हमारे लिए भी यह अहम सवाल है कि आखिर देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. यह तय है कि सरकार उसी की बनती है जिसे जनता अपना वोट, अपना समर्थन देती है और आप ही लोग जनता जनार्दन हो, बनने वाली सरकार के माई-बाप हो. वक्त कम है सो इस बार घुमा फिरा कर बात नहीं करते हैं. संवाद सीधा होता है तो सीधा पाठकों तक पहुंचता भी है।
तो मैं ये कह रहा था कि किसी भी प्रदेश में उसी की सरकार बनती है जिसे वहां की जनता चुनती है, वोट करती है. अब सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश की जनता अपने प्रदेश में किसकी सरकार चाहती है. और सरकार चुनने और किसी पार्टी को वोट देने का आपका आधार क्या है? प्रदेश में फिलहाल बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और भाजपा तीन राजनीतिक दल चुनावी मैदान में हैं। पिछले पांच साल से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है. यह एक ऐसी सरकार रही है जो सिर्फ एक बड़े परिवार के दो दर्जन भर लोगों और उनके 50-100 हितैषियों की बात करती है, उनका ख्याल रखती है. इससे ज्यादा वह एक समुदाय विशेष तक सीमित होकर काम करती है और यह बात अब किसी से छुपी हुई नहीं है। इस एक कुनबे की सरकार ने पिछले पांच साल में उत्तर प्रदेश के कल्याण के लिए क्या किया है यह तो प्रदेश की जनता को पता होगा ही, लेकिन एक बार फिर प्रदेश की जनता को चुनाव के पहले के वादों और वर्तमान हालात का जायजा ले लेना चाहिए कि यह पार्टी अपने वायदे पर कहां ठहरती है।
भाजपा का जिक्र करना भी जरूरी है. यह पार्टी भले ही तमाम वर्गों को साथ लेकर चलने का दावा करती हो लेकिन उसका यह दावा खोखला है. इसने केंद्र के अपने अब तक के ढाई साल के शासन से यह साबित कर दिया है कि वह बड़ा मौका मिलने के बावजूद अपने सांप्रदायिक सोच से आगे नहीं निकल सकी है। इसके नेताओं के बयान उठाकर देख लिजिए, जो पार्टी और जो लोग अपने बयानों में ऐसी कड़वाहट घोले हैं, सत्ता में आने के बाद क्या वह सभी समाज के लोगों को साथ लेकर चल पाएंगे?
उत्तर प्रदेश में कई बार सत्ता में रहने वाली बहुजन समाज पार्टी का जिक्र किए बिना यूपी के मतदाताओं से संवाद पूरा नहीं होता है। इसके जनक कांशीराम जी के शुरुआती दौर में एक नारा बहुत चला था। आइए एक बार फिर उसे याद करते हैं. नारा था- “वोट से लेंगे सीएम-पीएम, आरक्षण से लेंगे एसपी-डीएम”. नारे के दूसरे हिस्से यानि ‘आरक्षण से लेंगे एसपी-डीएम’ को देखें तो एसपी और डीएम तो तमाम लोग बन चुके लेकिन इस नारे का पहला पक्ष ‘वोट से लेंगे सीएम-पीएम’ पर बात होनी जरूरी है क्योंकि पांच साल के लंबे इंतजार के बाद बसपा के समर्थकों और सर्वजन के हित की बात करने वाली बहुजन समाज पार्टी प्रमुखता से यूपी के चुनाव मैदान में है।
2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता ने बसपा को क्यों खारिज कर दिया, इस पर बहुजन समाज पार्टी ने आत्ममंथन कर लिया होगा. तो साथ ही इसके बाद न्यायप्रिय और शांति प्रिय लोगों ने भी आत्मविवेचन किया होगा कि संसद में बसपा का प्रतिनिधित्व नहीं होने से वह कौन से जरूरी मुद्दे थे जिनपर बात नहीं हो पाई. बहुजन समाज पार्टी ने अपने शासनकाल में यह साबित किया कि हर वर्ग को साथ लेकर एक न्यायप्रिय और भयमुक्त माहौल में सरकार चलाया जा सकता है। आज भी बसपा की मुखिया और बसपा की सरकार में मुख्यमंत्री का पद संभालने वाली मायावती की न्यायप्रियता और हर वर्ग को साथ लेकर चलने की प्रतिबद्धता के सभी कायल हैं।
एक बार फिर वक्त आ गया है जब न्याय पसंद लोगों को 2017 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए संविधान पर विश्वास रखने वाले राजनैतिक दल के समर्थन में खड़ा होना होगा. खासतौर पर बहुजन समाज को अपनी ताकत को पहचानना होगा. बहुजनों को बाबासाहेब के संविधान और आरक्षण की पक्षधर राजनैतिक दल के समर्थन में चट्टान की तरह खड़ा होना होगा तो सर्वजन की परिधि में आने वाले अन्य लोगों को भी भारत के संविधान में विश्वास रखने वाले कुशल एवं न्यायप्रिय प्रशासक के हाथ में यूपी की सत्ता सौंपनी होगी. 2012 और 2014 की गलतियों से सीख लेते हुए तथागत बुद्ध के समता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व के सिद्धांत में विश्वास करने वाले दल को वोट देना होगा. यह जनतंत्र की लड़ाई है और यूपी और पंजाब सहित तमाम चुनावी राज्यों की जनता को जनतंत्र को मजबूत करने के लिए वोट करना होगा।

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
