदी को दिशाहीन मिसाइल कहते हुए गलत फैसला बताया था.

Read it also- गंभीर बीमारी से जूझ रहे इरफान खान ने लिया ये फैसला
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

क्या भारत में कंकालों का म्यूजियम संभव है?

यूरोप के जर्मनी और अफ्रीका के रवांडा जैसे कुछ देशों में कई सारे होलोकॉस्ट म्यूजियम हैं स्कूल कॉलेज के बच्चों को वहां दिखाया जाता है कि हिटलर के दौर में या हुतु तुत्सी जातीय हिंसा के दौर में किस नँगाई का नाच हुआ था, कैसे पढ़े लिखे समझदार लोग जानवर बन गए थे और एकदूसरे की खाल नोचने लगे थे।

मरे हुए लोगों को खोपड़ियां, कंकाल, जूते, कपड़े, उनके बर्तन, फर्नीचर इत्यादि सब सजाकर रखे गए हैं ताकि अगली पीढ़ी देख सके कि वहशीपन क्या होता है और धार्मिक नस्लीय जातीय हिंसा से क्या क्या संभव है।

भारत मे भी हर जिले में भी ऐसा ही कम से कम एक “दंगा, छुआछूत और बाबा म्यूजियम” होना चाहिए जिसमें उस इलाके में हुए धार्मिक जातीय दंगों का विवरण और फोटो इत्यादि रखे गए हों। छुआछूत के आधार पर उस इलाके के पाखण्डी सवर्ण द्विजों ने सालों साल तक कैसे अपनी ही स्त्रियों और दलितों, यादवों, अहीरों, कुर्मियों, कुम्हारों, किसानों, मजदूरों, शिल्पियों को जानवर सी जिंदगी में कैद रखा, कैसे मूर्ख बनाकर गरीबों की जमीनों और औरतों को लूटा – ये सब बताया जाना चाहिए।

कैसे यज्ञ हवन और पूजा पाठ करने वालों, ज्योतिषियों, गुणियों कान फूंकने वाले ओझाओं ने औरतों और शूद्रों दलितों को शिक्षा और रोजगार सहित पोष्टिक भोजन और जीवन के अधिकार से वंचित रखा ये दिखाया जाना चाहिए।

कितने बाबाजन, योगियों, रजिस्टर्ड भगवानों और धर्मगुरुओं ने कितने बलात्कार किये, कितने मर्डर किये, कितनी जमीने दबाई कब कोर्ट ने उन्हें दबोचा, वे कितने साल जेल में रहे – ये सब विस्तार से बताना चाहिए।

अगली पीढ़ी अगर इन सब मूर्खताओं को करीब से देख समझ ले तो उसे कावड़ यात्रा, कार सेवा, देवी देवता के पंडालों, धार्मिक दंगों, बाबाओ के बलात्कार और जातीय धार्मिक दंगों सहित छुआछूत भेदभाव और अंधविश्वास से बचाया जा सकता है।

लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि ये सब बताने की बजाय भारतीय परिवार अपने बच्चों को अपने मूर्ख पारिवारिक गुरुओं, देवी देवताओं के पंडालों और आत्मा परमात्मा की बकवास सिखाने वाले शास्त्रों की गुलामी सिखाते हैं। हर पीढ़ी बार बार उसी अंध्विश्वास, छुआछूत और कायरता में फंसती जाती है।

भारत मे व्यक्ति और समाज की चेतना का एक सीधी दिशा में रेखीय क्रमविकास नहीं होता बल्कि यहां सब कुछ गोलाई में घूम फिरकर वहीं का वहीं पुराने दलदली गड्ढे में वापस आ जाता है। इसीलिए ये मुल्क और इसकी सभ्यता कभी आगे बढ़ ही नहीं पाती, हर पीढ़ी उन्हीं बीमारियों में बार बार फसती है जिन्हें यूरोप अमेरिका के समाज पीछे छोड़ चुके हैं।

भारत के धर्म और सँस्कृति को इतना सक्षम तो होना ही चाहिए कि अपने लिए नए समाधान न सही कम से कम नई समस्याएं ही पैदा कर ले। बार बार उन्हीं गड्ढों में गिरना भी कोई बात हुई?

संजय श्रमण

Read it also-बीजेपी की ‘दलित जोड़ो’ मुहिम को पीएम मोदी ने दी धार
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

शिवसेना नेता राउत ने उठाए सवाल, ‘क्या 16 अगस्त को ही हुआ था वाजपेयी का निधन?’

मुंबई। शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने रविवार को सवाल उठाया कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त को ही हुआ था या उस दिन उनके निधन की घोषणा की गई जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वतंत्रता दिवस भाषण बाधित न हो. राज्यसभा सांसद और शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादक राउत ने वाजपेयी के निधन के दिन को लेकर उठाए गए सवाल का कोई स्पष्टीकरण या कारण वाजपेयी के निधन की घोषणा एम्स द्वारा 16 अगस्त को की गई थी और उनके निधन का वक्त भी बताया गया था. राउत ने कहा, ‘हमारे लोगों के बजाए हमारे शासकों को पहले यह समझना चाहिए कि ‘स्वराज्य’ क्या है. वाजपेयी का निधन 16 अगस्त को हुआ, लेकिन 12-13 अगस्त से ही उनकी हालत बिगड़ रही थी. स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय शोक और ध्वज को आधा झुकाने से बचने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लाल किले से अपना विस्तृत संबोधन देना था, वाजपेयी ने इस दुनिया को 16 अगस्त को छोड़ा (या जब उनके निधन की घोषणा की गई).’

