नई दिल्ली। भाजपा सरकार यूपीएससी परीक्षा में बड़ी बदलाव करने की सोच रही है. सोमवार को मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार सिविल सेवा परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को सेवाओं के आवंटन में बड़ा बदलाव करने पर विचार कर रही है. प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने संबद्ध विभाग से पूछा है कि क्या ‘फाउंडेशन कोर्स’ पूरा होने के बाद सेवा/कैडर का आवंटन किया जा सकता है. हालांकि अभी इसको लेकर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.
पिछड़ों के अधिकारों पर एक और कुठाराघात
इस बात को लेकर जानकारों का कहना है कि आरक्षण और दलित, पिछड़ों के अधिकारों पर एक और छाती फाड़ कुठाराघात भाजपा सरकार करने की तैयारी कर रही है. भाजपा सरकार ने UPSC की सिविल सेवा में सफल परीक्षार्थी की मेरिट लिस्ट को ताक पर रख कर ऐसा विचार बनाया है. सिविल सर्विस का कैडर अलॉटमेंट यूपीएससी की मेरिट लिस्ट के अनुसार हितकर है. इसमें बड़ी संख्या में दलित, ओबीसी अच्छा रैंक लेकर आते हैं. लेकिन अब उत्तीर्ण कैंडिडेट को एक 3 महीने का फाउंडेशन कोर्स यदि लागू हो जाता है तो बहुत संभावना है कि इसमें हेरा फेरी होगी. दलित, ओबीसी को चिन्हित करके कम अंक देकर मेरिट लिस्ट में पीछे धकेल दिए जाएंगे. जैसा सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि आरक्षण को खत्म नहीं महत्वहीन कर दिया जाएगा, ये उसी दिशा मे लिया गया एक मनुवादी मानसिकता का कदम है. धीरे-धीरे भाजपा सरकार आरक्षण को महत्वहीन बना रही है.
नई दिल्ली। भारत के विश्वविद्यालयों में कुलपति (वाइस चांसलर) पदों पर होने वाली नियुक्ति में ओबीसी, एससी व एसटी उम्मीदवारों की संख्या ना के बराबर है. आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के अनुसार ओबीसी, एससी व एसटी उम्मीदवारों की संख्या सामान्य वर्ग के मुकाबले बहुत कम है जो कि चिंताजनक है.
आरटीआई में यूजीसी द्वारा मिली जानकारी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में कुल 496 कुलपति नियुक्त हैं जिनमें ओबीसी-36, एससी-06 व एसटी-06 कुलपति हैं. अगर देखा जाए तो तीनों पिछड़े वर्गों के कुल मिलाकर 48 सीटों पर कुलपति हैं. ऐसा कहा जा सकता है कि ना के बराबर नियुक्ति हो रही है. जानकार बताते हैं कि कुलपति की नियुक्ति में ओबीसी, एससी व एसटी उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए.
लालू प्रसाद ने केन्द्र सरकार पर लगाया था आरोप
इस मामले में वर्ष 2016 में यूजीसी ने कहा था कि फैकल्टी पदों के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नीति में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. यूजीसी ने विश्वविद्यालयों को भेजे एक पत्र में कहा था कि यहां होने वाली नियुक्ति में केन्द्र सरकार की आरक्षण नीति के दिशा-निर्देश में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इस मुद्दे पर राजद नेता व बिहारा के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया था कि वो विश्वविद्यालयों में आरक्षण नीति खत्म करना चाहती है.
लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी बंगले खाली करने शुरू कर दिए हैं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने नया आशियाना ढूंढना शुरू कर दिया है तो किसी-किसी ने नए बंगले में काम चालू हो गया है. बता दें कि राज्य संपत्ति विभाग ने नोटिस जारी कर पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले इस महीने के आखिर तक खाली करने को कहा है.
मायावती के सरकारी आवास पर सोमवार की सुबह “श्री कांशीराम जी यादगार विश्रामास्थल” का बोर्ड लगा मिला है. बसपा से जुड़े कुछ जानकारों का कहना हैं कि कांशीराम जी की यादें इससे जुड़ी हैं इसलिए छोड़ने से पूर्व बोर्ड लगाया है. साथ ही सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा प्रमुख मायावती अब अपने सरकारी आवास 13 ए माल एवेन्यू को छोड़कर 9 माल एवन्यू में शिफ्ट होंगी. 9 माल एवेन्यू निजी मकान है जो कि 13 ए के पास ही स्थित है. हालांकि इस बंगले में काम भी शुरू हो गया है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि 1-2 दिन के अंदर मायावती का सभी सामान 9 मॉल एवेन्यू में शिफ्ट कर दिया जाएगा.
ये भी तलाश रहें ठिकाना
उधर, दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह विपुल खंड में शिफ्ट हो रहे हैं, जबकि कल्याण सिंह अपने पोते और मंत्री संदीप सिंह के सरकारी आवास में शिफ्ट होंगे. वहीं, अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव को लेकर अभी भी संशय बरकरार है. उम्मीद की जा रही है कि दोनों पूर्व मुख्यमंत्री अपने लिए गोमती नगर या फिर हजरतगंज से सटे हुए इलाके में बंगले का इंतजाम करेंगे.
बेंगलुरु। कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा को साकार करने वाली बसपा प्रमुख मयावती को कर्नाटक सीएम शपथग्रहण के लिए जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने मायावती को शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है. इस दौरान सोनिया गांधी, राहुल गांधी व अन्य मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया गया है.
सोमवार को प्राप्त जानकारी के अनुसार जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने शपथ ग्रहण समारोह में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी शामिल होंगे. कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह बुधवार की दोपहर 1 बजे के बीच आयोजित किया जाएगा.
राज्यपाल से मिलने के बाद कुमारस्वामी ने कहा था कि, “मायावती जी ने मुझे आशीर्वाद दिया है. साथ ही ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू और के चंद्रशेखर राव ने भी मुझे बधाई दी. मैंने सभी क्षेत्रीय नेताओं को शपथ समारोह के लिए आमंत्रित किया है.”
इसके अलावा कुमारस्वामी ने बताया कि आज रात सोमवार को जेडीएस और कांग्रेस के नेताओं के साथ बैठक कर सरकार को आसानी से चलाने की योजनाओं पर चर्चा की जाएगी. मंत्रीमंडल के गठन को लेकर बातचीत की जाएगी. साथ ही सूत्रों का कहना है कि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी से होंगे. जबकि कुमारस्वामी का मुख्यमंत्री बनना तो पहले से ही तय हो चुका था. शपथग्रहण समारोह बुधवार को आयोजित होगा. इसमें शामिल होने वाले गेस्ट लिस्ट भी तैयार हो गई है.
मुंबई। ‘नक्काश’ फिल्म के पोस्टर ने जमकर वाहवाही बटोरी है. पोस्टर की लॉचिंग के साथ ही ‘नक्काश’ की लोकप्रियता दिखने लगी है. पत्रकार के बाद फिल्म में एंट्री करने वाले निर्देशक जैगम इमाम की तीसरी फिल्म ‘नक्काश’ का पोस्टर कान फिल्म फेस्टिवल में धमाल कर गई. ना केवल जैमम इमाम की टीम बल्कि वहां मौजूद अन्य कलाकारों से लेकर सोशल मीडिया फैन ने खूब तारीफ कर रहे हैं.
