नई दिल्ली। बीमारी के गिरफ्त में कब कौन चला जाए, कोई नहीं जानता. अच्छी-खासी जिंदगी जी रहे सिने स्टार इरफान खान की जिंदगी को कैंसर की बीमारी ने तोड़ डाला है. बेइंतहा दर्द व डर के साए में जिंदगी जी रहे इरफान ने अपने फैंस को एक खत लिखा है. ये खत उनकी बेचैनी व दर्द को बयां कर रहा है. इसे पढ़कर आंख में आंसू छलक आएंगे.
मुझे ये डर और दर्द नहीं चाहिए…
आपको तो पता हीं होगा कि अपनी बीमारी के इलाज के लिए इरफान खान लंदन गए हैं. इरफान खान के खत के चलते वो एक बार फिर से चर्चा में आ गए हैं. न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से जूझ रहे इरफान खान बीमारी के दौरान भी काम करने की इच्छा ने एक ‘कारवां’ शुरू किया है. जान लें कि इरफान की कारवां फिल्म 03 अगस्त को रिलीज होगी. इरफान ने ये खत वरिष्ठ फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज को भेजा है. उन्होंने इरफान का ये इमोशनल खत अपने ब्लॉग चवन्नी चैप पर शेयर किया है.
अजय अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि, ‘कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से ग्रस्त हूं. यह शब्द मैंने पहली बार सुना था. जब मैंने इसके बारे में सर्च की तो पाया कि इस पर ज्यादा शोध नहीं हुए हैं. इसके बारे में ज्यादा जानकारी भी मौजूद नहीं थी. यह एक दुर्लभ शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है.
अभी तक मैं तेज रफ्तार वाली ट्रेन में सफर कर रहा था. मेरे कुछ सपने थे, कुछ योजनाएं थीं, कुछ इच्छाएं थीं, कोई लक्ष्य था. लेकिन अचानक ही किसी ने मुझे हिलाकर रख दिया मैंने पीछे देखा तो वो टीसी था. उसने कहा, आपका स्टेशन आ गया है कृपया नीचे उतर जाइए. मैं कन्फ्यूज हो गया. मैंने कहा नहीं अभी मेरी मंजिल नहीं आई है. उसने कहा- नहीं आपको अगले किसी भी स्टॉप पर उतरना होगा.’
‘इस डर और दर्द के बीच मैं अपने बेटे से कहता हूं, ‘मैं किसी भी हालत में ठीक होना चाहता हूं. मुझे अपने पैरों पर वापस खड़े होना है. मुझे ये डर और दर्द नहीं चाहिए. कुछ हफ्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया. बेइंतहा दर्द हो रहा है. यह तो मालूम था कि दर्द होगा, लेकिन ऐसा दर्द… अब दर्द की तीव्रता समझ में आ रही है…कुछ भी काम नहीं कर रहा है…. पूरा खत यहां पढें
इसे भी पढ़ें-करियर की संतुष्टि को आत्महत्या मानते हैं इरफान

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