राउत ने कहा, ‘यह परंपरा इस साल भी जारी रही. स्वतंत्रता दिवस समारोह पर हमले को अंजाम देने की साजिश रच रहे 10 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया. भारी मात्रा में हथियार जब्त किए गए. इसलिए (इसके बाद) प्रधानमंत्री ने निर्भय होकर स्वतंत्रता दिवस मनाया.’ राउत ने लिखा, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों के लिये कई घोषणाएं कीं (अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में). उनके भाषण की शैली ऐसी थी कि पूर्ववर्ती सरकारों ने कुछ नहीं किया, इसलिये स्वतंत्रता (अब तक) बेकार थी.’

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जहां कह रहे हैं कि रिश्वत लेने वालों पर कार्रवाई की जा रही है, वहीं घूसखोरी कम नहीं हुई है. शिवसेना नेता ने कहा, ‘यह सच है कि कल्याण योजनाएं टैक्स के पैसे से चलती हैं जो ईमानदार लोग चुकाते हैं. यह भी सच है कि प्रधानमंत्री का विदेश दौरा भी उसी रकम से संपन्न होता है और विज्ञापनों पर खर्च होने वाले हजारों करोड़ रूपये भी इसी के जरिये हासिल होते हैं. यह नया तरीका है जिसके तहत ‘स्वराज्य’ काम कर रहा है.’

इसे भी पढ़ें-सांप्रदायिक राजनीति के भगवा रंग के खिलाफ ताल ठोकता आदिवासी धर्म
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

दलित-पिछड़े चाहते हैं कि उनके बीच का व्यक्ति बने सीएम: अशोक तंवर

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ लंबे समय से चले आ रहे मतभेद की खबरों के बीच प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अशोक तंवर ने मुख्यमंत्री पद के लिए परोक्ष रूप से अपनी दावेदारी पेश करते हुए कहा है कि राज्य के दलित, पिछड़े और दूसरे वंचित वर्गों की यह आकांक्षा है कि अगला मुख्यमंत्री उनके बीच से बने.

तंवर ने मुख्यमंत्री पद के बारे में फैसले को कांग्रेस नेतृत्व का विशेषाधिकार करार दिया, लेकिन साथ ही कहा कि अगले साल प्रस्तावित राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बिना किसी चेहरे के जनता के बीच जाना चाहिए. चुनाव में जीत के बाद जनभावनाओं के अनुसार मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का फैसला किया जाना चाहिए. उन्होंने ‘भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ” राहुल गांधी जी चाहते हैं कि मुख्यमंत्री की बात आए तो पांच-सात विकल्प होने चाहिए. विधायक और सांसद बनने की बात आए तब भी कई विकल्प होने चाहिए. अलग अलग वर्गों से हमारे पास विकल्प होने चाहिए. मुख्यमंत्री पद के दौड़ में शामिल होने के बारे में पूछे जाने पर हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ”मैं अपनी दावेदारी क्यों खारिज करूं? राहुल जी ने कठिन समय में मुझे अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी. हरियाणा के दलितों, पिछड़ों और वंचित वर्गों की यह अकांक्षा और सपना है कि मुख्यमंत्री उनके बीच से हो. इसी भावना के साथ लोग हमारे साथ जुड़े हुए हैं. जिन लोगों को कभी भागीदारी नहीं मिली उसको मौका मिलना चाहिए. चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के सवाल पर तंवर ने कहा, ”मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का विशेषाधिकार कांग्रेस अध्यक्ष और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का है. अमूमन यह देखा गया है कि जहां हम विपक्ष में होते हैं वहां हम बिना चेहरे के चुनाव में जाते हैं. इसके बाद जनता का विश्वास जिसके ऊपर होता है वही अगला मुख्यमंत्री होता है. मैं समझता हूं कि (हरियाणा में भी) पार्टी के लिए यही बेहतर है.

इसे भी पढ़ें-9 अगस्त के आंदोलन के पहले ही एससी-एसटी एक्ट पर संशोधन लाने के खेल को समझिए

  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

गांव गुढ़ा में 19वें दिन भी दलित समाज के लोगों की भूख हडताल रही जारी

0
DJLI¼Y÷YÃFZÂF 06: ¦FFÔ½F ¦F¼PXÞF ¸FZÔ A³FVF³F ´FS ¶F`NXZ Qd»F°F ÀF¸F¼QF¹F IZY »FFZ¦FÜ

बाबैन। गांव गुढ़ा की हरिजन चौपाल में अखिल भारतीय अंबेडकर महासभा गुढा के द्वारा भीख नही भागेदारी, देश की हर ईट में चाहिए हिस्सेदारी कार्यक्रम के तहत एससीएसटी व ओबीसी समाज के लोगों की संविधानिक अधिकारों की रक्षा व अधिकार हासिल करने के लिए भूख हडताल लगातार 19 वें दिन जारी रही. इस भूख हडताल में अखिल भारतीय अंबेडकर महासभा गुढा के प्रधान धर्मबीर सिंह, सुभाष, विकास कुमार, अंग्रेज, महिला सदस्य रीना देवी, बाला देवी, मोनिका, सुमन, कृष्णा, लाजो, रोशनी अंगुरी, सुनीता व अन्य ग्रामीण शामिल रहे. आज गांव गुढ़ा में कांग्रेस पार्टी ने दलित समाज के लोगों का भूख हड़ताल में शामिल होकर समर्थन किया. कांग्रेस पार्टी से जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन मेवा सिंह ने समर्थन करते हुए कहा कि आप सभी अपने हकों की लड़ाई के लिए लड़ रहे है जो कोई गलत बात नही है. उन्होनें कहा कि किसी भी समाज के लोगों को अपने हकों की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ने का अधिकार है और सरकार दलित समाज के लोगों की मांगे जल्द पूरा करनी चाहिए. उन्होनें कहा कि इस संर्षष की लड़ाई में कांग्रेस पार्टी आप सभी के साथ है.

