उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में स्थित संकिशा उन 84 बौद्ध स्तूपों में से एक है, जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था. बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए यह एक अहम स्थान है, जहां बुद्ध को मानने अक्सर जाते रहते हैं. लेकिन इस बौद्ध स्थल का हिन्दूकरण और इस स्थान पर बढ़ रहे हिन्दू धर्म के पुरोहित बौद्ध अनुयायियों को लगातार खटकते रहे हैं. संकिशा के ब्राह्मणीकरण को रोकने और इसे दूसरे धार्मिक ताकतों से आजाद करा कर फिर से एक पवित्र बौद्ध स्थल के रूप में स्थापित करने के लिए भंते धम्मकीर्ती ने एक अभियान शुरू कर दिया है.
इस अभियान के तहत संकिशा से लखनऊ तक एक पदयात्रा निकाल कर इस स्थल को ब्राह्णवादी ताकतों से मुक्त कराने का आंदोलन शुरू किया है. 10 जनवरी को संकिशा से शुरू हुई यह पद्यात्रा 25 जनवरी को लखनऊ पहुंचेगी. जहां एक सभा का आयोजन कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया जाएगा.
संकिशा से शुरू होने के बाद यात्रा मुहंमदाबाद, फर्रुखाबाद, फतेहगढ़, गोसाइगंज, कन्नौज, उन्नाव और कानपुर होते हुए लखनऊ पहुंचेगी. जहां 24 जनवरी को डॉ. भीमराव अम्बेडकर महासभा, बापू भवन के सामने 25 को समापन कार्यक्रम होगा. समापन के मुख्य अतिथि महाबोधी सोसाइटी के जनरल सेक्रेट्री भूज्य भदंत पी. सिवली महाथेरो होंगे जो सभा को संबोधित करेंगे.
पदयात्रा पर निकले भंते धम्मकीर्ती ने यात्रा की वजह बताया कि संकिशा के बौद्ध स्थल पर चार दशक पहले ही एक पत्थर रख दिया गया है और उसे बिसारी देवी के नाम से प्रचारित किया गया है. तो वहीं हनुमानजी की मूर्ति भी स्थापित करवा दी गई है. हमारी मांग है कि यह पवित्र बौद्ध स्थल है इसलिए इसको मुक्त किया जाए. असल में तमाम बौद्ध स्थलों पर हिन्दूवादी संगठनों का कब्जा बना हुआ है. यहां तक की विश्व प्रसिद्ध और तथागत बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में भी हिन्दूकर्मकांड की घुसपैठ हो चुकी है, जिसको हटाने के लिए लगातार मांग चलती आ रही है. फिलहाल देखना होगा कि संकिशा पर उत्तर प्रदेश सरकार क्या रुख अपनाती है.

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