नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के महागठबंधन ने भाजपा के दलित-पिछड़े नेताओं को मुश्किल में डाल दिया है. पार्टी द्वारा गुरुवार 21 मार्च को जारी उत्तर प्रदेश की पहली लिस्ट में यह देखने को भी मिला. पार्टी ने अपनी इस लिस्ट में छह बहुजन नेताओं का टिकट काट दिया. जिन 6 सांसदों का टिकट कटा है उनमें से 4 दलित और 2 अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं.
बीजेपी की गुरुवार को जारी पहली सूची में शाहजहांपुर, सुरक्षित से सांसद कृष्णा राज और आगरा, सुरक्षित सीट से सांसद राम शंकर कठेरिया के अलावा हरदोई सुरक्षित सीट से वर्तमान सांसद अंशुल वर्मा के अलावा मिश्रित सुरक्षित सीट से सांसद अंजू बाला और फतेहपुर सीकरी से सांसद बाबू लाल चौधरी और संभल से सांसद सत्यपाल सिंह का टिकट काटा गया है. इन सीटों पर जो नए प्रत्याशी घोषित किए गए हैं, उनमें एसपी सिंह बघेल को आगरा, परमेश्वर लाल सैनी को संभल, राजकुमार चाहर को फतेहपुर सीकरी, जयप्रकाश रावत को हरदोई, अशोक रावत को मिश्रिख और अरुण सागर को शाहजहांपुर से टिकट दिया गया है.
चर्चा है कि एससी-एसटी एक्ट और रोस्टर के मुद्दे पर दलितों-पिछड़ों के आंदोलन को नहीं संभाल पाने की वजह से इनके टिकट काटे गए हैं. तो वहीं बसपा और सपा के एक साथ आने से भी प्रदेश में दलित-पिछड़े वोटों का समीकरण बदल गया है. अब भाजपा अपने उन दलित-पिछड़े नेताओं पर दांव लगा रही है, जो सपा और बसपा के परंपरागत वोटरों के अलावा अन्य जातीय समीकरणों को साधने का माद्दा रखते हैं. इसका सबसे बड़ा सबूत आगरा के सांसद राम शंकर कठेरिया का टिकट कटना है. कठेरिया भाजपा के कद्दावर दलित नेता माने जाते हैं. पार्टी और संघ परिवार में उनकी पैठ तब भी देखने को मिली जब उन्होंने कई नेताओं को पीछे छोड़कर कर अनुसूचित जाति के अध्यक्ष का पद हासिल किया था.
ऐसे में कठेरिया का टिकट काटकर एसपी सिंह बघेल को टिकट देना साफ बताता है कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए अब नए चेहरों पर दांव लगा रही है. और इस सरकार में हुए दलित आंदोलन को संभाल नहीं पाने की सजा अपने ही दलित और पिछड़े सांसदों को दे रही है.
