नई दिल्ली। पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी की राजनीति को ठीक से देखने पर यह साफ हो जा रहा है कि बसपा की नजर अब सर्वजन पर न होकर एक बार फिर बहुजन पर टिक गई है. समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद इसे और मजबूती मिली है.
मायावती की जुबान और सियासत दोनों ही बदली दिख रही है. ऐसा लगता है ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की विचारधारा को उन्होंने खूंटी पर टांग कर बहुजन हिताय को अपने मन में बसा लिया है.जानकारों के मुताबिक अपनी साख को वापस हासिल करने के लिए बसपा उसी पुराने दौर में पहुंचने लगी है, जब वह अपने कैडर वोट बहुजन समाज के बूते राजनीति में सक्रिय था. और इसी के बूते पहली बार सत्ता में आया था.
यह सब अचानक नहीं हुआ. मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा के दलित वोट बैंक को अपने पाले में खींच कर बसपा को लोकसभा में शून्य पर पहुंचा दिया. इससे बसपा और उसके समर्थकों को काफी झटका लगा. एक सच्चाई यह भी है कि अपर कास्ट के वोट तो मायावती को समय−समय पर ही मिलते थे, वह भी पूरे नहीं, जबकि दलित वोट बीएसपी का था. मायावती अपने इस वोट बैंक में अब किसी को हिस्सेदारी देना नहीं चाहती हैं. तो साथ ही पार्टी से पिछड़े समाज को भी मजबूती से जोड़ने में जुट गई है.

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