बहुजन नायक कांशीराम जी ने अपने मिशन की शुरुआत महात्मा फुले, शाहु महाराज, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की भूमि महाराष्ट्र से की थी, किंतु इस राज्य में जुझारू दलित समाज के साथ ओबीसी बहुजनों को संगठित कर सशक्त आंदोलन खड़ा करने का उनका प्रयास जन...
आदरणीय महावीर सिंह जी,
मैं उदय एक गाड़ी ड्राइवर हूं. पिछले दिनों गाड़ी से दिल्ली जा रहा था. रेडियो पर खबर आई की हरियाणा के कुश्ती कोच महावीर सिंह को भारत सरकार द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित करेगी. खबर सुनते ही जो ख़ुशी हुई वो मैं...
यह पुराना सवाल है लेकिन जरूरी भी कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिहार में दलित राजनीति अपने समूह के लिए अलग मजबूत नेतृत्व या राजनीति की तलाश क्यों पूरा नहीं कर सकी, जबकि वहां इसकी संभावनाओं के बीज मौजूद हैं. वैसे इसके ऐतिहासिक,...
देश में दलित गीतों की एक नई परंपरा शुरु हो गई है. ये दलित गीत दलितों के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं. यह सिलसिला पिछले लगभग 6 साल से दिखाई दे रहा है कि दलित गायक दलितों की समस्या...
मानव अधिकारों के हनन की समस्या दुनिया के सभी समाजों में एतिहासिक एवं सार्वभौमिक रूप से पायी जाती रही है. भारतीय समाज भी कोई अपवाद प्रस्तुत नहीं करता है. यहां भी कई प्रकार के मानव अधिकारों का उल्लंघन पाया जाता रहा है, जिसमें यहां...
स्कूल के दिनों में 2 अक्तूबर को गांव में सभी छात्रों की एक रैली निकलती थी. जिसे हमारे मराठवाड़ा अंचल में ''प्रभात फेरी'' कहा जाता था. मजे की बात यह थी कि यह फेरी गांव के बाहरी रास्तों से निकलती थी जिस पर सुबह...
यह आम धारणा है कि गांधी की कृपादृष्टि के कारण ही डॉ. अंबेडकर का संविधान सभा में प्रवेश सम्भव हो सका था. इतना ही नहीं यह भी प्रचारित है कि गांधी ने ही उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनवाया था. इस धारणा...
मेरे एक मित्र गया में अपने पितरों का पिंडदान करने के बाद कल ब्रह्मभोज देने वाले हैं. मेरे मन में कुछ शंकाए उमड़-घुमड़ रही हैं, उसे आपके समक्ष बिना लाग-लपेट के प्रस्तुत कर रहा हूं. पिंडदान का विस्तृत वर्णन गरुण पुराण, अग्नि पुराण और...
हर युद्ध,गृहयुद्ध की कीमत जैसे देश काल परिस्थिति निर्विशेष स्त्री को ही चुकानी पड़ती है, उसी तरह दुनिया में कहीं भी युद्ध हो तो उससे आखिरकार हिमालय लहूलुहान होता है. उत्तराखंड के कुमायूं गढ़वाल रेजीमेंट या डोगरा रेजीमेंट,नगा रेजीमेंट या असम राउफल्स सबसे कठिन...
70 वर्ष की आजादी के बाद भी जिस देश की 85 प्रतिशत आबादी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन पायी हो और उसमें भी हम जैसी अधिकांश आबादी की जुबान पर यह जुमला "कोई होहिं नृप हमें का हानि" घर कर...
मेरे दिमाग में कई बार आया कि आदिवासी औरतों के चित्र ही निर्वस्त्र ही क्यों देखने को मिलते हैं...कुछ इलाकों में आज भी आदिवासी औरतें लगभग निर्वस्त्र सी रहती हैं. क्यों? यह भी सोचा कि शायद धनाभाव इसका कारण रहा हो... कभी यह भी...
बुन्देलखण्ड क्षेत्र जिसे कहते है वो उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश को मिला के बना हुआ है और एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर शादी किसी यज्ञ से कम नहीं होती है. इस क्षेत्र में कन्यादान सबसे बड़ा दान माना जाता है. यहां लड़की का जन्म...
मेरे बिजनौर ने ख़ुद को तुरंत संभाल लिया इसके लिए उसे सलाम. वरना साज़िश तो बड़ी थी. बिजनौर का मूल स्वभाव अमन पसंद है, हालांकि बीच-बीच में कुछ लोग माहौल ख़राब करने की कोशिश करते रहते हैं. इस बार भी यही कोशिश हुई. पेदा...
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति और नीयत पर भरोसा करने वालों की देश में कमी होती, तो वे 282 सीटों पर कब्ज़ा कर के लोकसभा में न पहुंचे होते. किंतु उनके प्रधानमंत्री बनने के पहले और बाद...
घटना पिछले दिनों की है। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के एक गांव में दबंग जातियों के लोगों ने एक मृतक दलित महिला का शमशान घाट पर अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। क्योंकि शमशान घाट की जमीन पर दबंग जातियों के लोगों का कब्जा...
शाकाहार और मांसाहार में तुलनात्मक मेरिट की ही बात है तो ध्यान रखियेगा कि दुनिया में सारा ज्ञान विज्ञान तकनीक मेडिसिन चिकित्सा यूनिवर्सिटी शासन प्रशासन संसदीय व्यवस्था व्यापार उद्योग इत्यादि यूरोप के मांसाहारियों ने ही दिया है. भारत सहित अन्य मुल्कों को भी लोकतन्त्र,...
देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान चलाया जा रहा है, ऐसे अभियानों का समाज पर प्रभाव भी पड़ता है. परिणामस्वरूप समाज में बेटियों के प्रति नजरिया बदल रहा है. आज देश में ऐसे सैकड़ों स्कूल मिल जाएंगे, जहां लड़कों की अपेक्षा लड़कियां अधिक...
बाबा साहेब ने ''कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया’ में कहा है कि सत्ता ही जीवन शक्ति है. अतः उन्हें (दलितों को) शासक जमात बनाना है और सत्ता अपने हाथ में लेनी है, वरना जो अधिकार मिले हैं, वे कागजी रह...
दरअसल हिंद स्वराज एक ऐसी किताब है, जिसने भारत के सामाजिक राजनीतिक जीवन को बहुत गहराई तक प्रभावित किया. बीसवीं सदी के उथल पुथल भरे भारत के इतिहास में जिन पांच किताबों का सबसे ज़्यादा योगदान है, हिंद स्वराज का नाम उसमें सर्वोपरि है....
उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधान सभा चुनाव तक क्या दलित-मुसलमानों को अख़बार पढ़ना छोड़ देना चाहिए? क्या उन्हें सवर्ण नेताओं और मीडिया से दुरी बना लेनी चाहिए? क्या दलितों और मुसलमानों को ऐसी किसी रैली या जनसभा में नहीं जाना चाहिए, जहां...