वीडियोः दिल्ली में नाइजीरियन युवक को खंभे से बांधकर बेरहमी से पीटा

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नाइजीरियन युवक

नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली के मालवीय नगर में एक नाइजीरियन युवक को बेरहमी से पीटने का वीडियो सामने आया है. नाइजीरियन युवक को कोई और नहीं स्थानीय लोग ही लाठी-डंडों से पीट रहे हैं. स्थानीय लोग नाइजीरियन युवक को चोरी के आरोप में पीट रहे थे.

युवक की पिटाई का वीडियो भी सामने आया है. न्यूज एजेंसी एएनआई ने इस घटना का वीडियो जारी किया है. बताया जा रहा है कि 24 सितंबर को लोगों ने इस नाइजीरियन युवक को पीटा था. वीडियो में दिख रहा है कि युवक के पैर पोल के सहारे रस्सी से बंधे हुए हैं. एक शख्स नाइजीरियन युवक को उलटा कर देता है, दूसरा उसके तलबे पर डंडे बरसाता है. थोड़ी देर बाद युवक पर दो-तीन लोग डंडे बरसाना शुरू कर देते हैं. वह कराहता रहता है पर लोग रहम नहीं करते हैं. वीडियो में पीछे से आवाज आ रही है कि कुछ लोग युवक की पिटाई करने से मना कर रहे हैं.

पिछले कुछ समय से दिल्ली और एनसीआर में अफ्रीकी युवकों की पिटाई के कई मामले सामने आ चुके हैं. अफ्रीकी युवकों पर भारत में नशीली पदार्थों की तस्करी के भी आरोप लगते रहे हैं. इसी साल मार्च में नाइजीरिया के ही युवक पर किडनैपिंग और हत्या के आरोप लगे थे, जिसके बाद लोगों ने अंसल प्लाजा में उसकी बेरहमी से पिटाई की थी.

ट्रेन टिकट कैंसिलेशन और रिफंड से जुड़ी अहम बातें

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नई दिल्ली। इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) के ई-टिकट सेवा प्रदाता का कहना है कि चार्ट तैयार होने तक ऑनलाइन बुक की गई टिकट कैंसिल की जा सकती हैं. आपको बता दें कि रेलवे काउंटर पर ई-टिकट कैंसिलेशन की अनुमति नहीं होती है.

आईआरसीटीसी वेबसाइट की अनुसार दिन 12 बजे से शुरू होने वाली ट्रेनों का चार्ट एक रात पहले ही तैयार कर दिया जाता है. कैंसिलेशन की पुष्टि ऑनलाइन की जाएगी और रिफंड उस एकाउंट में क्रेडिट कर दिया जाएगा जिसके माध्यम से टिकट बुक की गई थी. अगर टिकटों की आंशिक कैंसिलेशन की जाती है तो सुनिश्चित करें कि एक नया ई-रिजर्वेशन स्लिप (इलेक्ट्रोनिक स्लिप) प्रिंट करवाएं.

अगर आप ट्रेन के डिपार्चर टाइम से 48 घंटे पहले कन्फर्म्ड टिकट कैंसिल करते हैं तो एसी फर्स्ट क्लास या एग्जीक्यूटिव क्लास के लिए 240 रुपये, एसी 2 टायर या फर्स्ट क्लास के लिए 200 रुपये, एसी 3 चेयर या एसी चेयर कार या एसी 3 इकोनॉमी के लिए 180 रुपये, स्लीपर क्लास के लिए 120 रुपये और सेकेंड क्लास के लिए 60 रुपये की कटौती की जाएगी.

अगर कन्फर्म्ड टिकट 48 घंटों के भीतर और डिपार्चर के तय समय से 12 घंटे पहले तक कैंसिल की जाती है तो ऊपर बताये गये किराए का 25 फीसद कटेगा. वहीं, 12 घंटे और ट्रेन के डिपार्चर समय से चार घंटे पहले तक टिकट कैंसिल करने पर न्यूनतम कैंसिलेशन रेट का 50 फीसद काटा जाएगा. चार्ट तैयार होने के बाद ई-टिकट कैंसिल नहीं कराई जा सकती.

वर्तमान नियमों के अनुसार, तत्काल टिकट रद्द होने पर कोई भी रिफंड नहीं मिलता है. अगर ट्रेन तीन घंटे से ज्यादा देरी या ट्रेन रद्द कर दी गई हो तो यात्री रिफंड का दावा करने के लिए ऑनलाइन टीडीआर फॉर्म भर सकते हैं. जानकारी के लिए बता दें कि एक से अधिक यात्री के लिए जारी ई-टिकट को ट्रेन के डिपार्चर समय से 30 मिनट पहले रद्द कराया जा सकता है. इस स्थिति में कन्फर्म टिकट यात्री को निर्धारित शुल्क काटकर रिफंड दे दिया जाएगा, लेकिन इसके लिए ऑनलाइन टीडीआर फॉर्म भरना जरूरी है.

