दलितों के घर भोजन पर एक पत्र संघ प्रमुख के नाम

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आदरणीय मोहन भागवत जी,

आजकल आपके राजनीतिक संगठन भाजपा के नेताओं में भारी तामझाम के साथ दलितों के घर भोजन करने की होड़ लगी है और उनका यह काम काफी सुर्खियाँ बटोर रहा है. ऐसा होने का प्रधान कारण यह है कि आपके लोग दलितों के घर बना रुखा-सूखा न खाकर बाहर का बना सुस्वादु भोजन अपने साथ लाये नए बर्तनों में खाते हैं और उनके साथ फोटो खिंचवाकर चलते बनते तथा जमकर प्रचारित करते हैं. उनके ऐसा करने पर दलित बुद्धिजीवियों के साथ मीडिया भी तंज कसती है. दलितों के घर खाने की घटनाओं को अतिप्रचारित किये जाने से भाजपा के कई दलित सांसदों सहित खुद प्रधानमंत्री मोदी भी खासे नाराज हैं.

खैर! अगर दलितों के घर भोजन का करने का अभीष्ट छुआछूत का खात्मा है तो आपके लोगों के इस प्रयास से कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है , यह दावा भाजपा के सांसद डॉ. उदित राज और लोजपा के रामविलास पासवान जैसे कई दलित नेता और बुद्धिजीवी भी कर चुके हैं. लेकिन आप अगर सचमुच छुआछूत के खात्मे के प्रति गंभीर हैं तो इस विषय पर सर्वाधिक चिंतन करने वाले डॉ. आंबेडकर के अध्ययन से लाभ उठा सकते हैं, जिन्होंने इस समस्या की उत्पत्ति और उत्खात पर निर्भूल चिंतन पेश किया है.

डॉ. आंबेडकर ने इसकी उत्पत्ति के कारणों का संधान करते हुए लिखा है-‘ अस्पृश्यता मुख्यतः धर्म पर आधारित है. हालांकि इससे हिंन्दुओं को आर्थिक लाभ होता है. जब कभी आर्थिक या सामाजिक हित की बात होती है , तब कुछ भी पवित्र या अपवित्र नहीं होता. ये हित समय और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं. गुलाम-प्रथा और खेतिहर गुलाम-प्रथा क्यों कर मिट गयी और अस्पृश्यता क्यों कर नहीं मिटी, इसका यही कारण स्पष्ट है. दो अन्य प्रश्नों का उत्त्तर भी यही है. अगर हिन्दू अस्पृश्यता का पालन करते हैं, तो यह इसलिए कि उसका धर्म उसे ऐसा करने का आदेश देता है. अगर उसकी इस स्थापित व्यवस्था के विरुद्ध उठने वाले अस्पृश्यों का वह नृशंसतापूर्वक और अन्यायपूर्वक दमन करता है, तब उसका करण उसका अपना धर्म है, जो केवल इस बात की ही शिक्षा नहीं देता की यह स्थापित व्यवस्था दैवीय विधान है और इसलिए पावन है, बल्कि उस पर यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य भी आरोपित करता है कि उसे इस स्थापित व्यवस्था को हर संभव उपाय से कायम रखना है.

अगर वह मानवता की पुकार को नहीं सुनता तो , तब उसका करण यह है कि उसका धर्म अस्पृश्यों को मानव समझने के लिए उसे बाध्य नहीं करता. अगर अस्पृश्यों को मारने – पीटने, उनके घरों को लूटने तथा जलाने और उन पर अत्याचार करते समय उसके विवेक का कुछ भी ध्यान नहीं रहता , तब उसका कारण यह है कि उसका धर्म उसे इस बात की शिक्षा देता है कि इस सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करने के लिए किया गया कोई भी कर्म पाप नहीं है. ‘

जब यह स्थिति है तब अस्पृश्यता के खात्मे के लिए चिंतित व्यक्ति को क्या करना चाहिए, इसका बहुत ही सुस्पष्ट मार्ग सुझाते हुए डॉ. आंबेडकर ने अपनी मशहूर रचना ‘ जाति का विनाश’ में जात-पात तोड़क मंडल के सचिव संतराम बी.ए. को संबोधित करते हुए बताया है-‘छुआछूत को ख़त्म करने के आन्दोलन में लगे महात्मा गाँधी जैसे व्यक्ति भी यह महसूस नहीं करते कि लोगों के काम व व्यवहार उनके दिमाग में शास्त्रों के धार्मिक विश्वास का परिणाम होते हैं. और जब तक शास्त्रों में उनकी आस्था ख़त्म नहीं हो जाती, उनका व्यवहार कभी बदल नहीं सकता.

