पेरियार का दर्शन सभ्य समाज में प्रासंगिक

       

पेरियार ई.वी.रामास्वामी नायकर का जन्म दक्षिण भारत के ईरोड (तमिलनाडु) नामक स्थान पर 17 सितम्बर 1879 ई. को हुआ था। उस समय वर्णव्यवस्था के अनुसार ये शूद्र वर्ण की गडरिया जाति में आते हैं। पेरियार रामास्वामी नायकर की औपचारिक शिक्षा चौथी कक्षा तक हुई थी। 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने पाठशाला को सदा के लिए छोड़ दिया। पेरियार रामास्वामी का परिवार धार्मिक तथा रूढ़िवादी था। लेकिन अपने परिवार की परम्पराओं के विपरीत पेरियार रामास्वामी किशोरावस्था से ही तार्किक पद्धति से चिन्तन–मनन करने लगे थे और समाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूक/एक जिंदा इंसान की तरह तर्क करने लगे थे।

1925 में अखिल भारतीय कांग्रेस के परित्याग के पश्चात् रामास्वामी ने ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ की स्थापना की। 1931 में उन्होंने रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, स्पेन, फ्रांस तथा मध्यपूर्व के अन्य देशों का भ्रमण किया। उन्होंने रूस के कल-कारखाने, कृषि-फार्म, स्कूल, अस्पताल, मजदूर संगठन, वैज्ञानिक शोध केन्द्र, उत्तम कला केन्द्र संस्थाओं का अवलोकन किया और वह अत्यधिक प्रभावित हुए।

भारत देश की स्वतंत्रता के सम्बंध में पेरियार कहते हैं कि, कांग्रेस और अंग्रेजों के बीच हुए समझौते के कारण यह सरकार अस्तित्व में आई है। यह वह स्वतंत्रता नहीं है, जो सभी भारतीयों को दी गई है। इस स्वतंत्रता से गैर-ब्राह्मणों को कोई लाभ नहीं हुआ है। वे कहीं भी प्रतिनिधित्त्व नहीं करते हैं। कांग्रेस पार्टी का नेता ब्राह्मण है। सोशलिस्टों का नेता ब्राह्मण है। कम्युनिस्टों का नेता ब्राह्मण है। हिन्दू महासभा का नेता ब्राह्मण है। आरएसएस का नेता ब्राह्मण है। ट्रेड यूनियन का नेता ब्राह्मण है। भारत का राष्ट्रपति ब्राह्मण है। वे सभी दिलों के दिल में हैं। जब तक हम शासक वर्गों को चाहते रहेंगे, यहां चिंताएं और चिंतित लोग बने रहेंगे। हमारे देश में सकारात्मक परिवर्तन नहीं होने से देश में गरीबी और महामारी हमेशा बनी रही है। गरीबी मिटाओ के नारे तो बहुत लगे पर कभी दिल से मिटाने का प्रयास नहीं किया गया इसलिए आज भी गरीब गरीब बना हुआ है।

पेरियार का मानना था कि धर्म एक षड्यंत्र है। धन और प्रचार ही धर्म को जिन्दा रखता है। कार्ल मार्क्स तो इसे अफीम के समान मानते हैं। ऐसी कोई दिव्य शक्ति नहीं है, जो धर्म की ज्योति को जलाए रखती है। धर्म का आधार अन्धविश्वास है। विज्ञान में धर्मों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए बुद्धिवाद धर्म से भिन्न है। सभी धर्मवादी कहते हैं कि किसी को भी धर्म पर संदेह या कुछ भी सवाल नहीं करना चाहिए। इसने मूर्खों को धर्म के नाम पर कुछ भी कहने की छूट दी है। धर्म और ईश्वर के नाम पर मूर्खता एक सनातन परम्परा है। धर्म ब्रह्म रखने की सेवाएं और कुछ नहीं। डॉक्टर अंबेडकर का मानना था कि धर्म इंसान के लिए है ना कि इंसान धर्म के लिए।

यदि हम मंदिरों की संपत्ति और मंदिरों में अर्जित आय को नए उद्योग शुरू करने के लिए खर्च कर दें, तो न कोई भिखारी, न कोई अशिक्षित और न कोई निम्न स्तर वाला व्यक्ति होगा। एक समाजवादी समाज होगा, जिसमें सब समान होंगे। परंतु क्या सरकार ऐसा कर पाएगी क्या धर्माधिकारी और धर्म को मानने वाले यह सब स्वीकार करेंगे कदापि नहीं तो फिर कहां से देश और देश वासी प्रगति करेंगे फिर तो जैसा चल रहा है उसे मानो या फिर सकारात्मक सोच धारण करके अंधविश्वास आरंभ और कुप्रथा पर देखना से उठा फेको तब ही मानव समाज के अंदर से गरीबी दूर होगी।

पेरियार मूलरूप से एक सामाजिक क्रान्तिकारी थे। वे एक बुद्धिवादी, अनीश्वरवादी एवं मानववादी थे। उनके चिंतन का मुख्य विषय समाज था, उनका कहना था कि राजनैतिक सुधार से पहले सामाजिक सुधार होना चाहिए। जब सभी मनुष्य जन्म से बराबर हैं, तो यह कहना कि अकेले ब्राह्मण ही उच्च हैं, और दूसरे सब नीच हैं, इस मानसिकता को बदलना पहली जरूरत है। प्राकृतिक विधि के अनुसार सभी समान है ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा।