रोहिंग्या शरणार्थियों से भरी नाव डूबी, 12 की मौत

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Rohingyas muslim

कॉक्स बाजार। बांग्लादेश और म्यांमार के बीच नफ नदी में एक नाव के डूबने से करीब 12 रोहिंग्या शरणार्थियों की मौत हो गई है. अभी तक इनके शव नहीं मिल पाए हैं. गौरतलब है कि म्यांमार से बांग्लादेश आते हुए कई रोहिंग्या अपनी जान गंवा चुके हैं.

आपको बता दें कि बांग्लादेश दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी कैंप बनाने पर काम कर रहा है. इस कैंप में लगभग 8 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को जगह दी जा सकेगी. यह कैंप म्यांमार सीमा के पास ही कुतुपलोंग में बनाया जा रहा है. अभी तक के आंकड़ों के मानें, तो अभी तक 4 लाख रोहिंग्या बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं.

रोहिंग्या घुसपैठ की आशंका के चलते भारत- बांग्लादेश सीमा के 140 पॉइंट पर अलर्ट बढ़ाया दिया गया है. भारत और बांग्‍लादेश के सीमा सुरक्षा बलों की 6 दिवसीय कॉन्फ्रेंस दिल्ली में बीते शुक्रवार को संपन्‍न हुई.

इस मौके पर बांग्लादेश की बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश यानी बीजीबी और भारत की बॉर्डर गार्डिंग फ़ोर्स बीएसएफ़ के डीजी ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें बांग्लादेश से भारत मे आने वाले रोहिंग्या मुस्लिम का मुद्दा भी शामिल था.

पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनमें रोहिंग्या मुस्लिमों ने बांग्लादेश से भारत की सीमा में दाखिल होने की कोशिश की है. ये घटनाएं त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में सामने आई हैं, लेकिन बॉर्डर पर तैनात बीएसएफ के जवानों ने उन्हें वापस बांग्लादेश की सीमा में भेज दिया है.

कांशीराम जी की कलम याद है

Kanshiram

अपने कैडर में मान्यवर कांशीराम एक बहुत दिलचस्प किस्सा बताते थे. और इस किस्से के जरिए तमाम लोग मान्यवर की बात को समझ जाया करते थे. असल में मान्यवर कांशीराम जिन लोगों के बीच काम कर रहे थे, जिन्हें जगा रहे थे उसका बहुसंख्यक हिस्सा गरीब और कम पढ़ा-लिखा था. उन्हें उनकी ही भाषा में समझाना जरूरी था, तभी वो कांशीराम जी की बात समझ पाते.

इस लिहाज से कांशीराम जी ऐसे-ऐसे किस्से ढूंढ़ लाते, जिससे बहुजन समाज के लोग उनकी बात आसानी से समझ जाते. जैसे बाबासाहेब को वह टाई वाले बाबा कहते थे तो ऐसे ही ज्योतिबा फुले को पगड़ी वाले बाबा कह कर संबोधित किया करते थे. जब वो बहुजन समाज को इनके बारे में बताते तो ऐसे संबोधन सुनकर सभी लोग तुरंत समझ जाते कि आखिर मान्यवर किसके बारे में बात कर रहे हैं.

इसी तरह से कांशीराम जी एक कलम के जरिए भी अपनी बात बताते थे. हाथ में कलम लिए उनकी वह फोटो काफी चर्चित है. कांशीराम जी यह पूछते कि कलम चलती कैसे है, लोग बताते कि स्याही या फिर लीड से कलम चलती है. फिर कांशीराम जी उनसे यह पूछते थे कि दिखता क्या है, जाहिर सी बात है मौजूद लोग पेन के कवर को बताते थे. मान्यवर लोगों को यह समझाते थे कि पेन का काम लिखना होता है और लिखने का काम पेन की लीड करती है. यानि कि अगर पेन का कवर न हो तो भी पेन लिखता रहेगा. वह समझाते कि असली ताकत दिखने वाले कवर में नहीं बल्कि लिखने वाली स्याही में है.

मान्यवर कांशी राम साहब ने कलम दर्शन समझाते हुए कहा था की कलम का बड़ा हिस्सा यानी पचासी परसेंट काम करता है. असली ताकत उसके पास है, ऊपर का 15 परसेंट सिर्फ दिखावे के लिए है. जब पचासी पर्सेंट काम करता है तो 15 परसेंट हिस्सा उसके सिर पर सवार हो जाता है और अपनी हुकूमत का एहसास कराता है.

