दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को आरक्षण के पक्ष में आएं विशेषज्ञ

 हाल ही में सरकार की तरफ से एक निर्णय आया है जिसमें कहा गया है कि दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा। इस निर्णय के बाद भारत भर में आरक्षण सहित जाति आधारित आरक्षण पर नई बहस छिड़ गयी है। राजनीतिक पार्टियों एवं मीडिया चैनल्स की चर्चा में यह विषय ठीक से उजागर नहीं किया जा रहा है इसलिए इसके बारे में दलित ईसाई एवं दलित मुस्लिम समाज में काफी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में इस विषय में संविधान और समाजशास्त्र के विशेषज्ञों की राय समझना आवश्यक है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री सतीश देशपांडे मानते हैं कि दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को आरक्षण दिया जाना चाहिए। श्री देशपांडे तीन दशक से भी अधिक समय से जाति और वर्ग की असमानताओं का अध्ययन कर रहे हैं और जाति की समस्या सहित तीन पुस्तकों के संपादक के रूप में कार्य कर चुके हैं ।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की 2008 की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों’ को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने के पक्ष में काफी प्रमाण हैं। प्रोफेसर देशपांडे इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक थे। शहरी भारत में लगभग 47% दलित मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे आते हैं, वर्ष 2004- 05 के आंकड़ों के हिसाब से यह प्रतिशत असल में हिंदू दलितों और दलित ईसाइयों की तुलना में काफी अधिक है। ग्रामीण भारत में 40% दलित मुसलमान और 30% दलित ईसाई बीपीएल श्रेणी में हैं।

विभिन्न जाति समूहों के बारे में जरूरी आँकड़े अगर उपलब्ध न हों तो सरकार या प्रशासन द्वारा जरूरी नीति और कल्याणकारी उपायों की रचना करने में मुश्किलें आती हैं। प्रोफेसर देशपांडे का कहना है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों को उप-वर्गीकृत किया जाना चाहिए ताकि इनके भीतर भी तुलनात्मक रूप से अधिक पिछड़े समूह अधिक लाभ उठा सकें।

गौरतलब है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उप-वर्गीकरण पर अपने फैसले की समीक्षा कर रहा है। प्रोफेसर देशपांडे आगाह करते हुए बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण संवैधानिक नजरिए से उचित नहीं है। आर्थिक आधार पर आए इस नए आरक्षण में पहले से जाति के आधार पर आरक्षित समुदायों को शामिल नहीं किया गया है। यह एक गलत बात है इससे उन जातियों के गरीबों के प्रति अन्याय होता है। इस प्रकार यह नया आरक्षण असल में ऊंची जातियों के लिए एक विशेष कोटा बन गया है।

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फोटो क्रेडिट- scroll.in

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