गंगा आरती के साथ एक मुस्लिम व्यक्ति…
जैगम इमाम ‘नक्काश’ के जरिए हिंदू-मुस्लिम मजहब को नया रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. जैगम इमाम का कहना है कि बनारस की पृष्ठभूमि पर फिल्म को तराशा गया है. पोस्टर में बनारस के मंदिरों और गंगा आरती के साथ एक मुस्लिम व्यक्ति को दिखाया गया है. हालांकि पोस्टर की चर्चा के बाद फैंस फिल्म के लिए बेताब दिख रहे हैं.
जैगम इमाम ने कहा, ‘यह फिल्म न सिर्फ भारतीयता के पैमाने पर खरी उतरेगी. हिंदू-मुस्लिम संबंधों को लेकर नई झलक देखने को मिलेगी.
हमने नक्काश की पहली झलक दुनिया के सबसे पुराने फिल्म फेस्टिवल के इंडिया पैवेलियन में लॉन्च किया है. सूचना प्रसारण मंत्रालय की देख-रेख में चलने वाले इंडिया पैवेलियन में ऐसी फिल्मों को प्रोत्साहित किया जाता है, जो भारत की कला और संस्कृति को बढ़ावा देती है.’
‘आलिफ’ भी रही थी चर्चा में…
जैगम इमाम युवा फिल्म निर्देशक हैं जो कि समाज को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं. इनकी दुसरी फिल्म ‘आलिफ’ मदरसा शिक्षा को लेकर बनी थी जो कि काफी सराही गई और कई शिक्षण संस्थानों में स्क्रीनिंग कराई गई. शिक्षा के बाद मजहबी मुद्दों पर जैगम की फिल्म ‘नक्काश’ जल्द ही आने वाली है देखना है कि फिल्म स्क्रीन पर कितना धमाल कर पाती है.
‘नक्काश’ में ईनामुल हक, शारिब हाशमी और कुमुद मिश्रा जैसे उम्दा कलाकार हैं, जो इससे पहले फिल्म फिल्मिस्तान में अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं. नक्काश को जैगम इमाम के साथ पवन तिवारी और पद्मजा पिक्चर्स के गोविंद गोयल ने प्रड्यूस किया है.
गुजरात। एक सरकारी युवक खुद को विष्णु का दसवां अवतार बता रहा है. इसका दावा उसने लिखित रूप से अपने विभाग के कारण बताओ नोटिस में किया है. इस बात का दावा कर ऑफिसर करीब आठ माह से छुट्टी पर है. इस दौरान मीडियाकर्मी व अधिकारियों से उसने कहा कि मैं कल्कि अवतार हूं, मुझमें देखो भगवान दिख रहा है कि नहीं. इस बात ने सबको हैरान कर डाला है.
सोमवार को मिली जानकारी के अनुसार गुजरात के नर्मदा निगम में इंजीनियर के तौर पर काम करने वाले ऑफिसर रमेश चंद्र पिछले आठ महीने से दफ्तर नहीं गए. जिसकी वजह से उनके ऑफिस ने कारण बताओ नोटिस जारी किया. नोटिस के जवाब में रमेश चंद्र ने खुद को भगवान कल्कि बताया और जनकल्याण के लिए तपस्या करने की वजह से दफ्तर नहीं आने की बात कही. साथ ही यह भी लिखा कि वह भगवान विष्णु का दशम अवतार कल्कि है. इसलिए उससे सवाल ना किया जाए.
सूत्रों का कहना है कि 13 महीने पहले रमेश चंद्र की पत्नी ने प्रताड़ना की शिकायत की थी उस वक़्त भी उन्होंने खुद को विष्णु अवतार बताया था. हालांकि इसकी वजह से उसके घर के लोग भी काफी परेशान हैं. साथ ही आसपास के लोगों ने भी आपत्ति जताई है.
राजकोट। गुजरात में एक और दलित युवक की बेरहमी से पीटकर मौत के घाट उतारने की वीडियो सामने आई है. 20 मई को गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी ने एक शख्स की पिटाई का वीडियो ट्विटर पर शेयर किया है. मेवानी ने लिखा है कि 35 वर्षीय युवक दलित है और फैक्ट्री मालिक की पिटाई से उसकी मौत हो गई.
मेवानी ने ट्विटर पर लिखा, “मुकेश वान्या अनुसूचित जाति का है और राजकोट में एक फैक्ट्री मालिक ने उनकी पिटाई कर मार डाला जिससे युवक की मौत हो गई. साथ ही फैक्ट्री मालिक ने उनकी पत्नी की पिटाई भी की.”
वीडियो में दलित युवक के कमर को एक पाइप से बांधकर एक युवक रॉड से मार रहा है फिर उसके बाद दुसरा युवक आकर मारना शुरू कर देता है. बेरहमी से हुई पिटाई में युवक को जान गंवानी पड़ी. अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. हालांकि वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. सोशल मीडिया पर लोग प्रशासन पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. बता दें कि गुजरात में दलितों को आए दिन इस तरह की घटना का शिकार होना पड़ रहा है. सूत्रों का ऐसा भी कहना है कि फैक्ट्री मालिक के ऑर्डर पर दलित युवक को मारा गया. फिलहाल इसमें पुष्टि होनी बाकि है.
बेंगलुरु। लंबे समय के बाद कर्नाटक की राजनीति हलचल में विराम लगा. बीजेपी कर्नाटक में सरकार बनाने में असफल सिध्द हुई. इसके साथ ही खबर मिल रही है कि सोमवार को जेडीएस अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के नए सीएम पद की शपथ ले सकते हैं. उनके साथ कांग्रेस के जी परमेश्वर को उप मुख्यमंत्री का पदभार सौंपा जा सकता है.
मायावती का रहा अहम रोल
बसपा प्रमुख मायावती ने त्रिशंकु विधानसभा वाली सरकार का सपना कांग्रेस-जेडीएस को दिखाया था. गौरतलब है कि इसको लेकर एचडी देवगौड़ा व सोनिया गांधी से लंबी बात कर गठबंधन कराई थी. इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस ने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी और बीजेपी को पटखनी दी. मायावती द्वारा बनाई गई रणनीति रंग लाई और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. हालांकि बसपा के कर्नाटक विधायक एन महेश को बीजेपी ने ऑफर किया था जिसके बाद उनको करारा जवाब मिला था.
भावुक हो हार मानें येदियुरप्पा
इस्तीफे से पहले बीएस येदियुरप्पा ने भाषण दिया. भाषण के दौरान वह भावुक हो कहा कि वह किसानों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे. कांग्रेस-जेडीएस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा लेकिन सरकार बनाने के लिए एकजुट हो गए. हालांकि इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश का फायदा कांग्रेस व जेडीएस को मिला.
बता दें कि 15 मई 2018 को मतगणना के बाद कर्नाटक विधानसभा में किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला. बीजेपी को 104 सीट पर जीत दर्ज की जबकि कांग्रेस 78 सीटों पर जीत दर्ज की. जेडीएस के खाते में 38 सीट गई जीत दर्ज करने में सफल रहे. कोर्ट के आदेश के अनुसार 19 मई की शाम 4 बजे कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट किया गया.
