
15 जनवरी को बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती का जन्मदिन है. इस मौके पर दलित दस्तक आपके लिए उन 136 दिनों का इतिहास लेकर आया है, जब मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं.
जब प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने सुना कि मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं, तब उनकी प्रतिक्रिया थी, यह लोकतंत्र में चमत्कार है. मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में जो सबसे पहला भाषण दिया, उसे सुनने के लिए दर्शकों के गलियारे में उनके निर्माता कांशीराम उपस्थित थे. बसपा नेता की उस समय की एक तस्वीर है, जब लखनऊ पहुंच कर देर से बधाई देते हुए उन्होंने अपनी आश्रिता को फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था. उन दोनों के चेहरों पर दिखायी दे रहे भाव एक-दूसरे के प्रति उनकी भावनाओं की गहराई की दास्तान कह रहे थे.
मायावती के पहले सिर्फ तीन दलित मुख्यमंत्री बने थे. आंध्र प्रदेश में डी. संजीवैया, बिहार में राम सुंदर दास औऱ राजस्थान में जगन्नाथ पहाड़िया. इनमें से किसी एक में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे उस ऊंची जाति-व्यवस्था का विरोध कर सकें. अपने लिए इस मौके को मायावती ने दोनों हाथों से जकड़ लिया.

नयी मुख्यमंत्री ने अपने अभियान की शुरुआत नये सिरे से नाम रखने के बड़े अनुष्ठान से की. दलित बहुजन समाज से नाम चुन कर उत्तर प्रदेश में चारों तरफ संस्थाओं, जिलों और इमारतो पर चिपका दिए गये. मायावती का सबसे महत्वकांक्षी और साहसिक काम था, राज्य की राजधानी के बीचों-बीच दलित बहुजन नेताओं के सम्मान में 28 एकड़ का एक विशाल अम्बेडकर पार्क और परिवर्तन चौक बनवाना.
यह सिर्फ एक किस्म की जिद का नतीजा नहीं था, बल्कि यह दलितों को इस बात का विश्वास दिलाने की सोच-समझ कर की गई चेष्टा थी कि भारतीय समाज की नीची श्रेणियों के लिए ऊंचे वर्ग को सबक सिखाना भी मुमकिन था. इससे दलितों के लिए एक बात साफ हो गई कि वे पहली बार शासन प्रणाली में हिस्सेदार थे. उदाहरण के लिए अनुसूचित जाति के अफसरों को आधे जिलों में मजिस्ट्रेट के पद पर बैठाने से और उत्तर प्रदेश में एक चौथाई से ज्यादा पुलिस चौकियों का चार्ज देने के फैसले ने राज्य के दलितों को एक ऐसी सुरक्षा का अहसास कराया. जो उन्होंने कभी पहले कभी महसूस नहीं किया था.
1990 में बसपा के समर्थन से सत्ता में आने पर मुलायम सिंह ने अम्बेडकर ग्रामीण योजना शुरू की थी, वह योजना निर्जीव पड़ी थी. मायावती ने उसी निर्जीव योजना को फिर से चालू किया. उन गांवों में जिनमें अनुसूचित जातियों की जनसंख्या तीस प्रतिशत या ऐसे इलाके जिनमें इससे भी कम यानी बाईस प्रतिशत थी, उन्होंने ढेर सारे सरकारी संसाधन भेजे. इससे दलित प्रधान गांव जो अब तक सबसे खराब हालत में थे, एकदम से सबसे ज्यादा सुविधा प्राप्त इलाके हो गए. जो इलाके परंपरा से धनराशि के लिए तरसते थे, वहां अचानक पक्की सड़कें, हैण्ड पम्प, दवाखाने औऱ पक्के घर दिखायी देने लगे. काफी जगह तो सड़कें उन्हीं हिस्सों में पक्की की गयीं जो दलितों के गांवों से गुजर रहीं थी, और जहां दूसरी जातियों के लोग रहते थे, वहां ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते छोड़ दिए गए. आश्चर्य नहीं कि ऊंची और मध्यवर्ती जातियों ने बहुत शोरगुल मचाया. मगर यह शोर-गुल अपने आप में उस समुदाय के लिए एक सुरीले गीत सरीखा था, जिसे सदियों से सुखों से वंचित रखा गया था.
अनुसूचित जातियों की उपजाति वाल्मीकि समाज के बच्चों को उदारतापूर्वक शैक्षिक अनुदान दिये गए. साथ ही एक पुनर्वास योजना की घोषणा की गयी, जिसके माध्यम से उनके पुश्तैनी व्यवसाय से अलग उन्हें अन्य रोजगारों के लिए प्रशिक्षण दिया जाना था. नाविकों और कुम्हार समुदायों के लिए विशेष ढंग के काम किए गये जिनसे उन्हें अपने व्यवसाय और कला में लाभ मिले. मायावती ने मुस्लिम बच्चों को वे सारे शैक्षिक अनुदान देने का प्रस्ताव किया जो उन्होंने अनुसूचित जातियों को दिए थे.
मुसलमानों ने मायावती सरकार के इन भावों की सराहना तो की ही, परंतु जिस बात ने वास्तव में उनका दिल जीत लिया था वह थी, सितंबर 1995 में विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम को मायावती द्वारा रोक दिया जाना.
मथुरा में विश्व हिन्दू परिषद एक कृष्ण मंदिर के साथ जुड़ी मस्जिद को हटाने के लिए आंदोलन कर रही थी. लखनऊ में मायावती की सरकार को भाजपा समर्थन दे रही थी, जिस कारण उसे यकीन था कि कृष्ण जन्मोत्सव के दिन हिन्दुओं की उग्र भीड़ मस्जिद वाली जगह पर कब्जा कर लेगी. स्थिति भयानक हो चुकी थी, वहां अयोध्या की बाबरी मस्जिद जैसा माहौल बन जाने का डर दिखायी पर रहा था. लेकिन मायावती ने आगे बढ़ कर उस स्थिति को संभाला.
अपनी सरकार की भाजपा के समर्थन पर निर्भरता के बावजूद सबसे पहले उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद की धमकियों के सामने डर कर झुकने से इंकार कर दिया. और विश्व हिन्दू परिषद को विवादग्रस्त स्थल से तीन किलोमीटर पीछे रह कर कृष्ण जन्मोत्सव को मनाने को मजबूर कर दिया. लेकिन इसी मथुरा कांड ने मुख्यमंत्री के रूप में मायावती के शासन का अंत होने की पटकथा लिख दी. स्थानीय भाजपा नेता कल्याण सिंह शुरू से ही मायावती के विरोधी थे. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अब ऐसे नेता और पार्टी का समर्थन नहीं करेगी जो खुले आम संघ परिवार के हित की विरोधी हो. तो दूसरी ओर गुजरात के भाजपा नेता शंकर सिंह वघेला ने भाजपा द्वारा मायावती सरकार को समर्थन देने का विरोध कर दिया. पार्टी के शीर्ष नेता पार्टी के अंदर के इस विरोध को अनदेखा नहीं कर पाएं और 18 अक्टूबर 1995 को जब मायावती ने सत्ता में अपने 136 दिन पूरे कर लिए थे, भाजपा ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी.
- तमाम तथ्य अजय बोस जी की पुस्तक ‘बहन जी’ से भी.

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