ऐसी स्थिति में यदि समाज सुधारकों के प्रयास सफल नहीं होते तो इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं. और आप जात-पात तोड़क मंडल के समाज सुधारक वही गलती करने जा रहे हैं. इसलिए आपकी कोशिशों का भी वही नतीजा होने वाला है जो छुआछूत मिटाने वाले समाज सुधारकों का हुआ है. आपसी सहभोज और आपस में विवाह के आन्दोलन चलाना व प्रचार कर संगठित करना, हिन्दुओं को जबरदस्ती घुट्टी पिलाने के समान काम है. लेकिन यदि आप हिन्दू स्त्री-पुरुषों को शास्त्रों की गुलामी से मुक्ति दिला दो , उनके दिमाग से शास्त्रों के नुकसानकारी प्रभाव हटा दो तो लोग आपके पूछे बिना अपनी इच्छा से ही अंतरजातीय भोज व विवाह अपनाने के लिए सहर्ष स्वीकार कर लेंगे.

दोहरी नीति अपनाने और टेढ़ी बातें करने से कोई लाभ नहीं. लोगों को यह बताने से कोई लाभ नहीं कि शास्त्रों में वैसा नहीं कहा गया है जैसा वे समझते हैं. महत्त्व इस बात का है कि शास्त्रों को किन अर्थों में वे ग्रहण करते हैं. आपको गौतम बुद्ध की तरह कठोरता से खड़े होकर डटे रहना होगा. आपको वह कदम उठाना होगा जो गुरु नानक ने उठाया. आपको सिर्फ यही नहीं करना है कि शात्रों को नजरअंदाज ही कर दिया जाय बल्कि बुद्ध व नानक की तरह आपको शास्त्रों को भी गलत कहना होगा, उनकी सत्ता व आदेशों को भी नकारना होगा. हिन्दुओं को यह बताने की आपमें हिम्मत होनी चाहिए कि असली दोष आपके धर्म का है: वह धर्म जिसने आप में जाति व्यवस्था के पवित्र होने की धारणा पैदा की. क्या आप इतना साहस जुटा पाएंगे !’

भागवत जी, तब 1936 में जात-पात तोड़क मंडल,लाहौर के संतराम बी.ए. यह कहने का साहस नहीं जुटा पाए थे कि अस्पृश्यता की भावना फ़ैलाने के लिए हिन्दू धर्म शास्त्र ही दोषी हैं तथा इन्हें डायनामाइट से उड़ा दिया जाना चाहिए. संतराम ही क्यों कोई भी हिन्दू समाज सुधारक वैसा करने का साहस नहीं जुटा पाया इसलिए छुआछूत की भावना हिन्दुओं में बनी हुई है . आज जबकि आपके आनुषांगिक संगठन अस्पृश्यता मिटाने का उपक्रम चला रहे हैं, उनके मुखिया के रूप में अतीत के समाज सुधारकों की भाँति अस्पृश्यता के लिए हिन्दू धर्मशास्त्रों को जिम्मेवार ठहराने का साहस आप भी नहीं जुटा पाएंगे , इसका इल्म इस लेखक को है. पर, यदि सचमुच आप छुआछूत की समस्या मिटाने के लिए दिल से इच्छुक हैं , तो धर्मशास्त्रों को अक्षत रखते हुए दलितों के लिए कुछ करने के लिए आपके सामने अन्य विकल्प भी है.

