रांची। झारखण्ड राज्य जिन उद्देश्यों को लेकर बना, वे तमाम उद्देश्य झारखण्ड वासियों के लिए सपने बन कर रह गए हैं. सरकार विकास के नाम पर सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का अध्यादेश ले आयी है. जमीन लूट की नीति के लिए सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध करते हुए 15 आदिवासी संगठनों ने आदिवासी अस्तित्व और भूमि कानून के मुद्दे पर सम्मेलन का आयोजन किया. मुंडारी खूंटकटी परिषद, एभन मांझी वैसी पाकुड़, जनाधिकार मंच बोकारो, आदिवासी-मूलवासी अस्तित्व मंच, सोनात संताल समाज, एआईपीएफ इंसाफ और अन्य आदिवासी संगठन भी इस सम्मेलन में शामिल हुए. इस सम्मेलन में काश्तकारी कानून में संशोधन, अधिवास नीति एवं आदिवासी और मूल निवासी समुदायों के बीच संसाधनों का असमान वितरण आदि मुद्दों पर बात की गई.
सम्मेलन में दयामनी बारला ने कहा कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन कर सरकार आखिर किसको बेवकूफ बनाना चाहती है. झारखंड का आदिवासी समुदाय अब जाग चुका है. अब उनका एक ही नारा है, जान दे देंगे, जमीन नहीं देंगे. लड़ेंगे और जीतेंगे. सीएनटी और एसपीटी एक्ट में संशोधन को आदिवासियों की जमीन पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट घरानों के हाथों देने का जरिया बताया. उन्होंने कहा कि एक्ट में संशोधन से झारखण्ड के आदिवासियों का विकास नहीं, विनाश होगा. उन्होंने इसे आदिवासी समुदाय का अस्तित्व खत्म करने की साजिश बताया. सरकार को याद रखना चाहिए कि झारखंड के किसान खेती और जमीन के बिना नहीं रह सकते हैं.
एक आदिवासी संगठन के सदस्य ओनिल ने कहा कि गांव-गांव में संगठन बना कर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. बिरसाइत समाज के मंगरा ने कहा कि पुरखों ने हमारे अस्तित्व पहचान की विरासत जल, जंगल, जमीन के रूप में दी है, जिसे बेचने नहीं, बल्कि बचाने की जरूरत है. वामपंथी नेता केडी सिंह ने भाजपा सरकार को हाईफाई सरकार बताते हुए कहा कि सिंगल विंडो सिस्टम, स्मार्ट सिटी, स्टार्ट अप और बुलेट ट्रेन जैसी घोषणाएं यहां के भोले-भाले आदिवासी-मूलवासियों को भुलावे में डालने वाली हैं. यह सरकार लोगों को आपस में लड़ा कर राज करने और किसानों की जमीन लूटने की साजिश रच रही है.

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