धर्मवीर सिंह ने बताया कि अनशन पर बैठने के कारण रानी देवी व लाजो देवी की हालत बहुत खराब हो चुकी है जिन्हें इलाज के लिए हस्पताल में ले जाया गया था और अब दोनों महिलाओं की सेहत में सुधार है. धर्मबीर ने कहा कि स्पेशल कम्पोनेट प्लान लागू किया जाए और एसीएसटी व ओबीसी समाज के अधिकारों की रक्षा की जाए. उन्होंने कहा कि डा. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित दलितों के अधिकारों को लागू किया जाए. उन्होंने कहा कि जब तक दलित सामज की मुख्य मांगों को पूरा नही किया जाएगा तब तक भूख हड़ताल लगातार जारी रहेगी. गांव के सरपंच मुकेश कुमार ने गांव में दलित समाज के लोगों को पहले ही समर्थन दिया हुआ है और उन्होंने पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया.

इसे भी पढ़ें-दाऊद के नाम पर बसपा विधायक को धमकी, ‘1 करोड़ रुपये दो वरना तुम्हारे लिए एक गोली काफी है’
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

दलित प्रेरणा स्थल घूमने आई गर्भवती को गार्डों ने पीटा

0

नई दल्ली। रक्षाबंधन पर पति और बच्चों के साथ राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल घूमने आई गर्भवती से मारपीट की गई. यहां की सुरक्षा में तैनात पांच गार्डों पर ही आरोप लगा है. फोटो खींचने पर महिला का गार्डों से विवाद हो गया था. दिल्ली के पुष्प विहार निवासी अमित पटेल ने बताया कि वह रविवार दोपहर परिवार के साथ राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल घूमने आए थे. उनके साथ उनकी गर्भवती पत्नी और बच्चे थे. वह सभी का टिकट लेकर पार्क में प्रवेश किए. घूमने के दौरान पत्नी के कहने पर परिवार के साथ फोटो खींचने लगे. इसका गार्डों ने विरोध किया. इसी बात को लेकर उनके बीच विवाद हो गया और पांच गार्ड उनके साथ मारपीट करने लगे. गार्डों के धक्का देने से पत्नी गिर पड़ी और उसके हाथ में चोट आई. बीच बचाव करने आये एक अन्य परिवार के साथ भी धक्का-मुक्की की गई. महिला की शिकायत पर सेक्टर-20 कोतवाली में एक नामजद समेत पांच गार्डों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है. सभी आरोपित फरार हैं. कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक मनोज पंत ने बताया कि महिला के साथ धक्का-मुक्की की बात सामने आई है. उसके पति ने एक नामजद समेत पांच गार्डों के खिलाफ शिकायत दी थी. पुलिस रिपोर्ट दर्ज कर आरोपितों की तलाश कर ही है.

इसे भी पढ़े-प्रधानमंत्री जी बलात्कार राक्षसों की नहीं आपके देवताओं की प्रवृति रही है!
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

बीजेपी सांसद सीपी ठाकुर बोले, दलितों की सिर्फ दो पीढ़ियों को मिले आरक्षण

पटना। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता और सांसद सीपी ठाकुर ने कहा है कि दलितों की सिर्फ दो पीढ़ियों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाना चाहिए. इसके बाद उन्हें आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. दलित आरक्षण का विरोध करते हुए उन्होंने सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की वकालत की है.

बिहार की राजधानी पटना में बीजेपी नेता ने रविवार को कहा कि सवर्णों की हालत बहुत खराब है. अगर केंद्र सरकार ने उनके लिए तत्काल कोई कदम नहीं उठाया तो देश में नई परेशानी खड़ी हो सकती है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रह चुके सीपी ठाकुर ने कहा, ‘दलित आईएएस अधिकारी के बेटे को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.’

बता दें कि यह कोई पहली बार नहीं है जब सीपी ठाकुर ने दलितों को आरक्षण देने का विरोध किया है. इससे पहले भी वह आरक्षण को खत्म करने के पक्ष में बयान दे चुके हैं.

इससे पहले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल किए थे. शीर्ष अदालत ने पूछा था कि यदि एक आदमी रिजर्व कैटिगरी से आता है और राज्य का सेक्रटरी है, तो क्या ऐसे में यह तार्किक होगा कि उसके परिजन को रिजर्वेशन के लिए बैकवर्ड माना जाए? कोर्ट ने यह सवाल भी किया कि मान लिया जाए कि एक जाति 50 सालों से पिछड़ी है और उसमें एक वर्ग क्रीमीलेयर में आ चुका है, तो ऐसी स्थितियों में क्या किया जाना चाहिए?

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि आरक्षण का पूरा सिद्धांत उन लोगों की मदद देने के लिए है, जो सामाजिक रूप से पिछड़े हैं और सक्षम नहीं हैं. ऐसे में इस पहलू पर विचार करना बेहद जरूरी है.

