सरकार महात्मा गांधी की 150वीं जयंती का जश्न मना रही है. सरकार से लेकर तमाम राजनैतिक दल उनके योगदान को याद कर रहे हैं. आम तौर पर गांधी को देश में स्वच्छता और शांति के दूत के रूप में याद करने का चलन है. कहा जाता है कि उन्होंने बिना हथियार के भारत को आजादी दिला दी. हालांकि यह पूरा सच नहीं है क्योंकि आजादी के लिए सैकड़ों नायकों और हजारों देशवासियों ने अपनी जान भी गंवाई, क्रांति की.
इसी तरह भारत में मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत का मिशन चलाकर गांधी को उसका ब्रांड एम्बेसडर बनाया. लेकिन सही मायनों में बिना किसी पूर्वाग्रह के देखें तो साफ हो जाएग कि स्वच्छता का ब्रांड एम्बेडकर बनने का हक अगर किसी को था तो संत गाडगे महाराज का था.
23 फरवरी, 1876 में जन्में संत गाडगे ने 1905 में घर त्याग दिया. एक हाथ में लाठी और दूसरे में मिट्टी का भिक्षा पात्र लिए वह घर से चल दिये. वह गरीब समाज को दुखों से मुक्ति दिलाना चाहते थे. उनको सम्मान दिलाना चाहते थे, और इस वर्ग को सम्मान मिलने में सबसे बड़ी बाधा थी उनका गंदा रहन-सहन. गाडगे बाबा ने सबसे पहले गरीबों को स्वच्छता का पाठ पढाने का संकल्प लिया.
एक दिन वह एक दलित बस्ती में चले गए. पूरी बस्ती में कुड़े के ढेर थे. बस्ती के लोगों को सफाई का महत्व समझाते हुए वह स्वयं बस्ती की सफाई में जुट गए तो लोग भी उनका साथ देने लगे. शाम तक बस्ती चमक गई. इस प्रकार वह एक गांव की सफाई करते और इसका महत्व समझाते हुए दूसरे गांव की ओर चलते गए. उनके प्रयास का असर यह हुआ कि लोग अब अपनी बस्तियों को साफ रखने लगे थे.
संत गाडगे ने कुष्ठ रोगियों के लिए भी काम किया. इसके लिए गांधी की तारीफ की जाती है लेकिन गाडगे बाबा को याद नहीं किया जाता. गाडगे बाबा ने मरीजों के लिए अस्पतालों तथा कुष्ठ रोगियों के लिए कुष्ठ आश्रमों का निर्माण करवाया. उन्होंने जीव रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण काम किए. जिन धार्मिक स्थलों पर बकरे, मुर्गे, भैसे कटते थे, गाडगे बाबा ने जीवदया नामक संस्थाओं की स्थापना की शुरुआत की.
बाबा का मिशन फैलाने के उद्देश्य से उनके अनुयायियों ने 8 फरवरी 1952 को गाडगे मिशन की स्थापना की. महाराष्ट्र के अकोला में जन्में गाडगे महाराज की महानता और उनके द्वारा किए गए समाज कल्याण के कामों से महाराष्ट्र सरकार वाकिफ थी. यही वजह रही कि महाराष्ट्र के तत्कालिन मुख्यमंत्री श्री बी.जी खैर ने गाडगे बाबा की सभी संस्थाओं का ट्रस्ट बना दिया, जिसमें करीब 60 संस्थाएं हैं. आज भी यह मिशन जनसेवा को समर्पित है.
तो वहीं दूसरी ओर संत गाडगे बाबा के सार्वजनिक स्वच्छता अभियान के समर्पण के आदर में महाराष्ट्र सरकार ने 2000-2001 में ‘संत गाडगे बाबा संपूर्ण ग्राम सफाई अभियान’ जैसी योजना का आरंभ किया, जिसके अंतर्गत सबसे स्वच्छ गांवों को पुरस्कृत करने की योजना भी बनाई गई. लेकिन पिछड़े हुए समाज से ताल्लुक रखने के कारण संत गाडगे का काम देश भर में ख्याति नहीं पा सका. न ही उस वक्त के नेताओं और समाचार पत्रों ने ही उनके काम को मान दिया. इस तरह अपना पूरा जीवन लोगों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने में बिता देने वाले संत गाडगे स्वच्छता का ब्रांड एम्बेडसर बनने से पीछे छूट गए. आप खुद सोचिए, भारत में स्वच्छता का ब्रांड एम्बेडकर होने का हकदार कौन है? गांधी या संत गाडगे?
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।
first of all i will like to thank you for this appreciable effort. iam dr rahul raj working as radiologist in max hospital. I am a dalit and want to get attached with your endeavor.
Thanks and regards
Dr rahul raj
9810908865
बहुत धन्यवाद राहुल जी। देरी से जवाब देने के लिए खेद है। मैंने आपका नंबर जोड़ लिया है। व्हाट्सएप पर आपको सूचना मिलती रहेगी।