ज्योतिबा फुले से हिन्दी जगत का परिचय कराने वाले बौद्ध विद्वान डॉ. विमलकीर्ति नहीं रहें

वरिष्ठ बौद्ध साहित्यकार और चिंतक डॉ. (प्रो.) विमलकीर्ति नहीं रहें। 71 साल (जन्मतिथिः 5 फरवरी, 1949) की उम्र में उनका परिनिर्वाण आज 14 दिसंबर को हो गया। वह नागपुर युनिवर्सिटी में पालि और बौद्ध विभाग के प्रोफेसर थे। बौद्ध धर्म दर्शन और पालि भाषा पर उनका अधिकार था। पालि भाषा शब्दकोष पर उन्होंने काम किया। साथ ही सामाजिक विषयों पर भी काम किया। वो बड़े चिंतक थे और तमाम विषयों पर उन्होंने अपनी अहम राय समाज के बीच रखी और समाज का मार्गदर्शन किया। महामना ज्योतिबा फुले के साहित्य को हिन्दी में पहली बार उन्होंने ही अनुवाद किया और प्रकाशित करवाया। जिससे उत्तर भारत के हिन्दी क्षेत्रों में लाखों-करोड़ों लोग ज्योतिबा फुले के सामाजिक योगदान को जान सकें। उनकी नवीनतम पुस्तक थी ब्राह्मण संस्कृति बनाम श्रमण संस्कृति

वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम ने प्रो. विमलकीर्ति जी को श्रद्धांजलि दी है। उनको याद करते हुए कर्दम जी ने कहा कि विमलकीर्ति जी के साथ पिछले 20 सालों से रिश्ता था। अनेक आयोजनों में हम एक साथ रहे। बौद्ध साहित्य और पालि भाषा में दिया गया उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकेगा। शांति स्वरूप बौद्ध के बाद विमलकीर्ति जी का जाना बौद्ध आंदोलन और बौद्ध साहित्य के लिए बहुत बड़ी क्षति है।

Video- वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम ने प्रो. विमलकीर्ति को किया याद

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