इसे वह बहुजन समाज से जोड़ते हुए कहते थे कि देश के 85 फीसदी मेहनतकश लोग ही देश की असली ताकत हैं. ताकत होते हुए भी वह लाचार हैं, जबकि 15 फीसदी लोगों के पास सारी ताकत है और उनका सत्ता पर कब्जा है. मान्यवर की ऐसी ही परिभाषाओं ने बहुजन समाज को उसकी ताकत का अहसास कराया, जिसके बूते बहुजन समाज सत्ता के शिखर तक पहुंच सकी.

वर्तमान समय में बहुजन समाज अपनी उस ताकत को भूलता दिख रहा है. आखिर आज किस-किस को मान्यवर की “कलम” (Pen) वाली परिभाषा याद है? इसके जरिए मान्यवर समझाना चाहते थे कि लिखता कौन है (स्याही) यानि की असली ताकत किसके हाथ में है, और दिखता कौन है (कवर) यानि बिना मेहनत किए कौन राजा बना बैठा है. बहुजन समाज के हर व्यक्ति को मान्यवर द्वारा दी गई इस परिभाषा से सीख लेते हुए अपनी ताकत को पहचानना होगा. यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी. बहुजन महानायक को नमन.

गोधरा कांडः हाईकोर्ट ने मौत की सज़ा को उम्र क़ैद में बदला

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Godhara

गांधी नगर। 15 साल पहले साल 2002 में गोधरा में ट्रेन जलाने के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने सभी 11 दोषियों की मौत की सजा को बदलकर उम्रकैद में कर दिया है. साथ ही मारे गए परिवार के लोगों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने तत्कालीन गुजरात सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई है. कोर्ट के मुताबिक तत्कालीन सरकार दंगों के दौरान कानून-व्यवस्था को बनाए रखने में विफल रही थी. इतना ही नहीं कोर्ट ने ये भी कहा कि गुजरात सरकार के साथ साथ रेलवे भी कानून-व्यवस्था बनाए रखने में फेल रही.

दरअसल मामले की जांच कर रही एसआईटी की विशेष अदालत ने 2011 में 31 लोगों को दोषी करार दिया था. जिसमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, जबकि 20 को उम्रकैद की सजा दी गई थी. इस फैसले के बाद मौत की सजा पाने वाले आरोपियों ने एसआईटी के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिसके बाद हाईकोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था. जिस पर आज फैसला सुना दिया गया.

आपको बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच से आग की लपटें उठने लगीं. इस घटना में आग से झुलसकर 59 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें से ज्यादातर वो लोग थे जो अयोध्या में हुए एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. बाद में इस घटना को एक बड़ा राजनीतिक रुप दे दिया गया. जिसने गुजरात के माथे पर कभी न मिटने वाला दाग लगा दिया.

दिल्ली-एनसीआर में दिवाली पर नहीं फूटेंगे पटाखे

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Demo Pic

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दिल्ली-एनसीआर में 31 अक्टूबर तक पटाखों पर प्रतिबंध जारी रहेगा. कोर्ट ने सारे स्थायी और अस्थायी लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिए है. अब 1 नवंबर से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पटाखे बिक सकेंगे.

इससे पहले अदालत ने 12 सितंबर को पटाखों की बिक्री को लेकर राहत दी थी जिसमें अब संशोधन किया गया है. न्यायमूर्ति जस्टिस एके सिकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने 6 अक्टूबर को इस विषय पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. कोर्ट से मांग की गई थी कि वह पिछले वर्ष के अपने उस आदेश को बहाल करे, जिसके तहत दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी.

दिल्ली-एनसीआर क्या पूरे भारत में दिवाली के मौके पर पटाखे जलाए जाते हैं. जिसमें दिल्ली जैसे महानगर टॉप पर होते हैं. इस आदेश के बाद दिल्ली-एनसीआर के लोग दिवाली पर पटाखे नहीं जला पाएंगे.

गौरतलब है कि 11 नवंबर, 2016 के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि इस वर्ष 12 सितंबर को शीर्ष अदालत ने अपने उस आदेश को अस्थायी तौर पर वापस लेते हुए पटाखों की बिक्री की इजाजत दे दी थी.

इस फैसले के बाद अर्जुन गोपाल ने कोर्ट को चुनौती दी थी. उनकी ओर से पेश वकील गोपाल शंकरनारायणन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि पटाखों की बिक्री पर रोक का आदेश जारी रहना चाहिए, क्योंकि इससे दिवाली के पहले और बाद में दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है.

