चीन की सबसे पवित्र जगहों में से एक लेशान बुद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे बुद्ध की प्रतिमा है. इस प्रतिमा की ऊंचाई 233 फ़ीट है और इसको बनाने में 90 साल लगे हैं. ऐसा माना जाता है कि इस प्रतिमा को साल के पहले दिन देखने से लोगों की सोई किस्मत जाग उठती है. ये प्रतिमा पवित्र Mount Emei पर नक्काश की गयी है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि एक बौद्ध भिक्षु ने इस विशाल प्रतिमा को अपने हाथों से पहाड़ खोद कर तराशा है.
इस विशालकाय बौद्ध प्रतिमा का निर्माण 713 A.D. में शुरू हो चुका था. ये एक चीनी सन्यासी Haitong का आईडिया था. इसके पीछे उसकी धार्मिक आस्था भी जुड़ी थी. उसने सोचा कि तथागत बुद्ध पानी के तेज बहाव को शांत कर देंगे, जिससे नदी में आने-जाने वाली नावों को कोई क्षति नहीं होगी. ये उसने तथागत की महिमा के बारे में सोच कर नहीं किया था, बल्कि उसने सोचा कि मूर्ति बनाने के दौरान जो भी मलबा पहाड़ से कट कर नदी में गिरेगा, उससे नदी की तीव्र धारा शांत हो जाएगी.
सरकार ने इस योजना के लिए कोई फंडिंग नहीं की, बल्कि उस सन्यासी की ईमानदारी और वफ़ादारी साबित करने के लिए उसकी आंखें निकलवा दी. फिर भी ये निर्माण उसके शिष्यों द्वारा चलता रहा. अंत में एक लोकल गवर्नर की सहायता से ये 803 A.D. में पूरा हो गया.
Dafo के नाम से मशहूर इस प्रतिमा में बुद्ध गंभीर मुद्रा में हैं. प्रतिमा में बुद्ध के हाथ उनके घुटनों पर है और वो टकटकी लगाकर नदी को देखे जा रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि जब बुद्ध की सिखाई बातें लोग भूलने लगेंगे, तब मैत्रेय अवतार में बुद्ध फिर से धरती पर आएंगे. 233 मीटर लम्बी इस प्रतिमा में उनके कंधे 28 मीटर चौड़े हैं और उनकी सबसे छोटी उंगली इतनी बड़ी है कि उसपर एक आदमी आराम से बैठ सकता है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उनकी भौहें 18 फीट लम्बी हैं. वहां के एक स्थानीय निवासी ने बताया कि बुद्ध ही पहाड़ हैं और पहाड़ ही बुद्ध हैं.
बहुत से छोटी-छोटी धाराएं बुद्ध के बाल, गले, छाती और कानों से निकले हैं. ये प्रतिमा को कटाव और विखंडन से बचाने के लिए बनाए गए हैं. 1200 पुराने इतिहास को संजोने के लिए इस प्रतिमा का निरंतर रख-रखाव किया जाता है. उनके कान के पास एक छत बनाई गई है, जहां जाकर पर्यटक सुहाने नजारों का मजा लेते हैं. इस जगह के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि ये जगह बुद्ध की इस प्रतिमा बनने के पहले से ही पवित्र थी.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।