पुरानी कहावत है कि नाकाबिल औलादें काबिल बाप की संपत्ति को बढ़ाती नहीं बल्कि लुटाती हैं। आज की बीजेपी सरकार की नीतियाँ देखकर यह बात बहुत स्पष्ट होती जा रही है। हम देख पा रहे हैं कि आजादी के बाद बीते सत्तर सालों में जिन संस्थाओं, उद्योगों, सार्वजनिक परिसंपत्तियों आदि का निर्माण किया गया उसे बीजेपी सरकार एक एक करके निजी हाथों में बेच रही है।
एक फरवरी को जारी आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सितारमण ने बहुत सारे सरकारी उपक्रमों एवं परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी को निजी कंपनियों को बेचने (विनिवेशीकरण) की घोषणा की है। इस वित्त वर्ष में इस तरह से सरकारी संपत्ति निजी कंपनियों को बेचकर 2.1 लाख करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा गया है।
वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिए यह लक्ष्य क्रमशः 80 हजार करोड़ एवं 1.05 लाख करोड़ रखा गया था। इस वर्ष के बजट में एलआईसी के शेयर्स को भी निजी हाथों में बेचने की योजना लागू की जानी है। इस बजट में भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन एयर इंडिया, आईडीबीआई, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया, कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया, बीईएमएल और पवन हंस के निजीकरण कि योजना का घोषित की गई है।
यहाँ ध्यान देना जरूरी होगा कि इन सार्वजनिक संस्थानों, विभागों में एवं औद्योगिक उपक्रमों में बड़ी संख्या में ओबीसी, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इनमें संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ भी मिलता है जिससे भारत के करोड़ों गरीब बहुजनों को सही सामाजिक एवं आर्थिक प्रतिनिधित्व भी हासिल होता है। निजी कंपनियों के हाथों में जाने के बाद इन उद्योगों एवं संस्थानों आदि में बहुजनों को न तो आरक्षण का लाभ मिलेगा न ही श्रम कानूनों का कोई पालन होगा। इस प्रकार सरकार की मंशा निजीकरण द्वारा बहुजनों के रोजगार और सामाजिक सुरक्षा को खत्म करने की है। इसी उद्देश्य से बीजेपी सरकार द्वारा निजीकरण की प्रक्रिया तेज की जा रही है।
फोटो क्रेडिट- ऊपर की तस्वीर सोशल मीडिया से। तस्वीर सांकेतिक है

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