कर्नाटक। कर्नाटक की राजनीतिक में बड़ा बदलाव आने वाला है. येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री से इस्तीफा दे दिया है. करीब 2-3 दिन बाद येदियुरप्पा ने त्याग पत्र सौंप दिया है. इससे कांग्रेस को फायदा होगा या नुकसान इसका फैसला तो कुछ ही देर में होना है लेकिन येदियुरप्पा का इस्तीफा देना कांग्रेस के लिए खुश खबरी हो सकती है.
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कर्नाटक में बहुमत साबित करने से पहले ही कर्नाटक के सीएम बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है. ये बात कहीं ना कहीं बड़े बदलाव का अंदेशा दे रही है. लेकिन देखना है कि ऐसे में फायदा किसका हो सकता है.
इससे कर्नाटक की राजनीतिक गणित और उलझी नजर आ रही है, क्योंकि अब बहुमत साबित करने वाली सीटों की संख्या घट गई है. अब बहुमत के लिए 110 सीटों का होना जरूरी है. देखना है कि कर्नाटक सरकार की बागडोर किसके हाथ में जाती है.
गौरतलब है कि सुबह प्रोटेम स्पीकर के तौर पर केजी बोपैया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जेडीएस-कांग्रेस की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद हुए चुनाव में बीजेपी ने 110 सीटों के साथ सफलता हासिल की थी. बता दें कि इस बार कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को 104, जेडीएस को 38 और कांग्रेस को 78 सीट हासिल हुई थी. कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देने का ऐलान किया है.
कर्नाटक। बस कुछ ही देर बाद विधायकों की परीक्षा विधानसभा में आरंभ होगी. इनकी परीक्षा से कर्नाटक की सरकार पास हो जाएगी. इसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि विधायकों को किस तरह वोट देंगे. कांग्रेस-जेडीएस व बीजेपी अपने विधायकों के साथ विधानसभा में मौजूद है जहां पर प्रोटेम स्पीकर के समक्ष दोनों दलों को अपना बहुमत साबित करना है. शाम के 04 बजे कर्नाटक सरकार के लिए पार्टियां फ्लोर टेस्ट देंगी.
ऐसे देना होगा वोट
फ्लोर टेस्ट के लिए गुप्त रूप से ही ज्यादातर वोटिंग की जाती है लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक मसले को देखते हुए पारदर्शिता बनाने के लिए कहा है. इसके लिए सभी विधायकों को स्पष्ट रूप से सबके समक्ष वोट करनी होगी.
प्राप्त जानकारी के अनुसार फ्लोर टेस्ट की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग होगी और संभावना है कि टेलिकास्ट भी किया जाएगा. इसके साथ ही हर विधायक हाथ खड़ाकर स्पष्ट रूप से कहेगा कि वह किस दल को अपना वोट दे रहा है. ऐसे में सबकुछ स्पष्ट होने के बाद जो पार्टी बहुमत साबिक करेगी उसकी कर्नाटक में सरकार बनेगी.
बता दें कि इससे पहले बहुमत के लिए 112 सीटों की जरूरत थी लेकिन राजनीति दावं पेंच के बाद इसका गणित कुछ अलग हो गया है और राजनीति के जानकारों का कहना है कि अब 110 सीट पर भी सरकार बन सकती है. हालांकि एक प्रकार से दोनों दलों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
कर्नाटक। राजनीति का गणित सरकार बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाता है. प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर डरी कांग्रेस चाहती थी कि बीजेपी की ओर से कोई ना बनें लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और प्रोटेम स्पीकर बीजेपी के अनुसार ही बना. एक तो कांग्रेस के विधायक गायब हैं जिनका कुछ भरोसा नहीं कि किस ओर करवट लेंगे. दुसरी ओर प्रोटेम स्पीकर का वोट बड़ा रोल प्ले करेगा और बाजी पलट सकता है.
घट गई बहुमत की सीट
बता दें कि इससे पहले बहुमत के लिए 112 सीटों की जरूरत थी लेकिन राजनीति दावं पेंच के बाद इसका गणित कुछ अलग हो गया है और राजनीति के जानकारों का कहना है कि अब 110 सीट पर भी सरकार बन सकती है. हालांकि एक प्रकार से दोनों दलों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक विधानसभा में अभी विधायकों की कुल संख्या- 222 है. जेडीएस के कुमारास्वामी ने दो सीटों से जीत दर्ज की है, पर उनका सिर्फ एक ही वोट मान्य होगा. इसलिए विधानसभा में वोट की कुल संख्या 221 है.
प्रोटेम स्पीकर की वोट
चूंकि वोट बराबर होने की दशा में प्रोटेम स्पीकर अपना वोट दे सकता है. इसलिए कुल वोट 220 हो गए जिसका आधा 110 हुआ. प्रोटेम स्पीकर को निकालने के बाद बीजेपी के पास 103 वोट हैं इसलिए बीजेपी को 7 और वोट की आवश्यकता होगी. ऐसे में किसी की भी सरकार बन सकती है, लेकिन बात अगर प्रोटेम स्पीकर तक आकर रूकी तो कांग्रेस को झटका लग सकता है.
कर्नाटक। विधायकों की संख्या को लेकर कांग्रेस-बीजेपी की नींद उड़ी हुई है. ऐसे में सबसे ज्यादा कांग्रेस की चिंता बढ़ रही है. सूत्रों का कहना है कि तीन में से दो विधायक बीजेपी के एक नेता के साथ दिखे हैं. इस खबर ने बीजेपी का हौंसला बढ़ाया दिया होगा लेकिन अभी तक बहुमत साबित करने का रास्ता आसान नहीं लग रहा है.
बीजेपी विधायक के साथ कांग्रेस विधायक…
मीडिया खबरों के अनुसार कांग्रेस के विधायक आनंद सिंह होटल गोल्डेन फिंच से बाहर निकले. तो वहीं प्रताप गौड़ा पहले ही विधानसभा पहुंच चुके हैं. जबकि अन्य विधायकों की तलाश में पुलिस होटल पहुंची है. आनंद सिंह के वहीं मौजूद होने की खबर सामने आई है. हालांकि कांग्रेस के दो लापता विधायकों में से एक प्रताप गौड़ा विधानसभा पहुंच गये हैं. आनंद सिंह को लेकर कोई पक्की जानकारी नहीं मिल पाई है. जबकि दोपहर में करीब 01बजे कांग्रेस के दो लापता विधायक आनंद सिंह और प्रताप गौड़ा के साथ बीजेपी विधायक जी सोमशेखर मौजूद थे.
विधायक को लालच देने का आरोप
इसके साथ ही कांग्रेस ने वीडियो जारी कर रेड्डी बंधुओं पर लगाया विधायक को लालच देने का आरोप लगाया है. ऑडियो टेप में बीएस येदियुरप्पा एक विधायक को प्रलोभन दे रहे हैं. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है. बता दें कि शाम 04 बजे विधान सभा में फ्लोर टेस्ट होना है जिसके आधार पर कर्नाटक में नई सरकार बनने पर फैसला किया जाएगा.
