जबलपुर। यह खबर मध्य प्रदेश के प्रमुख जिले जबलपुर की है. शहर मुख्यालय से पांच किमी दूर छपरा, करौंदी मार्ग पर एक मॉडल हाईस्कूल है. सूचना इसी स्कूल से मिली है और सूचना यह है कि इस हाईस्कूल के आवासीय विद्यालय में रहने वाली आदिवासी छात्राओं को भूखे पेट सोना पड़ रहा है. इनके लिए खाने का प्रबंध करने का जिम्मा स्वयं सहायता समूह के पास है जो लगातार इन आदिवासी छात्राओं की अनदेखी कर रहा है. छात्राओं को कच्चा खाना परोसा जा रहा है, जिसे खाकर कई छात्राएं बीमार भी हो चुकी हैं. खबर दैनिक अखबार राजस्थान पत्रिका के हवाले से सामने आई है.
अब जरा घर से दूर रह रहीं इन छात्राओं के खाने का मेन्यू सुन लिजिए. भोजन के नाम पर इन्हें सिर्फ दो रोटी और एक चम्मच चावल मिल रहा है. इस पूरे मामले का खुलासा छात्राओं ने खुद किया है. छात्राओं का आरोप है कि स्कूल प्रबंधन उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता है. वहीं खाने की जम्मेदारी जिस स्वयं सहायता समूह और जिस ठेकेदार के पास है, उसकी दबंगई के चलते आवासीय विद्यालय के टीचर भी कुछ नहीं बोलते हैं.
अगर नियम कायदों की बात करें तो प्रशासन द्वारा आवासीय हॉस्टलों में खिलाने के लिए एक मेन्यू है. और नियम यह है कि सातों दिन का खाना उसी मेन्यू के हिसाब से देना है. मीनू के अनुसार सुबह-शाम चाय फिर नाश्ता और भरपेट भोजन दिया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. छात्राओं का आरोप है कि मेन्यू की पूरे तौर पर अनदेखी की जाती है और चावल-दाल रोटी के अलावा कभी-कभार हरी सब्जी के रूप में चौरई की सब्जी भर ही दी जाती है.
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छात्राओं के विरोध में आने के बाद इस आवासीय विद्यालय से जुड़े सभी प्रमुख लोग सकते में हैं. उन्होंने यह कल्पना नहीं की थी कि आदिवासी छात्राएं इस कदर विद्रोह पर उतर जाएंगी. प्रिंसिपल पीएस मरावी बस इतना भर कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं कि छात्राओं को कच्चा भोजन परोसने के संबंध में शिकायत मिलने के बाद इस संबंध में उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर सूचित किया गया है. लेकिन सवाल है कि क्या प्रिंसिपल और अन्य संबंधित अधिकारियों की आंखों के सामने हो रहे इस जुल्म को लेकर पहले किसी ने आवाज क्यों नहीं उठाई?

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