यूनेस्को से बाहर हुआ अमेरिका

वाशिंगटन। अमेरिका ने गुरुवार को यूनेस्को से बाहर होने की घोषणा कर दी. अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की इस सांस्कृतिक संस्था पर इजरायल विरोधी रूख अपनाने का आरोप लगाया है.
पेरिस स्थित यूनेस्को ने 1946 में काम करना शुरू किया था और यह विश्व धरोहर स्थल को नामित करने को लेकर मुख्य रूप से जाना जाता है. यूनेस्को से बाहर होने का अमेरिका का फैसला 31 दिसंबर 2018 से प्रभावी होगा. तब तक अमेरिका यूनेस्को का एक पूर्णकालिक सदस्य बना रहेगा.
विदेश विभाग की प्रवक्ता हीथर नाउर्ट ने कहा, ‘‘यह फैसला यूं ही नहीं लिया गया है बल्कि यह यूनेस्को पर बढ़ती बकाया रकम की चिंता और यूनेस्को में इजरायल के खिलाफ बढ़ते पूर्वाग्रह को जाहिर करता है. संस्था में मूलभूत बदलाव करने की जरूरत है.’’ उन्होंने कहा कि विदेश विभाग ने यूनेस्को महानिदेशक इरीना बोकोवा को संस्था से अमेरिका के बाहर होने के फैसले की सूचना दी और यूनेस्को में एक स्थायी पर्यवेक्षक मिशन स्थापित करने की मांग की है.
प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने महानिदेशक को गैर सदस्य पर्यवेक्षक के तौर पर यूनेस्को के साथ जुड़े रहने की अपनी इच्छा जाहिर की है ताकि संगठन द्वारा उठाए जाने वाले कुछ अहम मुद्दों पर अमेरिकी विचार, परिप्रेक्ष्य और विशेषज्ञता में योगदान दिया जा सके. इन मुद्दों में विश्व धरोहर की सुरक्षा, प्रेस की स्वतंत्रता की हिमायत करना और वैज्ञानिक सहयोग एवं शिक्षा को बढ़ावा देना भी शामिल है.
3 लाख युवाओं को नौकरी के लिए विदेश भेजेगी मोदी सरकार, जल्द करें आवेदन

मोदी सरकार देश के युवाओं को एक खास तोहफा देने की तैयारी कर रही है. जहां केंद्र सरकार 3 लाख युवाओं को जापान भेजने की योजना बना रही है. इन युवाओं को वहां ऑन-जॉब ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा. सरकार के मुताबिक इन युवाओं को 3 से 5 साल के लिए यहां भेजा जाएगा. इस दौरान इन युवाओं का पूरा खर्च जापान सरकार उठाएगी. यही नहीं, ट्रेनिंग पूरी होने के बाद यहां कुछ युवाओं को नौकरी भी दी जाएगी.
केंद्रीय कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि भारत सरकार कौशल विकास योजना के तहत 3 लाख युवाओं को जापान भेजेगी. यहां इन युवाओं को ऑन-जॉब स्किल ट्रेनिंग दी जाएगी. उन्होंने कहा कि केंद्रीय कैबिनेट ने भारत और जापान के बीच ‘टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम (TITP) के लिए समझौता ज्ञापन करने को मंजूरी दे दी है.
3 लाख युवाओं को अगले तीन साल के दौरान जापान भेजा जाएगा. जिसमें 50 हजार से भी ज्यादा युवाओं को जापान में नौकरी करने का मौका दिया जाएगा. वहीं जब ये युवा जापान से ट्रेनिंग लेकर वापस स्वदेश लौटेंगे, तो वह भारतीय इंडस्ट्रिय क्षेत्र में अपना योगदान देंगे. जापान की जरूरतों के मुताबिक इन युवाओं को पारदर्शी तरीके से चुना जाएगा. अगर आप की इसमें रुचि है, तो आप कौशल विकास मंत्रालय की आधिकारिक वेबासइट पर नजर बनाए रखें. यहां आपको इस संबंध में अपडेट्स मिलती रहेंगी.
धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस विशेषः भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान के छह दशक

बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने सन् 1956 में विजयदशमी के दिन नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा ली थी. यह वह तारीख थी, जब भारत में धम्म कारवां को नयी गति और दिशा मिली थी. अब उस तारीख के छह दशक पूरे हो चुके हैं. ऐसे में यह सवाल एक बार फिर आता है कि आखिर बाबासाहेब ने धर्म परिवर्तन क्यों किया और धम्म कारवां क्यों आरंभ किया? नई पीढ़ी के युवाओं के लिए इस सवाल का जवाब ज्यादा जरूरी है, ताकि वो बाबासाहेब को एक धम्मचक्र गतिमान करने वाले विभूति के रूप में भी देख सकें.
असल में डॉ. अम्बेडकर ने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई के दौरान यह निष्कर्ष निकाल लिया था कि भारत में प्रचलित जातिगत असमानता दलितों के पिछड़े होने का मुख्य कारण है. 9 मई, 1916 को कोलम्बिया विश्वविद्यालय में आयोजित एक सेमिनार में अपने रिसर्च पेपर ‘भारत में जातियां-उनकी संरचना, उद्भव एवं विकास’ के जरिए डॉ. अम्बेडकर ने यह साबित कर दिया था कि कुछ स्वार्थी लोगों ने जातिगत असमानता की व्यवस्था को शास्त्र सम्मत दिखाने की कोशिश की है और ये धारणा फैलाई है कि शास्त्र गलत नहीं हो सकते. भारत लौटने के बाद उन्होंने दलितों के मानवाधिकारों के लिए अलग-अलग मोर्चे पर प्रयास करना शुरू कर दिया. महाड सत्याग्रह द्वारा सार्वजनिक तालाबों से पानी पीने के अधिकार, कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश का अधिकार, अंग्रेजी सरकार के सामने दलितों के लिए वयस्क मताधिकार का अधिकार, गोलमेज सम्मेलन में पृथक निर्वाचन के अधिकार की लड़ाई ऐसी ही कोशिश थी.
1932 में ब्रिटिश सरकार ने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की घोषणा भी कर दी थी लेकिन महात्मा गांधी द्वारा आमरण-अनशन करने के कारण डॉ़ अम्बेडकर को तरह-तरह की धमकियां मिली. तब डॉ. अम्बेडकर को मजबूर होकर पूना पैक्ट स्वीकार करना पड़ा और दलितों के लिए आरक्षण के बदले में पृथक निर्वाचन का हक छोड़ना पड़ा. इस संघर्ष के दौरान डॉ. अम्बेडकर इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे कि हिन्दू धर्म में रहकर दलितों को राजनैतिक आजादी का अधिकार भले ही मिल जाए लेकिन उनको आर्थिक और सामाजिक बराबरी का हक नहीं मिल सकता. इसलिए 1935 में येवला (नाशिक) में डॉ. अम्बेडकर ने घोषणा की थी कि वह हिन्दू धर्म में पैदा हुए थे यह उनके वश की बात नहीं थी लेकिन हिन्दू रहकर वह मरेंगे नहीं, यह उनके वश में है. डॉ. अम्बेडकर ने धर्म-परिवर्तन का निश्चय येवला की सभा में ही कर लिया था.
