Friday, May 2, 2025
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यहां दुर्गा की नहीं, महिषासुर की होती है पूजा

जहां पूरा देश नवरात्रि की खुशी मना रहा है. दुर्गा की पूजा कर रहा है, वहीं देश के कई हिस्सों में महिषासुर की भी पूजा की जा रही है. बंगाल और झारखंड में कई ऐसे जिले हैं जहां हजारों लोग महिषासुर का त्योहार मनाते हैं और उन्हें पूजते हैं. आईए हम आपको आज असुरों की पूजा के इतिहास से जुड़े कुछ तथ्यों से रू-ब-रू कराते हैं. ये तो हम सब जानते हैं कि असुरों का नाश मतलब ही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है. लेकिन महिषासुर कोई दैत्य नहीं थे, वे पूजनीय थे ये बात कितनों को मालुम है.

असुर कौन होते हैं

हाल ही की एक रिपोर्ट से पता चला है कि झारखंड और बंगाल में असुर आदिवासी प्रजाति के 26 हजार लोग हैं, जो महिषासुर को अपना देवता मानते हैं. उनका मानना है कि महिषासुर उनके राजा थे और देवी ने अपने हाथों से उनका वध किया था. जहां एक ओर हम दुर्गा पूजा को जश्न के साथ मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर असुरों के गांव में मातम फैला होता है. वे अपने राजा को याद करके गम में डूबे रहते हैं.

अब तक हमें ये पता था कि महिषासुर एक दैत्य हैं, लेकिन सच ये है कि पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड समेत पांच राज्यों में फैली कुछ जनजातियां महिषासुर को एक महान राजा मानती हैं और ””असुर”” जैसी कुछ जनजातियां खुद को उनका वंशज मानती हैं. असुर जनजाति झारखंड के गुमला, लातेहार, लोहरदग्गा और पलामू जिलों में और उत्तरी बंगाल के अलीपुरद्वार जिलों में पाई जाती है. असुर और सांथल रीति रिवाजों में महिषासुर की पूजा की जाती है.

दुर्गा पूजा में महिषासुर को एक असुर बताकर मां देवी के चरणों में झुका दिया जाता है. लेकिन कई प्रजाति ऐसी हैं जो महिषासुर की पूजा करती हैं. संथाल जनजाति भी महिषासुर के नाम के लोकगीत गाती हैं. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में महिषासुर की पूजा के लिए एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है.

कई राज्यों में पूजनीय हैं महिषासुर

बंगाल के संथालों में महिषासुर को एक वीर के रूप में दिखाया जाता है. ये जाति इसका विरोध करती है कि महिषासुर को दैत्य क्यों बनाया जाता है और देवी दुर्गा उनका नाश क्यों करती हैं. दुर्गा पूजा में महिषासुर को दुर्गा के चरणों में झुके हुए दिखाया जाता है और देवी को उन्हें मारते दिखाया जाता है लोग इसका भी विरोध करते है.

संथाल जनजातियां लंबे समय से महिषासुर को श्रद्धेय मानती रही हैं और पिछले 12 सालों से वे उसी प्रकार महिषासुर की सामाजिक पूजा का आयोजन कर रही हैं, जिस प्रकार समाज की मुख्यधारा में दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. कई जिलों में महिषासुर की पूजा होती है. हिंदू धर्म की कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों ने असुर महिषासुर के संहार के लिए देवी दुर्गा को उत्पन्न किया था, जिन्होंने दैत्य का नाश करने के लिए धरती पर जन्म लिया.

झारखंड की असुर जनजातियां भी खुदको महिषासुर का वंशज मानती हैं. कर्नाटक के मैसूर का नाम भी महिषासुराना ऊरू (महिषासुर का देश) से ही पड़ा है. बंगाल में देवी की पूजा के दौरान महिषासुर को भी पुष्पांजलि अर्पित की जाती है.

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