हिन्दू धर्म और जाति-व्यवस्था नौकर और मालिक का सिद्धांत स्थापित करती है। अगर भगवान हमारे पतन का मूल कारण है, तो भगवान को नष्ट कर दो। यह काम मनु धर्म, गीता या कोई अन्य पुराण कर रहा है, तो उन्हें भी जलाकर राख कर दो। अगर यह काम मन्दिर, कुंड या पर्व करता है, तो उनका भी बहिष्कार करो। अंतत: यह हमारी राजनीति है, तो इसे आगे आगे बढ़कर खुलेआम घोषित करो।

दक्षिण भारत में द्रविड़ियन आत्मसम्मान का आन्दोलन ब्राह्मणवाद के खात्मे तक सक्रिय और जिन्दा रहेगा। आंदोलन के दौरान हमारे दुश्मनों या सरकार द्वारा हमारे साथ अत्याचार, दमन, साजिश और विश्वासघात किया जा सकता है, पर हमें विश्वास है कि सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए अंततः निश्चित रूप से हमें सफलता मिलेगी क्योंकि सत्य की सदा विजय होती है।

ई वी रामास्वामी नायकर के अनुयायियों ने उन्हें ‘थंथाई’ (पिता) ‘पेरियार’ (महान) की उपाधियों से विभूषित किया। यूनेस्को ने उन्हें नये जमाने का ‘पैगम्बर’, दक्षिण पूर्व एशिया का ‘सुकरात’, समाज सुधार का ‘जनक’, अज्ञानता, अंधविस्वास और निरर्थक प्रथाओं का ‘यम’ जैसे विशेषणों से सम्मानित किया है। 15 दिसंबर, 1973 को वेल्लोर के एक अस्पताल में पेरियार रामास्वामी ने अंतिम सांसें ली।

पेरियार का दर्शन को निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देकर समझ सकते हैं-

१. द्रविड़ आत्मसम्मान का आंदोलन- पेरियार का आंदोलन ऐतिहासिक भारत के मूलनिवासी द्रविड़ अस्मिता को जगाकर विदेशी आर्य ब्राह्मण के खिलाफ आधुनिक युग में लड़ा गया आर्यावर्त के विरुद्ध दक्षिण का आंदोलन था, जो ठीक उसी तरह था जैसे काल्पनिक ग्रन्थ रामायण में राम के विरुद्ध रावण का था। पेरियार ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को दक्षिण में किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार नही थे। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान की तरह द्रवड़ितस्तान की मांग को जोर सौर से उठाया था। वास्तविकता तो यह है कि ब्राह्मणवाद समाज के लिए जहर का काम करता है।

२- ईश्वरवाद के खिलाफ आंदोलन- ईश्वर और भक्त (सामान्य जन) के बीच ब्राह्मण पुरोहित बनकर सामान्य जन का शोषण तब तक करता रहेगा जब तक काल्पनिक ईश्वर का अस्तित्व रहेगा। इसलिए पेरियार ने ईश्वर का जिस सख्ती से खंडन किया शायद ही किसी ने किया होगा। पेरियार ने किसी भी रूप में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नही किया वे एक महान नास्तिक हैं जिन्होंने तर्क और विज्ञान को सर्वोपरि माना था। इसलिए आपका दर्शन आज भी प्रासंगिक है।

३- ब्राह्मण मान्यता विरोधी आंदोलन- पेरियार ने ब्राह्मणवाद से मुक्ति का मार्ग धर्मपरिवर्तन के बजाय ब्राह्मण मान्यताओं का बहिष्कार करना ज्यादा उचित समझा। उनका मानना था कि यदि व्यक्ति ब्राह्मण मान्यता, परम्परा, संस्कार, त्योंहार, व्रत, ज्योतिष, भगवान आदि को ही नकार देगा तो ब्राह्मणों का सनातन (हिन्दू) धर्म अपने आप खत्म हो जाएगा। समाज में व्याप्त अंधविश्वास आडंबर अहंकार तमाम तरह के अपराध फिर स्वता ही समाप्त हो जाएंगे।बाबा साहब डॉक्टर अम्बेडकर और रामासामी पेरियार के वैचारिक सम्बंध बहुत गहरे थे, वे आपस में तात्कालिक परिस्थियों के अनुसार सलाह मशवरा किया करते थे। 6ठवां बौद्ध संघायन रंगून में भी एक साथ शामिल हुए थे। डॉ अम्बेडकर धर्मपरिवर्तन को अनिवार्य मानते थे उनका मानना था कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए धर्म बेहद जरूरी है, धर्म उसके सामाजिक संस्कारों की जरूरत को पूरा करता है।

निष्कर्ष : आज हम कह सकते हैं कि पश्चिम भारत में शूद्र/अतिशूद्र की आजादी का आंदोलन फुले/शाहू/अम्बेडकर ने चलाया वही आंदोलन दक्षिण में नारायणा गुरु और पेरियार ने चलाया था। सामाजिक अंधविश्वास कुरीतियों बुराइयों औरा नंबरों के विरुद्ध जीवन भर टीवी स्वामी वेरिया संघर्ष करते रहे हमेशा तर्कशील वैज्ञानिक और तथ्यपरक विचारधारा का समर्थन किया । आज आप इस दुनिया में नहीं है किंतु आप का दर्शन भारतीय तर्कशील समाज के लिए आज भी प्रासंगिक है।

सत्य प्रकाश 
शोधार्थी ( इतिहास विभाग)
कला संकाय, मंगलायतन विश्वविद्यालय अलीगढ़

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