धर्म परिवर्तन पर विचार करने के लिए 30 एवं 31 मई 1936 को बंबई में आयोजित महार परिषद को संबोधित करते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा थाः -‘धर्म परिवर्तन कोई बच्चों का खेल नहीं है. यह ‘मनुष्य के जीवन को सफल कैसे बनाया जाय’ इस सरोकार से जुड़ा प्रश्न है… इसको समझे बिना आप धर्म परिवर्तन के संबंध में मेरी घोषणा के वास्तविक निहितार्थ का अहसास कर पाने में समर्थ नहीं होंगे. छुआछूत की स्पष्ट समझ और वास्तविक जीवन में इसके अमल का अहसास कराने के लिए मैं आप लोगों के खिलाफ किये जाने वाले अन्याय और अत्याचारों की दास्तान का स्मरण कराना चाहता हूं. सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराने का हक जताने पर या सार्वजनिक कुंओं से पानी भरने का अधिकार जताने पर या घोड़ी पर दूल्हे को बैठाकर बारात को जुलूस की शक्ल में सार्वजनिक रास्तों से घुमाने के अधिकार आदि का इस्तेमाल करने पर आप लोगों को सवर्ण हिन्दुओं द्वारा मारे-पीटे जाने के उदाहरण तो बहुत आम हैं. लेकिन ऐसी और भी अनेक वजहें हैं जिनके कारण दलितों पर सवर्ण हिन्दुओं द्वारा अत्याचार और उत्पीड़न का कहर ढाया जाता है… खरी बात पूछूं तो बताइये कि इस समय हिन्दुओं और आप लोगों के बीच क्या किसी प्रकार के समाजिक संबंध हैं?
जिस तरह मुसलमान हिन्दुओं से भिन्न हैं; उसी तरह दलित लोग भी हिन्दुओं से नितान्त भिन्न हैं. जिस तरह मुसलमानों और ईसाइयों के साथ हिन्दुओं का रोटी-बेटी का कोई सम्बन्ध नहीं होता है उसी तरह आप लोगों के साथ भी हिन्दुओं का किसी भी प्रकार का रोटी-बेटी का कोई संबंध नहीं है… आपका समाज और उनका समाज दो बिल्कुल अलग-अलग समूह हैं… हालांकि आप लोगों ने धर्मांतरण के महत्व को नहीं समझा है लेकिन निस्संदेह रूप से आप लोगों ने नामान्तरण यानि नाम परिवर्तन के महत्व को समझ ही लिया है. अगर आप लोगों में से किसी व्यक्ति से उसकी जाति के बारे में सवाल कर दिया जाता है कि वह किस जाति का है तो वह दलित होने के रूप में अपना उत्तर देता है, लेकिन वह महार है या भंगी है, ऐसा बताने में संकोच करता है. जब तक कुछ विशेष परिस्थितियों की मजबूरी न हो तब तक कोई भी व्यक्ति अपना नाम नहीं बदल सकता. ऐसे नाम परिवर्तन का कारण यह है कि एक अनजान आदमी तो दलित और सवर्ण के बीच कोई अन्तर कर नहीं सकता. और जब तक एक हिन्दू को किसी व्यक्ति की जाति का पता नहीं चल जाता तब तक उस व्यक्ति के दलित होने के कारण वह हिन्दू उस व्यक्ति के खिलाफ अपने मन में नफरत का भाव नहीं भर सकता. सवर्ण हिन्दुओं को जब तक साथ यात्रा कर रहे दलितों की जातियों की जानकारी नहीं होती है तब तक तो यात्रा के दौरान वे बड़े दोस्ताना अंदाज में व्यवहार करते हैं, लेकिन जैसे ही किसी हिन्दू को यह पता चलता है कि वह जिस व्यक्ति से बातचीत कर रहा है वह दलित है; तो उसका मुंह और मन तुरंत कसैला हो जाता है. आप लोगों के लिए इस तरह के अनुभव नये नहीं हैं. …
जब तक आप हिन्दू धर्म में बने रहेंगे तब तक आपको अपने जाति नाम को छिपा कर नाम-परिवर्तन करते रहने पर निरन्तर मजबूर होना पड़ेगा… इसलिए मैं आप लोगों से यह पूछता हूं कि बजाय इसके कि आप आज एक नाम बदलें, कल दूसरा नाम बदलें और पेंडुलम की तरह लगातार ढुलमुल हालत में बने रहें, आप लोगों को धर्म परिवर्तन करके अपना नाम स्थाई रूप से क्यों नहीं बदल लेना चाहिये?’ डॉ. अम्बेडकर द्वारा कही गई उपरोक्त बातें कमोबेश आज भी उतनी ही सत्य हैं जितनी कि सन् 1935 में थी.
इसी सभा में धर्म परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में बोलते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा:-
‘मुझे उस प्रश्न पर बस आश्चर्य ही होता है जिसे कुछ हिन्दू कुछ इस तरह उठाते हैं कि केवल धर्म-परिवर्तन से क्या होने वाला है? भारत में वर्तमान समय के सिक्खों, मुसलमानों और ईसाईयों में से अधिसंख्य लोग तो पहले हिन्दू ही थे और उन में भी शूद्रों और दलितों की तादाद ही सबसे ज्यादा है…अगर ऐसा है भी तो धर्म-परिवर्तन के बाद उनकी स्थिति में एक स्पष्ट प्रगति साफ दिखती है… समस्या पर गहन चिंतन-मनन करने के बाद हर किसी को यह मानना पड़ेगा कि दलितों के लिये धर्म-परिवर्तन उसी प्रकार जरूरी है जिस प्रकार भारत के लिए स्वराज जरूरी है. दोनों का अंतिम लक्ष्य तो एक जैसा ही है, दोनों के लक्ष्य में कोई फर्क नहीं है और वह अंतिम लक्ष्य है स्वतंत्रता प्राप्त करना.
20 वर्षों तक सभी धर्मों का गहन अध्ययन करने के बाद डॉ. अम्बेडकर इस निश्चय पर पहुंचे कि बौद्ध धर्म सबसे उपयुक्त है, क्योंकि बौद्ध धर्म का जन्म भारत में ही हुआ है और बौद्ध धर्म समानता, करूणा, मैत्री, अहिंसा और भाई-चारे और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का संदेश देता है. इसमें ऊंच-नीच और छुआछूत के लिए कोई जगह नहीं है. जीवन के सभी पहलुओं पर विचार करने के पश्चात डॉ. अम्बेडकर ने 5 लाख अनुयायियों के साथ 14 अक्टूबर, 1956 को बौद्ध धम्म की दीक्षा लेकर बौद्धधम्म के प्रचार-प्रसार को नई गति प्रदान की. उन्होंने 22 प्रतिज्ञाओं का एक नया फार्मूला दिया.