रमणिका गुप्ता को मिला ‘बिरसा मुंडा सम्मान’

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Hansraj college

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में अम्बेडकरवादी लेखक संघ ने ‘बिरसा मुंडा सम्मान समारोह-2017’ कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम में रमणिका गुप्ता को बिरसा मुंडा सम्मान दिया गया. इसके अलावा तीन युवा कहानीकार अनुपम वर्मा, रायबहादुर और विपिन चौधरी ने कहानी पाठ भी किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जयप्रकाश कर्दम सबसे पहले रमणिका गुप्ता को बिरसा मुंडा सम्मान की बधाई दी. साथ ही उन्होंने कहा कि रमणिका गुप्ता ने दलित और आदिवासियों पर बहुत काम किया है. रमणिका गुप्ता ने कहा कि अम्बेडकरवादी साहित्य दलित, आदिवासी, महिला, अल्पसंख्यक और वंचितों समुदायों के सवालों और संवेदनाओं को वाणी देने वाला साहित्य है. यह भविष्य का साहित्य होगा.

कार्यक्रम में दलित कहानीकार डा. नामदेव ने तीनों कहानीकारों को भविष्य का कहानीकार बताया. उन्होंने कहा कि तीनों कहानीकार अपने समय के सवालों को तो उठाते हैं. विषय प्रस्तुत करते हुए दलित आलोचक मुकेश मिरोठा ने कहा कि नए कहानीकारों को अच्छी कहानियों के लिए बधाई देनी चाहिए. मिरोठा ने आगे कहा कि जो लेखक अपने को वरिष्ठ मानते हैं और अपने समाज से कट गए हैं. उनको हमें मंचो पर शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

कार्यक्रम में रिदम के डायरेक्टर हंसराज सुमन ने रिदम की तरफ से रमणिका गुप्ता को बधाई दी. उन्होंने कहा कि नए कहानीकार साहित्य के लिए एक बड़ी उम्मीद जगाते हैं. इस कार्यक्रम का संचालन हेमलता यादव और अरुण कुमार ने की. हंसराज कालेज की प्रिंसिपल प्रोफसर रमा शर्मा ने रमणिका गुप्ता के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला.

AMU और BHU के नाम से हटाए जाएं हिंदू-मुस्लिम शब्दः UGC

नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के नाम से जल्द ही ‘मुस्लिम’ और ‘हिंदू’ शब्द हटाए जा सकते हैं. इन दोनों युनिवर्सिटी से ‘मुस्लिम’ और ‘हिंदू’ हटाने का सुझाव विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दिया है.

यूनिवर्सिटी का सेक्युलर चरित्र प्रदर्शित न हो इसलिए यूजीसी ने यह सुझाव दिया है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यूजीसी ने 10 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कथित अनियमितता की शिकायतों की जांच के लिए मानव संसाधन मंत्रालय के निर्देश पर 25 अप्रैल को पांच कमेटियां गठित की थी. इसी में एक समिति ने विश्‍वविद्यालयों के सेक्‍युलर चरित्र को प्रदर्शित करने के मकसद से ये धर्मसूचक शब्द हटाने की सिफारिश की है.

एएमयू और बीएचयू के अलावा पांडिचेरी, इलाहाबाद, उत्‍तराखंड, झारखंड, राजस्‍थान, जम्‍मू, वर्धा, त्रिपुरा और मध्‍य प्रदेश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों के भी ‘शैक्षिक, शोध, वित्‍तीय और मूलभूत संरचना ऑडिट’ कराया गया है.

अखबार के मुताबिक, समिति को इन विश्वविद्यालयों में अकादमिक, अनुसंधान और वित्तीय संचालन के अलावा इनके बुनियादी ढांचों की ऑडिट करनी थी. ऐसे में एएमयू की ऑडिट कर रही समिति ने सुझाव दिया कि संस्‍थान को या तो सिर्फ ‘अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ‘ कहा जाए या फिर इसका नाम इसके संस्‍थापक सर सैयद अहमद खान के नाम पर रख दिया जाए. रिपोर्ट के मुताबिक, बीएचयू के मामले में भी ऐसी ही शिफारिश की गई है.

पैनल सदस्‍यों ने इस सुझाव के पीछे यह तर्क दिया है कि एएमयू, केंद्र द्वारा वित्‍त पोषित होने के कारण सेक्‍युलर संस्‍था है. कमेटी ने एएमयू की प्रकृति को ‘सामंती’ बताया है और कैंपस में गरीब मुस्लिमों को ऊपर उठाने के लिए कदम उठाने की जरूरत बताई है. साथ ही यूनिवर्सिटी की फीस में बढ़ोत्तरी की भी सिफारिश की है. जिससे विवि की सुविधाओं में इजाफा हो सके.

