गुजारत पुलिस पर आरोप है कि वो अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों के कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर ब्लैकलिस्ट कर गांधीनगर स्थित राज्य के सचिवालय में आने-जाने से रोक रही है. जिन लोगों को सचिवालय में घुसने से रोका गया उनमें दलित अधिकारों के एक्टिविस्ट किरीट राठौर, दलित नेता जिग्नेश के सहयोगी सुबोध परमार और सफाईकर्मियों के नेता विनूभाई जापड़िया शामिल हैं.
किरीट राठौर बताते हैं, “ मैं दो दशकों से दलित अधिकारों के लिए काम करता हूं. 18 मई को मैं सचिवालय में पास बनवा कर जा रहा था. गेट पर सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि मेरा नाम ब्लैकलिस्ट में है. मुझे झटका लगा. मैंने इसकी शिकायत सामाजिक न्याय विभाग से की.”
उनका कहना है, “एक बार फिर मेरी आरटीआई की अपील पर 12 जून को सुनवाई होनी थी. उस समय भी मुझे घुसने दिया गया. चार घंटे थाने में रोके जाने के बाद मुझे जाने दिया गया. जबकि मेरे पास अपील में आने का सरकारी कागज था. मेरे लिए कहा गया कि मैं आत्महत्या कर सकता हूं. जबकि 14 अप्रैल को मैंने अंदर जाने से रोके जाने पर आंदोलन की बात कही थी. आखिर कैसे मुझे सचिवालय में प्रवेश करने से स्थाई तौर पर रोका जा सकता है.”
किरीट को अभी तक वो लिस्ट नहीं दी गई कि किन लोगों के प्रवेश पर रोक लगाई गई है.
वडगांव से विधायक जिग्नेश मेवाणी के नजदीकी सहयोगी सुबोध परमार का नाम भी ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया है. सुबोध परमार ने न्यूज 18 को बताया कि दो महीने पहले जब वे सचिवालय में जा रहे थे तब उन्हें रोका गया. उन्होंने भी आईटीआई के तहत आवेदन दे कर पूछा है कि उन्हें किस नियम के तहत प्रवेश से रोका गया है.
मेवाणी का कहना है, “आखिर दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को क्यों सचिवालय में जाना पड़ता है? क्योंकि उनकी बात नहीं सुनी जाती. जब मैं विधानसभा में दलितों की आवाज उठाता हूं तो माइक की आवाज बंद की जाती है. जब वे सचिवालय में अपनी बात रखने आते हैं तो उनको ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है.”
संपर्क किए जाने पर सचिवालय, सुरक्षा शाखा के पुलिस उपाधीक्षक बीए चुड़ास्मा से संपर्क किए जाने पर उन्होंने इस तरह की किसी भी ब्लैकलिस्ट से इनकार किया.
उनका कहना है, “वैसे सचिवालय में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री कैबिनेट के मंत्री और दूसरे मंत्रियों के कार्यालय है. इनकी सुरक्षा के लिहाज से जो लोग आत्मदाह जैसी घोषणाएं करते हैं उन्हें तभी प्रवेश दिया जाता है, जब उनसे लिखवा लिया जाता है कि वे ऐसा नहीं करेंगे और जरूरत पड़ने पर उनके साथ पुलिस वालों को भी लगाया जाता है.”
Read it also-महिला टीचर ने दलित बच्चों को चप्पलों की माला पहना मैदान में घुमाया
- दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करेंhttps://yt.orcsnet.com/#dalit-dast
![](https://www.dalitdastak.com/wp-content/uploads/2020/12/DD-logo.jpg)
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
![](https://www.dalitdastak.com/wp-content/uploads/2020/12/PLATE.jpg)