सिर्फ दिवस मनाने से खत्म नहीं होंगी बुराइयां और भ्रष्टाचार

demo pic

भारत परंपराओं और आस्थाओं से भरा देश है. भारत ही नहीं विश्व के विभिन्न देशों की भी अपनी-अपनी मान्यतायें और धार्मिक उत्सव होते हैं. संपूर्ण विश्व भौगौलिक विषमताओं के साथ-साथ धार्मिक भिन्नताओं से भी भरा है. प्रत्येक देश की अपनी अलग मुद्रा और भगवान हैं. मगर मुद्रा और भगवान सबके लिए काम एक समान है. धर्म अौर राजनीति न तो विश्व में एक मुद्रा चाहती हैं और न ही एक मानव समुदाय.

विश्व के सभी धर्म या संप्रदाय अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ और अपने-अपने ईश्वर को श्रेष्ठ समझते हैं. मगर इतिहास के पन्नों पर नजर डाली जाये तो न ही अतीत में और न ही वर्तमान में संसार का काई भी मुल्क शांति से नहीं जी पा रहा है, और न ही वहां के लोगों की परेशानियां कम हो रही हैं. धर्म या संप्रदाय और रहन-सहन भिन्न-भिन्न होते हुए भी समाज की समस्यायें एक समान हैं. भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो समस्याओं की लंबी लिस्ट है जिसका फीता बनाया जाये तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक नापा जा सकता है. त्यौहारों की तरह यहां विभिन्न प्रकार के दिवसों को भी मनाया जाता है.

कुछ दिन पहले ही 2 अक्टूबर को हमारे देश में महात्मा गांधी तथा लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मनाई गयी. ये गर्व का विषय है कि 2 अक्टूबर 2007 से यूनेस्को ने गांधी के जन्म दिन को “विश्व अहिंसा दिवस” के रूप में मनाने का ऐलान किया. मगर अफसोस इसी दिन अमेरिका में बड़ी हिंसा की घटना घटित होती है. भारत में जम्मू कश्मीर में बीएसएफ कैंप पर हमला होता है. और देश में कई हिंसक घटनायें होती है. इतना ही नहीं हैरानी तब हुई जब गुजरात से समाचार आता है कि गरबा देखने पर दलितों को मार दिया गया? तो इस दशहरे से हम क्या संदेश देश ओर समाज को देना चाहते हैं. वशुधैव कुटम्बकम को तो छोड़ दिया जाये यहां भारतैव कुटम्बकम की भावना का भी अभाव प्रकट होता है.

इस सच्चाई को भी अब देश के धर्म गुरूओं, मौलवियों, शंकराचार्यों के साथ-साथ भारत को विश्व गुरू बनाने में लगे देश प्रेमियों को गंभीरता से समझने की जरूरत है कि क्यों नहीं अभी तक तीज त्यौहारों, ईद, होली, मोहर्रम, दशहरे द्धारा सदियों से भाईचारा बडा़ है और न ही देश से बुराई और कुरीतियों का खात्मा हुआ है. ये कड़वा सच ही होगा कि ये कहा जाये कि महंगाई की तर्ज पर देश में नफरत और दहशतगर्दी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो अवश्य ही देश की अखंडता और भाईचारे के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रकार के दिवस मनाये जाते है. जनजागरूकता के लिए, असाध्य रोगों और बिमारियों के निवारण के लिए, विश्व शांति के लिए, मानव अधिकारों की रक्षा के लिए और गरीबों, महिलाओं के उत्थान और बराबरी आदि के लिए. कुछ दिवस तो ऐसे हैं उनकी भयानकता तो याद रहती है मगर व्यवहार में परिलक्षित नहीं होना दुख का विषय है जैसे- 1 दिसंबर एड्स दिवस,10 दिसंबर मानव अधिकार दिवस, 8 मार्च अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, 1 मई मजदूर दिवस, 31 मई विश्व तंबाकू निषेध दिवस, 16 सितंबर ओजोन संरक्षण दिवस आदि के साथ-साथ विश्व जल दिवस, पृथ्वी दिवस भी मनाया जाता है, न एड्स से ही मुक्ति मिली है, न ही मानव अधिकारों की रक्षा हुई हैं, महिलाओं पर तो पेट्रोल की कीमत की तर्ज पर अत्याचार बढ़ते जा रहे है. पर्वो से लेकर प्रेम दिवस, मदर्स डे, फादर्स डे तक, बिमारी से लेकर महापुरूषों तक और बुराई पर अच्छाई की विजय से लेकर किसान दिवस तक हमारे देश में धूम-धाम से मनाये जाते है.

मगर आंकडे़ कुछ और ही बयां करते हैं. नेताओं ने गरीबी हटाओ का नारा दिया मगर 70 साल तक गरीब और दलित राजनीति के ही विषय वस्तु बनकर रह गये हैं. ‘जय जवान जय किसान’ का नारा जोश तो भरने में अच्छा लगता है मगर जवान और किसान की जिंदगी दिन-प्रतिदिन मौत का कुंआ बनकर रह गयी है. हर चीज को राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाये तो परिणाम सकारात्मक नहीं हो सकते हैं. तमाम प्रकार के दिवसों के अनुकूल परिणाम हासिल नहीं होते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी द्धारा नोटबंदी के एक साल पूर्ण होने पर 8 नवंबर को भ्रष्टाचार मुक्ति दिवस मनाने का ऐलान 4 अक्टूबर को विज्ञान भवन से किया है.

कितना भ्रष्टाचार कम हुआ या खत्म हो जायेगा ये तो हर वर्ष 8 नवंबर को भ्रष्टाचार मुक्त दिवस के अवसर पर ही पता चल पायेगा अन्यथा लगता नहीं कि दिवसों को मनाने से भ्रष्टाचार खत्म हो पायेगा या बुराइयां ही खत्म हो जायेंगी. आम नागरिक और देश की जनता को खुद परिवर्तन के लिए तैयार करना होगा वरना दिवसों का सिर्फ कड़ुवा इतिहास ही दोहराया जाता रहेगा.

यह लेख आई.पी. ह्यूमेन ने लिखा है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.