भगवान बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले अषाढ़ पूर्णिमा के दिन धम्म चक्र प्रवर्तन करके धम्म कारवां की शुरूआत की थी. डॉ. अम्बेडकर ने सन 1956 में विजयदशमी के दिन अपने लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा लेकर धम्म चक्र का अनुपर्वतन किया. धम्म कारवां आज काफी फल-फूल चुका है. 1956 में पांच लाख लोगों की संख्या आज करोड़ों में पहुंच गई है. अंग्रेजी अखबार द टाईम्स ऑफ इंडिया (नई दिल्ली संस्करण,10 नवंबर 2006) में प्रकाशित एक रपट के अनुसार भारत वर्ष में सन 2006 में 30 लाख लोगों ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली. 2001 की जनगणना के वक्त बढ़कर यह लगभग 81 लाख हो चुकी थी. जो कि 2011 की आखिरी जनगणना के प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार 97 लाख पहुंच गई हैं. हालांकि कुछ विशेषज्ञ भारत में बौद्धों की संख्या 3 करोड़ 50 लाख से भी अधिक मानते हैं. उनका मानना है कि जनगणना में वास्तविक संख्या इसलिए सामने नहीं आ पाती हैं क्योंकि काफी लोग बौद्ध होते हुए भी अपने को आधिकारिक दस्तावेजों में बौद्ध नहीं घोषित करते.
अमेरिका और यूरोप में भी बौद्ध धम्म बहुत तेजी से बढ़ती हुई जीवनशैली बनता जा रहा है. डॉ. अम्बेडकर ने धम्म दीक्षा लेते हुए कहा था कि वो एक नए किस्म का धम्म कारवां आरंभ करने जा रहे हैं, जिसमें बौद्ध भिक्षु शील सदाचार का पालन करते हुए सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का कार्य करेंगे. इससे प्रभावित होकर एशिया के अन्य देशों में भी बौद्ध पुनर्जागरण तेजी से हुआ. जिनेवा आधारित ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक व आध्यात्मिक संगठन’ ने 2009 का ‘विश्व के सर्वश्रेष्ठ धर्म का सम्मान’ बौद्ध धम्म को प्रदान किया.
धम्म दीक्षा लेने वालों के जीवन में बहुत परिवर्तन आया है और उनका चहुमुंखी विकास हुआ है. मशहूर समाजशास्त्री डी. एस. जनबन्धू और गौतम गावली द्वारा महाराष्ट्र में किए गए समाजशास्त्रीय सर्वेक्षण के अनुसार जिन लोगों ने धम्म दीक्षा ली उनमें एक नई पहचान और आत्मसम्मान की भावना विकसित हुई, जिससे उनके सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्तर में काफी सुधार आया. इन नवदीक्षित लोगों ने राष्ट्र निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया. इसी प्रकार का एक शोध भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. संजय चहांडे ने किया और वो भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि धम्म दीक्षा लेने वालों का विकास धम्म दीक्षा न लेने वालों की तुलना में अधिक हुआ है. डॉ. संजय चहांडे ने इस विषय पर पीएचडी की है और वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि बौद्ध धर्म अपनाने के बाद दलितों के सामाजिक और आर्थिक जीवन में काफी अच्छे बदलाव आए हैं. उनका आत्मविश्वास बढ़ा है, जिसके कारण उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति की है.
एक सर्वे के अनुसार ताईवान में बौद्ध अनुयायियों की संख्या सन् 1980 में 8 लाख थी जो 2001 में बढ़कर 55 लाख और 2006 में बढ़कर 80 लाख हो गई. इस तरह 26 सालों में ताईवान में बौद्ध अनुयायियों की संख्या दस गुणा बढ़ी है. इसी अवधि में ताईवान में बुद्ध विहारों की संख्या 1157 से बढ़कर 4500 और बौद्ध भिक्षुओं की संख्या 3470 से बढ़कर 10 हजार पहुंच गई. ताईवान में भिक्षु और भिक्षुनियां अनेक प्रकार के समाजिक कार्य, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा जैसे व्यक्ति विकास के काम कर रहे हैं. इसी तरह चीन में बौद्ध धर्म मानने वालों की संख्या 10 करोड़ से भी अधिक हो गई है. थाईलैंड में 90 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या बौद्ध धर्म मानने वालों की है. यही स्थिति श्रीलंका, म्यामांर और भूटान जैसे देशों की है.
भगवान बुद्ध के कारण एशिया के अधिकतर देश भारत को बहुत पवित्र मानते हैं और भारत की यात्रा करना अपना धर्म समझते हैं. जापान, कोरिया, थाईलैंड, चीन, म्यांमार, श्रीलंका, ताईवान सहित अनेकों देशों के करोड़ों लोगों के मन में एक लालसा रहती है कि जीवन में कम से कम एक बार बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, संकिशा और सांची के दर्शन कर पाएं. इसलिए भारतवर्ष के लिए बुद्ध और उनकी शिक्षाओं द्वारा पूरे एशिया का अगुवा बनने का सुनहरा अवसर है.
तमाम वर्ग और धर्म के लोगों ने बौद्ध धम्म अपनाया हालांकि दूसरी ओर धम्म कारवां की लोकप्रियता से डरे कुछ लोगों और संगठनों द्वारा अनेकों दुष्प्रचार करने की घटना भी सामने आई हैं. इसमें एक दुष्प्रचार यह किया जा रहा है कि बौद्धधर्म केवल दलित अपना रहे हैं. जबकि हकीकत इससे अलग है. भगवान बुद्ध दलित नहीं थे. उनके प्रथम पांचों शिष्य ब्राह्मण थे. उसके बाद यश और उसके 54 साथी व्यापारी वर्ग से थे. उसके बाद धम्मदीक्षा लेने वाले उरूवेला कश्यप, नदी कश्यप, गया कश्यप और उनके 1000 शिष्य सभी ब्राह्मण थे. राजा बिबिंसार और राजा प्रसेनजित तथा शाक्य संघ के लोग सभी के सभी क्षत्रिय थे. वर्तमान समय में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन, धर्मानंद कौशाम्बी, डी डी कौशाम्बी पूर्व में ब्राह्मण थे. इसी तरह भदन्त आनंद कौशलायन, आचार्य सत्यनारायण गोयनका, भन्तेसुरई सशई, अमेरिका के मशहूर फिल्म अभिनेता रिचर्ड गेरे, फिल्म प्रोड्यूसर टीना टर्नर कोई भी दलित वर्ग से नहीं है. इसलिए बौद्ध धर्म के विरोधियों के इस मिथ्या प्रचार को कि बौद्ध धर्म दलितो का धर्म होता जा रहा रोका जाना चाहिए.
