नई दिल्ली। सहारनपुर के शब्बीरपुर में जब भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद रावण ने अपने गांव के सामने हाइवे पर द ग्रेट चमार का बोर्ड लगाया था तो काफी हो-हल्ला हुआ था. लोगों के लिए यह एक अजूबा था, ऐसा अजूबा जिसे उन्होंने पहले नहीं देखा था. दरअसल भारत में हजारों जातियों की भीड़ में चमार जाति को सबसे हीन माना जाता है. ऐसे में हर कोई यह देख कर हैरान था कि कोई भी ‘चमार’ होने का जश्न कैसे मना सकता है.
यह सिलसिला अब आगे बढ़ चुका है. चमार शब्द एक ब्रांड के रूप में स्थापित हो गया है. आज सरकार ने भले ही दलित शब्द पर प्रतिबंध लगाने का फरमान सुना दिया है, दलित और चमार शब्द इस समाज के नई पीढ़ी के युवाओं के बीच एक ब्रांड बन चुका है. अब इस समाज के युवाओं को इस शब्द से एतराज नहीं है. आखिरी छोड़ पर खड़े समुदाय के युवा दलित औऱ चमार जैसे शब्द को एक फैशन लेबल और ब्रांड के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं.
गूगल पर दलित टी-शर्ट सर्च करते ही कई स्लोगन वाले टी-शर्ट दिख जाते हैं. इन स्लोगनों में गौरव छिपा हुआ है. आप खुद देखिए.. ‘Untouchable-Property of Dalit’ और ‘Keep Calm And Say Jai Bhim’ जैसे स्लोगन्स के साथ वाली टी-शर्ट्स बड़ी संख्या में दिखाई देती हैं। अब दलित शब्द छुपाने का नहीं बल्कि गर्व करने का प्रतीक बनता जा रहा है.
बात सिर्फ टी-शर्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इससे आगे बढ़ गई है. मुंबई में आर्टिस्ट सुधीर राजभर ने ‘चमार स्टूडियो’ बनाया है. इस स्टूडियों में वह हैंडबैग्स को फैशनेबल बनाते हैं. 6 महीने पहले इस स्टूडियो को कमर्शली लॉन्च करने वाले राजभर कहते हैं,- ‘इसे मैंने कई मोचियों (चमड़े का काम करने वाले) के साथ शुरू किया, उसमें अधिकतर दलित थे और अपनी छोटी-छोटी दुकानें चलाते थे. बाद में हमने चमड़े के कुछ और कारीगरों को अपने साथ जोड़ा.’ ये प्रोड्क्टस बाजार के अन्य प्रोडक्ट्स को कड़ी टक्कर देते हैं. इन डिजाइनर प्रॉडक्ट्स की कीमत 1500 से 6000 तक होती है.
भारत जैसे समाज में इस तरह का बदलाव कोई छोटा बदलाव नहीं है. यह एक क्रांति है. ऐसी क्रांति जिसकी मशाल वंचित तबके के युवाओं ने जलाई भी है और थाम भी रखी है. वो इस मशाल की रौशनी में अपने समाज और शब्दों की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं.
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