इन तमाम प्रकार की जानकारियों के अनुसार यह तो साफ दिख रहा है कि कांग्रेस के विधायक इधर-उधर होते नजर आ रहे हैं. ऐसे में बीजेपी का फायदा नुकसान हो ना हो लेकिन कांग्रेस को झटका लग सकता है. अब देखना है कि कांग्रेस के गायब विधायक किस ओर अपना मत रखते हैं.
नई दिल्ली। गरीब व दलित होनहार स्टूडेंट्स को मुफ्त में पढाई व खाना-आवास के लिए चयन प्रक्रिया कराने का काम आरंभ होने वाला है. सरकारी सेवाओं के लिए होने वाले प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कराई जाएगी. इसमें एससी, एसटी व ओबीसी स्टूडेंट्स को प्राथमिकता दी जाएगी. इससे सरकारी सेवाओं में वंचित समाज की संख्या बढ़ेगी. इसके लिए स्टूडेंट्स को लिखित परीक्षा पास करनी होगी. चयनित छात्रों को मुफ्त में सरकारी सेवाओं के लिए प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कराई जाएगी.
स्टूडेंट्स के लिए कुछ योग्यताएं रखी गई हैं. जिसके अनुसार स्टूडेंट्स को चयन किया जाएगा. संस्थान द्वार मिली जानकारी के अनुसार उम्मीदवार की आयु 30 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा वार्षिक आय 2 लाख तक या कम होनी चाहिए. बता दें कि यहां पर पानी, खाना, बिजली, खेलकूद आदि की व्यवस्था संस्था करेगी.
अहमदाबाद। गुजरात के अहमदाबाद-भावनगर हाईवे पर शनिवार की सुबह सीमेंट से लदी ट्रक पलटने से सोलह मजदूरों और तीन बच्चों की मौत होने की खबर सामने आई है. साथ ही दुर्घटना में छह अन्य की बुरी तरह घायल हो गए. दर्दनाक सड़क हादसे में मृतकों के शरीर को बरामद कर लिया गया.
सूत्रों के अनुसार दुर्घटना धोलेरा के निकट बावालियारी गांव के पास घटी. सीमेंट से लदी ट्रक पीपावाव पोर्ट से आ रही थी. अहमबाद एसपी आरवी अंसारी ने बताया कि दुर्घटना घटने के वक्त ट्रक पर 25 मजदूर सवार थे, जिनमें से 19 की मौत हो गई. मृतकों में 12 महिलाएं और तीन बच्चे शामिल हैं. एसपी ने बताया कि 18 मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि एक ने अस्पताल में दम तोड़ा.
एसपी आरवी अंसारी ने बताया कि ट्रक ड्राइवर की गिरफ्तारी के लिए सर्च अभियान चलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि पुलिस दुर्घटना की जांच कर रही है. मृतकों के शव को पोस्मार्टम के लिए भेज दिया गया है.
वर्ग बनाम वर्ण की चर्चा इससे पहले भी होती रही है. लेकिन जब हम कार्ल मार्क्स के बरअक्स इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं, तो यहां पर वर्ग के मायने कुछ अलग हो जाते हैं. भारत में वर्ग के मायने होते हैं अमीर वर्ग और गरीब वर्ग. लेकिन कार्ल मार्क्स जिस वर्ग की बात कर रहे हैं, उसमें मालिक वर्ग और मजदूर वर्ग है. इसलिए हमें बहुत ही सावधानी पूर्वक इस अंतर को समझते हुए बात करनी होगी.
इसी प्रकार वर्ण की भी विभिन्न परिभाषाएं सामने आती है. कई बार वर्ण को रंगों के विभाजन के तौर पर देखा जाता है. तो कई बार वर्णों को जाति व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण इकाई के तौर पर भी देखा जाता है. हम यहां पर चर्चा के दौरान इसे इसी परिभाषा के तौर पर आगे बातचीत करेंगे.
मार्क्स ने जिस मालिक और मजदूर की बात की और उनके संघर्ष को महत्वपूर्ण बताया तथा पूंजीवाद को इन वर्ग के सिद्धांतों के आधार पर परिभाषित किया. वह अपने स्थान पर महत्वपूर्ण है लेकिन इन सिद्धांतों को उसी वर्ग के आधार पर भारत के परिप्रेक्ष्य में लागू करना कहीं ना कहीं जल्दबाजी करने जैसा रहा है. क्योंकि भारत में वर्ग का अस्तित्व कभी भी मालिक और नौकर की तरह नहीं रहा है. भारत में पूंजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग कहा गया या फिर अमीर वर्ग गरीब वर्ग कहा गया. लेकिन जैसा रिश्ता यूरोप में मालिक और मजदूर के बीच रहा है वैसा रिश्ता भारत में अमीर और गरीब के बीच कभी भी नहीं रहा है. भारत में इन वर्गों के बीच जातीय संरचना भी है जो मालिक और नौकर के सिद्धांत पर नहीं चलती.
मुझे लगता है यह भारत के परिपेक्ष में मार्क्सवादी सिद्धांतों को मालिक और नौकर के नजरिए से नहीं बल्कि जाति व्यवस्था की जटिलताओं, उनके बीच भेदभाव उनके बीच अछूतपन और धार्मिक संहिता को ध्यान में रखते हुए देखना होगा. भारत में एक छोटी जाति का व्यक्ति अमीर तो हो सकता है. उसके कल कारखाने भी हो सकते हैं. इसके पहले भी हुए हैं. गंगू तेली का उदाहरण सामने पड़ा है. शिवाजी का उदाहरण है लेकिन इन्हें धार्मिक स्वीकृति या कहें सामाजिक राजनीतिक स्वीकृति प्रदान नहीं होती है. इस कारण राजा होने के बावजूद शिवाजी को राज तिलक करवाने के लिए पापड़ बेलने पड़ते हैं. और किसी ब्राम्हण के पैर के अंगुठे से अपने माथे पर राज तिलक करवाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. जब हम वर्ग बनाम वर्ण की बात करते हैं यह उदाहरण बेहद महत्वपूर्ण है.
गंगू तेली और शिवाजी के उदाहरण से यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आती है कि भारत के परिपेक्ष्य में साम्यवाद या समाजवाद, जिसकी बात कार्ल मार्क्स कहते हैं. वह और उसका आधार आर्थिक नहीं है उससे कहीं आगे है. भारत के परिपेक्ष्य में आर्थिक समानता कभी भी राजनीतिक और सामाजिक समानता का रूप नहीं ले पाती है. और ना ले पाई है. इसके तमाम उदाहरण इतिहास में मौजूद हैं. शायद मार्क्सवाद के सिद्धांत को भारत में लागू करने से पहले इन ऐतिहासिक तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया गया.
इस कारण भारत के परिपेक्ष्य में कम्युनिस्ट विचारधारा फेल हो गई या फिर सिर्फ पूंजी की लड़ाई तक सीमित रह गई या फिर उन जगह ही रह पाई जहां पर फैक्ट्री और मजदूर रहे हैं. यह लड़ाई कभी भी किसानों तक नहीं पहुंच पाई ना ही उन दलित पिछड़ा वर्ग आदिवासियों तक पहुंच पाई जिन्हें समानता साम्यवाद या समाजवाद की जरूरत थी. उन प्राइवेट दुकानों संस्थानों तक नहीं पहुंच पाई जहां पर पढ़ा-लिखा कलम चलाने वाला मजदूर शोषण का शिकार रोज होता है.