वैसे भी भूमंडलीकरण के कारण लोगों में आर्थिक समृद्धि आने के साथ मानसिक तनाव बढ़ेगा और दुनिया में अशांति भी बढ़ेगी. इन सबसे निपटने में बुद्ध की शील-समाधि और प्रज्ञा पर आधारित शिक्षाएं बहुत काम आएगी क्योंकि दुनिया को ‘युद्ध’ की नहीं ‘बुद्ध’ की आवश्यकता है.
लेखक एक बौद्ध विचारक, साहित्यकार और सामाजिक चिंतक हैं.
13 साल से न्याय की आस में धरना दे रहे एचटी ग्रुप से निकाले गए मीडियाकर्मी की धरनास्थल पर मौत

नई दिल्ली। हिंदुस्तान टाइम्स के सामने पिछले 13 साल से न्याय की आस में बैठे रविंद्र ठाकुर बृहस्पतिवार सुबह धरना स्थल पर मृत पाए गए. लगभग 56-57 वर्षीय रविंद्र ठाकुर मूल रुप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं. बाराखंभा पुलिस को रविंद्र के परिजनों का इंतजार है, जिससे वह उनके शव का पोस्टमार्टम करवा सके. हिंदुस्तान टाइम्स ने 2004 में लगभग 400 कर्मियों को एक झटके में सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया था. इसमें रविंद्र ठाकुर भी शामिल थे. इसके बाद शुरू हुई न्याय की जंग में रविंद्र ने अपने कई साथियों को बदहाल हालत में असमय दुनिया छोड़ते हुए देखा. बदहाली के दौर से गुजर रहे इनके कुछ साथियों ने तो खुदकुशी करने जैसे आत्मघाती कदम तक उठा लिए. अपने कई साथियों को कंधे देने वाला यह शख्स खुद इस तरह इस दुनिया से रुखसत हो जाएगा किसी ने सोचा भी ना था.
रविंद्र ने पिछले 13 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे. कभी किसी कोर्ट से राहत की खबर के बाद चेहरे पर खुशी की लहर, तो कभी प्रबंधन द्वारा स्टे ले लेने पर चेहरे पर उपजी निराशा. रविंद्र के लिए तो कस्तूबरा गांधी मार्ग में हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यालय के बाहर स्थित धरना स्थल ही जैसे घर बन गया हो. उसके साथियों के अनुसार वह पिछले कई सालों से अपने घर भी नहीं गए थे. वह रात में धरनास्थल पर ही सोते थे.
रोजगार का कोई अन्य साधन न होने की वजह से वह अपने साथियों व आसपास स्थित दुकानदारों पर निर्भर थे. कभी मिला तो खा लिया, नहीं मिला तो भूखे ही सो गए. इस फाकामस्ती के दौर में वह जल्द-जल्द बीमारी की पकड़ में भी आने लगे थे. परंतु उन्होंने कभी धरनास्थल नहीं छोड़ा. पिछले 13 साल से धरना स्थल पर रहने वाले रविंद्र ठाकुर की मौत की खबर पाकर वहां पहुंचे साथियों ने बताया कि उनके परिजनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बस वे इतना ही जानते हैं कि उसका घर हिमाचल प्रदेश और पंजाब की सीमा पर कहीं स्थित है.
अपने कई साथियों को कंधे देने वाले इस शख्स की आत्मा को आज खुद अपनी पार्थिव देह के अंतिम संस्कार के लिए अपने परिजनों के कंधे की तलाश है. इस खबर को पढ़ने वालों से अनुरोध है कि वह इसको शेयर या फारवर्ड जरुर करें, जिससे असमय काल के गाल में गए जुझारु रविंद्र ठाकुर को उनकी अंतिम यात्रा में उनके परिजनों का कंधा मिल सके.
भड़ास4मीडिया से साभारराष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने BBAU के कुलपति को भेजा नोटिस

नई दिल्ली। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के कुलपति को एक नोटिस भेजा है. यह नोटिस कुलपति की लापरवाही और आयोग द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल न होने पर भेजा गया है.
दरअसल, बीबीएयू प्रशासन द्वारा आरक्षण को ताक पर रख कर रोस्टर में गड़बड़ी और 100 से ज्यादा अध्यापकों की गलत तरीके से भर्ती की गई थी. जिसकी कार्रवाई राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में 6 जुलाई 2017 को हुई. इस बैठक में जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया गया. कमेटी के सदस्यों में आयोग चेयरमैन, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अधिकारी शामिल हैं.
अगली बैठक 27 जुलाई को आयोग के चेयरमैन राम शंकर कठेरिया के चैम्बर में रखी गई. जिसमें बीबीएयू प्रशासन को नियम और कानून के हिसाब से काम करने की हिदायत दी और रोस्टर-भर्ती प्रकिया के दस्तावेज दिखाने के आदेश दिए. लेकिन बीबीएयू प्रशासन जांच में आयोग को सहयोग नहीं दे रहा है.
12 अक्टूबर 2017 को बीबीएयू के कुलपति के साथ बैठक होनी थी, लेकिन कुलपति बैठक में शामिल नहीं हुए. इसके बाद बैठक में कमेटी ने फैसला लिया गया कि बीबीएयू के कुलपति ने आरक्षण की नीतियों को ताक पर रखकर 100 से अधिक टीचिंग पर भर्ती की गई. आयोग ने कहा है कि बीबीएयू में बिना मानव संसाधन मंत्रालय और यूजीसी की सलाह या सहमति के कोई भर्ती प्रकिया नहीं करेगा. लेकिन बीबीएयू के कुलपति ने आयोग के निर्देशों की अवेहलना कर रहे हैं और नोटिस मिलने के बावजूद भी सांख्यकीय विभाग में साक्षत्कार ले रहे हैं
जानिए कैसी रही अनुपम खेर-जिम्मी शेरगिल स्टारर रांची डायरीज़

ये फिल्म एक गुड़िया की कहानी है, इसमें सौंदर्या और उनके दोस्त ताहा शहर और हिमांश जैसे कालाकार प्रमुख भूमिकाओं में हैं. हिमांश कोहली फिल्म में मोनू की भूमिका में हूं, जो एक छोटे शहर से मैकेनिक है और इसे अपने जीवन में बड़ा बनाने की इच्छा रखता है. फिल्म के ट्रेलर को देखकर लगता है कि फिल्म छोटे शहर से आए लोगों के बड़े बनने की कोशिश करने की कहानी है. जिसमें कॉमेडी का भी पुट है.
फिल्म का ट्रेलर देखर लगता है कि कहानी बैंक रौबरी, एटीएम से चोरी और किडनेपिंग जैसी घटनाओं से होते हुए आगे बढ़ती है. जिसके बाद जिम्मी शेरगिल जैसा पुलिस अफसर उनके पीछे पड़ जाता है. फिल्म का निर्देशन सात्विक मोहंती ने किया है. अनुपम खेर निर्मित इस फिल्म में जिम्मी शेरगिल, हैरी बाला और प्रदीप सिंह जैसे स्टार कलाकार्स भी शामिल हैं.
