यह मेरे लिए बड़ा दिन था. 31 जनवरी 2020 का दिन. यह दिन इसलिए भी बड़ा था क्योंकि मैं पिछले पांच सालों से इस दिन का इंतजार कर रहा था. वजह इस दिन बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरे हो रहे थे. ‘दलित दस्तक’ के मंच से और सोशल मीडिया के जरिए भी हम घोषणा कर चुके थे कि हम इस दिन को धूमधाम से सेलिब्रेट करेंगे. क्योंकि अम्बेडकरी पत्रकारिता से 100 साल का जश्न खामोशी और कामचलाऊ ढंग से नहीं मनना चाहिए था. हमने वही किया, बाबासाहेब को एक पत्रकार के रूप में याद करने की बेहतर कोशिश की. हमने मूकनायक के शताब्दी वर्ष का आयोजन दिल्ली के सबसे महंगे और प्रमुख जगह पर किया. 15 जनपथ स्थित ‘डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में.
कार्यक्रम में 17 राज्यों से लोग पहुंचे. शुक्रवार का दिन था, वर्किंग डे था, फिर भी भारी संख्या में पहुंच कर आपलोगों ने इस कार्यक्रम को सफल बनाया. आप सबका बहुत धन्यवाद. इसके आयोजन में व्यस्तता के कारण हम जनवरी और फरवरी का अंक एक साथ निकाल रहे हैं. इसके लिए आपसे क्षमायाचना है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह हुई कि दलित दस्तक ने जो मुहिम शुरू की थी, उसका असर देश भर में हुआ और देश के कई हिस्सों में ‘मूकनायक’ का शताब्दी वर्ष समारोह मना. अंग्रेजी अखबार ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ ने इस पर 26 जनवरी को बड़ी स्टोरी की तो ‘द हिन्दू’ ने विशेष आर्टिकल प्रकाशित किया. मराठी दैनिक ‘लोकमत’ ने कार्यक्रम की पूर्व सूचना देने से लेकर कार्यक्रम की रिपोर्टिंग की और बाद में विशेष लेख भी प्रकाशित किया. हिन्दी के ‘हरिभूमि’ अखबार ने खबर छापी तो ‘नवभारत टाईम्स’ और ‘न्यूज 18’ की वेबसाइट के अलावा फारवर्ड प्रेस ने भी इसको कवर किया. बीबीसी ने भी इस पर आर्टिकल प्रकाशित किया और दलित दस्तक के कार्यक्रम का भी जिक्र किया. कुल मिलाकर हम अपनी कोशिश में सफल रहे और मूकनायक के जरिए बहुजन मीडिया की चर्चा तेज हुई. साथ ही भारत के पत्रकारिता जगत में ‘मूकनायक’ का महत्व फिर से स्थापित हो पाया.
लेकिन इतने भर से ही बहुत खुश हो जाने का मतलब नहीं है. इस कार्यक्रम के बाद अम्बेडकरी पत्रकारिता को बेहतर ढंग से स्थापित करने की हमारी-आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. मैं बार-बार कहता हूं कि एक मासिक पत्रिका और यू-ट्यूब के जरिए समाज के भीतर जागरूकता तो आ रही है लेकिन हम सत्ता और प्रशासन पर दबाव नहीं बना पा रहे हैं. इसका नुकसान यह हो रहा है कि हम आपकी समस्याओं को लेकर मजबूती से लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं. क्योंकि इसके लिए कम से कम एक साप्ताहिक अखबार या फिर ऐसे चैनल की जरूरत है, जहां गंभीरता से चर्चा हो सके.
जब हम कार्यक्रम के आयोजन हेतु देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों से संपर्क कर रहे थे तो कई पाठकों ने दैनिक अखबार और चैनल की जरुरत पर बल दिया. दलित दस्तक अभी दस हजार लोगों के घरों में जा रही है. पिछले कई सालों से हम यह कोशिश कर रहे हैं कि कम से कम 100 ऐसे लोगों को जोड़ सकें, जो साल में एक बार एक निश्चित राशि का योगदान दें. मुझे नहीं लगता कि यह इतना मुश्किल काम है. क्या हमारे बीच 100 लोग ऐसे नहीं हैं जो साल में एक बार 10 हजार रुपये का योगदान दे सकें?? अगर सक्षम लोग सामने नहीं आएंगे तो वंचितों की मीडिया बनाने का सपना कैसे पूरा होगा?
आर्थिक अभाव वंचितों की पत्रकारिता को लील जाने को तैयार बैठा है. इसे आपलोग ही बचा सकते हैं. जब हम मूकनायक के शताब्दी वर्ष का उत्सव मना रहे हैं तो हमारे लिए जरूरी है कि हम वंचितों की मीडिया बनाने के सपने को आगे लेकर बढ़ें. यह सपना हम मिलकर देखेंगे तभी सफल होंगे. क्योंकि जब हम वंचित समाज का सशक्त मीडिया बनाने की बात करते हैं तो बात सिर्फ विज्ञापन की नहीं होती, बात विचार की भी होती है. हमें बाजार (विज्ञापन) और विचार का सामंजस्य बनाकर चलना होगा. यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन हम मिलकर इस पर जीत हासिल कर सकते हैं. क्या हम मूकनायक के शताब्दी वर्ष में वंचित समाज का सशक्त मीडिया स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. सोचिएगा जरूर, अगर आपके अंदर से ‘हां’ की आवाज आती है तो फिर संपर्क करिएगा.
नोटः दलित दस्तक ने अपना एक एप ‘Bahujan Today’ के नाम से लांच किया है. आप सबसे निवेदन है कि तुरंत Play Store पर जाकर इसको डाउनलोड करिए. इसको अच्छी रेटिंग दीजिए. हम इसके जरिये भी आपसे जुड़े रहेंगे.

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