जहां एक ओर यूरोप में पूंजीवाद के गर्भ से श्रमिक वर्ग का जन्म हुआ वहीं भारत में श्रमिक वर्ग मां के गर्भ से पैदा होता है. भारत में यूरोप का वर्ग नहीं है और जब वर्ग ही नहीं तो वर्ग संघर्ष का सवाल ही पैदा नहीं होता. बल्कि भारत में वर्ग की जगह वर्ण संघर्ष हो रहा है. जिसे मार्क्स ने भी भूल स्वीकार करते हुए कहा कि भारत में वर्ण संघर्ष ही संभव है और उसके बाद ही वर्ग संघर्ष हो सकता है. इसे इमीएस नम्बूदरीपाद ने भी स्वीकार किया, जिनके नेतृत्व में केरल में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी थी. बी. टी. रणदीवे ने भी स्वीकार किया, क्योंकि भारत में सत्ता और संपत्ति पर सवर्ण वर्ग का ही कब्जा है.
दरअसल हमें मार्क्स के साम्यवाद को नए सिरे से भारत के परिपेक्ष्य में परिभाषित करना पड़ेगा. यहां पर आर्थिक समानता से कहीं ज्यादा जरूरी सामाजिक और राजनीतिक समानता की बात है. कार्ल मार्क्स ने जिन स्थानों पर काम किया वहां पर आर्थिक विषमता तो थी लेकिन सामाजिक तथा राजनीतिक विषमताएं नहीं रही. इसीलिए उन्होंने यह सिद्धांत दिया की पूंजी का समान वितरण होने पर साम्यवाद स्थापित हो सकेगा.
डॉ आंबेडकर अपनी किताब बुद्ध अथवा कार्ल मार्क्स में कार्ल मार्क्स की अवधारणा को 10 बिंदुओं में रेखांकित करते हैं. जिन पर कार्ल मार्क्स के सिद्धांत खड़े हुए हैं.
दर्शन का उद्देश्य विश्व का पुनः निर्माण करना है ब्रह्मांड की उत्पत्ति की व्याख्या करना नहीं है.
जो शक्तियां इतिहास की दिशा को निश्चित करती है वह मुख्यतः आर्थिक होती हैं.
समाज दो वर्गों में विभक्त है मालिक तथा मजदूर.
इन दोनों वर्गों के बीच हमेशा संघर्ष चलता रहता है.
मजदूरों का मालिकों द्वारा शोषण किया जाता है. मालिक उस अतिरिक्त मूल्य का दुरुपयोग करते हैं जो उन्हें अपने मजदूरों के परिश्रम के परिणाम स्वरुप मिलता है.
उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण अर्थात व्यक्तिगत संपत्ति का उन्मूलन करके शोषण को समाप्त किया जा सकता है.
इस शोषण के फलस्वरुप श्रमिक और अधिकाधिक निर्बल व दरिद्र बनाए जा रहे हैं.
श्रमिकों की इस बढ़ती हुई दरिद्रता व निर्बलता के कारण श्रमिकों की क्रांतिकारी भावना उत्पन्न हो रही है और परस्पर विरोध वर्ग संघर्ष के रूप में बदल रहा है.
चूंकि श्रमिकों की संख्या स्वामियों की संख्या से अधिक है. अतः श्रमिकों द्वारा राज्य को हथियाना और अपना शासन स्थापित करना स्वाभाविक है. इसे उसने सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के नाम से घोषित किया है.
इन तत्वों का प्रतिरोध नहीं किया जा सकता इसलिए समाजवाद अपरिहार्य है. पृष्ठ क्रमांक 346 वॉल्यूम 7
यहां पर आप देख सकते हैं कि कंडिका 9 में इस बात का जिक्र किया गया है कि श्रमिकों द्वारा उनकी संख्या ज्यादा होने के कारण बलपूर्वक अपना शासन स्थापित करना स्वाभाविक है. जिसे उन्होंने सर्वहारा वर्ग की तानाशाही नाम घोषित किया है. यानी कार्ल मार्क्स श्रमिकों के द्वारा तानाशाही शासन की अनुमति देते हैं, जबकि डॉ आंबेडकर कहते हैं बलपूर्वक प्राप्त किया गया शासन वह भी तानाशाही वाला शासन ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता. इससे भविष्य में भी संघर्ष की संभावनाएं बनी रहती है. वह कहते हैं, “मार्क्सवादी सिद्धांत को 19वीं शताब्दी के मध्य में जिस समय प्रस्तुत किया गया था उसी समय से उसकी काफी आलोचना होती रही है. इस आलोचना के फलस्वरुप कार्ल मार्क्स द्वारा प्रस्तुत विचारधारा का काफी बड़ा ढांचा ध्वस्त हो चुका है इसमें कोई संदेह नहीं कि मार्क्स का यह दावा कि उसका समाजवाद अपरिहार्य है पूर्णतया असत्य सिद्ध हो चुका है. सर्वहारा वर्ग की तानाशाही सर्वप्रथम 1917 में उनकी पुस्तक ‘दास कैपिटल’ समाजवाद का सिद्धांत के प्रकाशित होने के लगभग 70 वर्ष के बाद सिर्फ एक देश में स्थापित हुई थी यहां तक कि साम्यवाद जो कि सर्वहारा वर्ग की तानाशाही का दूसरा नाम है और उसमें आया तो यह किसी प्रकार के मानवीय प्रयास के बिना किसी अपरिहार्य वस्तु के रूप में नहीं आया था. वहां एक क्रांति हुई थी और इसके रूस में आने से पहले भारी रक्तपात हुआ था तथा अत्यधिक हिंसा के साथ वहां सोद्देश्य योजना करनी पड़ी थी. शेष विश्व में अभी भी सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के आने की प्रतीक्षा की जा रही है.
मार्क्सवाद का कहना है कि समाजवाद अपरिहार्य है. उसके इस सिद्धांत के झूठ पर जाने के अलावा सूचियों में वर्णित अन्य अनेक विचार भी तर्क तथा अनुभव दोनों के द्वारा ध्वस्त हो गए हैं. अब कोई भी व्यक्ति इतिहास की आर्थिक व्याख्या को केवल एक मात्र परिभाषा स्वीकार नहीं करता इस बात को कोई स्वीकार नहीं करता कि सर्वहारा वर्ग को उत्तरोत्तर कंगाल बनाया गया है और यही बात उसके अन्य तर्क के संबंध में भी सही है” पृष्ठ क्रमांक 347 वॉल्यूम 7
भारत के परिप्रेक्ष्य में वर्ग की लड़ाई
जब आप वर्ग की लड़ाई लड़ते हैं तो आप सिर्फ आर्थिक समानता की बात करते हैं दरअसल भारत में जो वर्गीय अंतर है वह सिर्फ आर्थिक नहीं है. यह समझना होगा. यहां पर जातीय असमानता है. राजनीतिक असमानताएं गहरे पैठ बनाए हुए हैं. और इन जटिलताओं को सुलझाने के लिए समानता लाने के लिए आर्थिक गैरबराबरी को खत्म करना काफी नहीं है. जातीय एवं राजनीतिक असमानता को खत्म करने के लिए तमाम क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व देना जरूरी है . यह प्रतिनिधित्व राजनीति, धार्मिक, समाजिक पदवी में, प्रशासन में, न्यायालय में देना होगा. डॉ अंबेडकर ने इसी प्रतिनिधित्व को रिजर्वेशन का नाम दिया. रिजर्वेशन कभी भी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तौर पर नहीं तैयार किया गया. दरअसल यह भारत में फैली असामान्यताओं को खत्म करने के लिए बेहद जरूरी कार्यक्रम है. इसीलिए डॉक्टर अंबेडकर ने आजादी के पहले गोलमेज सम्मेलन में प्रतिनिधित्व के अधिकार की मांग की थी.