आज कोई भी बड़ी फिल्म रिलीज़ हुइ जिसका फायदा इस फिल्म को मिल सकता है. हालांकि वरूण धवन स्टारर जुड़वा 2 को दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है और रिलीज़ के तीसरे हफ्ते में भी फिल्म ज्यादातर स्क्रीन्स पर जारी है. जुड़वा 2 से टक्कर लेने के लिए रांची डायरीज़ फिल्म को अच्छे रीव्यूज़ का इंतज़ार है.
BRD मेडिकल कॉलेज में पिछले 24 घंटों में हुई 15 मासूमों की मौत

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज (बीआरडी) में मासूमों की मौतों का सिलसिला जारी है. यहां 24 घंटों के भीतर ही 15 मासूमों ने दम तोड़ दिया. इसमें तीन की मौत की वजह इंसेफेलाइटिस से पीड़ित होना बताया गया है. जबकि इस दौरान इंसेफेलाइटिस के सात नए मरीज भर्ती हुए हैं. इंसेफेलाइटिस की वजह से दम तोड़ने वालों में देवरिया का रितिक (4), रूबीन (2), कमलावती के नाम शामिल हैं.
इसके अलावा विभिन्न वजहों से बारह अन्य बच्चों की भी मौत हो गई. वहीं बीते चौबीस घंटे के दौरान भर्ती मरीजों में बिहार के एक, देवरिया के तीन और सिद्धार्थनगर का एक, कुशीनगर के दो मरीज शामिल हैं. मेडिकल कॉलेज में जनवरी से अब तक इंसेफेलाइटिस से करीब 335 बच्चों की मौतें हो चुकी है, जबकि अभी 95 मरीजों का इलाज चल रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक हॉस्पिटल के कुछ और रिकॉर्ड्स सामने आए हैं. रिकॉर्ड्स की माने तो यहां पिछले चार दिनों में 333 से 360 मरीज दाखिल हुए हैं और रोज 10 से 12 की मौत हो रही है. 7 अक्तूबर को 12, 8 को 20, 9 को 18 और 10 को 19 की मौत हुई है.
बताया जा रहा है कि ये ज्यादार मौतें हॉस्पिटल के नियोनेतल इंटेनसीव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में हो रही है, जिसके पीछे कई कारण हैं. इससे पहले अगस्त के दूसरे हफ्ते में करीब 60 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें अधिकतर मासूम थे. मासूम की एक साथ हुई मौतों के बाद यूपी की योगी सरकार सवालों के घेरे में आ गई थी. जांच में अस्पताल की बड़ी लापरवाही का खुलासा हुआ था और डॉक्टरों की बड़ी लापरवाही भी सामने आई थी.
किताब का विरोध करने वालो ने कांचा इलैया के खिलाफ दर्ज करवाई FIR

हैदराबाद। दलित लेखक और बुद्धिजीवी कांचा इलैया के खिलाफ हैदराबाद में मामला दर्ज किया गया है. इलैया पर यह मामला उनकी किताब ‘समाजिका स्मगलुरलू कोमातोल्लू’ लिखने पर किया गया है. इलैया ने इस किताब में हिंदू समाज की कुरीतियों और कुप्रथाओं के बारे में लिखा है.
एक छात्र ने आरोप लगाया है कि उनकी पुस्तक ‘समाजिका स्मगलुरलू कोमातोल्लू’ ने न केवल वैश्य समुदाय बल्कि सभी हिंदू समुदायों पर निशाना साधा और इससे हिंदुओं की भावनाएं आहत हुईं.
मलकाजगिरि पुलिस थाने के निरीक्षक जानकी रेड्डी ने कहा कि उन्होंने कहा कि 22 वर्षीय शिकायतकर्ता ने एक स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाया था और उसके निर्देश के आधार पर पुलिस ने कल इलैया के खिलाफ एक मामला दर्ज किया. उन्होंने कहा कि मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, 295ए और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून के तहत दर्ज किया गया है.
पिछले महीने से पूरे तेलंगाना राज्य में इलैया के खिलाफ आर्य वैश्य समुदाय की ओर से विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं. कांचा ने पिछले महीने यह आरोप लगाते हुए पुलिस में एक शिकायत दर्ज करायी थी कि चार व्यक्तियों ने वारंगल जिले के पारकल में उनके वाहन पर हमला किया और उनकी हत्या करने का प्रयास किया.
कथित हमले से आर्य वैश्य और दलितों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया था और वे आमने-सामने आ गए थे. यद्यपि पुलिस ने समूहों को तितर-बितर कर दिया था जिससे मामले पर काबू पा लिया गया था. एक अधिकारी ने कहा था कि समुदाय इलैया पर उनकी पुस्तक को लेकर नाराज है और लेखक से माफी की मांग कर रहा है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 100वें स्थान पर भारत
नई दिल्ली। सबका साथ, सबका विकास के साथ बनी मोदी सरकार की पोल खोलने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट में भारत को 119 देशों के वैश्वविक भूख सूचकांक में 100वें स्थान पर रखा गया है. यह रिपोर्ट इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट (IFPRI) ने तैयार की है.
रिपोर्ट के आने के बाद भारत सरकार की गरीबी और विकास से जुड़ी नीतियों पर सवाल भी उठने लगे हैं. केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं जीडीपी ग्रोथ हो रही है लेकिन यह रिपोर्ट कुछ और ही हकीकत पेश कर रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में भूख का स्तर गंभीर है. बच्चे खाने की वजह से कुपोषित हो रहे हैं. सामाजिक क्षेत्र को इसके प्रति मजबूत प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत है.
पिछले वर्ष भारत इस सूचकांक में 97वें स्थान पर था. जो इस साल खिसक कर 100वें स्थान पर आ गया है. IFPRI ने एक बयान में कहा कि119 देशों में भारत 100वें स्थान पर है. पूरे एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान उससे पीछे हैं. उन्होंने कहा कि 31.4 के साथ भारत का 2017 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स गंभीर श्रेणी में है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत की रैंकिंग चीन (29), नेपाल (72), म्यांमार (77), श्रीलंका (84) और बांग्लादेश (88) से भी पीछे है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान क्रमश: 106वें और 107वें स्थान पर हैं.
अब 12 साल तक नहीं देना पड़ेगा बिजली का बिल, जानिए कैसे
नई दिल्ली। अगर आपसे कहा जाए कि आपको 12 साल तक बिजली बिल देने की जरुरत नहीं है. तो आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा. तो लिजिए हम आपको खुश कर देने वाली खबर दिखा रहे हैं. दरअसल बाजार में एक ऐसा डिवाइस आने वाला है जो लोगों को फ्री में बिजली मुहैया कराएगा. यह डिवाइस आपको लगातार 12 साल तक फ्री में बिजली देने में सक्षम है.
