सवाल यह है कि किसान अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे? सवाल यह भी है कि जो किसान दो महीने तक शांतिपूर्ण धरना दे सकते हैं, वह दिल्ली में आकर बवाल क्यों करेंगे? सवाल यह भी है कि जो किसान अपने नाबालिग बच्चों और महिलाओं के साथ आंदोलन कर रहे हैं, वह ऐसा क्यों करेंगे कि लाठी चार्ज हो?
इस मुद्दे पर नीचे बात करेंगे। फिलहाल वर्तमान हालात देखिए। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि पहले वह गिरफ्तारी देना चाहते थे, लेकिन बीजेपी के विधायकों ने हमारे लोगों के साथ मारपीट की है। हमारे लोगों को रास्ते में पीटने की योजना बना रखी है। उन्होंने कहा कि अब हम यहां से नहीं जाएंगे। यहीं बैठेंगे। किसान नेता राकेश टिकैत ने खुदकुशी की भी धमकी दी है। मीडिया से बातचीत में रोते हुए राकेश टिकैत ने कहा, ‘अगर तीनों कृषि कानून वापस नहीं होते हैं तो मैं आत्महत्या कर लूंगा। मुझे कुछ भी हुआ तो प्रशासन जिम्मेदार होगा।’ उन्होंने कहा, ‘मैं किसानों को बर्बाद नहीं होने दूंगा। किसानों का मारने की साजिश रची जा रही है। यहां अत्याचार हो रहा है।
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इस बीच गाजीपुर बॉर्डर पर प्रशासन की ओर से सभी सुविधाएं हटा दी गई हैं। प्रशासन की इस कार्रवाई पर राकेश टिकैत ने कहा, ‘देश ने मुझे झंडा दिया है तो पानी भी देगा। मैं गाजियाबाद का पानी नहीं पीऊंगा। गांव के लोग पानी लेकर आएंगे तब मैं पीऊंगा।’ इससे पहले राकेश टिकैत ने सुप्रीम कोर्ट से मांग किया कि वह दिल्ली में हुई हिंसा की जांच कराएँ। लाल किले पर कौन लोग थे, इसकी भी जांच कराई जाए।
वहीं दूसरी ओर सिंधु बार्डर पर जा रही सड़क ब्लॉक कर दी गई। गाजीपुर बार्र पर भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती है। जो स्थानीय लोग पिछले दो महीने से किसानों का सहयोग कर रहे थे, अब अचानक हाइवे खाली कराने की मांग को लेकर प्रदर्शन करने लगे हैं। ये लोग दिल्ली पुलिस और प्रशासन के समर्थन में नारेबाजी कर रहे हैं।
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दरअसल यह किसी फिल्म की स्क्रिप्ट सरीखा दिख रहा है। जैसे फिल्मों में होता है, वैसा ही। वरना 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड की इजाजत नहीं दी जाती। संभवतः यह इसलिए किया गया, क्योंकि 26 जनवरी के बहाने इसे देश की अस्मिता से, देशभक्ति से जोड़ा जा सके। और जब बाद में किसानों पर डंडे परे तो कोई उनके समर्थन में न आए। और जो आए, उसे देश विरोधी ठहराया जा सके।
दिल्ली में हुआ दंगा भूले नहीं होंगे आप, याद है न कैसे शुरू हुआ था? सरकार कृषि बिल वापस नहीं लेगी, उसने बता दिया था। किसान पीछे नहीं हटेंगे, उन्होंने भी कह दिया था। फिर रास्ता क्या था??? क्या इससे पूरी तरह इंकार किया जा सकता है कि एक स्क्रिप्ट लिखी गई हो, कुछ किरदार तय किये गए हों, उनकी भूमिका तय हो। और फिर क्या हुआ, सब सामने ही है।
मुझे ये कोई फिल्म या नेट फ्लिक्स की सिरीज सरीखा दिख रहा है, जिसमें शासक कहीं दूर बैठा मुस्कुरा रहा है।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
सौ आना सच है सर जी मगर विकल्प क्या है? इस पर भी विचार होना चाहिए।