यह बात सही है कि डॉ आंबेडकर और मार्क्स दोनों समाज में समानता चाहते थे. लेकिन दोनों के समानता के उद्देश्य में बुनियादी फर्क है.
एक वर्ण व्यवस्था में समानता की बात करते हैं तो दूसरे वर्ग व्यवस्था में समानता की बात करते हैं.
एक वर्ग व्यवस्था में समानता के लिए संघर्ष की बात करते हैं. चाहे इसके लिए सर्वहारा तानाशाही ही क्यों ना करनी पड़े.
दूसरे वर्ण व्यवस्था में समानता लाने के लिए लोकतांत्रिक उपाय किए जाने की बात करते हैं जिसमें खूनी संघर्ष और तानाशाही के लिए कोई जगह नहीं है. वे जाति व्यवस्था का उन्मूलन में सबको साथ लेकर चलने की बात करते है. डॉं अंबेडकर कहते है एक ऊंच नीच वाली प्रणाली को खत्म करने के लिए नई ऊंच नीच वाली प्रणाली का निर्माण नही किया जाना चाहिए.
जब आप वर्ण यानी जाति व्यवस्था की लड़ाई लड़ते हैं तो आप सामाजिक आर्थिक राजनैतिक तीनों प्रकार की समानता की बात करते हैं.
यह बात शायद भारतीय मार्क्सवादियों ने नजरअंदाज कर दिया होगा. क्योंकि बीमारी डायग्नोसिस करना किसी भी बीमारी के इलाज का पहला चरण होता है. डायग्नोज करने के बाद ही उसी हिसाब से उसका इलाज किया जा सकता है. जहां पर वर्ग की समस्या नहीं है वहां पर आप वर्ग के हिसाब से उसका इलाज करेंगे तो रिजल्ट्स नहीं आने वाले. जहां पर वर्ण की समस्या है, वर्ण संघर्ष की समस्या है वहां पर वर्ण के हिसाब से ही उसका इलाज करना होगा. तब कहीं जाकर उसके परिणाम सामने आ सकेंगे. यही जो बुनियादी फर्क है. वर्ग और वर्ण में. उसे समझना होगा. तब कहीं जाकर हम मार्क्सवाद और अंबेडकरवाद के समानता के सिद्धांत को अमलीजामा पहना पाएंगे.
नई दिल्ली। भारतीय राजनीतिक दलों में एक नई पार्टी का नाम शामिल हो गया है. सांसद व पूर्व जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल के प्रथम सम्मेलन के मौके पर कर्नाटक मुद्दा, किसान आत्महत्या, दलित, आदिवासी मुद्दों पर भाजपा के खिलाफ हमला किया. साथ ही बीजेपी को गंगा में बहाने व पराजय की बात कही.
शुक्रवार को शरद यादव बीजेपी की पोल खोलते रहे और वहां मौजूद युवा, वरिष्ठ व महिला समर्थक शरद यादव जिंदाबाद के नारे से तालकटोरा स्टेडियम गूंजता रहा. मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित शरद यादव ने कहा कि बीजेपी ने जीएसटी व नोटबंदी अपने फायदे के लिए की. भाजपा सरकार अपने फायदे के लिए देश को आर्थिक संकट में डाल चुकी है.
बाबा अंबेडकर की कसम खाई
शरद यादव, रमई राम समेत कई दिग्गज दलित क्रांतिकारी, किसान नेताओं ने डॉ. भीमराव आंबेडकर, लोहिया, बिरसा मुंडा के सपनों को साकार करने के लिए शपथ लिया. इस दौरान शरद यादव ने सहारनपुर में भीम आर्मी के सचिन, रोहित वेमुला, अखलाक की हत्या को राजनीतिक साजिश बताई. बीजेपी की सरकार में दलित अत्याचार बढा है, किसान आत्महत्या के लिए विविश हैं और आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है.
दिलाई बाबरी की याद…
देश में शांति-सौहार्द बनाने के लिए जनता से अपील करते हुए कहा कि भाजपा-आरएसएस का मकसद देश को तोड़ना व भाईचारा खंडित करना है लेकिन हमें इनको रोकना होगा. बाबरी विध्वंस का उदाहरण देते हुए जानकारी दी कि वैसे समय में भी बिहार के हिंदू-मुसलमान एकजुट होकर रहे और एक दंगा तक नहीं हो पाया लेकिन नीतीश कुमार व बीजेपी के गठबंधन ने हालही में कई दंगें करा डाले. नीतीश कुमार को भी इसकी सजा हमलोग देंगे. नीतीश कुमार जैसे दगाबाज नेता को बिहार की जनता माफ नहीं करने वाली.
गंगा में बीजेपी विसर्जन
लोकतांत्रिक जनता दल के आगाज के साथ ही बीजेपी का काला दिन आरंभ हो गया है. बाबा साहेब के लोकतंत्र-संविधान की रक्षा के लिए बीजेपी को गंगा में विसर्जन किया जाएगा. 2019 तो दूर है, भापजा के पराजय के दिन आज से आरंभ हो गए हैं. बीजेपी को हराने के बाद ही देश को शांति मिलेगी.
बता दें कि लोकतांत्रिक जनता दल के प्रथम सम्मेलन में शरद यादव मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे लेकिन फिलहाल पार्टी में किसी पद पर नहीं हैं. लेकिन पार्टी के पूरे कार्यक्रम के दौरान हर वक्त ने इनका जिक्र किया जिससे स्पष्ट होता है कि नई लोकतांत्रिक जनता दल इनके नेतृत्व में लोकतंत्र, महिला, दलितों, किसानों व के लिए लड़ाई लड़ेंगी. इस मौके पर देश भर से हजारों समर्थक व नेताओं ने हिस्सा लिया.
बक्सर। बिहार के बक्सर में अपराधियों ने गोली मारकर बिहार यूनिट के बसपा के प्रदेश महासचिव खूंटी यादव की हत्या कर दी है. अपराधियों ने यादव के साथ मौजूद उनके बेटे यशवंत कुमार को भी गोली मार दी, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गया. घटना देर शाम इटाढ़ी रेलवे गुमटी के पास घटी. अपराधी कितने बेखौफ हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बसपा नेता के बिल्कुल सर में सटाकर दो गोलियां मारी. यादव मुखिया भी थे.