इस डिवाइस को बनाने वाले देश के जाने माने उद्योगपति और समाजसेवी मनोज भार्गव हैं. इन्होने दिल्ली में एक इवेंट के दौरान इसका लाइव डेमो दिखाया है. पोर्टेबल “सोलर डिवाइस हंस 300 पावरपैक” न केवल बिजली बनाता है बल्कि इसमें बिजली स्टोर भी होती है. भार्गव का कहना है कि इस डिवाइस से भारी तादाद में जरुरतमंद लोगों को बिजली उपलब्ध कराई जा सकती है.
इस पावरपैक से पैदा होने वाली बिजली से एक घर के लिए बल्ब, टीवी, पंखे जैसी जरुरत की चीजें चलाई जा सकती है. इस पावरपैक को 130 घंटे और 300 घंटे के वैरिएंट में लाया गया है. बाजार में इसकी किमत 10,000 रुपए और 14,000 रुपए रखी गई है. इसमें सबसे खास बात ये है इसके लिए कंपनी की ओर से 12 सालों की गारंटी भी दी जा रही है.
भारत में जन्मे अरबपति उद्यमी और समाजसेवी मनोज भार्गव ने मंगलवार को नई दिल्ली में एक इवेंट के दौरान डॉक्यूमेंट्री फिल्म- बिलियन्स इन चेंज 2 में दिखाए गए नए अविष्कारों का लाइव डेमो दिखाया. बिलियन्स इन चेंज 2 इस तरह की आई पहली डॉक्यूमेंट्री की अगली कड़ी है और इसमें पूरी तरह से नए पांच आविष्कारों की जानकारी दी गई है जो कि बुनियादी जरूरतों का सीधा समाधान करते हैं.
इवेंट के दौरान भार्गव ने पोर्टेबल सोलर डिवाइस हंस 300 पावरपैक और हंस सोलर को भारतीय बाजार में उतारने की जानकारी दी.
कॉलेज में सिंधिया को बुलाने पर दलित प्रिंसिपल सस्पेंड

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने एक सरकारी कॉलेज के दलित प्रिंसिपल बीएल अहिरवार को निलंबित कर दिया. अहिरवार अशोकनगर जिले के मुंगावाली स्थित शासकीय गणेश शंकर विद्यार्थी महाविद्यालय में प्रिंसिपल के पद पर थे. उन्हें इस पद से 11 अक्टूबर को निलंबित किया गया है.
दरअसल, अहिरवार ने राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के एक कार्यक्रम में स्थानीय सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को आमंत्रित किया था. यह कार्यक्रम 10 अक्टूबर को आयोजित हुआ था.
एमपी सरकार ने प्रिंसिपल पर आरोप लगाया है कि उन्होंने कार्यक्रम में राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह बने बैनर लगवाकर एनएसएस का कार्यक्रम करवाया और राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा कर राजनीति दल के बैनर महाविद्यालय के प्रांगण में लगाये.
क्या एक सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र के महाविद्यालय में बुलाना इतना बड़ा अपराध है कि उस महाविधालय के प्राचार्य को निलंबित कर दिया जाए?
— Jyotiraditya Scindia (@JM_Scindia) October 11, 2017
इसके अलावा अहिरवार पर कॉलेज के विद्यार्थियों को पैसों का लालच देकर किसी राजनीतिक दल को वोट देने की सिफारिश करने और शैक्षणिक वातावरण के विरूद्ध गतिविधियां संचालित किये जाने का आरोप है.
इसी बीच, कांग्रेस नेताओं ने अहिरवार के निलंबन का विरोध करना शुरू कर दिया है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया के ग्वालियर स्थित आवास पर प्रदर्शन भी किया.
गुना के सांसद एवं लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, क्या एक सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र के कॉलेज में बुलाना इतना बड़ा अपराध है कि उस महाविद्यालय के प्राचार्य को निलंबित कर दिया जाए
उन्होंने कहा, मुंगावली डिग्री कॉलेज के दलित प्राचार्य डॉ. अहिरवार को बिना किसी नोटिस या ठोस वजह के सरकार ने निलंबित कर अपनी दलित विरोधी मानसिकता उजागर कर दी. सिंधिया ने कहा कि असंवेदनशील सरकार का यह एक तानाशाहीपूर्ण आदेश है, जो पूर्वाग्रह पूर्ण एवं घोर निंदनीय कृत्य है.
निलंबित प्राचार्य अहिरवार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मैंने किसी को बुलाया नहीं था. क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया छात्रों से संवाद करना चाहते थे, इसलिए उन्हें इजाजत दे दी थी. मैं किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा नहीं हूं.
घाना के हाथों हार के साथ भारत का सफर हुआ खत्म

घाना की तरफ से एरिक अयाह (43वें और 52वें मिनट) ने दो जबकि स्थानापन्न रिकार्डो डान्सो (86वें) और इमानुअल टोकु (87वें मिनट) ने एक-एक गोल दागा. मैच के बाद भारतीय खिलाड़ियों विशेषकर धीरज सिंह की आंखों में आंसू थे जिन्होंने मैच में कुछ अच्छे बचाव किये. भारत तीनों मैच हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गया. भारत को लगातार तीसरे मैच में हार का सामना करना पड़ा.
पिछले मैच में कोलंबिया के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भारत से उम्मीद बंध गयी थी लेकिन दो बार का चैंपियन घाना उससे खेल के हर क्षेत्र में अव्वल साबित हुआ. घाना ने इस जीत से तीन मैचों में छह अंक के साथ ग्रुप ए में पहले स्थान पर रहकर अंतिम सोलह में पहुंचा. कोलंबिया और अमेरिका के भी छह-छह अंक रहे लेकिन गोल अंतर में वे क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर खिसक गये.
घाना के खिलाड़ी कद काठी में काफी मजबूत थे लेकिन भारतीयों ने फुर्ती और कौशल के मामले में उन्हें शुरू में बराबर की टक्कर दी. खेल आगे बढ़ने के साथ हालांकि अंतर साफ नजर आने लगा और अफ्रीकी टीम का दबदबा बढ़ता गया. जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में मौजूद 52,614 दर्शकों में से अधिकतर ने हर पल भारतीयों का उत्साह बनाये रखा लेकिन दर्शकों का जोश मैदान का अंतर नहीं पाट पाया. पिछले मैच में गोल करने वाले जैकसन कल पूरी तरह निष्प्रभावी रहे. गेंद पर 65 प्रतिशत घाना का नियंत्रण रहा.
एरिक की जगह उतरे स्थानापन्न रिकार्डो डान्सो ने आते ही प्रभाव छोड़ा और गैब्रियल लेवल के पास पर गोल ठोक दिया. एक अन्य स्थानापन्न खिलाड़ी इनानुअल टोकु ने इसके एक मिनट बाद खाली गोल में गेंद पहुंचाकर स्कोर 4-0 कर दिया.
