
माना जाता है कि किसी शहर का इतिहास जानना हो तो वहां के संग्रहालय को घूम आइए. अगर उस शहर ने ईमानदारी से अपना इतिहास संजोया होगा तो वह वहां के संग्रहालय में जरूर मौजूद होगा. मथुरा के डैंम्पियर नगर में मौजूद राजकीय संग्रहालय बिल्कुल वैसा ही है. यह संग्रहालय विश्व भर में कृष्ण के जन्मस्थान के रूप में मशहूर मथुरा का एक और इतिहास भी बताता है. यह दूसरा इतिहास आपको बुद्ध और बौद्ध धर्म के करीब ले जाता है.
राजकीय संग्रहालय में बुद्ध ही बुद्ध
मथुरा के इस संग्रहालय में आपको तथागत बुद्ध की तमाम मूर्तियां मिल जाएंगी. कह सकते हैं कि सैकड़ों की संख्या में मौजूद प्रतिमाओं में सबसे ज्यादा बौद्ध प्रतिमाएं हैं. संग्रहालय में मौजूद तमाम बौद्ध प्रतिमाओं की बात करें तो पांचवी शती की आदमकद बौद्ध प्रतिमा, कुषाण काल में सिंहासन आरुढ बैठे बुद्ध का अधोभाग और इसी काल में मिला बुद्ध का विशाल मस्तक आपका ध्यान खिंचती है. यहां बुद्ध की मूर्तियां तमाम मुद्राओं में मौजूद है.

तथागत बुद्ध का मथुरा भ्रमण
असल में बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए मथुरा कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भगवान बुद्ध दो बार मथुरा आए थे. इसी तरह एक वक्त में मथुरा में 16 विहार हुआ करते थे. इस वजह से मथुरा बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए काफी महत्वपूर्ण केंद्र था. मथुरा के स्थानीय लोगों को बुद्ध के इतिहास के बारे में भले ही पता न हो, मथुरा पहुंचने वाले तमाम विदेशी सैलानी यहां बुद्ध को ढूंढ़ते हुए जरूर आते हैं. सन् 1860 में मथुरा में ही जमालपुर टीले से बुद्ध की दो आदमकद प्रतिमा मिली है, उसमें से एक संग्रहालय में है, जबकि दूसरा राष्ट्रपति भवन में.

मथुरा का बौद्ध इतिहास
कृष्ण और राधा के आभामंडल से निकलकर अगर मथुरा के इतिहास की बात करें तो यहां नन्द, मौर्य, शुंग, क्षत्रप और कुषाण वंशों का शासन रहा. इस दौरान विभिन्न धर्मों से संबंधित सैकड़ों मूर्तियां यहां बनीं. बाद के दिनों में ये उपासना स्थल टीलों में परिवर्तित हो गए. आज मथुरा इन्हीं टीलों पर बसा है. 1874 में तत्कालीन कलेक्टर एफ. एस. ग्राउज ने इन्हीं मूर्तियों को सहेजने के लिए संग्रहालय की नींव रखी थी.
अशोक दास साल 2006 से पत्रकारिता में हैं। वह बिहार के गोपालगंज जिले से हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका तक पहुंचे। बुद्ध भूमि बिहार के छपरा जिला स्थित अफौर गांव के मूलनिवासी हैं। राजनीतिक विज्ञान में स्नातक (आनर्स), देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहे, विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ‘दलित दस्तक’ (27 मई 2012 शुरुआत) मासिक पत्रिका, वेबसाइट, यु-ट्यूब के अलावा दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं संपादक-प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में अपनी बात रख चुके हैं। 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