भागवत जी, जिस अस्पृश्यता की समस्या को आप जैसे लोग सिर्फ इस रूप में देखते हैं की इसके कारण लोग अस्पृश्यों का छुआ खाते-पीते नहीं, उन्हें घृणित समझ कर दूरी बरतते हैं, उन्हें सार्वजनिक स्थानों के इस्तेमाल से रोकते एवं स्पृश्य लोगों से दूर अलग-थलग बस्तियां बसा कर रहने के लिए विवश करते हैं, वह अस्पृश्यता का लौकिक व स्थूल रूप है. डॉ. आंबेडकर के अनुसार अस्पृश्यता का दूसरा नाम बहिष्कार है और शक्ति के स्रोतों(आर्थिक- राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक) से बहिष्कार ही दलितों की असल समस्या है : कह सकते हैं 1-9 तक यही बहिष्कार ही दलितों की सबसे बड़ी समस्या है, जिसके लिए जिम्मेवार है हिन्दू धर्म . अगर अस्पृश्य इस बहिष्कार के शिकार नहीं होते, हिन्दू उन्हें मनुष्येतर प्राणी समझने के बावजूद , उनका बाल भी बांका नहीं कर पाते.

मान्यवर, जिसे हिन्दू धर्म कहा जाता है, उसका प्राणाधार वह वर्ण-व्यवस्था है , जो मुख्यतः शक्ति के स्रोतों के बंटवारे की व्यवस्था रही एवं जिसमे प्रत्येक वर्ण के लिए धर्मादेशों से पेशे/कर्म निर्दिष्ट रहे. इन पेशों/कर्मो का अनुपालन ही विभिन्न वर्णों में बंटे हिन्दू का धर्म कहलाता है. इसमें ब्राह्मण का धर्म अध्ययन-अध्यापन, पौरोहित्य व राज्य संचालन में मंत्रणा दान: क्षत्रिय का राज्य संचालन, सैन्य वृति एवं वैश्यों का धर्म पशुपालन , व्यवसाय-वाणिज्य कर्म रहा. चूँकि पेशों की विचलनशीलता धर्मादेशो द्वारा पूरी तरह निषिद्ध रही, इसलिए जिस वर्ण को जो पेशे दिए गए , पीढ़ी दर पीढ़ी उस वर्ण के लोग वही/पेशे कर्म करने के लिए बाध्य रहे. ऐसा होने के फलस्वरूप वर्ण व्यवस्था एक आरक्षण व्यवस्था, जिसे हिन्दू आरक्षण-व्यवस्था कह सकते हैं, के रूप में तब्दील होने के लिए अभिशप्त हुई. इस हिन्दू आरक्षण में सदियों से ही शक्ति के समस्त स्रोत ब्राह्मण-क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों के लिए आरक्षित रहे. इस हिन्दू आरक्षण-व्यवस्था में शूद्रों(आज के पिछड़ों ) और अतिशूद्रों (अस्पृश्यों) के मध्य वितरित की गयी शक्ति के स्रोतों के एकाधिकारी तीन उच्चतर वर्णों की सेवा, वह भी निःशुल्क! इसमें अस्पृश्यों को चिरकाल के लिए अध्ययन-अध्यापन, आध्यात्मानुशीलन, सैन्य वृत्ति, राजनीति , भूस्वामित्व, व्यवसाय – वाणिज्य इत्यादि पेशे/ कर्मों से बहिष्कृत होकर रह जाना पड़ा.

हिन्दू धर्म के सौजन्य से हजारों साल से शक्ति के स्रोतों से बहिष्कार ही अस्पृश्यों को मानव जाति के सम्पूर्ण इतिहास में सबसे घृणित व दुर्बल मानव समुदाय में तब्दील कर दिया. अगर दलित बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर को अपना मसीहा मानते हैं: उन्हें किसी भी भगवान से ज्यादा महत्त्व देते हैं तो इसलिए कि उन्होंने हिन्दू धर्म द्वारा शक्ति के समस्त स्रोतों बहिष्कृत किये गए मानवेतरों को अपने अथक प्रयास से शक्ति के कई स्रोतों में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का असंभव सा चमत्कार घटित कर डाला. उन्होंने इनके लिए आरक्षण का जो प्रावधान किया उसके फलस्वरूप हिन्दू आरक्षण के चिर-वंचित : अछूत बाबू, आइएएस, पीसीएस , डॉक्टर,इंजीनियर, प्रोफ़ेसर, सांसद, विधायक इत्यादि बन कर शक्ति के स्रोतों से जुड़ने लगे. और आप पाएंगे कि जो अस्पृश्य शक्ति के स्रोतों से जुड़े, उच्च वर्णीय लोग उनके साथ भोजन करने व मित्रता स्थापित करने में कोताही नहीं बरते. आजाद भारत में हिन्दू सिर्फ उन दलितों के साथ खुला भेदभाव करने करने का दुसाहस करते हैं, जो आज भी शक्ति के स्रोतों से जुड़ नहीं पाए हैं. तो समझ गए न असल समस्या शक्ति के स्रोतों से बहिष्कार है.

