रांची। झारखंड में एक किताब पर प्रतिबंध लगाए जाने का मामला तूल पकड़ने लगा है. लेखक हांसदा सोवेन्द्र शेखर की किताब “द आदिवासी विल नॉट डांस” पर झारखंड सरकार द्वारा बैन लगाए जाने पर बुद्धिजीवी हांसदा के समर्थन में उतर आए हैं. उनका कहना है, “ द आदिवासी विल नॉट डांस” पर झारखंड सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाने पर हम आश्चर्यचकित एवं निराश हैं. प्रतिबन्ध बेतुका है एवं एक खतरनाक मिसाल प्रस्तुत करता है।”
झारखंड सरकार ने संथाली महिलाओं के अश्लील चित्रण का आरोप लगाते हुए हांसदा की किताब ‘आदिवासी विल नॉट डांस’ पर बैन लगा दिया. इस किताब की एक कहानी ‘नवंबर इज द मंथ ऑफ माइग्रेशन्स’ को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. यह एक ऐसी महिला की कहानी है जिसे महज 50 रुपयों और कुछ पकौड़ों के लिए जिस्मफरोशी करनी पड़ती है. राज्य सरकार ने इस कहानी पर आदिवासी संस्कृति को बदनाम करने और संथाल महिलाओं को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाते हुए अश्लील करार दिया है.
“The Adivasi Will Not Dance” पुस्तक पर झारखण्ड में प्रतिबंध। सभी प्रतियां तत्काल जब्त की जाएंगी और लेखक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी…
— Raghubar Das (@dasraghubar) August 11, 2017
ये मसला विधानसभा में विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से उठाया गया और किताब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई. इसके फौरन बाद ही शाम तक मुख्यमंत्री रघुबर दास ने इसकी सभी प्रतियों को जब्त करने और लेखक सोवेंद्र शेखर पर कार्रवाई करने का आदेश दे दिया.
हांसदा के समर्थन में आए लोग
साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार प्राप्त लेखक हांसदा सोवेन्द्र शेखर की किताब पर बैन के विरोध में बुद्धिजीवियों ने कहा है, “किताब में कुछ खुले यौन दृश्य हैं लेकिन उन्हें अश्लील कहना अत्यन्त ही पाखंडपूर्ण है. अगर उन किताबों, जिसमें ऐसे दृश्य शामिल हैं, पर प्रतिबंध लगाना होता तो कामसूत्र सहित हजारों उपन्यास पर प्रतिबन्ध लग जाता. जिन्हें लगता है कि यौन दृश्य अश्लील हैं वे कुछ और पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं.”
कहा गया कि कहानी में वर्णित काल्पनिक घटना संथाली महिलाओं पर किसी तरह का आक्षेप नहीं लगाती. यह संभव है कि कहानी किसी वास्तविक घटना से प्रेरित हो लेकिन ऐसा अगर है तो यह कहानी को और भी न्यायसंगत बनाती है.
समर्थकों के नाम वाले पत्र में लिखा है, “द आदिवासी विल नौट डान्स” पर प्रतिबन्ध न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि भारत में छिछले आधार पर किताबों को प्रतिबंधित करने की कड़ी में एक नया उदाहरण है. प्रतिबन्ध की यह सनकस्वतंत्रता, लोकतंत्र एवं तार्किकता पर खतरनाक हमला है.”
हांसदा की किताब पर बैन को लेकर ज्यां द्रेज, अरुंधति रॉय, हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर, बेला भाटिया, हरिवंश (राज्यसभा सदस्य), कविता श्रीवास्तव सहित बड़ी संख्या में लेखक, फिल्ममेकर, शिक्षक, शोधार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता और नागरिकों ने अपना विरोध दर्ज कराया है.
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