किसी हस्ती को लेकर कोई व्यक्ति या संस्थान कितना द्वेष रखता है, यह लखनऊ के बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रशासन ने साबित कर दिया है. डॉ. अम्बेडकर के नाम से यह देश का इकलौता ऐसा अनोखा संस्थान है, जिसने डॉ. अम्बेडकर को ही कैद कर रखा है. जी हां, इस विश्वविद्यालय में बाबासाहेब की दो प्रतिमाएं हैं, जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन ने चारो तरफ से घेर कर उसकी तालेबंदी कर रखी है. विश्वविद्यालय का यह काम जितना शर्मनाक है, इसको लेकर उसका तर्क भी उतना ही हास्यास्पद है. यहां के बहुजन छात्रों के मुताबिक प्रशासन का कहना है कि मूर्ति को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए और पक्षी उसे गंदा न कर दें इसलिए उसे लोहे की चहारदीवारी के भीतर कैद कर दिया गया है. प्रशासन का यह तर्क इसलिए भी बेमानी है कि इसी संस्थान के प्रांगण में अन्य विचारधाराओं के लोगों की मूर्ति शान से खड़ी है.
संस्थान के बहुजन छात्र इसको खुलवाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. उनका आरोप है कि भारत रत्न और संविधान निर्माता की विश्वविद्यालय प्रांगण में लगी दोनो मूर्तियों को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपमानित करने के उद्देश्य से ऐसा किया गया है. बहुजन छात्रों का आरोप है कि विश्वविद्यालय में यह पहली घटना नहीं है, बल्कि इससे पहले भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने विवि का नाम छोटा करने, विवि का लोगो बदलने, छात्रों को बाबासाहेब की जयंती मनाने से रोकने और सेमीनार से बाबासाहेब की फोटो हटाने जैसे काम किए गए हैं.
असल में विश्वविद्यालय प्रशासन का मूर्तियों को सुरक्षित रखने का दावा इसलिए भी गले से नहीं उतरता है क्योंकि 256 एकड़ में बने विश्वविद्यालय की सुरक्षा में 140 भूतपूर्व आर्मी के जवान लगे हैं. तो वहीं जगह-जगह सी सी टी वी कैमरे लगे हैं. इसके अलावा बाबासाहेब की मूर्तियों की सुरक्षा के लिए दो गार्ड की तैनाती रहती है. ऐसे में यह कहना की मूर्ति क्षतिग्रस्त या फिर गंदी हो जाएगी यह सफाई काफी हल्की है.
बाबासाहेब के नाम पर बने इस विश्वविद्याय में लगभग 70% बहुजन छात्र हैं जो बाबासाहेब के अनुयायी हैं. जाहिर सी बात है कि उनसे मूर्तियों को कोई खतरा नहीं है. विश्वविद्यलाय प्रशासन मूर्ति के स्थान पर सीसीटीवी कैमरे लगाकर भी उसकी सुरक्षा पुख्ता कर सकता है. लेकिन उसने ऐसा करने की बजाय अपमानजनक काम किया है. यहा के छात्रों का आरोप है कि विवि प्रशासन बाबासाहेब की विचारधारा को विवि से खत्म करना चाह रहा है.
14 अप्रैल को बाबासाहेब की 127वीं जयन्ती से पूर्व विश्वविद्यालय के बहुजन छात्रों ने ज्ञापन देकर बाबासाहेब को इस चारदीवारी से मुक्त कराने को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन से आग्रह किया है. और ऐसा नहीं होने पर उन्होंने खुद ही बाबासाहेब को चारदीवारी से मुक्त करने की बात कही है. देखना होगा कि बहुजन छात्रों की इस जायज मांग पर प्रशासन क्या रुख अपनाता है.

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