कांशीराम: जिन्होंने जाति की सियासत को हमेशा के लिए बदल दिया

कांशीराम दूसरे नेताओं की तरह सफेद खादी के कपड़े नहीं पहनते थे. संघर्ष के दिनों में सेकेंड हैंड बाजार से खरीदे पैंट शर्ट और बाद में सफारी सूट उनका पहनावा बना. दूसरे नेताओं से उनका ये फर्क सिर्फ कपड़ों तक नहीं था. कांशीराम के जीवन का हर पहलू राजनीति के दूसरे धुरंधरों से अलहदा था.

जाति के भेदभाव में गले तक डूबे समाज और नेता जहां जाति उन्मूलन की बात करते रहे कांशीराम ने खुलकर जाति की बात की. वो भी बड़े तल्ख तेवर के साथ. ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनके मारो जूते चार’ या ठाकुर बामन बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएसफोर’ जैसे नारे हों या आर्यावर्त को चमारावर्त बनाने की बात, कांशीराम नें ठीक वहीं पर चोट की जहां सबसे ज्यादा दर्द हो.

1992 में राम मंदिर आंदोलन के समय बीजेपी जहां हिंदुत्व कार्ड खेल रही थी, कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी बहुत खुरदुरे तरीके से दलितों को समझा रही थी कि उसकी अपनी बिरादरी से भी कोई मुख्यमंत्री बन सकता है, ऐसा मुख्यमंत्री जो किसी बड़े पावर ग्रुप का नाम मात्र चेहरा न हो अपनी ताकत और तेवर दिखाने वाला दलित नेता हो.

1995 में कांशीराम इसमें कामयाब हो गए, जब मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनी. हालांकि इन तेवरों को सही से आगे न ले जाने के चलते मायावती जिस तेजी से यूपी में आईं, उसी तेजी से यूपी में सिर्फ एक जाति की नेता बनकर रह गई. दलित आंदोलन देखते ही देखते सोशल इंजीनियरिंग बनकर रह गया.

ये कांशीराम का दुर्भाग्य है कि उनकी विरासत को लोग सिर्फ मायावती तक समेट कर देखने लगते हैं. मगर कांशीराम राजनेता नहीं हैं. उनका बड़ा योगदान सबआल्टर्न इतिहास के जरिए दलितों में विद्रोह की चेतना जगाना है. कांशीराम की दलित आंदोलन में कितनी आस्था थी ये उनके अपने घरवालों को लिखे गए 24 पन्नों के खत में दिखता है. कांशीराम ने अपने खत में लिखा कि

अब कभी घर नहीं आऊंगा. कभी अपना घर नहीं खरीदूंगा. सभी रिश्तेदारों से मुक्त रहूंगा. किसी के शादी, जन्मदिन, अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होऊंगा. कोई नौकरी नहीं करूंगा. जब तक बाबा साहब अंबेडकर का सपना पूरा नहीं हो जाता, चैन से नहीं बैठूंगा.

कांशीराम ने इन प्रतिज्ञाओं का पालन किया. वह अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए.

इसके अलावा कांशीराम ने ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई, झलकारीबाई और ऊदा देवी जैसे प्रतीकों को दलित चेतना का प्रतीक बनाया. उन्हें वो मान दिलाया कि किसी भी डिसकोर्स में प्रमुखता से याद किया जाए. हालांकि इसे कांशीराम की गलती या दुर्भाग्य जो भी कहा जाए कि उनकी चुनी हुई वारिस मायावती ने इन प्रतीकों को मूर्ति बनाकर सियासत चमकाने का फॉर्मूला मान लिया. सत्ता के लिए बीएसपी का मूवमेंट सत्ता में आने के दस सालों के अंदर ही ब्राह्मण शंख बजाएगा और हाथी नहीं गणेश है जैसे नारों की भेंट चढ़ गया.

ये बात बिलकुल सच है कि कांशीराम के योगदान को सिर्फ बहुजन समाज पार्टी के सफलता और विफलता से नहीं नापा जा सकता. बहुजन समाज पार्टी उनके द्वारा किए गए बड़े बदलाव का एक हिस्सा भर है. फिर भी एक समय पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे समूचे हिंदी पट्टी में तेजी से फैली यह पार्टी की गति दो दशकों के अंंदर ही सिमटती चली गई.