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक बसपा नेता को तब गोली मारी गई, जब वो अपनी मेडिकल की दुकान बंद करने के बाद बेटे यशवंत के साथ लालगंज में अपने आवास पर लौट रहे थे. जैसे ही उनकी स्कार्पियो गाड़ी इटाढी रेलवे गुमटी के पास पहुंची, पहले से धात लगाकर बैठे लोगों ने उन पर गोली चलाना शुरू कर दिया. बसपा नेता की हत्या से गुस्साए बसपा समर्थकों ने सदर अस्पताल के सामने शव के साथ सड़क जाम कर दिया. इस दौरान लोग इतने आक्रोशित हो गए कि उन्होंने मौके पर पहुंची पुलिस को भी खदेड़ दिया. हमले में घायल बसपा नेता के बेटे को डॉक्टरों ने वाराणसी रेफर कर दिया है. उन्हें पुलिस सुरक्षा में वाराणसी भेजा गया.
नई दिल्ली। कांग्रेस व जेडीएस ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति पर सवाल उठाया है. शनिवार को फ्लोर टेस्ट करने से पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. कांग्रेस और जेडीएस ने याचिका में कहा है कि जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करना संसदीय परम्परा के खिलाफ है. अब तक पार्टी लाइन से ऊपर उठकर वरिष्ठतम विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. लेकिन एक दागदार जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करना संसदीय परंपरा के अनुपयुक्त है.
कांग्रेस व जेडीएस की याचिका पर सुनवाई कर केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बने रहने पर फैसला सुनाया. कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे. बता दें कि कर्नाटक मुख्यमंत्री व बीजेपी नेता येदियुरप्पा शनिवार को शाम 4 बजे तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बहुमत साबित करने वाले हैं. इस प्रक्रिया के लिए प्रोटेम स्पीकर की भूमिका सर्वोरपरि रहेगी. प्रोटेम स्पीकर सभी विधायकों को शपथ दिलाता है और स्पीकर का चुनाव भी करवाता है. कर्नाटक में सरकार बनाने की सारी जिम्मेदारी प्रोटेम स्पीकर के फैसले पर निर्भर करती है.
कांग्रेस व जेडीएस प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति को लेकर गंभीर है. हालांकि कांग्रेस व जेडीएस की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल वजुभाई के फैसले को टालते हुए बीजेपी को 15 दिन के बजाय केवल एक दिन का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया है. संभावना है कि आज शनिवार तक कर्नाटक में सरकार बनने पर बड़ा फैसला आएगा.
नई दिल्ली. जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव की नई पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल ने बिगुल फूंक दिया है. तालकटोरा स्टेडियम में शुक्रवार को पार्टी के पहले स्थापना सम्मेलन में शरद यादव ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि आगामी चुनाव में भाजपा को गंगा में बहा देंगे. साथ ही नीतीश कुमार को भी सजा देने की बात कही.
लोकतांत्रिक जनता दल के सम्मेलन में शरद यादव मुख्य अतिथि के रूप में कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बिहार आदि राज्य के लोगों का स्वागत किए. उन्होंने कहा कि दलितों व किसानों पर बीजेपी अत्याचार कर रही है. अपने फायदे के लिए नोटबंदी, जीएसटी जैसे योजना बना जनता को लूटने का काम कर रही है. लेकिन 2019 में हिसाब चूकता कर दिया जाएगा. बीजेपी का विनाश संभव है.
कर्नाटक में सरकार बनाने के मुद्दे पर घेरते हुए कहा कि बीजेपी अलोकतांत्रिक व्यवस्था को बढ़ावा देकर काम कर रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाकर लोकतंत्र बचाया है. कांग्रेस जेडीएस फ्लोर टेस्ट में पास हो कर बीजेपी को पटखनी देगी. इस मौके पर बिहार में नौ बार विधायक रह चुके रमई राम ने हिस्सा लेकर दलितों को एकजुट होने के लिए कहा और बीजेपी को एक भी वोट ना देने की अपील की. उल्लेखनीय है कि नई पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल शरद यादव के नेतृत्व में काम करेगी और दलित, आदिवासी, महिला व संविधान के लिए लङाई लङेगी. इस दौरान हजारों की तादाद में कई राज्यों के समर्थक जुटे थे.
क्या आपको पशु पक्षियों या पेड़ पौधों में ऐसी प्रजातियों का पता है जो अपने ही बच्चों के लिए कब्र खोदती है? या अपने ही बच्चों का खून निकालकर अपने दुश्मनों को पिलाती है? मैंने तो आजतक ऐसा कोई जानवर या पक्षी या पेड़ नहीं देखा जो अपने बच्चों के भविष्य को बर्बाद करने की योजना बनाकर बड़े पैमाने पर उसका पालन करता है. लेकिन इंसानों में आपको ऐसे लोग जरुर मिलेंगे. विशेष रूप से भारत में और वो भी बहुजन समाज से आने वाले लोगों में.
भारत के बहुजन अर्थात भारत के ओबीसी दलित आदिवासी मुसलमान सिख इसाई इत्यादि में एक भयानक किस्म की जहालत छाई हुई है. ये जातियां जान बूझकर अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद करने का भारी प्रयास बड़े पैमाने पर कर रही हैं. एक गाँव में काडर केम्प की ट्रेनिंग में कुछ बहुजनों से बात हो रही थी. यादव, दलित, मुसलमान और आदिवासी युवाओं से बातचीत हो रही थी. मैंने एक यादव युवक से पूछा कि आप क्या करते हैं? वो बोला कि मैंने मोबाइल की दूकान खोली थी वो नहीं चली, अब मैं बेरोजगार हूँ घर पर मोहल्ले में सब लोग मजाक उड़ाते हैं बीबी भी रोज ताने मारती है कि कमाकर लाओ.
मुसलमान मित्रों से पूछा कि आप क्या कर रहे हैं? वे बोले कि हमें नौकरी इत्यादि तो मिलने से रही पढ़ लिखकर कोई फायदा नहीं तो हम भी सब्जियों का बिजनेस कर रहे हैं लेकिन हमारी दुकानों से खरीदने से लोग कतराते हैं हमें मार्केट में बहुत दिक्कत होती है.
फिर मैंने दलितों से पूछा कि आपके क्या हाल हैं? वे बोले कि हमारी जाति के कारण हम चाय समोसे की दूकान या कपड़े की दूकान या कोई अन्य धंधा नहीं कर सकते ऊँची जात के हिन्दू तो छोडिये बहुजन समाज के लोग भी हमारी दूकान पर नहीं आते, ऐसे में हम कौनसा बिजनेस करें? हम गरीब और बेरोजगार ही मरेंगे ऐसा लगता है.
फिर मैंने आदिवासियों से पूछा कि भाई आपकी क्या कहानी है? वे बोले कि भैया हमारे लोग महुआ खरीदकर बनियों महाजनों को बहुत सस्ते में बेचते हैं और उन्ही से महंगे में खरीदते हैं इस तरह गरीब होते जाते हैं और बर्बाद हो रहे हैं. आदिवासी युवाओं की कोई दूकान या व्यवसाय नहीं चलने दिया जाता पूरा बनिया सिन्धी और जैनों का गिरोह है जो किसी भी बहुजन को पनपने नहीं देता.
ये सुनकर मैंने उन सभी से पूछा कि आपके गाँव में ब्राह्मण,बनियों, सिंधियों, जैनों के कितने घर हैं? वे बोले कि मुश्किल से तीस या चालीस घर होंगे. मैंने फिर पूछा कि बहुजनों के कितने घर हैं? वे बोले कि बहुजनों में ओबीसी दलित आदिवासी और मुसलमान सब मिलाकर दो सौ से ज्यादा घर हैं.