बहरहाल अछूतों का शक्ति के स्रोतों से जुड़ना हिन्दू आरक्षण के विवेकशून्य सुविधाभोगी वर्ग को कभी रास नहीं आया, इसलिए वे पूना-पैक्ट के ज़माने से आरक्षण का विरोध करते रहे. किन्तु धीरे-धीरे वे अछूतों के आरक्षण को झेलने की, अनिच्छापूर्वक ही सही, मानसिकता विकसित कर लिए. लेकिन 7 अगस्त, 1990 को प्रकाशित मंडल रिपोर्ट ने हिन्दू आरक्षण के सुविधाभोगियों को सीधे शत्रु की भूमिका में उतार दिया और उन्होंने क्या किया, इसे बताना कलम की स्याही का दुरूपयोग होगा. हाँ यह जान लीजिये कि बहुजनों के आरक्षण के खात्मे के लिए 24 जुलाई , 1991 को देश पर नवउदारवादी अर्थनीति थोपी गयी जिसे आगे बढ़ाने कांग्रेसी नरसिंह राव व डॉ. मनमोहन सिंह के साथ आपके परम श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ने एक दूसरे से होड़ लगाया. लेकिन आरक्षण के खात्मे के जरिये पिछड़े-आदिवासियों के साथ अस्पृश्यों को शक्ति के स्रोतों दूर धकेलने का जितना काम राव-वाजपेयी और डॉ. सिंह ने दो दशकों में किया, उससे कही ज्यादा आंबेडकर प्रेम –प्रदर्शन में सबसे आगे रहने वाले स्वयंसेवी मोदी जी ने कर दिया है.

यूपी के सीएम योगी के दावे के मुताबिक जबतक दुनिया है आरक्षण जरुर रहेगा, लेकिन वह नाम का होगा. 24 जुलाई ,1991 से दलित-बहुजनो को शक्ति के स्रोतों से दूर धकेलने की जो साजिश शुरू हुई, आज वह पूर्णता को प्राप्त कर चुकी है. इसका सबसे बुरा प्रभाव आंबेडकर के लोगों पर पड़ने जा रहा है. वे अबतक धनार्जन के एकमात्र स्रोत नौकरियों पर निर्भर रहे, लेकिन मंडल उत्तरकाल में शासकों की साजिश से , जिसमे आपके स्वयंसेवी भी शामिल हैं, वह स्रोत लगभग सूख चुका है. इससे अछूत पुनः पहले की स्थिति में पहुँचने जा रहे हैं.

मोदी जी तो आंबेडकर प्रेम में सबको बौना बनाते ही रहे हैं, आपने भी कुछ साल पहले बाबा साहब को ‘भारतीय पुनरुत्थान के पांचवें चरण के अगुआ’ के रूप में आदरांजलि दी थी. अब यह जान लीजिये कि सरकारी नौकरी के रूप में धनार्जन के एकमात्र स्रोत के सूख जाने के बाद आंबेडकर के लोग विशुद्ध गुलाम के रूप में परिणित होने जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में जैसा कि पहले कह चुका हूँ, हिन्दू धर्म और शास्त्रों के खिलाफ कुछ बोले बिना भी अछूतों के हित में करने का विकल्प है. और वह विकल्प यह है कि उन्हें आप सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, पार्किंग, परिवहन इत्यादि धनार्जन के अन्य स्रोतों में हिस्सेदारी सुनिश्चित कराने में अपने राजनीतिक संगठन पर दबाव बनायें. ऐसा करने पर भाजपा नेतृत्व को भी खूब आपत्ति नहीं होगी. क्योंकि भाजपा ने लोकसभा चुनाव-2009 के घोषणापत्र के पृष्ठ-29 पर दलित-पिछड़ों में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने का वादा किया था. यदि नौकरियों के अतिरिक्त धनार्जन के अन्य स्रोतों में अछूतों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराने में आप अपनी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर सकते, तब तो मैं समझूंगा संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों का आंबेडकर और उनके लोगों के प्रति प्रेम प्रदर्शन महज एक नौटंकी है.

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