जातिगत भेदभाव को लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का बड़ा फैसला

भारतीय जब विदेशों में पहुंचे तो अपने साथ अपने जनेऊ और जाति को लेकर भी गए। नौकरी हो या शिक्षण संस्थान, जहां भी ये जातिवादी पहुंचे, जाति को साथ लेकर चलते रहे। इस तरह जाति दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी भी पहुंच गई। और खासतौर पर यहां पढ़ने वाले दक्षिण एशियाई छात्रों को इसका सामना करना पड़ा। जाति आधारित यह भेदभाव 80 के दशक से ही शुरू हो गया था, जो लगातार बढ़ता गया।

आखिरकार दक्षिण एशियाई स्नातक छात्रों ने इस भेदभाव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और हार्वर्ड युनिवर्सिटी से जातिवाद के खिलाफ सुरक्षा देने की मांग की। मार्च 2021 में यह मांग जोर पकड़ने लगी और आखिरकार नौ महीनों की लंबी लड़ाई के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने दक्षिण एशियाई छात्रों को जातिगत भेदभाव से सुरक्षा देने का अहम फैसला किया है।

एनबीसी न्यूज़ के अनुसार, दक्षिण एशियाई स्नातक छात्र कार्यकर्ता अपने साथ होने वाले जातिगत भेदभाव को लेकर मार्च से यूनिवर्सिटी से मांग कर रहे थे। जिन्हें अब यूनिवर्सिटी ने मानते हुए जातिगत भेदभाव का सामना कर रहे छात्रों को सुरक्षा देने के लिए उपाय करने शुरू किए हैं। खबर के मुताबिक हाल ही में यूनिवर्सिटी ने स्नातक छात्र संघ के साथ कॉन्ट्रैक्ट होने की पुष्टि की है और जाति को नई संरक्षित श्रेणी के रूप में शामिल किया गया है। इसके लिए छात्र संगठन मार्च से लगातार जोर दे रहे थे। संघ और प्रशासन के बीच 9 महीने की चर्चा के बाद दलित नागरिक अधिकार संगठन, इक्वेलिटी लैब्स के समर्थन से ये निर्णय लिया गया।

दरअसल 1980 के दशक के बाद से दक्षिण एशिया से इमीग्रेशन बढ़ने के बाद से पूरे संयुक्त राज्य के परिसरों में हिंदूओं और भारतीय व्यवस्था के खून तक में समा चुकी जाति प्रथा की बीमारी दिखने लगी। इक्वेलिटी लैब्स के एक अध्ययन के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में 25% दलितों ने मौखिक या शारीरिक हमले का सामना किया है, जबकि तीन में से एक छात्र का कहना था कि उन्हें पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से उनकी शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

इक्वेलिटी लैब्स की रिपोर्ट के अनुसार,  तीन में से दो दलित छात्रों ने कहा कि उनके साथ काम के दौरान गलत व्यवहार किया गया और 60%  ने जाति-आधारित अपमानजनक जोक्स और टिप्पणियों का सामना करने की बात कही। इतना ही नहीं, रिपोर्ट ये भी बताती है कि लगभग 40% दलित और 14% ओबीसी छात्रों को उनकी जाति के कारण उनके पूजा स्थल यानी मंदिरों पर अनवांटेड फील कराया गया।

 हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट की छात्रा और स्नातक छात्र संघ की सदस्य अपर्णा गोपालन के मुताबिक- कई श्वेत प्रशासकों को जाति की कोई मूलभूत समझ नहीं थी। तो वहीं इक्वेलिटी लैब्स के कार्यकारी निदेशक थेनमोझी सुंदरराजन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के फैसले के बारे में कहा कि ये इस बात की याद दिलाता है कि जाति समानता श्रमिकों और छात्रों के अधिकारों का मामला है।

यह पहली बार है जब हार्वर्ड यूनिवर्सिटी या किसी अन्य आइवी लीग संस्थान ने जाति को संरक्षित श्रेणी के रूप में शामिल करने का फैसला लिया है। निश्चित तौर पर इस फैसले से जहां दक्षिण एशिया के वंचित समूह के छात्रों को मदद मिलेगी, तो वहीं अमेरिका के दूसरे संस्थानों एवं दुनिया के अन्य हिस्सों में भी दलितों-वंचितों के साथ होने वाले जातिवाद के खिलाफ कानून बनने का रास्ता साफ होगा।

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