इसे भी पढें- दलित महिला को हैंड पंप से पानी पीना पड़ा भारी, स्थानीय बदमाशों ने की बुरी तरह पिटाई
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

बीजेपी की ‘दलित जोड़ो’ मुहिम को पीएम मोदी ने दी धार

नई दिल्ली। बीजेपी को 2014 में देश की सियासत का सिरमौर बनाने में दिल खोलकर साथ देने वाले दलितों का 2019 में भी पार्टी ऐसा की जुड़ाव चाहती है. वेस्ट यूपी के शब्बीरपुर और दो अप्रैल की हिंसा के बाद बीजेपी से दलितों में दिख रही दूरी को पाटने के लिए बीजेपी की तरफ से छेड़ी हुई ‘दलित जोड़ो’ मुहिम को रविवार को मन की बात में पीएम ने भी धार दी. उन्होंने खुद की सरकार की तरफ से एससी-एसटी के अधिकारों को सुरक्षित करने का हवाला देकर हमदर्द साबित करने की कोशिश की. इसके साथ रक्षाबंधन पर बीजेपी की महिला वर्करों ने दलित बस्तियों में जाकर राखी बांधी और भाइयों से तोहफे के तौर पर 2019 में कमल का साथ मांगा.

बीजेपी की दलितों की नाराजगी की भनक लगने के बाद 2017 से ही उनको साधने में जुटी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों ने खुलकर बीजेपी के पक्ष में वोट दिया था. जिसका असर यह हुआ था कि दलितों की पार्टी कही जाने वाली बीएसपी अर्श से फर्श पर आ गई थी.

अपनो (दलितों) के मुंह मोड़ लेने से तीन बार यूपी की सीएम रहने वाली मायावती की पार्टी को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली थी. 2017 में भी वेस्ट के दलितों के दिल में बीजेपी को लेकर झुकाव दिखा. यूपी में बीजेपी के सत्ता में आने की एक वजह दलितों का बड़ा हिस्से का कमल के पक्ष में खड़ा होना माना गया था, लेकिन यूपी में बीजेपी की सरकार बनते ही जून 2017 में सहारनपुर में जातीय हिंसा हुई.

शब्बीरपुर में मकान जलाए गए. दलित समाज के युवकों की हत्या कर दी गई. उसको लेकर शब्बीरपुर देश और दुनिया में सुर्खी बना था. भीम आर्मी के चंद्रशेखर को जेल भेजने और मायावती ने हमदर्दी दिखाकर राज्यसभा की सदस्यता छोड़ने के साथ ही शब्बीरपुर पहुंचने के बाद दलित बीजेपी के खुलेआम विरोध में खड़े हो गए थे. उसके बाद वेस्ट यूपी में दो अप्रैल 2018 की हिंसा में जगह जगह मुकदमे, गिरफ्तारी की कार्रवाई होने से बीजेपी के खिलाफ दलित वेस्ट यूपी में खुलकर सामने आ गया.

मिर्चपुर का हाल: दलितों और जाटों की दूरी मिटा पाएगी मायावती-चौटाला की राखी?
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

हनीप्रीत की डायरी से बड़ा खुलासा…..

0

महिला भक्तों के साथ बलात्कार के आरोप में 20 साल की सज़ा काट रहे डेरा सच्चा प्रमुख बाबा राम रहीम के मामले में जांच एजेंसियों को बड़ी कामयाबी मिली है. राम रहीम की राजदार हनीप्रीत की डायरी के राज खुलने लगे हैं. हनीप्रीत की डायरी जब जांच एजेंसियों के हाथ आई थी तो उसमें कोड ही कोड थे. हनीप्रीत की डायरी के कोड अब डिकोड हो गए हैं. ईडी ने इन कोड्‍स को डिकोड किया है.

बाबा की राजदार हनीप्रीत अभी भी जेल में है. आयकर विभाग के सूत्रों के अनुसार, जब इन कोड को सुलझाया गया तो एक बड़ा खुलासा हुआ. इससे पता चला कि हनीप्रीत की डायरी में लगभग बीस करोड़ रुपए की संपत्ति और लेनदेन की बातें लिखी हुई हैं. आयकर विभाग ने जब हनीप्रीत से इस बारे में जानना चाहा तो कोई जवाब नहीं आया.

हनीप्रीत की डायरी से उसकी काली कमाई का चिट्ठा सामने आया है. हनीप्रीति के पास जो डायरी मिली है, उसमें वायानाड केरला लैंड, मशीन वेट कम करने वाली, हिमाचल की लैंड न्यू, दार्जिलिंग लैंड जैसे कोर्ड वर्ड मिले हैं. अब एजेंसियां इन कोड वर्ड्‍स की जांच कर रही है.

इसे भी पढ़े-उन्नाव रेप केस के चश्मदीद गवाह की मौत, राहुल गांधी का बड़ा आरोप
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

गिर रहा बसपा का जनाधार, संकट में राष्ट्रीय दल की मान्यता

रायपुर। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जनाधार लगातार गिर रहा है. छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा की साख दांव पर है. इन चुनावों में अगर बसपा का वोट प्रतिशत सम्मानजनक न रहा तो उसकी राष्ट्रीय दल की मान्यता भी खतरे में पड़ सकती है. यही वजह है कि इस बार छत्तीसगढ़ में बसपा पूरी ताकत झोंक रही है.

राष्ट्रीय दल की मान्यता बनाए रखने के लिए बसपा को छत्तीसगढ़ में कम से कम तीन सीटें जीतना और कुल छह फीसद वोट हासिल करना जरूरी है. छत्तीसगढ़ के साथ ही मध्य प्रदेश व राजस्थान में बसपा को छह फीसद वोट हासिल करना जरूरी है. ऐसा न हुआ तो हाथी चुनाव चिह्न छिन सकता है.

छत्तीसगढ़ में 2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 6.94 प्रतिशत वोट मिले थे, जो वर्ष 2013 के विधानसभा के चुनाव में घटकर 4.29 प्रतिशत रह गए. 1998 में बसपा के तीन विधायक थे. राज्य बनने के बाद 2003 में पार्टी दो सीटों पर जीतीं, 2008 में भी यह प्रदर्शन दोहराने में कामयाब रही, लेकिन 2013 में पार्टी का सिर्फ एक विधायक ही सदन में पहुंच पाया. इससे साफ है कि बसपा का जनाधार धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. बसपा के प्रदेश प्रभारी एमएल भारती का कहना है कि इस बार हम पूरी ताकत से मैदान में उतरेंगे.