अधिक जनधन खाता वाले गांवों को मिलेगी महंगाई से मुक्ति

मुंबई। जिन राज्यों में प्रधानमंत्री जनधन खातों की संख्या अधिक है, उनमें ग्रामीण महंगाई निम्न स्तर पर आ गयी है. यह बात एक रिपोर्ट में सामने आई है. नोटबंदी के बाद से जनधन खातों में तेजी से इजाफा हुआ और अब तक ऐसे 30 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले जा चुके हैं. इस तरह के खाते वाले दस शीर्ष राज्यों में करीब 23 करोड़ खाते खोले गये हैं, जो कुल जनधन खातों के 75 प्रतिशत हैं. इसमें सर्वाधिक खातों की संख्या उत्तर प्रदेश में है जो 4.7 करोड़ के स्तर पर है. इसके बाद बिहार में 3.2 करोड़ और पश्चिम बंगाल में 2.9 करोड़ जनधन खाते खुले हैं.
करीब 60 प्रतिशत जनधन खाते केवल ग्रामीण इलाकों में ही खुले हैं. एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट ईकोरैप में कहा गया है, ‘‘आंकड़े दिखाते हैं कि जिन राज्यों में जनधन खाते अधिक संख्या में खुले हैं, उनमें ग्रामीण महंगाई निम्न स्तर पर है. यह दिखाता है कि अर्थव्यवस्था औपचारिक रूप ले चुकी है.’’ गौरतलब है कि जनधन योजना के अगस्त में तीन साल पूरे हो गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस योजना को गरीबों के लिए ऐतिहासिक पहल बताया था. उन्होंने कहा था, “जनधन क्रांति गरीबों, दलितों व हाशिए के लोगों को वित्तीय मुख्यधारा में लाने का एक ऐतिहासिक आंदोलन है”. पिछले महीने जनधन के तीन साल पूरे होने पर पीएम ने कहा था, “हमारा प्रयास गरीबों व हाशिए के लोगों के जीवन में गुणात्मक व परिवर्तनकारी बदलाव लाना है, जिसे मजबूती के साथ जारी रखा है.”
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 23 सिंतबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 72वें सत्र में संबोधन देते हुए जनधन योजना की तारीफ की थी. उन्होंने कहा, ‘‘जनधन योजना निश्वित रूप से विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशी योजना के तौर पर गिनी जानी चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि कम से कम ऐसे 30 करोड़ भारतीयों के पास आज बैंक खाते हैं जिन्होंने कभी बैंक के दरवाजे को पार नहीं किया था . यह जनसंख्या अमेरिका की जनसंख्या के बराबर है. उन्होंने कहा, ‘‘जाहिर है कि इसे तीन वर्षों में पूरा करना आसान नहीं था लेकिन हमारे बैंकों ने हमारे प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित किये गए इस दूरदर्शी लक्ष्य को हासिल किया. लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक भारतीय परिवार का एक बैंक खाता होगा.’’ उन्होंने इसके साथ ही यह भी कहा कि ये खाते ‘जीरो बैलेंस’ पर खोले गए.
BBAU: टॉपर दलित छात्र से विश्वविद्यालय कर रहा है भेदभाव

लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में एक दलित छात्र को टॉप करने के बावजूद भी प्र पहले पहले प्रवेश लेने से रोका गया. हाईकोर्ट के फैसले बाद विश्वविद्यालय ने दाखिला तो दे दिया लेकिन छात्रावास नहीं दे रहा है. छात्र का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनसे भेदभाव कर रहा है.
इस सिलसिले में बसंत कुमार कन्नौजिया ने बीबीएयू प्रशासन को लिखित शिकायत दी है. उन्होंने लिखा कि मैं 100 में 94 अंक ले आकर आया हूं. छात्र का कहना है कि टॉपर अनुसूचितजाति का छात्र है जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन पचा नहीं पा रहा है.
छात्र ने आरोप लगाया कि बीबीएयू ने इसी कारण पहले प्रवेश से रोक लिया था. उसके बाद मैंने प्रवेश के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने बीबीएयू को फटकार लगाते हुए तत्काल रूप से प्रवेश लेने के लिए 19 सितम्बर को आदेश दिया. उसके बाद 22 सितम्बर को दाखिला हुआ लेकिन दलित होने की वजह से विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से एक महीने तक परेशान किया.
बसंत का कहना है कि छात्रावास के लिए सोशल वर्क विभाग के प्रो. बीएस भदौरिया और डॉ. वीरेंद्र नाथ दूबे मुझे परेशान कर रहे हैं. जब मैं मिलने जाता हूं तब कहते हैं कि हॉस्टल मिल जायेगा. लेकिन बसंत को अभी तक हॉस्टल नहीं मिला. जबकि छात्रों को हॉस्टल प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर दिया जाता है.
टॉपर अनुसूचितजाति का छात्र छात्रावास के लिए 20 दिन से विश्वविद्यालय प्रशासन के चक्कर लगा रहा है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. एमफिल कोर्स सेल्फ फाइनेंस होने की वजह से उसे कोई फेलोशिप भी नहीं मिलती है. प्रार्थी के परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय होने की वजह से बाहर कमरा लेकर अध्ययन कार्य करने में असमर्थ है.
पुंछ में पाकिस्तान की फायरिंग में एक जवान शहीद, एक नागरिक की मौत

श्रीनगर। पाकिस्तान ने गुरुवार को कश्मीर के पुंछ जिले में सीजफायर वॉयलेशन किया. पाक सैनिकों ने पुंछ के कृष्णा घाटी सेक्टर में फायरिंग की, जिसमें आर्मी का एक जवान शहीद हो गया. इसके अलावा एक सिविलियन पोर्टर (बोझा ढोने वाला) की भी मौत हुई है.
न्यूज एजेंसी के मुताबिक डिफेंस मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन ने बताया कि पाकिस्तान की तरफ से सुबह साढ़े 10 बजे एलओसी पर छोटे हथियारों से फायरिंग की गई, जिसका इंडियन आर्मी ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया.
इससे पहले, पाक ने 6 अक्टूबर को राजौरी जिले के बाबा खोरी और अन्य इलाकों में फायरिंग की थी. इस साल सीजफायर वॉयलेशन की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इस साल 12 अक्टूबर तक पाकिस्तान ने 505 बार सीजफायर वॉयलेशन किया.
अनंतनाग जिले के मरहामा संगम में गुरुवार को आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर बैंक की एक ब्रांच से 5 लाख 39 हजार रुपए का कैश लूट लिया.
जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में बुधवार सुबह आतंकियों के साथ एनकाउंटर में इंडियन एयरफोर्स की गरुड़ फोर्स के 2 कमांडो शहीद हो गए थे. 2 आतंकी भी मारे गए थे. 1990 में घाटी में आतंकवाद के सिर उठाने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि एनकाउंटर में गरुड़ फोर्स के कमांडो शहीद हुए हैं.
3 साल में कश्मीर में 183 जवान शहीद हुए
पिछले तीन साल में कश्मीर में आतंकी घटनाओं में 183 जवान शहीद हुए हैं. इनके अलावा 62 सिविलियन भी मारे गए. नोएडा के आरटीआई एक्टिविस्ट रंजन तोमर की एक अर्जी पर होम मिनिस्ट्री ने यह जवाब दिया है. यह आंकड़ा मई 2014 से मई 2017 तक का है.
