कोविड-19 के कारण मोदी सरकार ने बिना देश के लोगों को भरोसे में लिए जिस तरह अचानक लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी, देश भर में अफरा-तफरी मच गई। उस दौरान खासतौर पर रोज कमाने खाने वाले मजदूरों पर आफत आ गई थी। लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बेघर और बिना रोजगार वाली स्थिति में आ गए थे, कइयों को उनके घर से निकाल दिया गया। दहशत इतनी फैल गई थी कि लाखों मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल ही अपने घरों को चल पड़ें। इस दौरान ज्यादा पैदल चलने के कारण, या हार्ट अटैक के कारण या फिर रास्ते में एक्सिडेंट हो जाने जैसी वजहों से सैकड़ों लोगों की जान चली गई। कईयों की दुनिया उजड़ गई तो कई घरों से कमाने वाला बेटा चला गया। लेकिन सरकार ने इन पीड़ितों की कोई सुध नहीं ली।
संसद के मानसून सत्र में सोमवार 14 सितंबर को जब विपक्ष ने यह मुद्दा उठाया तो उस पर केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री ने जो बयान दिया, उसने तो गरीबों के जले पर जैसे नमक डालने का काम किया। विपक्ष ने लोकसभा में मंत्रालय से पूछा कि क्या सरकार के पास अपने गृहराज्यों में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों का कोई आंकड़ा है? विपक्ष ने सवाल में यह भी पूछा था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि इस दौरान कई मजदूरों की जान चली गई थी और क्या उनके बारे में सरकार के पास कोई डिटेल है? और क्या ऐसे परिवारों को आर्थिक सहायता या मुआवजा दिया गया है?
इस पर केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने प्रवासी मजदूरों की मौत पर अपने लिखित जवाब में बताया कि ‘ऐसा कोई आंकड़ा मेंटेन नहीं किया गया है। ऐसे में मुआवजे का कोई सवाल नहीं उठता है।’
सरकार के जवाब पर विपक्ष की ओर से खूब आलोचना और हंगामा हुआ।
कांग्रेस नेता दिग्विजिय सिंह ने कहा कि ‘यह हैरानजनक है कि श्रम मंत्रालय कह रहा है कि उसके पास प्रवासी मजदूरों की मौत पर कोई डेटा नहीं है, ऐसे में मुआवजे का कोई सवाल नहीं उठता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि या तो हम सब अंधे हैं या फिर सरकार को लगता है कि वो सबका फायदा उठा सकती है।’
तो वहीं कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी ने भी सरकार के इस बयान पर हमला बोला है। इस मुद्दे पर ट्वीट कर राहुल गांधी ने सरकार को घेरा। उन्होंने लिखा-
‘मोदी सरकार नहीं जानती कि लॉकडाउन में कितने प्रवासी मज़दूर मरे और कितनी नौकरियां गईं।
तुमने ना गिना तो क्या मौत ना हुई? हां मगर दुख है सरकार पे असर ना हुई,
उनका मरना देखा ज़माने ने, एक मोदी सरकार है जिसे खबर ना हुई।’
दरअसल लॉकडाउन के दौरान 1 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर देशभर के विभिन्न हिस्सों से अपने गृह राज्य पहुंचे। ऐसे में सवाल है कि सबका साथ – सबका विकास का दावा करने वाली भाजपा की केंद्र सरकार के पास ऐसे पीड़ित मजदूरों का आंकड़ा नहीं होना क्या देश के गरीबों के साथ सरकार का धोखा नहीं है। क्या प्रधानमंत्री मोदी देश के गरीबों, बहुजनों को धोखा नहीं दे रहे हैं?

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