अगर कांशीराम आज देश की सियासत को देख रहे होते तो शायद बीएसपी को यही समझा रहे होते कि सामाजिक आंदोलन त्याग और जिद से चलते हैं, इंजीनियरिंग के फॉर्मूलों से नहीं.

अनिमेश मुखर्जी का यह लेख फर्स्टपोस्ट हिंदी से साभार है.

DMRC के किराया बढ़ाने पर दिल्ली सरकार ने मेट्रो प्रमुख को दी चेतावनी

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dmrc नई दिल्ली। दिल्ली मेट्रो के बढ़ते किराए को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) आमने-सामने हो गए हैं. दिल्ली सरकार ने डीएमआरसी के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह को चेतावनी दी है कि वह डीएमआरसी बोर्ड की बैठक में दिल्ली सरकार का पक्ष रखने के लिए बाध्य हैं. अगर दिल्ली सरकार को लगेगा कि इस मामले में अगर कोई ढिलाई बरती गई तो सरकार डीएमआरसी एक्ट के अनुसार कार्रवाई करेगी. इस बारे में शुक्रवार को दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत ने डीएमआरसी चेयरमैन को एक पत्र भी लिखा है. इसमें डीएमआरसी प्रबंधन निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया व जिम्मेदारियों का भी जिक्र है. दिल्ली सरकार का कहना है कि एक्ट के अनुसार, डीएमआरसी बोर्ड में दिल्ली सरकार पांच निदेशक नामित करती है. केंद्र सरकार से चर्चा करके दिल्ली सरकार ही डीएमआरसी चेयरमैन को भी बोर्ड में भेजती है. ​यह पांच निदेशक में से एक होता है. पत्र में लिखा गया है कि इस प्रावधान के अनुसार सरकार ने मंगू सिंह को डीएमआरसी का प्रबंध निदेशक नामित किया है. ऐसे में दिल्ली सरकार अपेक्षा करती है कि वह बोर्ड बैठक में दिल्ली सरकार के पक्ष को सही तरीके से मजबूती के साथ रखेंगे. परिवहन मंत्री ने पत्र में लिखा है कि अगर किसी भी समय दिल्ली सरकार को लगेगा कि अगर उसकी राय को सही संदर्भ में बोर्ड बैठक में नहीं लिया गया तो एक्ट के प्रावधानों के अनुसार काम करने को मजबूर होगी. पत्र में हालांकि सरकार ने सीधे तौर पर कार्रवाई की बात नहीं की है. वहीं, दिल्ली सरकार आधिकारिक तौर पर इस पत्र को चेतावनी पत्र नहीं मान रही है. बता दें कि दिल्ली सरकार किराया निर्धारण समिति के उस फैसले का विरोध कर रही है, जिसमें 10 अक्टूबर को दिल्ली मेट्रो का किराया दोबारा बढ़ाने का प्रस्ताव है. इस बारे में मुख्यमंत्री ने केंद्रीय शहरी विकास मंत्री को पत्र लिखा है.

जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन बंद, NGT के खिलाफ कोर्ट में जाने की तैयारी

Jantar Mantar

नई दिल्ली। जंतर-मंतर पर जहां कल तक हवा में तनी हुई मुट्ठियां दिखाई देती थी. और अपने हक की आवाज में लोग हल्लाबोल करते नजर आते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. क्योंकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के कहने पर दिल्ली सरकार ने किसी भी धरना प्रदर्शन पर यहां रोक लगा दी है. और कहा है कि अब से जब भी अपने हक में आवाज उठानी हो तो उसके लिए रामलीला मैदान में जाओ.

दरअसल न्यायमूर्ति आरएस राठौर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने एनडीएमसी को जंतर-मंतर और उसके आस पास मौजूद सभी अस्थायी ढांचों और लाउडस्पीकरों को हटाने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट इस फैसले के पीछे ध्वनी प्रदूषण का हावाला दे रही है आपको बता दें कि जंतर-मंतर से पहले दिल्ली का वोट क्लब प्रदर्शनकारियों का ठिकाना हुआ करता था. जहां पर 80 के दशक में किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने एक विशाल रैली का आयोजन किया था. जिसके बाद कोर्ट ने प्रदर्शन करने की जगह को बदलकर जंतर-मंतर कर दिया था.

NGT के इस फैसले के खिलाफ अब कई सामाजिक संगठन और प्रदर्शनकारियों की आवाज बुलंद होती दिखाई दे रही है. ये सभी संगठन NGT के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं. क्योंकि प्रदर्शनकारियों के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि उनके हक की आवाज को बिना जंतर-मंतर के कौन सुनेगा. भले ही सरकार प्रदर्शन के लिए जगह बदल दे. लेकिन लोकतंत्र के सिपाहियों की आवाज को दबा पाना इतना आसान नहीं है.