कश्मीर में इस वक्त करीब 275 आतंकवादी एक्टिव हैं. इनमें से 250 तो सिर्फ पीर पंजाल रेंज में हैं. न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है. सूत्रों के मुताबिक 2017 में 291 आतंकियों ने भारत में घुसने की कोशिश की. इनमें से 80 कामयाब हो गए.
इस साल अब तक 150 आतंकी मारे गए
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 3 अक्टूबर तक कश्मीर में 150 आतंकी मारे जा चुके हैं. यह संख्या इस दशक में सबसे ज्यादा है. इससे पहले 2016 में 150 आतंकी मारे गए थे, लेकिन वो आंकड़ा पूरे साल का था.
सिर्फ दिवस मनाने से खत्म नहीं होंगी बुराइयां और भ्रष्टाचार

भारत परंपराओं और आस्थाओं से भरा देश है. भारत ही नहीं विश्व के विभिन्न देशों की भी अपनी-अपनी मान्यतायें और धार्मिक उत्सव होते हैं. संपूर्ण विश्व भौगौलिक विषमताओं के साथ-साथ धार्मिक भिन्नताओं से भी भरा है. प्रत्येक देश की अपनी अलग मुद्रा और भगवान हैं. मगर मुद्रा और भगवान सबके लिए काम एक समान है. धर्म अौर राजनीति न तो विश्व में एक मुद्रा चाहती हैं और न ही एक मानव समुदाय.
विश्व के सभी धर्म या संप्रदाय अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ और अपने-अपने ईश्वर को श्रेष्ठ समझते हैं. मगर इतिहास के पन्नों पर नजर डाली जाये तो न ही अतीत में और न ही वर्तमान में संसार का काई भी मुल्क शांति से नहीं जी पा रहा है, और न ही वहां के लोगों की परेशानियां कम हो रही हैं. धर्म या संप्रदाय और रहन-सहन भिन्न-भिन्न होते हुए भी समाज की समस्यायें एक समान हैं. भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो समस्याओं की लंबी लिस्ट है जिसका फीता बनाया जाये तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक नापा जा सकता है. त्यौहारों की तरह यहां विभिन्न प्रकार के दिवसों को भी मनाया जाता है.
कुछ दिन पहले ही 2 अक्टूबर को हमारे देश में महात्मा गांधी तथा लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मनाई गयी. ये गर्व का विषय है कि 2 अक्टूबर 2007 से यूनेस्को ने गांधी के जन्म दिन को “विश्व अहिंसा दिवस” के रूप में मनाने का ऐलान किया. मगर अफसोस इसी दिन अमेरिका में बड़ी हिंसा की घटना घटित होती है. भारत में जम्मू कश्मीर में बीएसएफ कैंप पर हमला होता है. और देश में कई हिंसक घटनायें होती है. इतना ही नहीं हैरानी तब हुई जब गुजरात से समाचार आता है कि गरबा देखने पर दलितों को मार दिया गया? तो इस दशहरे से हम क्या संदेश देश ओर समाज को देना चाहते हैं. वशुधैव कुटम्बकम को तो छोड़ दिया जाये यहां भारतैव कुटम्बकम की भावना का भी अभाव प्रकट होता है.
इस सच्चाई को भी अब देश के धर्म गुरूओं, मौलवियों, शंकराचार्यों के साथ-साथ भारत को विश्व गुरू बनाने में लगे देश प्रेमियों को गंभीरता से समझने की जरूरत है कि क्यों नहीं अभी तक तीज त्यौहारों, ईद, होली, मोहर्रम, दशहरे द्धारा सदियों से भाईचारा बडा़ है और न ही देश से बुराई और कुरीतियों का खात्मा हुआ है. ये कड़वा सच ही होगा कि ये कहा जाये कि महंगाई की तर्ज पर देश में नफरत और दहशतगर्दी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो अवश्य ही देश की अखंडता और भाईचारे के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.
राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रकार के दिवस मनाये जाते है. जनजागरूकता के लिए, असाध्य रोगों और बिमारियों के निवारण के लिए, विश्व शांति के लिए, मानव अधिकारों की रक्षा के लिए और गरीबों, महिलाओं के उत्थान और बराबरी आदि के लिए. कुछ दिवस तो ऐसे हैं उनकी भयानकता तो याद रहती है मगर व्यवहार में परिलक्षित नहीं होना दुख का विषय है जैसे- 1 दिसंबर एड्स दिवस,10 दिसंबर मानव अधिकार दिवस, 8 मार्च अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, 1 मई मजदूर दिवस, 31 मई विश्व तंबाकू निषेध दिवस, 16 सितंबर ओजोन संरक्षण दिवस आदि के साथ-साथ विश्व जल दिवस, पृथ्वी दिवस भी मनाया जाता है, न एड्स से ही मुक्ति मिली है, न ही मानव अधिकारों की रक्षा हुई हैं, महिलाओं पर तो पेट्रोल की कीमत की तर्ज पर अत्याचार बढ़ते जा रहे है. पर्वो से लेकर प्रेम दिवस, मदर्स डे, फादर्स डे तक, बिमारी से लेकर महापुरूषों तक और बुराई पर अच्छाई की विजय से लेकर किसान दिवस तक हमारे देश में धूम-धाम से मनाये जाते है.
मगर आंकडे़ कुछ और ही बयां करते हैं. नेताओं ने गरीबी हटाओ का नारा दिया मगर 70 साल तक गरीब और दलित राजनीति के ही विषय वस्तु बनकर रह गये हैं. ‘जय जवान जय किसान’ का नारा जोश तो भरने में अच्छा लगता है मगर जवान और किसान की जिंदगी दिन-प्रतिदिन मौत का कुंआ बनकर रह गयी है. हर चीज को राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाये तो परिणाम सकारात्मक नहीं हो सकते हैं. तमाम प्रकार के दिवसों के अनुकूल परिणाम हासिल नहीं होते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी द्धारा नोटबंदी के एक साल पूर्ण होने पर 8 नवंबर को भ्रष्टाचार मुक्ति दिवस मनाने का ऐलान 4 अक्टूबर को विज्ञान भवन से किया है.
कितना भ्रष्टाचार कम हुआ या खत्म हो जायेगा ये तो हर वर्ष 8 नवंबर को भ्रष्टाचार मुक्त दिवस के अवसर पर ही पता चल पायेगा अन्यथा लगता नहीं कि दिवसों को मनाने से भ्रष्टाचार खत्म हो पायेगा या बुराइयां ही खत्म हो जायेंगी. आम नागरिक और देश की जनता को खुद परिवर्तन के लिए तैयार करना होगा वरना दिवसों का सिर्फ कड़ुवा इतिहास ही दोहराया जाता रहेगा.
यह लेख आई.पी. ह्यूमेन ने लिखा है.