भारत में दलितों एवं महिलाओं का राजनीति में प्रतिनिधित्व कितना कम है इसके संबंध में एक खबर केरल से है। भारत के सर्वाधिक सुशिक्षित राज्य केरल में भी बीते 20 सालों में सिर्फ 6 महिलाएं विधायक बन पाई हैं। इसका अर्थ साफ है कि भारत में शिक्षा के प्रतिशत के बढ़ जाने से भी समाज और परिवार में पितृसत्ता की भूमिका कम नहीं हो जाती।
केरल में पहली महिला विधायक सन 1957 में ईदुक्की के देवीकुलम विधानसभा क्षेत्र से चुनी गई थी। इसके बाद वे विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर भी बनी थी। सन 1957 में ही केरल की पहली विधानसभा में 6 महिलाएं चुनी गई थी। उस समय का आंकड़ा कुल विधायकों का 5.3% था। तब से आज तक की इतने सालों की यात्रा की तुलना की जाए तो आज की केरल की विधानसभा में 9 महिला विधायक हैं। यह संख्या आज केरल विधानसभा में कुल विधायकों की 6.4% है। इस तरह ठीक से देखा जाए तो बीते 60 सालों में केरल की राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में 1.1 % की ही बढ़ोतरी हुई है।
केरल जैसे राज्य की राजनीति और विधानसभा में महिलाओं की यह स्थिति बहुत चिंतित करने वाली है। इसका अर्थ है कि वामपंथी विचारधारा भी पितृसत्ता को कमजोर करने में सफल रही है। इतना ही नहीं सर्वाधिक शिक्षित राज्य होने के दावे से भी महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आ रहा है। यह बात भारत के ओबीसी और दलितों और आदिवासियों के लिए विशेष रूप से चिंतनीय हैं। क्योंकि सर्वाधिक वंचित एवं शोषित समुदाय कि महिलाओं की आवाज उठाने के लिए महिला प्रतिनिधित्व पहली शर्त है। केरल जैसे राज्य में यह प्रतिनिधित्व अगर कमजोर बना हुआ है तो भारत के ओबीसी और दलितों के लिए यह खतरनाक बात है।

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