आदिवासी सेंगेल अभियान और बामसेफ करेंगे भाजपा सरकार के खिलाफ महारैली

Salkhan Murmu

रांची। झारखंड की भाजपा सरकार के खिलाफ आदिवासी सेंगेल अभियान और बैकवर्ड एंड माइनोरिटी कम्युनिटीज इम्प्लाइज फेडरेशन (BAMCEF) महारैली करेंगे. पांच सूत्री मांग आधारित यह महारैली 23 अक्टूबर को रांची के मोरहाबादी मैदान में होगी. इसमें पांच राज्यों के आदिवासी एवं बामसेफ के लाखों कार्यकर्ता शामिल होंगे.

आदिवासी सेंगेल अभियान के अध्यक्ष और पूर्व सासंद सालखन मुर्मू ने कहा कि झारखंड में आदिवासी का अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी और सरना-ईसाई आदिवासी की एकता खतरे में है. उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से इस अभियान के माध्यम से भूमि अधिग्रहण बिल की वापसी की मांग बुलंद की जाएगी. साथ ही धर्मांतरण बिल 2017 को भी रद्द करने की मांग उठाई जाएगी.

मुर्मू ने कहा कि भाजपा और आरएसएस की सरकार गलत नियम कानून बना कर पूंजीपतियों के लिए आदिवासी और मूलनिवासियों को उजाड़ने पर आमादा है. उन्होंने कहा कि जनगणना फॉर्म में सरना के लिए अलग धर्म कोड बनाने, डोमिसाइल नीति को रद्द करने और विकास के नाम पर आदिवासी-मूलवासी का विस्थापन पलायन बंद करने की मांग महारैली में की जाएगी.

उसालखन मुर्मू ने कहा कि जितने भी आदिवासी नेता विभिन्न पार्टियों में हैं, वे ही आदिवासियों के सबसे बड़े शत्रु हैं. उन्होंने कहा कि मेरी इनसे अपेक्षा है कि मिल बैठकर हर समस्या का हल निकाला लिया जाए. अगर ऐसी नहीं कर सकते तो इस्तीफा देकर सरकार को गिरा दें.

झारखंड सरकार से ये हैं पांच सूत्री मांगें-

* भूमि अधिग्रहण बिल 2017 रद्द किया जाए.

* धर्मांतरण बिल 2017 रद्द किया जाए.

* सरना धर्म को कॉलम कोड प्रदान किया जाए.

* गलत डोमिसाइल नीति रद्द किया जाए.

* विकास के नाम पर आदिवासी मूलवासी का विस्थापन बंद किया जाए.

महारैली में मुख्य अतिथि बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम और विशिष्ट अतिथि मौलाना सज्जाद नोमानी होंगे.

सामंती अन्याय के विरुद्ध दलितों का ‘मूंछ आंदोलन’

दलित

मूंछें रखने की वजह से गुजरात के गांधीनगर में पीयूष परमार और उनके दो भाइयों की गैर दलितों द्वारा की गई पिटाई के खिलाफ आक्रोश देश भर में बढ़ता जा रहा है. इस कृत्य की राष्ट्रव्यापी निंदा की जा रही है. मूंछों की वजह से हुई इस पिटाई की प्रतिक्रिया में गुजरात के दलितों ने अपनी मूंछों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने की शुरुआत की, दो-तीन दिन में ही विरोध का यह तरीका देशव्यापी होने लगा है.

गुजरात से सटे राजस्थान, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश सहित मुल्क के कई हिस्सों के दलित युवा फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर अपनी मूंछों वाली फोटो डाल रहे हैं. अधिकांश लोगों ने फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर ही मूंछों को बना दिया है. व्हाट्सएप की डीपी में भी अब मूंछें दिखाई पड़ रही हैं. विशेष रूप से दलित युवा इस प्रकार की मूंछों सहित फोटो डालते हुए लिख रहे हैं, “हम दलित हैं और मूंछे रखते हैं, आओ हम पर हमला करो.”

