असम के तिनसुकिया बोरगुरी इलाके में बीते 21 दिसंबर से दो गांवों के 1480 लोग कड़ाके की ठंड में धरने पर बैठे हुए हैं। ठंड ने दो प्रदर्शनकारियों की जान ले ली है, बावजूद इसके लोग धरने से उठने को तैयार नहीं है। इंसानियत को शर्मसार करती एक सच्चाई यह भी है कि इनकी फिक्र न तो सरकार को है, न ही स्थानीय प्रशासन को।
जिन दो गांवों के लोग धरने पर हैं, उस गांव का नाम- लाइका और दोधिया है। ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट में स्थित डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क के मुख्य क्षेत्र में मिसिंग जनजाति के ये दो वन गाँव बीते 70 सालों से बसे हुए है। लेकिन राष्ट्रीय उद्यान होने के कारण वहां लोगों को मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी सरकारी योजनाओं को बंद कर दिया गया है। ऐसे में इन दोनों गांवों के लोग पिछले कई सालों से स्थायी पुनर्वास की मांग को लेकर आंदोलन करते आ रहे हैं। लेकिन अब इनकी मांग है कि जबतक सरकार किसी दूसरी ज़मीन पर इन्हें स्थायी तौर पर बसा नहीं देती ये धरना स्थल पर ही रहेंगे।
कड़ाके की इस ठंड में प्रदर्शन स्थल पर अबतक दो महिलाओं की मौत हो चुकी है जबकि कई लोग लगातार बीमार पड़ रहे हैं। एक प्रदर्शनकारी दमयंती अपने विरोध और दर्द को मिसिंग जनजाति का एक गीत गाकर बयां करती हैं तो पास बैठी महिलाएं रोने लगती हैं। वो कहती हैं कि हमारा कोई ठिकाना नहीं है और हमें नहीं पता इस शिविर में हमारा आगे क्या होगा? हम ज़िंदा भी रहेंगे या नहीं। हमारे साथ सरकार क्या करेगी, जिस तरह ब्रह्मपुत्र का पानी बह रहा है उसे पता नहीं वो कहां जाकर गिरेगा, ठीक वैसा ही हमारा जीवन हो गया है।
बीबीसी संवाददाता दिलीप शर्मा की रिपोर्ट के आधार पर, फोटो क्रेडिट- दिलीप शर्मा बीबीसी

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