मैंने फिर पूछा कि इसका मतलब कुछ समझ में आया आपको? वे बोले कुछ कुछ समझ में आया …
मैंने विस्तार से समझाते हुए उन्हें कहा कि आप लोग अपने ही बच्चों के गुनाहगार हो आपके साथ जो गुजर रही है वो आपके माता पिता और पिछली पीढी के की गलतियों का नतीजा है. और अभी आप जो गलतियां कर रहे हो उसका फल आपके ही बच्चों को भुगतना पड़ेगा.
वे बोले कि भैया कुछ विस्तार से समझाइये और बताइए कि हम ये हालत कैसे बदल सकते हैं?
मैंने बताया कि आपके बहुजन समाज के यहाँ कम से कम दो हजार लोग हैं वे अपना खून पसीना एक करके जो कुछ कमाते हैं उसे ब्राह्मण, बनियों, सिंधियों और जैनों की दुकानों से व्यापर करके लुटा देते हो. ये सवर्ण लोग आपसे नफरत करते हैं आपको इंसान भी नहीं समझते.
ये सवर्ण व्यापारी आपके पैसों से मुनाफा कमाकर आपको गुलाम बनाने वाले धार्मिक बाबाओं और धार्मिक गुंडों को चंदा देते हैं उसी से धार्मिक गुंडों की राजनीति चलती है और वे आपके बच्चों को अंधविश्वास सिखाते हैं, आपकी औरतों को अन्धविश्वास सिखाते हैं. इसी पैसे से वे मीडिया मेनेज करते हैं इसी पैसे से वे आरक्षण खत्म करने वाले और एस सी / एस टी एक्ट को खत्म करने वाले आन्दोलन चलाते हैं.
ये सुनते ही उनका मुंह खुला का खुला रह गया. वे एकदूसरे का मुंह देखने लगे.
मैंने फिर पूछा कि आपके खुद के परिवार के लोग कपड़ा, बर्तन, स्टेशनरी, सब्जी भाजी दूध तेल शकर इत्यादि कहाँ से खरीदते हैं? क्या आप बहुजनों की दूकान से खरीदते हैं?
वे बोले नहीं हम तो सभी सवर्णों की दूकान से खरीदते हैं.
मैंने फिर पूछा कि भाइयों जरा गौर करो और बताओ कि अगर आप खुद अपने परिवारों को बहुजनों की दूकान से सामान खरीदना नहीं सिखा पाए हो तो गलती किसकी है? आपका खुदका व्यापार या दूकान आपके ही गाँव में नहीं चलता तो गलती किसकी है? बहुजन जातियों के लोग अपने ही बहुजन युवाओं की दूकान से माल नहीं खरीदते तो गलती किसकी है? ऐसे में आप सब गरीब हो बेरोजगार और कमजोर हो तो अब इसमें गलती किसकी है?
वे ये बात समझ गये.
अब ये बात पूरे देश के बहुजनों को समझनी चाहिए.
अगर भारत के बहुजन ये तय कर लें कि वे सिर्फ ओबीसी दलित आदिवासी और अल्पसंख्यकों की दुकानों से ही खरीददारी करेंगे और उन्ही के व्यापार को मजबूत बनायेंगे तो वे भारत के सबसे शक्तिशाली समाज के रूप में उभरना शुरू हो जायेंगे. बहुजनों को अब समाज जीवन के सभी आयाम जैसे धर्म, सँस्कृति, भाषा, साहित्य, राजनीति, व्यापार इत्यादि सब अपने हाथ मे लेना शुरू करना चाहिए. अपने ही बहुजन नेटवर्क में एकदूसरे की मदद करते हुए समर्थ बहुजन भारत का निर्माण करना चाहिए. विशेष रूप से छोटे उद्योग धंधों और स्थानीय व्यापार में पकड़ बनानी चाहिए. मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन सूअर पालन इत्यादि क्षेत्रों में बहुजनों को तेजी से अपना अधिकार बनाना चाहिये. इससे तीन फायदे होंगे.
पहला फायदा ये कि बहुजनों को पक्की आजीविका और रोजगार मिलेगा और बहुजन समाज मे उद्यमियों की संख्या बढ़ेगी.
दूसरा फायदा ये कि बहुजनों को दैनिक भोजन में हाई प्रोटीन भोजन मिलेगा जिसकी बहुजन बच्चों और स्त्रियों को सख्त जरूरत है.
तीसरा फायदा ये कि बहुजनों का पैसा बहुजनों के पास ही रहेगा। बहुजनों से नफरत करने वाले सवर्ण व्यापारियों से व्यापार धीरे धीरे बन्द होता जाएगा. इससे बहुजन जातियों को इंसान समझने वाले बहुजन व्यापारियों की संख्या बढ़ेगी. इस कदम से भारत के मौजूद धार्मिक गुंडों की आर्थिक नसबंदी हो जाएगी.
जिस दिन 85% बहुजनों ने यह तय कर लिया कि उन्हें सिर्फ बहुजन व्यापारियों से ही माल खरीदना है, उसी दिन भारत मे इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति बिना शोर मचाये और बिना खून बहाए अपने आप हो जाएगी. ओबीसी दलित आदिवासी और मुसलमान सिख इसाई आदि मिलकर एकदूसरे को व्यापर करने में मदद करें. इन समुदायों के आम जन इन्ही जातियों समुदायों से खरीददारी करें अपने गरीब समाज का पैसा अपने पास रहने दें. जो समाज आपसे नफरत करता है उनकी दूकान से एक रूपये का भी सामान मत खरीदिये.
ये एक निर्णायक कदम होगा. धीरे धीरे इन व्यापारियों की आर्थिक नसबंदी शुरू होगी और इनके धार्मिक, राजनीतिक आकाओं तक भी बात पहुँच जायेगी. उनकी अक्ल भी ठिकाने आएगी. आपको यकीन नहीं होता तो ये अपने गाँव मुहल्लों में करके देखिये. जो व्यापारी अब तक आपको ठगते आये हैं, जो महाजन आपको कर्ज में दबाकर चूसते आये हैं वे एक तीन से छः महीने के भीतर आपके पैर छूने लगेंगे. अगर आपको बहुजन धर्म, बहुजन संस्कृति और बहुजन राजनीति को स्थापित करना है तो उसका रास्ता कोरी वैचारिक बकवास से नहीं निकलेगा. जमीन पर जहां दो रूपये पांच रूपये का सामन खरीदा बेचा जाता है वहां पर आपको बहुजन एजेंडा लागू करना होगा.
जिस दिन बहुजन समाज के लोग एक रुपया भी खर्च करने के पहले इस तरह सोचना शुरू कर देंगे उस दिन भारत के सभी गरीबों के लिए एक निर्णायक बदलाव आना शुरू हो जाएगा. ये एकदम आसान काम है, अपने गली मुहल्ले में लोगों को इकट्ठा कीजिये और समझाइये. इसके लिए कोई बड़ा आन्दोलन, नेतागिरी धरना प्रदर्शन या रथयात्रा की जरूरत नहीं है.