संगीत सोम साहिब क्या शाहजहाँ हिटलर से भी बुरा था?

संगीत सोम

शाहजहाँ ने जितनी शदीद मोहब्बत से मुमताज़ की याद में ताजमहल बनवाया था आज वो उससे ज़्यादा शदीद नफ़रत का शिकार है. वो दुनिया के सात अजूबों में है. वो युनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज की फेहरिस्त में है. उसे देखने के बाद बिल क्लिंटन ने कहा था कि “आज मुझे अहसास हुआ कि इस दुनिया में दो तरह के लोग हैं. एक वो जिन्होंने ताज देखा है और दूसरे वो जिन्होंने ताज नहीं देखा.” इस दुनिया में ताज से खूबसूरत इमारतें हो सकती हैं, लेकिन उनमें से कोई ताज नहीं है क्योंकि इसकी बुनियाद में एक शहंशाह का दिल रखा है. हिंदोस्तां पे और हिंदोस्तां के दो तिहाई सूबों पर हुकूमत करने वाली बीजेपी के मेरठ ज़िले के एमएलए संगीत सोम ने एक पब्लिक मीटिंग में ऐलान किया कि ताजमहल को इतिहास से निकाल दिया जाना चाहिए. यह देश का दुर्भाग्य है कि उसका नाम इतिहास में है. उसको बनाने वाले शाहजहाँ ने हिंदुओं का सर्वनाश किया था और यह भी कहा कि वो गारंटी देते हैं कि इतिहास फिर से लिखा जाएगा.

ताजमहल के बनने के 350 साल बाद भी उस पर लोगों की राय अलग है. उसे देखने का नज़रिया भी जुदा-जुदा. साहिर लुधियानवी तो अपनी महबूबा से ताजमहल में मिलने से इनकार करते हैं. अपनी मशहूर नज़्म “ताजमहल” में लिखते हैं कि “ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उलफत ही सही. तुझको इस वादी-ए- रंगीं से अक़ीदत ही सही…मेरी महबूब कहीं और मिलाकर मुझसे….बज्मे शाही में गरीबों का गुज़र क्या मानी.” साहिर कहते हैं, “किसी शहंशाह की महफ़िल में गरीबों का गुज़र कहां है? इसलिए कहीं और मिलो. और वो और तल्खी से कहते हैं कि “अनगिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है. कौन कहता है कि सादिक़ ना थे जज़्बे उनके. लेकिन उनके लिए तशहीर का सामान नहीं…क्योंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे.” (दुनिया में तमाम लोगों ने सच्ची मोहब्बत की है…लेकिन उसकी पब्लिसिटी नहीं कर पाए क्योंकि वो भी अपनी तरह गरीब थे.) यही नहीं टैगोर ने ताज को “वक़्त के चेहरे पे आंसू का क़तरा” लिखा… बांग्ला कवि क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम को ताज के संग-ए-मरमर से लहू गिरता नज़र आया. शायर नाज़िर ख़य्यामी ने लिखा कि..”ताज इक ठंडी इमारत के सिवा कुछ भी नहीं. ताज इक मुर्दा मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं…” लेकिन वो इनमें से किसी ने नहीं कहा जो संगीत सोम कह रहे हैं.

अगर संगीत सोम के इस फ़ॉर्मूले को लागू कर दिया जाए कि इतिहास में जो कुछ नापसंद हो उसे मिटा दिया जाए तो पूरी दुनिया मिट जाएगी क्योंकि दुनिया की तारीख में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे नापसंद करने वाले मौजूद ना हों. बक़ौल संगीत सोम “शाहजहाँ ने उत्तर प्रदेश और हिन्दुस्तान के सभी हिंदुओं का सर्वनाश करने का काम किया था.” लेकिन इतिहास में ऐसा कोई सुबूत नहीं मिलता. बावजूद इसके कि कई इतिहासकार शाहजहाँ को अपने पिता और दादा से ज़्यादा रेडिकल मुस्लिम मानते हैं. लेकिन क्या शाहजहाँ ने देश पर अग्रेज़ों से ज़्यादा ज़ुल्म किया? फिर अगर अँग्रेज़ों की नफ़रत में उनकी निशानी मिटाने लगेंगे तब तो पार्लियामेंट हाउस से लेकर प्रेसीडेंट हाउस तक सब मिटाना पड़ेगा. फिर उनकी ज़ुबान कैसे मिटा देंगे जो आपके ज्ञान का सबसे बड़ा ज़रिया है?

और दुनिया की तारीख में शायद हिटलर से बड़ा विलेन कोई हुआ नहीं. जिसने सेकेंड वर्ल्ड वॉर की शुरुआत की. जिसने 1938 से 1943 के बीच यूरोप के 15 देशों पर क़ब्ज़ा कर यहूदियों को चुन-चुन कर मारा. जिसने दुनिया की दो तिहाई यहूदी आबादी को क़त्ल कर दिया और जिसने 1941 में दुनिया के सारे यहूदियों को क़त्ल करने का फरमान सुनाया. लेकिन आज की तारीख में भी कभी नाज़ी यूरोप कहलाने वाले तमाम यूरोपियन देशों में हिटलर के “कनसेंट्रेशन कैंप” और “गैस चेंबर” टूरिस्ट प्लेस हैं, क्योंकि वो इतिहास का हिस्सा हैं. आज जर्मनी भले हिटलर को नापसंद करे लेकिन सेकेंड वर्ल्ड वॉर की भयानक यादों से जुड़ी जगहें जर्मन टूरिज्म डिपार्टमेंट के टूर पैकेज का हिस्सा हैं. संगीत सोम साहिब क्या शाहजहाँ हिटलर से भी बुरा था?

मुझे मालूम नहीं कि संगीत सोम देश के बाहर कहीं गये हैं या नहीं…अगर देश के बाहर ना भी गये हों तो एक बार लखनऊ आकर देखें….जहाँ अभी भी हनुमान जी के सबसे बड़े मंदिर के कलश पर पीतल का “चाँद तारा” बना है क्योंकि उसे अवध के नवाब असफुदौला की मां बहू बेगम ने बनवाया था और अगर लखनऊ न भी आते हों तो अयोध्या तो जाते ही होंगे. इस बार रुक के देख लेंगे रामजन्मभूमि के रास्ते पर पाँच वक़्त के नमाज़ी ज़हूर ख़ान पूजा सामग्री बेचते हैं और यह तो उनको बिल्कुल ही नहीं पता होगा कि अयोध्या में दंत धावन कुंड के साथ में एक “सत्य स्नेही मंदिर” है जिसमें सात धर्मों की पूजा होती है. उन सात धर्मों में इस्लाम भी एक है. यहाँ पुजारी सुबह शाम राम, लक्ष्मण, बुद्ध, महावीर और प्रभु यीशू के अलावा काबा की तस्वीर की भी आरती करते हैं. इसलिए चश्मा बदल के दुनिया देखिए. दुनिया में अभी भी बहुत कुछ पॉज़िटिव और खूबसूरत है.

कमाल खान का यह लेख एनडीटीवी से साभार है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.