इसे भी पढ़ें-हैंडपंप लगवाकर विधायक ने की दलित परिवार की मदद, पानी पिलाकर पूरी की प्रतिज्ञा
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

वेस्ट यूपी के लिए बीएसपी ने बनाया खास प्लान

नई दिल्ली। बीजेपी के वेस्ट यूपी पर फोकस करने के बाद दूसरे दलों ने भी यहां नजर गड़ा दी हैं. बीएसपी प्रमुख मायावती ने अपनी इस मजबूत सियासी जमीन पर वोटों की फसल लहलहाने के लिए अपने सिपहसालारों को एक सिंतबर से ग्राउंड रिपोर्ट लेने के लिए भेजेंगी. बीएसपी प्रदेश अध्यक्ष हर मंडल में दो दिन बिताकर पार्टी में पक्ष में मौजूदा माहौल की थाह लेंगे. साथ ही वह संगठन के लोगों से खुली चर्चा कर बीजेपी की बनाई रणनीति की काट का खाका तैयार करेंगे. बीएसपी का मसकद दलित, मुस्लिम और पिछड़ों को साधने पर रहेगा.

बीएसपी के सूत्रों के मुताबिक कुशवाहा एक और दो सितंबर को आगरा मंडल में रहेंगे. 3 और 4 को अलीगढ़ मंडल में, 6 और 7 को बरेली मंडल में, 8 और 9 को मुरादाबाद मंडल में, 13 और 14 सितंबर को सहारनपुर मंडल के मुजफ्फरनगर जिले में, 15 और 16 सितंबर को मेरठ मंडल में रहेंगे. दोनों दिन बूथ और सेक्टर स्तर तक के वर्करों के बीच रहेंगे. प्रदेश अध्यक्ष वेस्ट यूपी के बाद 17 से 29 सिंतबर तक आजमगढ़, बनारस, भदोही, झांसी, चित्रकूट, कानपुर में भी इसी तरह वर्करों से चुनावी तैयारियों की थाह लेंगे.

बीएसपी का वेस्ट यूपी से खासा लगाव है. यहां सियासी तौर पर भी वह अक्सर मजबूत साबित हुई है. खुद पार्टी प्रमुख मायावती के सियासी सफर की शुरुआत वेस्ट यूपी से ही हुई थी. उन्होंने पहला चुनाव 1984 में कैराना सीट से लड़ा था. कैराना के चुनाव में उन्हें 45 हजार वोट मिले थे और वह हार गई थीं. 1985 में बिजनौर लोकसभा सीट के उपचुनाव और 1987 में हरिद्वार (अविभाजित यूपी के रहते) से उपचुनाव लड़ा और हार गईं. मायावती 1989 में लोकसभा चुनाव में बिजनौर से सांसद बनी. 1996 और 2002 में वह सहारनपुर जिले की हरौड़ा (अब सहारनपुर देहात) सीट से एमएलए बनीं और सीएम की शपथ ली. 2007 में वेस्ट यूपी से सबसे ज्यादा विधायक बीएसपी के जीते थे. इसी के साथ मायावती का जन्मस्थल गौतमबुद्ध नगर में है और ननिहाल हापुड़ जिले में.

इसे भी पढ़ें-बसपा ने प्रदेश को चार जोन में बांटा, प्रदेश प्रभारियों की बैठक में हुआ फैसला
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

मिर्चपुर का हाल: दलितों और जाटों की दूरी मिटा पाएगी मायावती-चौटाला की राखी?

बसपा सुप्रीमो मायावती ने बुधवार को जब इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अभय चौटाला को राखी बांधी तो हरियाणा के मिर्चपुर कस्‍बे का जाट और दलित समुदाय हैरान नजर आया. इसके 48 घंटे बाद दिल्‍ली हाईकोर्ट ने 2010 में दलितों की हत्‍या के मामले में 20 लोगों की रिहाई के फैसले को पलट दिया. कोर्ट ने शुक्रवार को फैसले में कहा, ‘जाट समुदाय ने जानबूझकर वाल्मीकि समुदाय के लोगों पर हमला किया.’

फैसले में यह भी कहा गया, ‘कोर्ट का यह मानना है कि सबूतों से साफ है कि जिस तरह का नुकसान और तोड़फोड़ हुई वह काफी व्‍यापक स्‍तर पर थी और यह जाट युवकों के छोटे से ग्रुप ने नहीं किया जैसा कि ट्रायल कोर्ट ने समझा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वाल्मीकि बस्‍ती पर यह हमला वास्‍तव में भीड़ ने किया जो कि सुनियोजित और सुव्‍यवस्थित था.’

बता दें कि वाल्मीकि दलित समुदाय में उपजाति है. 2011 में सेशन कोर्ट ने 15 लोगों को सजा सुनाई थी और 82 को रिहा कर दिया था. उस घटना के बाद से गांव में कुछ नहीं बदला है.

गांव में घुसते ही जातिगत बंटवारा साफ दिखता है. कीचड़ भरा रास्‍ता और जहां गंदा पानी भरा है जाट और दलित बस्तियों को अलग करता है. इसे गांववाले ‘लक्ष्‍मण रेखा’ कहते हैं. दलितों के 40 परिवार इस गंदे रास्‍ते के दूसरी तरफ रहते हैं.

