“गंगा का कपूत, गंगा के सपूत को खा गया है,

“गंगा का कपूत, गंगा के सपूत को खा गया है,
यह कोई सामान्य मौत नही, यह एक राजनैतिक हत्या है
एक माँ की अस्मत के लिए एक बेटे ने अपनी जान दे दी है,
लेकिन कभी उसका बेटा होने का दावा नहीं किया,

और जो गला फाड़-फाड़ कर खुद को गंगा माँ का स्वघोषित बेटा बताता फिरता रहा उसी ने गंगा माँ को बेच डाला है…”

प्रो० जी०डी०अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद) गंगा को बचाने के लिए 111 दिनों से भूख हड़ताल पर चल रहे थे, परंतु माँ गंगा के स्वघोषित फर्जी बेटे और उसकी बड़बोली सरकार को इंच मात्र फ़र्क नहीं पड़ा.
(जिस सरकार की जल संसाधन व गंगा सफ़ाई मंत्री उमा भारती ने अपने बड़बोलेपन में गंगा के स्वच्छ न होने पर उसी गंगा में डूबकर प्राण त्यागने का प्रण लिया था, आज वह बेहयाई की पराकाष्ठा पर विराजमान है)

गंगा माँ को बचाने के लिए अंतिम साँस तक संघर्षरत रहे प्रोफ़ेसर को कुछ दिन पूर्व ही पुलिस द्वारा जबरन अनशन स्थल से उठाकर एम्स में भर्ती करवाया गया था, जहाँ कल शाम उनकी मृत्यु हो गई, और गंगा माँ का सच्चा सपूत सदैव के लिए गंगा माँ की गोद में चिर निद्रा में लीन हो गया.

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी बनारस से चुनाव लड़ने आए थे, तो उत्तर प्रदेश और बनारस वासियों की भावनाओं से खेलने के लिए मोदी ने माँ गंगा को खिलौने की तरह खूब इस्तेमाल किया था. उन्होने खुद को माँ गंगा का बेटा बताया और ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट की शुरूआत की, जो इनके बाकी चुनावी नारों की तरह ही मात्र एक जुमला साबित हुआ.

लेकिन इस दुनिया में अगर अंबानी के दलाल मोदी जैसे लफ्फाज और बहुरूपिए नेता हैं तो जी०बी०अग्रवाल जैसे उच्चशिक्षित, कर्तव्यनिष्ठ और वचनबद्ध लोग भी हैं, जो मात्र सत्ता हासिल करने के लिए जुमलेबाजी करने वाले धूर्तों से बेहद आगे हैं.

आई०आई०टी० कानपुर के प्रोफ़ेसर और पर्यायवरण विभाग के प्रमुख रहे जी०डी०अग्रवाल जी ने 24 फ़रवरी 2018 व 13 जून 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर गंगा की दयनीय स्थिति का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री पर गंगा की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए अंतिम साँस तक भूख हड़ताल पर बैठने की बात लिखी थी.

जिसके बाद वह विगत चार महीनों से अनवरत भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे. उन्होने कहा था ‘अब तो लगता है गंगा की स्वच्छता के लिए जारी मेरा यह अनशन मेरी मौत के साथ ही खत्म होगा’. और हुआ भी यही, इस निकम्मी सरकार के कानों पर जूँ तक न रेंगी, और प्रोफ़ेसर ने प्राण त्याग दिए.

हमें तो यह डर हैं कि कहीं अब यह सरकार और इनके मंदबुद्धि समर्थक किसानों की तरह प्रोफ़ेसर जी०डी०अग्रवाल को भी नक्सली न घोषित कर दें. यह भक्त अपने आका मोदी की फटी पतलून को अपने हाथ से ढँककर छिपाने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पूर्व ही मोदी सरकार की गंगा सफ़ाई के प्रति लापरवाही देख फटकार लगाते हुए कहा था कि “इस तरह से तो गंगा 200 साल में भी साफ़ नहीं होगी”.
गंगा के नाम पर चुनकर आई भाजपा की मोदी सरकार ने बीते चार सालों में 16 हजार करोड़ ₹ का बजट देने की बात कही थी जिसने वास्तव में गंगा माँ से ही बेईमानी की और केवल 5378 करोड़ ₹ ही बजट में दिए.
बजट में जारी 5378 ₹ में से केवल 3633 करोड़ ₹ खर्च के लिए निकाले गए और इसमें से केवल 1836 करोड़ 40 लाख ₹ ही वास्तव में खर्च किए गए.
अर्थात किए गए वादे का लगभग 10%!

इसके बावजूद कि 1836 करोड़ 40 लाख ₹ गंगा की सफाई पर खर्च हुए, पिछले 54 महीने में गंगा पहले के मुकाबले 58% और मैली हो गयी.

रिपोर्ट बताती है कि गंगा के पानी में कोलिफॉर्म बैक्टीरिया 58 फीसदी बढ़ गया है.
1000 मिलीलीटर पानी में 2,500 से ज्यादा कोलिफॉर्म माइक्रोऑर्गेनिज्म्स की मौजूदगी इसे नहाने के लिए असुरक्षित बना देती है.
गंगा के पानी के नमूने में बैक्टीरिया दूषण आधिकारिक मानकों से 20 गुना अधिक है.

सोचिए कि यह इंसान जब अपनी माँ का नहीं हो सका तो किसका होगा?
सिर्फ अडानी और अंबानी का ही हो सकता है यह.
क्योंकी इसी ने एक बार कहा थी कि यह गुजराती व्यापारी है, इसके खून में व्यापार है.

हमें यह प्रण लेना चाहिए कि इन राजनैतिक नरपिशाचों की असंवेदना और लापरवाही के कारण हुतात्मा प्रोफ़ेसर जी०डी०अग्रवाल के दिए गए बलिदान को हम ज़ाया नही जाने देंगे.
हमें गंगा की स्वच्छता का संकल्प लेते हुए प्रोफ़ेसर के सपनों को मंज़िल तक पहुँचाने का प्रण लेना चाहिए.

प्रोफ़ेसर जी०डी०अग्रवाल अमर रहें!
निकम्मी मोदी सरकार मुर्दाबाद!

प्रतीक सत्यार्थ
फ़ैज़ाबाद (उ०प्र०)

Read it also-प्रधानमंत्री मोदी को लिखे जीडी अग्रवाल के वो तीन पत्र, जिसका उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया

  • दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये आप हमें paytm (9711666056) कर सकतें हैं। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.