देखा जा रहा है कि इन दिनों सोशल मीडिया पर मूंछों वाली सर्वाधिक फोटो प्रवासी राजस्थानी अपलोड कर रहे हैं. ये प्रवासी राजस्थानी सामंती प्रभाव वाले राजस्थान के भीतरी इलाकों से निकले हैं, इन्होने या इनके पूर्वजों ने मूंछवालों के सामंती अत्याचारों को सहा है. चूंकि यहां सदैव से ही मूंछें मर्दानगी का पर्याय रही हैं और मर्दानगी दिखाने का अधिकार सवर्ण क्षत्रियों तक सीमित रहा है, इसलिए वही मूंछें रखते रहे, उन पर ताव देते रहे और लोगों को डराते रहे हैं. राजस्थान में मूंछों का सामंतशाही से बहुत गहरा रिश्ता रहा है जिससे पीढ़ियों तक जनता त्रस्त रही हैं, इसीलिए यह दलित युवा यदा-कदा उसे चुनौती देते रहते हैं.

आजकल यह देखने में आ रहा है कि दलित युवा अपना पहनावा, नाम के मध्य ‘ सिंह’ लिखना तथा सामंतों जैसी मूंछें रखना शुरू कर चुके हैं. खासतौर पर राजस्थान के मारवाड़ और मेवाड़ क्षेत्र में जारी सामंती अन्याय के विरुद्ध मूंछें उगाई जाने लगी हैं, उनको बड़ा किया जा रहा है और उनकी धार को तीखा करके ललकारा जा रहा है. मूंछों का उगना हर पुरुष के लिए स्वाभाविक बात है, यह किसी जातिविशेष का एकाधिकार नही है और न ही केवल कुछ जातियां ही मूंछों के नाम पर अपना प्रभुत्व कायम रख सकती हैं. गुजरात का मूंछ आंदोलन राजस्थान व अन्य राज्यों में एक अलग किस्म के उग्र प्रतिरोध के रूप में फूट रहा है, फल रहा है और फैल रहा है.

हालांकि दलित-बहुजन बुद्धिजीवी प्रतिक्रिया में पनप रहे इस मूंछ आंदोलन की मर्दाना छवि में कोई सार नहीं देख रहे हैं. उन्हें इसके लैंगिक स्वरूप से अच्छी खासी परेशानी है, उनको लगता है कि इन्हीं सामंतवाद व जातिवाद की प्रतीक मूंछों के खिलाफ लड़ कर दलित विमर्श समता का वितान रचता है, जो स्त्री-पुरुष समानता के विचार को पल्लवित-पोषित करता है, मगर अब प्रतिक्रिया स्वरूप आ रहा ‘मूंछवाद’ दलित आंदोलन के भीतर की पितृसत्तात्मकता को और अधिक मजबूत करेगी जो कि किसी भी रूप में शुभ संकेत नहीं है.

यह भी सही है कि यह महज प्रतिक्रिया भर है. कई दलित युवा सहजता से पहले भी मूंछें रखते आये हैं और आगे भी रखेंगे. उनके लिए मूंछें कभी कोई मुद्दा रही भी नहीं, हां, मूंछों से उन्हें वितृष्णा जरूर रही है, पहले मूंछों वाले अत्याचार करते थे, अब मूंछों के नाम पर अत्याचार हो रहा है. ऐसी प्रतिक्रिया स्वाभाविक मानी जा रही है. कुल मिलाकर दलित युवाओं में आक्रोश की अभिव्यक्ति का एक साधन बन रहा है गुजरात से पैदा हुआ दलित मूंछ आंदोलन.

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं ). यह लेख आउटलुक हिंदी से साभार है.

गाली देने से मना किया तो मनुवादियों ने दलित को पीटा, फूंक दी झोपड़ी

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भिंड। चम्बल में आज भी दलित समाज के लोग जातिवाद का शिकार हो रहे है. मामला भिंड के सेमरा गांव का है. जहां एक दलित परिवार को अपना सम्मान बचाना इतना भारी साबित हुई कि जातिवादियों ने उसकी झोपड़ी में ही आग लगा दी.

दरअसल, सेमरा निवासी देशराज जाटव से गांव के ही जातिवादी मानसिकता वाले अनरुद्ध से रंजिश चली आ रही थी. इसी रंजिश के तहत शुक्रवार(6 अक्टूबर) की रात अनुरुद्ध ने देशराज को गाली देना शुरू कर दिया. जब देशराज ने गाली देने से मना किया तो अनुरुद्ध ने अपने बेटे और भाई के साथ मिलकर देशराज से मारपीट की.

इतने पर से भी जब उनका का मन नहीं भरा तो जातिवादी गुंडों ने देशराज की झोपड़ी में आग लगा दी. अपने साथ हुए इस अन्याय की शिकायत पीड़ित ने अमायन थाने में की है. पुलिस ने देशराज समेत 3 लोगों पर मामला दर्ज कर लिया है. फिलहाल पुलिस उनकी तलाश कर रही है.

ईनाडु इंडिया से साभार