देश में दलित गीतों की एक नई परंपरा शुरु हो गई है. ये दलित गीत दलितों के स्वाभिमान को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं. यह सिलसिला पिछले लगभग 6 साल से दिखाई दे रहा है कि दलित गायक दलितों की समस्या एवं दलितों के महापुरुषों के विषय में गाना गा रहे हैं. गायक परमजीत पम्मा का कहना है कि उन्होंने 2009 में ऑस्ट्रिया में हुयी रविदासी सम्प्रदाय के संत रामानंद जी हत्या के बाद दलितों के विषय में गीत गाने शुरू किये. परमजीत पम्मा का कहना कि पहले जाट जाति को देहाती, मूर्ख समझा जाता था लेकिन जाट गायकों ने अपनी जाति का महिमामंडन करते हुए अनेक गीत गाये. अब समाज में यह जाट गीत स्वीकार्य हो गए हैं. एक दिन ऐसे ही दलित गानों की स्वीकार्यता सर्वसमाज में होगी और दलितों के प्रति सोच बदलेगी.
यह एक नई संस्कृति की शुरूआत है. एक नए कल्चर को बढ़ाने की कोशिश है जैसा कि हम जानते हैं कि कोई भी संस्कृति हो वह सांस्कृतिक प्रतीकों पर आधारित होती है. दलितों ने भी अपने प्रति को अपने महापुरुषों को इन गीतों में आधार बनाया है. समाजशास्त्री अंतोनियो ग्राम्सी ने कहा था कि किसी भी विचारधारा का संस्थानिक एवं कल्चरल आधार होता है, यह कल्चरल आइडियोलॉजी ही किसी बड़ी राजनैतिक शक्ति के आधारों में होती है. इसमें राजनीतिक प्रचार भाषण लोक साहित्य एवं प्रसिद्ध गीत सभी आते हैं. ग्राम्सी के अनुसार प्रसिद्ध गीत एवं मिथक भी एक प्रकार की बौद्धिक शक्ति होते हैं. ग्राम्सी ने कहा है कि शासक वर्ग अपने कल्चरल प्रतीकों के माध्यम से ही अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रभु सत्ता भौतिक एवं विचारधारा के कारकों का समुच्य होता है, जिससे शासक वर्ग अपनी शक्ति को बनाए रखता है. प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पंजाब में दलितों की सबसे बड़ी जनसंख्या है. यहां लगभग 28 फीसदी दलित हैं. पंजाब में सबसे ज्यादा गीत जाट जाति के विषय में हैं. दलितों के गानों को जाटों का काउंटर कल्चर ही माना जाता है. ऐसे बहुत से गाने हैं जिनमें जाटों की वीरता का और उनके उच्च सामाजिक स्तर का बखान होता है.
गायक परमजीत सिंह पम्मा कहते हैं कि हम दूसरी जातियों के गानों पर क्यों नाचे जब हम अपनी जाति के ऊपर बने हुए गानों पर भी नाच सकते हैं. पंजाबी की शीर्ष गायिका मिस पूजा भी दलित समाज से हैं. मिस पूजा ने भी रविदास समाज के ऊपर कई गाने गाएं हैं, जिसमें से सबसे प्रसिद्ध है- बेगमपुरा बसाना है, सारे कर लो एका. रविदास की बेगमपुरा की संकल्पना यूरोपियन यूटोपिया के समान है, बल्कि उससे भी जयादा विकसित है क्योंकि रविदास जी के वचन थे कि ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिले सभन को अन्न, रहें सभी प्रसन्न. इस प्रकार के गीतों का संवर्धन करने में डेरा सचखंड बल्ला की महत्वपूर्ण भूमिका है. डेरा सचखंड बल्ला की स्थापना संत श्री श्रवण दासजी जी महाराज के द्वारा की गई थी. डेरा सचखंड बल्ला जालंधर जिले में स्थित है. डेरा सचखंड बल्ला ने अनेक सीडी रिलीज की है जो रविदासिया मिशन के बारे में है. डेरा सचखंड बल्ला से संबद्ध अनेक गायक हैं जो रविदासिया मिशन से जुड़े हुए गीत गाते हैं. दलितों के गीतों की एक परंपरा सी चल पड़ी है. आज यूपी में, हरियाणा में अनेक दलित गायक हैं जो डॉ अम्बेडकर, गुरु रविदास के बारे में गाने गा रहे हैं. अपने गीतों से अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं. डेरा सचखंड बल्ला वालो ने गुरु रविदास की वाणी के ऊपर एक कार्यक्रम बनाया था जिसका नाम था अमृतवाणी गुरु श्री गुरु रविदास की. यह कार्यक्रम जालंधर दूरदर्शन पर 2003 में प्रसारित हुआ था.
एक दलित गायक रूपलाल धीर की दूसरी एलबम रिलीज हुई है जिसका नाम है हम्मर. हम्मर एक आयातित अमेरिकन एसयूवी है तो वह उसी के ऊपर आधारित है कि दलित भी हम्मर जैसी गाड़ी रख सकता है. रूप लाल धीर का कहना है कि हमारा संगीत दलित समर्थक है ना कि किसी जाति के खिलाफ. चमार शब्द का उल्लेख गुरुवाणी में मिलता है जब गुरुओं ने हमें सम्मान दिया तो हमें इस पर गर्व क्यों नहीं होना चाहिए. एक गाने के बोल हैं, वाल्मीकियां दे मुंडे नहीं डर दे, मजहबी सिख मुंडे नहीं डर दे. अर्थ स्पष्ट है कि वाल्मीकि जाति के युवक बहादुर हैं. एसएस आजाद पंजाब में दलित पॉप के पायनियर हैं. उनके पहले एलबम का नाम था, अखि पूत चमारा दे. इसका मतलब है चमारो के गर्वीले पुत्र. यह एलबम सन 2010 में आई थी. यह एलबम कुछ लोगों के अनुसार पुत्र जट्टा दे के विरुद्ध आई एलबम फाइटर चमार सन 2011 में रिलीज हुई. उस में कुछ ऐसे गीत है जैसे हाथ लेकर हथियार जब निकले चमार इस एलबम की लगभग 20 हजार कॉपियां बिकी. रूप लाल धीर का कहना है कि एक गाना दिखाता है कि एक युवा दलित लड़का चंडीगढ़ में पढ़ रहा है. तब एक लडकी उसका ध्यान आकर्षण करने की चेष्टा करती है तो वह चमार लड़का कहता है पढ़ लिख कर मैं बनूंगा एसपी या डीसी या फिर किसी यूनिवर्सिटी का वीसी. मुझपे तुम्हारा आकर्षण नहीं चलेगा. आइडेंटिटी की पहचान की इस लड़ाई में भेदभाव और संघर्ष हो रहा है. ऑनलाइन यह बहुत ज्यादा दिखाई देता है. यू-ट्यूब पर एक दूसरी जातियों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाले वीडियो भी अपलोड किए जा रहे हैं. विदेशो में रहने वाले दलित इस दलित पॉप के सबसे बड़े संरक्षक हैं. गायक पम्मा सुनराह का कहना है कि इस चमार पॉप ने हमारे हौसले को बढ़ा दिया है. यह जाट पॉप का रिएक्शन नहीं है यह दलितों की बात करता है. उल्लेखनीय है कि पंजाबी के अनेक गायक जैसे हंसराज हंस, दलेर मेहंदी एवं मीका दलित हैं.
-लेखक जामिया मिलिया से पी.एचडी कर रहे हैं. संपर्क- 9213120777

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