21 अप्रैल 2010 को एक कुत्‍ते के भौंकने के बाद जाटों ने दलितों के 18 घरों पर हमला किया. इसके बाद 254 दलित परिवार सुरक्षित जगह के लिए गांव छोड़ गए. कई महीनों तक बेघर रहने के बाद उनमें से कई हिसार के पास एक जमीन के टुकड़े पर बस गए. यह जमीन एक सामाजिक कार्यकर्ता ने दी थी. केवल 40 परिवार मिर्चपुर लौटे. वे भी जल्‍द से जल्‍द गांव छोड़ने की तैयारी में हैं.

इनेलो के बसपा से हाथ मिलाने को चौटाला के राज्‍य की सत्‍ता में आने के अंतिम प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. इनेलो लगभग 15 साल से हरियाणा की सत्‍ता से बाहर है और वह मायावती के साथ मिलकर दलितों को अपने साथ लेना चाहती है. अनुसूचित जाति में वाल्‍मीकि समुदाय की हिस्‍सेदारी 19 प्रतिशत है.

इनेलो नेता और ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह ने पिछले महीने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, ‘राज्‍य की 90 में से 40 सीटों पर बसपा को 7-8 प्रतिशत वोट मिलते हैं. और 60 सीटें ऐसी हैं जहां इनेलो को 30 फीसदी वोट मिलते हैं. ऐसे में बसपा और इनेलो 39 से 40 प्रतिशत वोट हासिल कर सकते हैं और जिससे विधानसभा में आसानी से बहुमत मिल जाएगा.’

दोनों दलों का साथ आना राजनीतिक रूप से सटीक बैठता है क्‍योंकि इनेलो जाटों की पार्टी मानी जाती है और उसका ग्रामीण इलाकों में काफी असर है. लेकिन अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 17 विधानसभा सीटों पर भी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है. 2000 के विधानसभा चुनावों में उसने 13 रिजर्व सीटें जीती थीं.

2005 में उसे कुल नौ सीटें मिली थी और इनमें से छह रिजर्व थी जबकि 2009 में उसकी 31 सीटों में से नौ अनुसूचित जाति वाली सीटें थीं. अगले साल होने वाले चुनावों से पहले दोनों दलों ने वोटों को एकजुट करने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं.

इधर, मिर्चपुर में जाट समुदाय दलितों पर अत्‍याचार से साफ इनकार करता है. जाट समुदाय बसपा-इनेलो के गठबंधन से भी खुश नहीं है. 2010 के हमले के चलते ज्‍यादातर जाट घरों से पुरुषों को गिरफ्तार किया गया. इनमें से कई दोषी भी करार दिए गए.

पेशे से किसान और मामले में आरोपी वजीर सिंह ने बताया, ‘दलितों की सब सुनते हैं लेकिन हमारी कोई नहीं. उनके पास सत्‍ता है क्‍योंकि उनके पास जाटों से ज्‍यादा वोट है. अब इनेलो भी उनके हाथ मिला रही है. वे जीत गए तो उनकी ज्‍यादा सुनी जाएगी.’

वजीर सिंह के पड़ोसी 53 साल के चंद्र प्रकाश ने बताया, ‘चौटाला राजनीतिक लालच में फंस रहे हैं. अगर वह मायावती की सुनेंगे तो हमारी मदद कैसे करेंगे?’ चंद्र प्रकश भी दलितों पर हमले के मामले में आरोपी हैं. एससी-एसटी एक्‍ट को फिर से लागू किए जाने पर भी गुस्‍सा दिखाई देता है. प्रकाश ने आगे कहा, ‘बीजेपी इस कानून को फिर से लेकर आई और चौटाला मायावती से हाथ मिला रहे हैं. ऐसे में हमारे पास केवल एक विकल्‍प बचता है.’

मिर्चपुर के निवासी लेकिन अब अस्‍थायी घर में रह रहे ओमा भगत ने कहा, ‘हमें उम्‍मीद है कि बहनजी हमें यहां से बाहर निकालेगी. हमारे वोट बीजेपी को जाएंगे अगर वह मकान देती है और हमें बसा देती है. मुख्‍यमंत्री ने जगह का उद्घाटन कर दिया है और शिलान्‍यास भी हो चुका है.’ बता दें कि राज्‍य सरकर हिसार के पास धंदूर गांव में दीन दयाल पुरम बसाकर दलितों को वहां पर शिफ्ट करना चाहती है.

मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सात जुलाई को इस प्रोजेक्‍ट की नींव रखी थी. यह आठ एकड़ में बनाया जाएगा. वर्तमान में 200 दलित परिवार एक सामाजिक कार्यकर्ता वेद पाल तंवर की जमीन पर रह रहे हैं. यहां बनाए गए कच्‍चे मकान बांस के सहारे टिके हुए हैं और इनकी छत प्‍लास्टिक से बनी है. पुरानी साडि़यों से घरों के दरवाजे बनाए गए हैं. भगत ने कहा, ‘इससे तो नरक में रहना बेहतर हैं.’

यदि मायावती और चौटाला के ‘राखी’ संबंधों को कोई चीज नुकसान पहुंचा सकती है तो वह है बीजेपी द्वारा नए घरों का निर्माण करना.

इसे भी पढ़े-मुंबई: बहुमंजिला इमारत में लगी आग, 4 की मौत, 16 घायल
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

उन्नाव रेप केस के चश्मदीद गवाह की मौत, राहुल गांधी का बड़ा आरोप

नई दिल्ली। बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर की कथित संलिप्तता वाले उन्नाव बलात्कार और हत्या मामले के प्रत्यक्षदर्शियों में से एक की मौत हो गई जिसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि इसके पीछे साजिश की बू नजर आ रही है. कथित बलात्कार मामले की जांच कर रही सीबीआई ने कहा कि गवाहों की सुरक्षा राज्य पुलिस की जिम्मेदारी है और यह केंद्रीय एजेंसी के कार्यक्षेत्र में नहीं आता.

उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सीबीआई के साथ साझा की गई जानकारी के मुताबिक, यूनुस नाम का गवाह पिछले कुछ समय से कथित तौर पर बीमार चल रहा था. वह माखी गांव में एक परचून की दुकान चलाता था. पीड़िता और विधायक भी इसी गांव में रहते हैं. उन्होंने बताया कि उसे कुछ दिनों से लीवर संबंधी बीमारी थी और पिछले हफ्ते उसकी मौत हो गई थी.

जर्मनी में मौजूद राहुल गांधी ने ट्विटर पर आरोप लगाया कि मामले के मुख्य गवाह की ‘रहस्यमय परीस्थितियों में मौत हुई’ और ‘शव का पोस्टमार्टम किए बिना ही उसे जल्दबाजी में दफनाया गया.’

राहुल ने खबर को रिट्वीट करते हुए कमेंट्स में लिखा, ‘भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर की संलिप्तता वाले उन्नाव बलात्कार एवं हत्या मामले के मुख्य प्रत्यक्षदर्शी की रहस्यमय ढंग से हुई मौत और पोस्टमार्टम के बिना जल्दबाजी में दफनाए जाने से साजिश की बू आती है. क्या ‘हमारी बेटियों के लिए न्याय’ का आपका यह तरीका है, श्रीमान 56?’

यूनुस सीबीआई के उस मामले में एक गवाह था जो विधायक अतुल सिंह सेंगर के भाई और चार अन्य द्वारा बलात्कार पीड़िता के पिता की बुरी तरह पिटाई करने से जुड़ा है. इस पिटाई की वजह से पीड़िता के पिता की मौत हो गई थी.

बलात्कार पीड़िता के पिता की जेल में मौत हो गई थी जहां उसे आर्म्स एक्ट के कथित झूठे आरोपों के तहत रखा गया था. उन्नाव में सफीपुर के मंडल अधिकारी विवेक रंजन राय ने बताया कि यूनुस की मौत शनिवार को लीवर सिरोसिस की वजह से हुई थी. राय ने कहा कि उसका कानपुर, उन्नाव और लखनऊ में इलाज चल रहा था. परिवार के सदस्य पोस्टमार्टम नहीं करना चाहते थे. उन्होंने बताया था कि युनूस तीन महीने से बिस्तर पर था और उसकी मौत घर पर इलाज कराने के दौरान हुई.”

उत्तर प्रदेश पुलिस के सूत्रों ने बताया कि यूनुस के परिवार ने पुलिस को बयान दिया है कि वह 2013 से लीवर की बीमारी से ग्रस्त था और उसकी मौत बीमारी की वजह से हुई. उन्होंने बताया कि यूनुस द्वारा कराए जा रहे इलाज संबंधी दस्तावेज भी पुलिस ने बरामद कर लिए हैं. गुरुवार को बलात्कार पीड़िता के चाचा ने उन्नाव के पुलिस अधीक्षक को एक पत्र लिखकर शव के पोस्टमार्टम की मांग की थी ताकि मौत की सही वजह पता चल सके.

Read it also-दुनिया भर के अम्बेडकरवादियों को जोड़ने वाले राजू कांबले नहीं रहें
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

केरल में भारतीयों की मदद करना चाहते हैं पाकिस्तान के पीएम इमरान खान

इस्लामाबाद। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने गुरुवार को कहा कि पाकिस्तान बाढ़ प्रभावित केरल को किसी भी तरह की मानवीय सहायता मुहैया कराने के लिए तैयार है. साथ ही उन्होंने विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित लोगों को शुभकामनाएं भेजीं.

केरल में आठ अगस्त से मूसलाधार बारिश के कारण 230 से अधिक लोग मारे गए हैं और कम से कम 10.10 लाख लोग अभी भी शिविरों में रह रहे हैं. पिछले सप्ताह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले खान ने केरल के लोगों के प्रति ट्वीटर पर अपना समर्थन व्यक्त किया है.

खान ने एक ट्वीट किया, ‘‘पाकिस्तान के लोगों की तरफ से भारत में केरल में बाढ़ के कारण तबाही झेलने वालों के प्रति प्रार्थना और शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं. हम किसी भी तरह की मानवीय सहायता मुहैया कराने के लिए तैयार हैं.’’

कई देशों ने केरल में बाढ़ राहत अभियानों के लिए सहायता देने की घोषणा की है. संयुक्त अरब अमीरात ने करीब 700 करोड़ रुपया सहायता की पेशकश की है. इसके अलावा कतर ने करीब 35 करोड़ रुपये और मालद्वीव ने 35 लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा की है.

Read it also-सामाजिक बहिष्कार के बाद करीब 300 दलित परिवारों ने अपनाया बौद्ध धर्म, भाजपा को वोट न देने की खाई शपथ
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

छत्तीसगढ़: BSP ने की बड़ी बैठक, कहा- बिना हमारे नहीं बनेगी सरकार

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है. मंगलवार को रायपुर में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों की बैठक न्यू राजेंद्र नगर स्थित गुरु घासीदास सांस्कृतिक भवन में हुई. प्रदेश प्रभारी अशोक सिद्धार्थ ने विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर तैयारी करने के निर्देश दिए.

उन्होंने कहा कि बसपा के बिना कोई सरकार नहीं बनेगी. चुनाव में कांग्रेस सहित अन्य दलों के साथ गठबंधन के सवाल पर प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश वाजपेयी ने कहा कि पार्टी सुप्रीमो मायावती इस पर फैसला लेंगी, बसपा कार्यकर्ता 90 सीटों को लेकर तैयार हैं.

बैठक में प्रदेश प्रभारी अशोक सिद्धार्थ राज्यसभा सांसद, एमएल भारती, भीम राजभर, अजय साहू, विधायक केशव चंद्रा, पूर्व विधायक दाउराम रत्नाकर, दुजराम बौद्ध, बसपा के पर्व विधायक कामदा जोल्हे, पूर्व विधायक लाल साय खूंटे, पूर्व विधायक रामेश्वर खूंटे, सदानंद मार्कण्डेय, एमपी मधुकर, जिला अध्यक्ष, जोन प्रभारी, विधानसभा प्रभारी, संभावित टिकट के दावेदार भी पहुंचे हैं.

अशोक ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करेंगे. 10 से 15 विधायक जीत जाए तो मजबूर सरकार बनेगी, 15 साल में विकास नहीं, बेहाल से लोग छत्तीसगढ़ में परेशान हैं.

छत्तीसगढ़ बसपा प्रभारी राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ का कहना है कि छत्तीसगढ़ में सीटों की स्थिति का आकलन कर पूरी रिपोर्ट मायावती को देंगे. उसके बाद ही वह किसी गठबंधन पर विचार मायावती ही करेंगी. कांग्रेस के साथ या अजीत जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन का फैसला मायावती ही करेंगी.

उन्होंने कहा, “वैसे, बसपा सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है. बसपा का वोटर कहीं नहीं जाता, वो बसपा को ही वोट देगा. अजीत जोगी की नई पार्टी से हमारे वोटबैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कांग्रेस कितनी सीट हमें देना चाहती है ये भी मायने नहीं रखता. बगैर बसपा के, राह मुश्किल है. कर्नाटक में क्या हुआ सबको पता है.”

सिद्धार्थ ने विपक्ष के गठबंधन को अपवित्र कहने वाली भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि वह पहले अपने गिरेबान पर झांककर देख ले.

Read it also-बीबीएयू के छात्रों ने पीएच.डी.हिन्दी के रिजल्ट में धांधली का लगाया आरोप
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast

गुजरात पुलिस ने बैन की सचिवालय में दलित कार्यकर्ताओं की एंट्री!

गुजारत पुलिस पर आरोप है कि वो अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों के कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर ब्लैकलिस्ट कर गांधीनगर स्थित राज्य के सचिवालय में आने-जाने से रोक रही है. जिन लोगों को सचिवालय में घुसने से रोका गया उनमें दलित अधिकारों के एक्टिविस्ट किरीट राठौर, दलित नेता जिग्नेश के सहयोगी सुबोध परमार और सफाईकर्मियों के नेता विनूभाई जापड़िया शामिल हैं.

किरीट राठौर बताते हैं, “ मैं दो दशकों से दलित अधिकारों के लिए काम करता हूं. 18 मई को मैं सचिवालय में पास बनवा कर जा रहा था. गेट पर सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि मेरा नाम ब्लैकलिस्ट में है. मुझे झटका लगा. मैंने इसकी शिकायत सामाजिक न्याय विभाग से की.”

उनका कहना है, “एक बार फिर मेरी आरटीआई की अपील पर 12 जून को सुनवाई होनी थी. उस समय भी मुझे घुसने दिया गया. चार घंटे थाने में रोके जाने के बाद मुझे जाने दिया गया. जबकि मेरे पास अपील में आने का सरकारी कागज था. मेरे लिए कहा गया कि मैं आत्महत्या कर सकता हूं. जबकि 14 अप्रैल को मैंने अंदर जाने से रोके जाने पर आंदोलन की बात कही थी. आखिर कैसे मुझे सचिवालय में प्रवेश करने से स्थाई तौर पर रोका जा सकता है.”

किरीट को अभी तक वो लिस्ट नहीं दी गई कि किन लोगों के प्रवेश पर रोक लगाई गई है.

वडगांव से विधायक जिग्नेश मेवाणी के नजदीकी सहयोगी सुबोध परमार का नाम भी ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया है. सुबोध परमार ने न्यूज 18 को बताया कि दो महीने पहले जब वे सचिवालय में जा रहे थे तब उन्हें रोका गया. उन्होंने भी आईटीआई के तहत आवेदन दे कर पूछा है कि उन्हें किस नियम के तहत प्रवेश से रोका गया है.

मेवाणी का कहना है, “आखिर दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को क्यों सचिवालय में जाना पड़ता है? क्योंकि उनकी बात नहीं सुनी जाती. जब मैं विधानसभा में दलितों की आवाज उठाता हूं तो माइक की आवाज बंद की जाती है. जब वे सचिवालय में अपनी बात रखने आते हैं तो उनको ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है.”

संपर्क किए जाने पर सचिवालय, सुरक्षा शाखा के पुलिस उपाधीक्षक बीए चुड़ास्मा से संपर्क किए जाने पर उन्होंने इस तरह की किसी भी ब्लैकलिस्ट से इनकार किया.

उनका कहना है, “वैसे सचिवालय में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री कैबिनेट के मंत्री और दूसरे मंत्रियों के कार्यालय है. इनकी सुरक्षा के लिहाज से जो लोग आत्मदाह जैसी घोषणाएं करते हैं उन्हें तभी प्रवेश दिया जाता है, जब उनसे लिखवा लिया जाता है कि वे ऐसा नहीं करेंगे और जरूरत पड़ने पर उनके साथ पुलिस वालों को भी लगाया जाता है.”

Read it also-महिला टीचर ने दलित बच्चों को चप्पलों की माला पहना मैदान में घुमाया
  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast