International ambedkarite organization Demand Buddhist Control Over the Mahabodhi Temple

We, the undersigned, stand in unwavering solidarity with the Buddhist monks and followers protesting in Bodh Gaya to demand the rightful transfer of the Mahabodhi Mahavihara Temple’s administration to the Buddhist community. This sacred site, where Gautama Buddha attained enlightenment, deserves to be managed by those who uphold its spiritual and historical significance. Under the Bodhgaya Temple Act of 1949, the temple’s governing body (BTMC) unfairly places non-Buddhists in the majority, including the chairman’s role. This discriminatory structure denies Buddhists the fundamental right to manage their holiest pilgrimage site—an autonomy granted to every other religious community in India. The current administration’s actions have led to repeated attempts to distort Buddhist history and diminish the temple’s sacred identity. Today, Buddhist monks and leaders have entered the tenth day of a hunger strike to bring attention to this injustice. Their demands are clear and just:

1. Full transfer of Mahabodhi Temple management to Buddhists. 2. Repeal of the Bodhgaya Temple Act of 1949. 3. An end to state interference in Buddhist religious affairs. 4. Justice to the hunger strike monks-Bhante

Despite international support from Buddhist communities in Sri Lanka, Thailand, Laos, Bangladesh, Myanmar, Cambodia, Korea, Vietnam, Japan, China, Nepal, Mongolia, Bhutan, Taiwan, Singapore, USA, Canada, and Mongolia, the Indian government remains silent. The Bihar administration has not only ignored peaceful protests but has also resorted to intimidation and suppression. We call on you to stand with usto demand justice and the rightful return of the Mahabodhi Temple to the Indian Buddhist community. Together, let’s preserve the enduring legacy of Buddha and Emperor Ashoka, and ensure that Bodh Gaya remains a sanctuary of pure Buddhist worship and pilgrimage for all faith.

News Media Reference https://www.rediff.com/news/interview/why-are-hindus-controlling-the-mahabodhi-temple/20170725.htm https://en.themooknayak.com/india/bodh-gayas-burning-question-if-hindu-scriptures-denounced-buddha-why-do-brahmins-control-his-sacred-site https://www.ucanews.com/story-archive/?post_name=/1992/10/21/buddhist-monks-lead-temple-liberation-rally-in-indian-capital&post_id=42148 https://whc.unesco.org/en/list/1056/ https://youtu.be/QJ195fpUb5s?si=78-6qoIssnq2ZFgX

In solidarity

https://chng.it/QWMMcPWZnp

Below undersigned Organization’s Name Buddhist Council of America All India Buddhist Forum Metta Parami monastery Bodhimaggo Mahavihara Dhamma Waves Buddhist seminary Hinayana buddhism trust Sanghakaya foundation Vipassana Educational & Social Trust Indian Buddhist center ( IBC) Great Lakes Buddhist Vihara Midwest Buddhist Center Watpaknam Buddhist Vihara Ambedkarite Buddhist Community of Canada (ABCC) Federation of Ambedkarite and Buddhist Organisations UK Dr Ambedkar Buddhist organisation Birmingham UK Ambedkar Mission Society, Bedford UK Ambedkar Buddhist Association of Texas-ABAT Chetna Association of Canada Ambedkarite International Co-Ordination Society-AICS Ambedkarites International Mission Society-Canada (AIMS) International Bahujan Organization-IBO International Boddhisativa Guru Ravidass Organization Inc-IBGRO Indian Association of Minority Of New Zealand-IAMN Friends For Education International-FFEI Global Bahujan Group-GBG Global NRIs Forum-GNF South Asian Dalit Adivasi Network, Canada-SADAN Ambedkar Times Desh Doaba Ad Dharm Brotherhood USA Bhim International Foundation USA Women Empowerment Sangha Dr Ambedkar Society Germany Europe Ambedkar International Mission, Europe Ambedkar King Study Circle -AKSC Samata Sainik Dal-SSD

बोधगया महाबोधि महाविहार के लिए क्यों हो रहा है दुनिया भर में आंदोलन, जानिये पूरा मामला

बोधगया। बिहार का बोधगया, जहां तथागत बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उसकी मुक्ति के लिए आंदोलन चल रहा है। यह आंदोलन इस महाविहार को ब्राह्मण पंडों से मुक्त कराने के लिए है। आंदोलन करने वाले बौद्ध समाज BT ACT 1949 को रद्द कर महाविहार का पूरा प्रबंधन बौद्ध समाज को सौंपने की मांग कर रहा है। वर्तमान में यहां प्रबंधन में ब्राह्मण और बौद्ध दोनों है। आरोप लगाया जाता है कि यहां ब्राह्मणों द्वारा उन बौद्धों को ही प्रबंधन में रखा जाता है जो उनकी हां में हां मिलाते हैं। इस आंदोलन को दुनिया भर के बौद्ध समाज का समर्थन मिल रहा है। बौद्ध समाज का कहना है कि बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (BT Act 1949) पूर्ण रूप से असंवैधानिक है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

उनका कहना है कि यह बौद्ध समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। महाबोधि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। इस बारे में मिशन जय भीम के संस्थापन और बौद्ध धम्म को बढ़ाने के लिए काम करने वाले दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने इस पूरे मामले को ठीक से समझाया। देखिए यह वीडियो- 

यूपी में PCS अधिकारियों की पदोन्नति रोके जाने पर योगी सरकार पर उठते सवाल

उत्तर प्रदेश में OBC/SC/ST वर्ग के अधिकारियों के साथ हो रहे भेदभाव ने योगी सरकार की असली मानसिकता को उजागर कर दिया है। BJP शासित राज्यों में बहुजन समाज के अधिकारियों की तरक्की में लगातार रोड़े अटकाए जा रहे हैं, और इसकी ताजा मिसाल 2008 बैच के PCS अधिकारियों की IAS में पदोन्नति को जानबूझकर रोके जाने के रूप में सामने आई है।

यह महज संयोग नहीं कि इस बैच के सभी 14 अधिकारी बैकलॉग भर्ती के तहत OBC/SC/ST वर्ग से आते हैं, और सरकार ने उनकी फाइलों को धूल चाटने के लिए छोड़ दिया है। यह सीधा-सीधा जातिवादी भेदभाव है। मुख्य सचिव UPSC की DPC मीटिंग में शामिल होने से महाकुंभ का बहाना बनाकर बचते हैं, लेकिन अगले ही दिन दिल्ली के पास एक निजी मेडिसिटी के उद्घाटन में शामिल होने का वक्त निकाल लेते हैं। आखिर यह दोहरा रवैया क्यों? क्या OBC/SC/ST वर्ग के अधिकारियों का हक छीनने की यह सोची-समझी साजिश नहीं है?

अगर योगी सरकार खुद को निष्पक्ष और सख्त प्रशासन देने वाली सरकार कहती है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। मुख्य सचिव से जवाब मांगा जाए कि आखिर इन अधिकारियों की फाइलें जानबूझकर क्यों रोकी जा रही हैं? बहुजन समाज के सामाजिक न्याय और अधिकारों के साथ यह अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हम यूपी सरकार से माँग करते हैं कि इन अधिकारियों की IAS में पदोन्नति प्रक्रिया में हो रही देरी को तत्काल समाप्त किया जाए और उन्हें उनका हक दिया जाए।


आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और नगीना लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद के एक्स पोस्ट से साभार

राहुल गांधी के आरोपों पर बसपा सुप्रीमों का करारा जवाब

अब तक बसपा पर सीधा हमला करने से बचने वाली कांग्रेस पार्टी अब खुलकर बसपा के खिलाफ उतर गई है। कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपने रायबरेली यात्रा के दौरान यह कह कर सीधे बसपा प्रमुख मायावती पर निशाना साधा कि आखिर बसपा पर ठीक से चुनाव क्यों नहीं लड़ती है? राहुल गांधी के इस आरोप के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने भी राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी पर पटलवार किया है।

राहुल गांधी के सवाल उठाने के दूसरे ही दिन बहनजी ने राहुल गांधी को नसीहत दे डाली और कांग्रेस को भाजपा की बी टीम कह कर नई बहस शुरू कर दी है। बहनजी ने सोशल मीडिया एक्स पर किये अपने पोस्ट में दिल्ली चुनाव का हवाला देते हुए कहा न सिर्फ कांग्रेस पर सवाल उठाया बल्कि राहुल गांधी को भी आईना दिखाया। उन्होंने लिखा-

कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी की B टीम बनकर चुनाव लड़ा, यह आम चर्चा है, जिसके कारण यहाँ बीजेपी सत्ता में आ गई है। वरना इस चुनाव में कांग्रेस का इतना बुरा हाल नहीं होता कि यह पार्टी अपने ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत भी न बचा पाए। अतः इस पार्टी के सर्वेसर्वा श्री राहुल गांधी को सलाह है कि किसी भी मामले में दूसरों पर व ख़ासकर बीएसपी की प्रमुख पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में भी जरूर झांक कर देखना चाहिए। उनके लिए यह बेहतर होगा।

 

इससे पहले बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ने के लिए बसपा पर सवाल उठाने वाले राहुल गांधी के बयान पर पलटवार करते हुए बसपा प्रमुख ने कहा था कि बीएसपी ने यूपी व अन्य राज्यों में जब भी कांग्रेस जैसी जातिवादी पार्टियों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा है तब हमारा बेस वोट उन्हें ट्रांस्फर हुआ है लेकिन वे पार्टियाँ अपना बेस वोट बीएसपी को ट्रांस्फर नहीं करा पायी हैं। ऐसे में बीएसपी को हमेशा घाटे में ही रहना पड़ा है।

साफ है कि सामाजिक न्याय के एजेंडे पर कांग्रेस बसपा पर हमलावर है, तो बसपा ने भी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। देखना होगा कि इस आर-पार की लड़ाई में दलित वोटों को अपने पाले में खिंचने की कोशिश में कांग्रेस सफल होती है या नहीं। कहीं ऐसा न हो कि बसपा और उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती पर सीधा हमला बोलने के कारण कांग्रेस का दांव उल्टा न पर जाए।

स्नेहा कुशवाहा मामले में पुलिस की चुप्पी से उठते सवाल

प्रधानंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ का नारा दिया तो जनता को यकीन हो गया कि अब प्रशासन उनकी बेटियों की हिफाजत करेगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अपनी बेटी की संदेहास्पद मौत के बाद एक परिवार बीते 18 दिनों से न्याय की गुहार लगा रहा है और प्रशासन ने आंख और कान मूंद रखा है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रामेश्वर गर्ल्स हॉस्टल में रहकर जेईई की तैयारी करने वाली स्नेहा कुशवाहा की एक फरवरी को संदिग्ध मौत हो गई। 17 साल की स्नेहा बिहार के सासाराम के नगर थाना के तकिया मोहल्ले की रहने वाली थी। वह इंटर की छात्रा थी। एक फरवरी को स्नेहा भेलूपुर थाना क्षेत्र स्थित रामेश्वरम गर्ल्स हॉस्टल के अपने कमरे में फंदे से लटकी हुई पाई गई।

यह पूरे परिवार के लिए चौंका देने वाली घटना थी। क्योंकि 31 जनवरी की देर रात तक स्नेहा की उसकी मां से बातचीत होती रही। सब कुछ सामान्य था। फिर ऐसा क्या हो गया कि सुबह में खिड़की के ग्रिल से उसकी लाश लटकती हुई मिली। यह सवाल पूरे परिवार को खा रहा है जिसका जवाब यह परिवार पुलिस से तलाश रहा है। लेकिन जवाब देना तो दूर, इस मामले में वाराणसी पुलिस ही सवालों के घेरे में है। पिता सुनील सिंह कुशवाहा ने मीडिया से बातचीत में तमाम सवाल उठाए। उनका कहना है कि-

बेटी की मृत्यु की सूचना मिलने पर वे लोग वाराणसी पहुंचे तब तक उसकी बेटी का शव पोस्टमार्टम हाउस के अंदर चला गया था। वे लोग जब पोस्टमार्टम से पहले अपनी बेटी के लाश को देखना चाह रहे थे तो उन्हें देखने नहीं दिया गया। पोस्टमार्टम के उपरांत प्लास्टिक में लपेटकर स्नेहा का शव उन्हें सौंपा गया। इतना ही नहीं, वह शव को घर लाना चाहते थे। लेकिन वाराणसी में ही दाह संस्कार करने के लिए पुलिस ने उन पर दबाव बनाया। अंतत: उन्हें बनारस के मणिकर्णिका घाट पर अपनी बेटी की अंत्येष्टि करनी पड़ी।

परिजनों को हॉस्टल के संचालक पर शक है कि उसी ने कुछ गड़बड़ी की है।

स्नेहा की संदिग्ध मौत को लेकर कुशवाहा समाज सहित तमाम लोग बिहार से लेकर दिल्ली तक सड़कों पर हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में स्नेहा को न्याय दिलाने के लिए प्रदर्शन और कैंडल मार्च किया जा रहा है। कुशवाहा बुद्धिजीवी मंच के अध्यक्ष देवेन्द्र भारती ने पुलिस पर किसी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया है।

कुशवाहा समाज द्वारा 16 फरवरी को दिल्ली के उत्तर प्रदेश भवन का घेराव किया गया। तो 17 फरवरी को कुशवाहा समाज ने इस मामले में राष्ट्रपति, पीएमओ, गृह मंत्रालय व उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को एक ज्ञापन दिया। इसमें मांग की गई है कि-

  1. एफ आई आर में पॉक्सो के प्रावधान को तुरंत शामिल किया जाए।
  2. इस घटना की गहन जांच के लिए तत्काल सी बी आई को सौप कर अपराधी को न्याय के कटघरे में लाया जाए।
  3. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पीड़िता के परिवार को सौपा जाए और डॉक्टर पर कर्रवाई की जाए।
  4. पीड़िता के शव को सही तरीके से नहीं सौपने और उसके साथ किये गए अपमान जनक व्यवहार व गुंडागर्दी करने वाली पुलिस कर्मियों को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त किया जाए।
  5. पीड़िता के परिवार को दो करोड़ रूपये की आर्थिक सहयता दी जाए
  6. गर्ल्स हॉस्टल में सुरक्षा के नियमों को सख़्ती सेलागूकिया जाए

स्नेहा कुशवाहा के पिता से मिलने पहुंचे उपेन्द्र कुशवाहाअब गेंद सरकार के पाले में है जो फिलहाल महाकुंभ में व्यस्त है। लेकिन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में इस तरह की घटना कई सवाल खड़े करती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि घटना को रोकना अगर पुलिस के वश में नहीं था तो इसका पर्दाफाश करना और दोषियों को सजा देना तो उसके हाथ में है। फिर आखिर चारो ओर चुप्पी क्यों है?

आजकल बहुजन मूवमेंट के नेतृत्व के खिलाफ बोलने का फैशन चल पड़ा है- आकाश आनंद

आजकल बहुजन मूवमेंट के नेतृत्व के खिलाफ बोलने का फैशन चल पड़ा है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी जी ने कुछ यूट्यूबर्स से मुलाक़ात में मान्यवर साहेब श्री कांशीराम जी के योगदान पर सवाल उठाया था। फिर केंद्रीय गृहमंत्री ने संसद में बाबा साहेब पर अशोभनीय टिप्पणी की।

असल में भाजपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दल वोटों के लिए बहुजन मिशन को गुमराह करने में जुटे हैं। खासकर कांग्रेस सुनियोजित तरीके से हमला कर रही है। इनके नेता और समर्थक हमारे आदर्शों और नेतृत्व पर बार बार गैरजरूरी बयान बाजी कर रहे हैं। जबकि सभी जानते हैं बाबा साहेब और उनके बाद मान्यवर साहेब ने हमेशा कांग्रेस के षड्यंत्रों को करारा जवाब दिया है।

साथियों देश खतरनाक राजनीतिक दौर से गुजर रहा है। इस वक्त जो अपनी विचारधारा और अपने गुरुओं के बताए रास्ते पर टिका रहा वही अपने समाज का भला करेगा। बहुजन मूवमेंट के खिलाफ साजिश कर रहें हैं। जिसे लेकर हमें सतर्क रहना होगा। परम आदरणीय बहन जी ने भी कल ही कहा है, “राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ के लिए कांग्रेस ’जय बापू, जय भीम, जय मण्डल, जय संविधान’ आदि के नाम पर चाहे जितने भी कार्यक्रम क्यों न कर ले, बाबा साहेब के अनुयाई इनके किसी बहकावे में आने वाले नहीं हैं।”

मान्यवर कांशीराम साहेब ने नौकरी छोड़कर शहर शहर घूमकर सामाजिक परिवर्तन की जो अलख जगाई है उसे भूला पाना नामुमकिन है। परम आदरणीय बहन जी के नेतृत्व में सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के बसपा का शासनकाल ख़ुद में शासन प्रशासन और अनुशासन की मिसाल है। हमें दुश्मनों की साजिश का शिकार नहीं होना बल्कि संगठित होकर बहुजनों के आत्म-सम्मान एवं स्वाभिमान के मानवतावादी संघर्ष को आगे बढ़ना है।


बहुजन समाज पार्टी के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद के यह विचार उनके एक्स पोस्ट से लिये गए हैं। 

राहुल गांधी का सामाजिक न्याय

प्रयागराज के महाकुंभ यात्रा में हो रहे हृदय विदारक हादसों तथा हथकड़िया और बेडि़यां पहने अवैध भारतीयों का अमेरिका से निर्वासन जैसी खबरों के मध्य कांग्रेस से संगठन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव भी इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है। भाजपा की भांति ही सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में जिस तरह सामाजिक अन्याय की शिकार जातियों के नेताओं को फिट किया जा रहा है, उससे राजनीतिक विश्लेषक हैरान व परेशान हैं। सांगठनिक बदलाव करते हुए कांग्रेस पार्टी ने 14 फरवरी को संगठन के भीतर जिन 11 लोगों की नियुक्ति की है उसमें चार ओबीसी, दो दलित, एक आदिवासी और एक अल्प संख्यक समुदाय से है। जबकि तीन अपर कास्ट के लोग हैं, जिनमें रजनी पाटिल , मीनाक्षी नटराजन और कॄष्ण अल्लावरु का नाम है। भूपेश बघेल, गिरिश चोड़नकर, हरीश चौधरी और अजय कुमार लल्लू ओबीसी समाज से जबकि,  बीके हरि प्रसाद और के. राजू दलित और सप्तगिरि आदिवासी समाज से हैं। अल्पसंख्यक समुदाय से सैयद नसीर हुसैन को शामिल किया गया है।

 इन ग्यारह में 2 राज्यों के महासचिव, जबकि 9 विभिन्न राज्यों के प्रभारी बने हैं। इससे  पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित समुदाय से आने वाले भक्त चरन दास को ओडिशा का और ओबीसी समुदाय के कम चर्चित चेहरे हर्षवर्द्धन सकपाल को महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष नियुक्त कर चौकाया था।

कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति

बहरहाल विस्मयकर होने के बावजूद यह बद्लाव प्रत्याशित था। राहुल गांधी जिस शिद्दत से पिछले साल- डेढ़ साल से संविधान, सामाजिक न्याय, जाति जनगणना, आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने, जितनी आबादी- उतना हक की बात उठा रहे थे, उससे लोगों को लगता रहा कि देर- सवेर पार्टी के सांगठनिक ढाँचे में भी इसका प्रतिबिम्बन हो सकता है, जो देर से ही सही पर, होता दिख रहा है। अब इस बहुचर्चित बदलाव को तमाम राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति के रुप में देख रख रहे हैं। दरअसल जो बदलाव दिख रहा है, उसकी जड़ें फरवरी 2023 में रायपुर में आयोजित कांग्रेस के 85वें अधिवेशन में निहित हैं। उसी अधिवेशन में कांग्रेस ने अपना सवर्णवादी चेहरा बदलने का उपक्रम चलाया था।

 लोकसभा चुनाव 2024 की पृष्ठभूमि में 24 से 26 फरवरी तक आयोजित रायपुर अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस ने सामाजिक न्याय का पिटारा खोलकर दुनियां को चौकाया था। उसमें सामाजिक न्याय से जुड़े हुए ऐसे कई क्रांतिकारी प्रस्ताव पास हुए थे, जिनकी प्रत्याशा सामाजिक न्यायवादी दलों तक से नहीं की जा सकती। आज राहुल गांधी अगर सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाने में सबको पीछे छोड़ दिए हैं, तो उसकी जमीन रायपुर अधिवेशन में ही तैयार हुई  थी। वहाँ सामाजिक न्याय से जुड़े प्रस्तावों का ही विस्तार राहुल गांधी के आज के संबोधनों में दिख रहा है। बहरहाल रायपुर में सामाजिक न्याय से जुड़े जो विविध प्रस्ताव पास हुए थे, उनमें से एक यह था कि कांग्रेस पार्टी ब्लॉक, जिला, राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर वर्किंग कमेटी में 50 प्रतिशत स्थान दलित, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक समुदाय और महिलाओं के लिये सुनिश्चित करेगी। लोग तभी से उम्मीद करने लगे थे कि कांग्रेस संगठन में जल्द ही दलित बहुजन चेहरों की पर्यप्त झलक दिखनी शुरु हो जायेगी।

इस बीच रायपुर से निकले सामाजिक न्याय के प्रस्ताव को राहुल गांधी नई- नई ऊँचाई दिए जा रहे थे, पर संगठन की शक्ल ज्यों की त्यों रही, जिससे लोगों में बेचैनी व निराशा बढ़ती जा रही थी। इस बात का इल्म राहुल गांधी को भी हो चला था। ऐसे में मौका माहौल देखकर उन्होंने संगठन में छोटे- मोटे बद्लाव नहीं, एक क्रांतिकारी परिवर्तन की घोषणा कर दी, जिसके लिये दिन चुना 30 जनवरी का। यह दिन महात्मा गांधी के शहादत दिवस का दिन है।

गांधी के शहादत दिवस पर दिल्ली में दलित इंफ्लूएंसरों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि हमने दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों का विश्वास बरकरार रखा होता तो आरएसएस कभी सत्ता में नहीं आ पाता… इंदिरा जी के समय पूरा भरोसा बरकरार था। दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक सब जानते थे कि इंदिरा जी उनके लिए लड़ेंगी। लेकिन 1990 के बाद विश्वास में कमी आई है। इस वास्तविकता को कांग्रेस को स्वीकार करना पड़ेगा। पिछले 10- 15 सालों कांग्रेस ने जिस प्रकार आपके हितों की रक्षा करनी थी, नहीं कर पाई। उन्होंने अपने संबोधन में यह भी याद दिलाया कि मौजूदा ढाँचे में दलित और पिछड़ों की समस्याएं हल नहीं होने वाली हैं, क्योंकि बीजेपी और आरएसएस ने पूरे सिस्टम को नियंत्रण में ले लिया है। दलित और पिछड़े वर्गों के लिए दूसरी आजादी आने वाली है, जिसमें सिर्फ राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए नही लड़ना है, बल्कि संस्थाओं और कार्पोरेट जगत में हिस्सेदारी लेनी होगी। अंत में उन्होंने कहा था कि हम अपनी पार्टी में आंतरिक क्रांति लाएंगे जिससे संगठन में दलित, पिछड़ों और वंचितों को शामिल किया जा सके। राहुल गांधी ने पार्टी में आंतरिक क्रांति लाने की जो घोषणा की थी उसी के परिणामस्वरुप पार्टी संगठन में यह बद्लाव दिखा है। राहुल गांधी की आंतरिक क्रांति की योजना के तहत सिर्फ पार्टी में पहले से शामिल वर्ग के नेताओं को ही संगठन में उचित स्थान नहीं दिया जा रहा है। बल्कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और  अल्पसंख्यक समुदाय की प्रतिभाओं को पार्टी में शामिल भी किया जा रहा है, जिसका बड़ा दृष्टांत 28  जनवरी को स्थापित हुआ। उस दिन कांग्रेस के साथ जुड़ीं थीं डॉ जगदीश प्रसाद, फ्रैंक हुजूर, अली अनवर, निशांत आनंद, भगीरथ मांझी जैसी विशिष्ट प्रतिभाएं। इनके कांग्रेस से जुड़ने से देश के वंचितों के बीच बड़ा सन्देश गया, जो जाना ही था।

अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर न्याययोद्धा राहुल गांधी के साथ जाने का निर्णय लेने वाले पद्मश्री डॉक्टर जगदीश प्रसाद को आजाद भारत में पहला दलित स्वास्थ्य महानिदेशक बनने का गौरव प्राप्त है।  डॉक्टर प्रसाद की छवि गरीब – वंचितों के मसीहा की रही है। इसी तरह भगीरथ मांझी मुसहर समाज में जन्मे उस पर्वत पुरुष दशरथ  मंझी की संतान हैं, जिन पर पूरे बिहार के गर्व का अंत नहीं है। लेकिन राहुल गांधी की ‘आंतरिक क्रांति’ की योजना के तहत दलित – पिछड़े समाज के जिन लोगों को कांग्रेस से जोड़ा गया है, उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम है डॉक्टर अनिल जयहिंद यादव का।

राहुल गांधी के मिशन मैन के रुप में राजनीतिक विश्लेषकों और एक्टिविस्टों के मध्य पहचान बनाने वाले डॉ. अनिल जयहिंद यादव नेताजी के करीबी रहे एक फौजी ऑफिसर की ऐसी काबिल संतान हैं, जो वर्षों पहले डॉक्टरी पेशे को छोड़कर सामाजिक न्याय की लड़ाई में कूद गए और मंडल मसीहा बीपी मंडल और शरद यदव जैसे लोगों की निकटता जय करने में सफल रहे। शरद यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानने वाले डॉ. जयहिंद कई ऐतिहासिक महत्व की किताबों का लेखन- अनुवाद करने के साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई में लगातार सक्रिय रहे और जब मोदी – राज में संविधान पर संकट आया, वह ‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले संविधान की रक्षा में मुस्तैद हो गए। बाद में जब उन्होंने राहुल गांधी में सामाजिक न्याय के प्रति अभूतपूर्व समर्पण और संविधान बचाने का संकल्प देखा, वह उनके साथ हो लिए।

सांसद – विधायक बनने की महत्वाकांक्षा से पूरी तरह निर्लिप्त रहने वाले डॉ. जयहिंद ने परदे के पीछे रहकर कांग्रेस के लिए काम करने का मन बनाया। राहुल गांधी ने अगर भारत जोड़ों यात्रा और भारत जोड़ों न्याय यात्रा के जरिए लाखों लोगों से संवाद बनाया तो उनके सामाजिक अन्याय के शिकार तबकों के लेखक- पत्रकार और एक्टिविस्टों से निकटता बनाने का जरिया बने संविधान सम्मेलनों के शिल्पकार डॉ. अनिल जयहिंद। उनके संयोजकत्व में पंचकुला, लखनऊ,  इलाहाबाद, नागपुर, रांची, कोल्हापुर, पटना, दिल्ली इत्यादि में आयोजित संविधान केंद्रित सम्मेलनों ने वंचित वर्गों के इनफ्लुएंसरों को कांग्रेस से जुड़ने में चमत्कार ही घटित कर दिया। उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद वह राहुल गांधी की आंतरिक क्रांति को अंजाम तक पहुँचाने में  और बडी़ भूमिका ग्रहण करेंगे।


(लेखक बहुजन डायवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सम्पर्क : 9654816191)

विवादित टिपप्णी पर बसपा सुप्रीमों ने फटकारा, उदित राज ने दी सफाई

नई दिल्ली। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती पर विवादित टिप्पणी देकर फंसे उदित राज ने विवाद बढ़ता देख सफाई दी है। बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद द्वारा यूपी पुलिस से उदित राज की गिरफ्तारी की मांग के बाद आकाश आनंद को टैग करते हुए उदित राज ने सफाई का एक लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखा है। सोशल मीडिया एक्स पर पूर्व भाजपाई और वर्तमान कांग्रेस नेता ने अपने स्पष्टीकरण में लिखा है कि-

सबसे पहले मैं स्पष्ट करना चाहूँगा कि मेरे बयान को कांग्रेस से न जोड़ा जाए। 16 फ़रवरी को लखनऊ के सहकारिता भवन में प्रथम दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज़ और आदिवासी परिसंघ का सम्मेलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस सभाजीत यादव ने की। मैं मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित था। सम्मेलन के बाद कल प्रेस वार्ता किया जिसके कारण गला घोटने की बात का विवाद पैदा हुआ। जस्टिस सभाजीत यादव भी वार्ता में थे।

मायावती जी ने 4 दशक से झूठ, दुष्प्रचार और कांग्रेस को दलित विरोधी बताकर लोगों को भ्रमित किया। डॉ. अंबेडकर को ढाल बनाकर कांग्रेस का गला काटा और सत्ता का सुख लूटा। करोड़ों बहुजन कार्यकर्ताओं ने भूखे, प्यासे रहकर आंदोलन को सृजित किया। इनके चंदे, परिश्रम और बलिदान का गला घोटा। बीएसपी ने कभी RSS के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला। आज भी कुछ न कुछ कारण और बहाना बनाकर कांग्रेस को ही निशाना बनाती रहती हैं ताकि दलित जुड़े न। बहुजन आंदोलन का गला काटने वाले को घर बैठाने का समय आ गया है।

 कांग्रेस की उदारता रही कि 4 दशक से अंबेडकर और दलित विरोधी आरोप पर आरोप बीएसपी लगाती रही और ख़ुद खत्म होती रही और बचाव भी नहीं किया गया। सम्मेलन और प्रेस वार्ता दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज और आदिवासी परिसंघ की ओर से आयोजित किया गया। बीजेपी के शह पर फिर से कांग्रेस के ऊपर हमला बोलकर दिखा दिया कि बीएसपी बीजेपी की बी टीम है। कृपया कांग्रेस को इस विवाद में न घसीटें। हम बहुजन आंदोलन बचाने के लिए कटिबद्ध हैं, चाहे जो कुर्बानी देना पड़े।

उदित राज ऐसा व्यक्ति है जो किसी से कभी न झूठ बोला और न कोई बेईमानी किया। सिद्धांत से कभी समझौता नहीं किया और न करूँगा।

हालांकि उदित राज द्वारा की गई टिप्पणी पर आकाश आनंद के जबरदस्त विरोध के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने भी इस मामले में बहुजन समाज को आगाह किया। बिना उदित राज का नाम लिये बहनजी ने कहा,

कुछ दलबदलू अवसरवादी व स्वार्थी दलित लोग अपने आक़ाओं को खुश करने के लिए जो अनर्गल बयानबाजी आदि करते रहते हैं उनसे भी बहुजन समाज को सावधान रहने व उन्हें गंभीरता से नहीं लेने की जरूरत है क्योंकि वे सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्तिमूवमेन्ट से अनभिज्ञ व अपरिचित हैं।

साफ है कि यह विवाद अभी थमता हुआ नहीं दिख रहा है। आकाश आनंद के हमले, बहनजी के बयान और उदित राज की सफाई के बाद अब सबकी नजरें कांग्रेस पर टिकी है। उदित राज के स्पष्टीकरण से यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि उन्हें कांग्रेस पार्टी की ओर से कुछ न कुछ तो कहा ही गया है। लेकिन देखना यह होगा कि कांग्रेस इस मामले में क्या रुख लेती है।

बसपा प्रमुख मायावती पर उदित राज की विवादित टिप्पणी से हंगामा

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती पर टिप्पणी देकर कांग्रेस नेता उदित राज बुरी तरह घिर गए हैं। उदित राज के बयान के बाद जहां बसपा ने उदित राज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तो आकाश आनंद ने यूपी पुलिस को 24 घंटे के अंदर उदित राज को गिरफ्तार करने का अल्टीमेटम दे दिया है। 17 फरवरी को लखनऊ में एक प्रेस कांफ्रेंस में उदित राज ने विवादित बयान दिया। हिन्दुत्व पर प्रहार करने वाले और खुद को बु्द्धिस्ट कहने वाले उदित राज ने महाभारत का उदाहरण देते हुए बहनजी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि, कृष्ण ने कहा था कि कोई सगा-संबंधी नहीं है। न्याय के लिए लड़ो और जरूरत पड़े तो अपने सगे-संबंधियों को भी मार दो। हमारे कृष्ण ने कह दिया है कि सबसे पहले जो अपना दुश्मन है, उसी को मार दो और जो सामाजिक न्याय का दुश्मन है उसे आप जानते हैं। सुश्री मायावती ने जो सामाजिक आंदोलन का गला घोंटा, अब उनका गला घोंटने का समय आ गया है।

पूर्व भाजपाई और वर्तमान कांग्रेसी उदित राज के इस बयान के बाद बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद ने उदित राज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सोशल मीडिया एक्स पर आकाश आनंद ने लिखा- लखनऊ में कभी भाजपा कभी कांग्रेसी चमचे उदित राज ने साहेब के मिशन पर लंबा चौड़ा ज्ञान दिया है। जबकि उदित राज अपने स्वार्थ के लिए दूसरे दलों में मौका तलाशने के लिए कुख्यात है। उसे बहुजन मूवमेंट की चिंता सिर्फ इसलिए है ताकि वो किसी दल की चमचागिरी कर के सांसद या विधायक बन सके। इसका बहुजन समाज के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है।

मैं बहुजन मिशन का युवा सिपाही हूँ लेकिन बाबा साहेब और मान्यवर साहेब के मिशन को इससे ज़्यादा समझता हूँ। आज इसकी भाषा में जिस तरह की धमकी है वो हम बहुजन मिशन के करोड़ो सिपाहियों को कतई बर्दाश्त नहीं है। अपने स्वार्थ में मान्यवर साहेब के मिशन को भूलकर ये चमचा आज देश के करोडों दलित,शोषित,वंचित गरीबों को राजनैतिक ताक़त के साथ सामाजिक और आर्थिक मुक्ति दिलाने वाली हमारी परमपूज्य आदरणीय बहन कु. मायावती जी को “गला घोंटना” की धमकी दे रहा है।

मैं @uppolice से साफ़ कहना चाहता हूँ की 24 घंटे में इन अपराधियों को गिरफ्तार कर क़ानून के तहत कड़ी से कड़ी कार्यवाही करें नहीं तो देश का बहुजन युवा चुप बैठने वाला नहीं है, इनको सबक सिखाना मुझे अच्छे से आता है।

आकाश आनंद के तेवर से साफ है कि उन्होंने बहनजी के अपमान पर उदित राज से दो-दो हाथ करने की ठान ली है। अब देखना होगा कि 18 फरवरी को रात 11 बजे 24 घंटे के अल्टीमेटम के पहले क्या यूपी पुलिस उदित राज को गिरफ्तार करती है? अगर नहीं, तो ऐसे में आकाश आनंद का कदम क्या होगा?

निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और बेटे प्रवीण निषाद पर आरोप लगा पार्टी कार्यकर्ता ने दी जान

संजय निषाद (फाइल फोटो)मैं अपनी जिंदगी की लड़ाई हार गया। यह आखिरी संदेश है।
आज बहुत कुछ सोचने समझने के बाद मैंने यह फैसला लिया है कि यह दुनियां मेरे किसी काम की नहीं है। मैंने अपनी क्षमता के हिसाब से जितना लोगों की मदद कर सकता था उतना मदद करने का प्रयास किया और कई बार तो अपनी क्षमता के ऊपर भी जाकर लोगों का मदद किया। जिसके कारण मेरे हजारों राजनैतिक और सामाजिक दुश्मन बनें फिर भी मैंने समाज के शोषित, वंचित, और निर्बलों की आवाज को बुलंद करने का काम लगातार जारी रखा। इस बीच मुझे कई बार फर्जी मुकदमे भी झेलने पड़े और कई बार जेल भी जाना पड़ा फिर भी मैंने अपने कदम को रुकने नहीं दिया और लगातार लोगों की मदद करता है।
अब आते हैं मुख्य बिंदु पर की आखिर मुझे यह फैसला क्यों लेना पड़ा तो आप सबको अवगत कराना चाहता हूँ कि मैं लगभग पिछले 10 वर्ष से डॉ. संजय कुमार निषाद कैबिनेट मंत्री (मत्स्य विभाग) उत्तर प्रदेश सरकार के साथ सामाजिक और राजनैतिक संगठन जैसे कि राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद् और निषाद पार्टी के विभिन्न पदों पर रहते हुए कार्य कर रहा था। जिसमें पिछले 10 वर्ष से मैंने कभी अपने परिवार को समय नहीं दिया जितना कि मैंने डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके परिवार के लोगों के साथ-साथ समाज को समय दिया।
इस बीच मैंने उत्तर प्रदेश के लगभग 40-50 जिलों में संगठन और पार्टी के लिए कार्य किया जिसके वजह से निषादपोस्ट लिखकर जान देने वाले धर्मातमा निषाद समाज के युवाओं के साथ-साथ अन्य वर्ग के भी युवाओं में मेरी लोकप्रियता बढ़ती गई। जिसके कारण डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों की बेचैनी बढ़ने लगी कि आखिर यह एक साधारण सा लड़का इतना ज्यादा चर्चित और लोकप्रिय कैसे होता जा रहा है। इसी बात को लेकर पिछले दो सालों से डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों ने मेरे खिलाफ सामाजिक और राजनैतिक रूप से षड्यंत्र करते हुए मुझे पहले तो कमजोर करने का प्रयास किया फिर मेरे ही साथ के युवा साथियों को भड़काने व मेरे खिलाफ खड़ा करने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देने के साथ-साथ मुझे और मेरे टीम के साथियों को फर्जी मुकदमे में फंसाने का तरह-तरह का प्रयास करने लगे।
इसी बीच मनीष निषाद नाम के एक लड़के को मेरे खिलाफ भड़काकर मुझसे मारपीट करने के लिए उकसाया गया जिसके कारण मुझे मनीष निषाद को मारना पड़ा था और उसको मैंने ऑन कैमरा मारा था क्योंकि उसने मेरे दुश्मनों के साथ मिलकर मेरे घर पर आकर मेरी मां और बहन के साथ गाली-गलौज और मारपीट किया था। जिसमें मेरे एक बहुत करीबी हरामखोर मित्र जय प्रकाश निषाद का हाथ था क्योंकि यही हरामखोर मनीष निषाद को अपने हिसाब से चलाता था और वही षड्यंत्र करके डॉ. संजय कुमार निषाद के नाम से और तत्कालीन सांसद प्रवीण कुमार निषाद के नाम से फोन करके मेरे खिलाफ फर्जी लूटपाट का मुकदमा दर्ज करवाया था जिसके बारे उस हरामखोर को जब लाईव आकर मैंने मारने का धमकी दिया था तब वह हरामखोर अपने दोस्त सोहन गुप्ता जो खजनी विधानसभा के निवासी हैं उनके जरिए मेरे पास फोन करके गोरखपुर मिलकर पूरी बात बताई थी। जिसमें सोहन गुप्ता और जय प्रकाश निषाद, प्रदीप साहनी और विष्णु चौरसिया भी थे जो जय प्रकाश निषाद के ही मित्र हैं। इन सबके सामने जय प्रकाश निषाद ने कबूल किया था कि डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों प्रवीण कुमार निषाद और श्रवण कुमार निषाद इन लोगों के कहने पर मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था।
प्रवीण निषादयह सारी बातें सुनकर मुझे बहुत गहरा चोट पहुंचा मगर फिर भी मैंने खुद को शांत रखा और किसी को यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं इन सब बातों को जान चुका हूँ। मैं चाहता तो जय प्रकाश निषाद को तत्काल जान से मार सकता था मगर मैं अपने आपको खूनी नहीं बनाना चाहता था। मैंने समाज के लिए छोटे-मोटे झगड़े विवाद किए हैं मगर कभी किसी का हत्या करूंगा ऐसा ख्याल कभी मन में आया भी नहीं है। अब इतना कुछ होने के बाद भी मैं समाज की लड़ाई लगातार लड़ता रहा है। इसी बीच पनियरा थाने के अंतर्गत आने वाले बैदा गाँव निवासी गुलशन निषाद की हत्या कर दी जाती है और पुलिस उस मामले को कुछ राजनेताओं के दबाव में आकर दुर्घटना दिखाकर मामले को दबाने का प्रयास करती है। इस बात की सूचना कई पत्रकार बंधुओं और सामाजिक लोगों द्वारा मुझे दी जाती है तब मैं मौके पर जाता हूँ और एडीशनल एसपी को मौके पर बुलाकर पीड़ित परिवार के तरफ से हत्या का तहरीर एडीशनल एसपी को दिलवाता हूँ। इस मामले में भी मेरे खिलाफ डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों द्वारा चक्का जाम ईत्यादि का फर्जी मुकदमा दर्ज करवाकर मुझे जेल भेजवाया जाता है। जब मै जेल से छुटकर बाहर आता हूँ तो फिर लोकसभा चुनाव में मेरा समर्थन पाने के लिए डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों ने मुझसे बातचीत करना और मिलना-जुलना शुरू कर दिया। इस बीच मेरे आवास पर डॉ. संजय कुमार निषाद के छोटे सुपुत्र ई. श्रवण कुमार निषाद आते हैं और माफी मांगते हैं और कहते हैं कि मेरे खिलाफ उनके परिवार के किसी सदस्य ने पैरवी नहीं किया था जो भी किया था वह जय प्रकाश निषाद ने किया था फिर मैं जय प्रकाश निषाद से पूछताछ करता हूँ तो वह भी कसम खाता और कहता उसने जो भी षड्यंत्र मेरे खिलाफ किया है वह सब डॉ. संजय कुमार निषाद और प्रवीण कुमार निषाद और ई. श्रवण कुमार निषाद के कहने पर किया था।
मैं इन सब बातों को जानकर रोज घुट-घुट कर मर रहा था और सारी बातें जानना चाहता था कि कौन-कौन मेरे खिलाफ षड्यंत्र किया है इसकी भी जानकारी करना बहुत जरूरी हो गया था। अब लगभग सभी चेहरों से नकाब हट चुके हैं और उन सब चेहरों की पहचान भी हो चुकी है। पहले तो मेरे मन में ख्याल आया कि मैं उन सब हरामखोरो को जान से मार दूँ जिन्होंने मेरे खिलाफ षड्यंत्र किया है फिर दिल ने कहा कि नहीं यार ऐसा करके मुझे तो संतुष्टि मिल जायेगी मगर मैं हत्यारा बन जाऊँगा। इसलिए मैंने बहुत कुछ सोचने के बाद यह निर्णय लिया है कि इस बेरहम और एहसान फरामोश दुनियाँ से दूरी बना लेना चाहिए। मैं अपने साथ चलने वाले सभी क्रान्तिकारी साथियों से निवेदन करना चाहूँगा कि आप लोग कभी भी किसी भी साथी के साथ गद्दारी मत करिएगा और जहाँ तक हो सके समाज के दबे कुचले लोगों की आवाज को बुलंद करने का प्रयास करते रहिएगा। मैं अपनी माँ और बहनों एवं भैया से हाथ जोड़कर क्षमा माँग रहा हूँ कि समाज के लोगों की मदद करते हुए मैंने अपनी जिंदगी निकाल दी मगर आप लोगों को कभी समय नहीं दे पाया और न ही आप लोगों के लिए कुछ कर पाया मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अगले जन्म में भी इस परिवार का हिस्सा बनाकर भेजना ताकी मैं अपनी माँ और बहनों एवं भैया का सेवा कर सकूं।
अब मैं अपनी पत्नी से भी क्षमा चाहता हूँ कि उसको भी मैंने समय नहीं दिया और जो थोड़ा बहुत समय दिया उसमें मेरी एक फूल जैसी बेटी का जन्म हुआ और उस फूल जैसी बेटी को भी मैं समय नहीं दे पाया। मैं अपनी पत्नी से भी क्षमा चाहता हूँ कि मैं उसे ऐसे मोड़ पर छोड़कर जा रहा हूँ हो सके तो मुझे माफ कर देना अंजली। अब मैं उन क्रान्तिकारी साथियों से भी क्षमा चाहता हूँ जिन्होंने मेरे साथ संघर्ष करते हुए समाज के दबे, कुचले लोगों को न्याय दिलाने हेतु मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। मैं अपने निषाद समाज के सभी समाजसेवियों और राजनेताओं से एक आखिरी निवेदन करना चाहता हूँ कि आप लोग निषाद समाज के युवाओं के भविष्य को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने के साथ-साथ डॉ. संजय कुमार निषाद जैसे धूर्त व्यक्ति से समाज को छुटकारा दिलाने के लिए कार्य करें क्योंकि जितना नुकसान निषाद समाज का अन्य दलों ने नहीं किया है उससे कहीं ज्यादा नुकसान डॉ. संजय कुमार निषाद और उसके बेटों ने किया है। मैंने इनके साथ रहकर सारी चीजें बहुत करीब से देखी हैं इन्होंने निषाद समाज को जगाने का काम किया है मगर उसमें मुझ जैसे सैकड़ों क्रान्तिकारी साथियों की अग्रणी भूमिका रही है। कोई भी टीम अगर मैच जीतती है तो वह सिर्फ कप्तान के बदौलत नहीं बल्कि पूरी टीम की एकजुटता के शानदार प्रदर्शन के बदौलत जीतती है। वह अलग बात है कि ट्राफी उठाने का और मंच पर बात रखने का मौका कप्तान को मिलता है जिसकी वजह से कप्तान को प्रसिद्धि मिल जाती है। इसी तरह से निषाद समाज को जगाने में और उनके हक अधिकारों की लड़ाई लड़ने में मुझ जैसे सैकड़ों क्रान्तिकारी साथियों का अहम योगदान रहा है मगर डॉ. संजय कुमार निषाद ने उसे भुनाते हुए खुद को स्वघोषित महामना, पॉलिटिकल गॉड फॉदर ऑफ फिशरमैन बना लिया।
मैं एक ही बात जानता हूँ कि अगर क्षेत्र में कही किसी लड़की की इज्जत लूटी जा रही हो और थानेदार वहां पहुंचकर लड़की की इज्जत बचाकर थाने में लाकर खुद बलात्कार करे तो उस थानेदार और बलात्कारी में कोई अंतर रह जाएगा। ठीक इसी तरह अगर डॉ. संजय कुमार निषाद अगर दावा करते हैं कि निषाद समाज को अन्य दलों के चंगुल से बाहर निकालकर उनका सम्मान बढ़ाए हैं तो फिर अपनी पार्टी में लाकर उनका और निषाद समाज दोनों का शोषण कर रहे हैं तो उनमें और अन्य दलों में क्या अंतर है। जब वह मुझ जैसे एक वफादार सिपाही का नहीं हुए जो कि मैने अपने 10 वर्ष डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों को दे दिया तो अन्य किसी का वह क्या होंगे। वह सिर्फ उसी के हो सकते हैं जो उनका तलवा चाटने का काम करते रहे और जो उनको अपना इज्जत, आबरू लुटाकर उनको खुश रखे बस वही लोग उनके चहेते रह सकते हैं। लिखने के तो सैकड़ों मामले हैं जो लिखने लगूं तो कई घंटे लग जायेंगे क्योंकि मैंने जहां- जहां समाज की लड़ाई लड़ी है। वहां मेरी लोकप्रियता कम करने के लिए मेरे विरुद्ध पैरवी करने में डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है पता नहीं उन सबको मुझसे इतनी जलन क्यों रहती है। खैर छोड़िए वो सब अब अपना राजनीति करें और उनसे दूरी बनाने के लिए मैं दुनियां को ही छोड़ दे रहा हूँ। बस एक आखिरी बात मैं अपने निषाद समाज से कहना चाहूंगा कि आज तक मैंने निषाद समाज के लिए जो भी हो सका है वह मदद मैने किया है अब मैं समाज से अपने परिवार की सुरक्षा और उनके भविष्य की जिम्मेदारी आप सब पर सौंप के जा रहा हूँ।
अगर आप लोग मेरे परिवार का ख्याल रख लेंगे तो मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी और मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करूंगा कि मैंने जो मदद समाज का किया था उसका फल मेरे परिवार को मिल रहा है। मैं अगर दुनियां छोड़कर जा रहा हूँ तो इसका सबसे बड़ा कारण डॉ. संजय कुमार निषाद और उनके बेटों प्रवीण कुमार निषाद और ई श्रवण कुमार निषाद और हरामखोर गद्दार दोस्त जय प्रकाश निषाद है। मैं फिर कह रहा हूँ कि अगर मैं मारना चाहता तो इन गद्दारों को कभी भी मार सकता था मगर मैं हत्यारा नहीं बनना चाहता था। मेरे सामाजिक और राजनैतिक जीवन में अगर जाने-अनजाने में किसी के साथ मुझसे कोई भूल या गलती हो गई हो तो आप लोग क्षमा करियेगा और मेरे परिवार का ख्याल रखियेगा।
मुझे माफ करना माँ, अंजली, भैया, दीदी।
यह पोस्ट लिखकर जान देने वाले धर्मातमा निषाद के फेसबुक पेज से साभार प्रकाशित

बसपा में फिर बढ़ी हलचल

नई दिल्ली। आकाश आनंद के ससुर और पुराने बसपाई अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाले जाने के बाद बहुजन समाज पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बसपा मुखिया बहन मायावती के आज के सोशल मीडिया पोस्ट से यही लग रहा है। इस पोस्ट में साफ नजर आ रहा है कि बसपा प्रमुख मायावती के दिल और दिमाग में काफी हलचल है। इस पोस्ट में अशोक सिद्धार्थ को चेतावनी है तो आकाश आनंद के लिए भी बड़ा मैसेज है।

12 फरवरी को अशोक सिद्धार्थ को बसपा से बाहर किये जाने के फरमान के बाद 16 फरवरी को एक के बाद अपने 5 एक्स पोस्ट में बसपा प्रमुख की बेचैनी साफ दिखी। बहनजी ने इशारों-इशारों में नसीहत देते हुए लिखा कि-

बीएसपी, देश में बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के मानवतावादी आत्म-सम्मान व स्वाभिमान के कारवाँ को सत्ता तक पहुँचाने हेतु, मान्यवर श्री कांशीराम जी द्वारा सब कुछ त्यागकर स्थापित की गई पार्टी व मूवमेन्ट, जिसमें स्वार्थ, रिश्ते-नाते आदि महत्वहीन अर्थात बहुजन-हित सर्वोपरि है।

इसी क्रम में मान्यवर श्री कांशीराम जी की शिष्या व उत्तराधिकारी होने के नाते उनके पदचिन्हों पर चलते हुए मैं भी अपनी आखिरी सांस तक हर कुर्बानी देकर संघर्ष जारी रखूंगी ताकि बहुजन समाज के लोग राजनीतिक गुलामी व सामाजिक लाचारी के जीवन से मुक्त होकर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

इसके बाद बहनजी ने जो पोस्ट लिखा वो भतीजे आकाश आनंद को चेतावनी की तरह है। बहनजी ने लिखा-

मान्यवर श्री कांशीराम जी की तरह ही मेरे जीतेजी भी पार्टी व मूवमेन्ट का कोई भी वास्तविक उत्तराधिकारी तभी जब वह भी, श्री कांशीराम जी के अन्तिम सांस तक उनकी शिष्या की तरह, पार्टी व मूवमेन्ट को हर दुःख-तकलीफ उठाकर, उसे आगे बढ़ाने में पूरे जी-जान से लगातार लगा रहे।

साथ ही, देश भर में बीएसपी के छोटे-बड़े सभी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को भी पार्टी प्रमुख द्वारा निर्देश, निर्धारित अनुशासन एवं दायित्व के प्रति पूरी निष्ठा व ईमानदारी से जवाबदेह होकर पूरे तन, मन, धन से लगातार काम करते रहना ज़रूरी है।

बहनजी के एक्स पोस्ट से साफ है कि उन्होंने यह संदेश दे दिया है कि कोई बसपा का उत्तराधिकारी तभी बना रह सकता है जब वो उनके हर निर्देश का पालन करे। बता दें कि जिस तरह से बहनजी ने आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को बाहर का रास्ता दिखाया है, उससे पार्टी के भीतर नई बहस शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि आकाश आनंद भी इस फैसले से खुश नहीं हैं। आकाश आनंद बहनजी के हर पोस्ट को रि-पोस्ट करते हैं, लेकिन 12 फरवरी को अशोक सिद्धार्थ को निकाले जाने की खबर पर उनकी चुप्पी साफ दिखी। उन्होंने बसपा मुखिया के इस पोस्ट को रि-पोस्ट भी नहीं किया। और अब जिस तरह इस उठा पटक के चौथे दिन बहनजी ने पार्टी के उत्तराधिकारी की योग्यता को लेकर जो बयान जारी किया है, उससे हलचल और बढ़ गई है।

पानी की हर बू्ंद के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं की कहानी

झांसी। झांसी के बबीना ब्लॉक का सिमरावारी गांव, जहां पानी की हर बूंद के लिए संघर्ष करना लोगों की नियति बन चुकी थी। बारिश के दिनों में भी घूरारी नदी सूखी ही रहती, और गर्मियों में हालात और भी बदतर हो जाते। पीने के पानी से लेकर खेतों की सिंचाई तक, हर चीज के लिए लोग तरसते थे। गांव की महिलाओं को रोज़ कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता था। यह मुश्किल सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे बुंदेलखंड की थी, जहां जल संकट आम बात थी। गांव की कुछ जागरूक महिलाओं ने तय किया कि वे इस समस्या को यूं ही नहीं छोड़ेंगी। उन्होंने मिलकर एक स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाया और खुद को “जल सहेलियां” नाम दिया।

जल सहेलियों ने जल संरक्षण और नदी पुनर्जीवन का संकल्प लिया, लेकिन यह सफर आसान नहीं था। जब उन्होंने गांव के लोगों को इस मुहिम से जुड़ने के लिए कहा, तो कई लोगों ने इसे असंभव बताया। कुछ ने कहा, “जो नदी सालों से सूखी पड़ी है, उसे हम जैसे साधारण लोग कैसे जिंदा कर सकते हैं?” लेकिन जल सहेलियां हार मानने वालों में से नहीं थीं।

जल सहेलियों ने बिना किसी सरकारी या बाहरी सहायता के अपने बलबूते पर काम शुरू किया। उन्होंने बालू भरी बोरियों का इस्तेमाल करके छोटे-छोटे “चेकडैम” (अस्थायी बांध) बनाए ताकि बारिश का पानी नदी में ठहर सके। दिन-रात की मेहनत के बाद छह दिनों में उन्होंने एक ऐसा जलाशय तैयार कर दिया, जिसने सूखी पड़ी घूरारी नदी को फिर से जीवन दे दिया। गांव के बुजुर्गों ने जब नदी में पानी देखा, तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। बच्चों ने पहली बार नदी में नहाने का आनंद लिया, और किसानों को अपनी फसलें उगाने की उम्मीद दिखी। लेकिन जल सहेलियों का संघर्ष सिर्फ नदी पुनर्जीवन तक सीमित नहीं था। उन्होंने पानी बचाने के लिए पूरे क्षेत्र में एक “जल यात्रा” निकाली। वे गांव-गांव जाकर लोगों को जल संकट और जल संरक्षण के उपायों के बारे में जागरूक करने लगीं।

उन्होंने समझाया कि सिर्फ एक नदी को पुनर्जीवित करने से समस्या हल नहीं होगी, जब तक कि हर व्यक्ति पानी की बचत के लिए प्रयास न करे। उन्होंने रेनवॉटर हार्वेस्टिंग, तालाबों की सफाई, और जल संरक्षण तकनीकों पर लोगों को प्रशिक्षित किया। यह सिर्फ एक नदी पुनर्जीवित करने की कहानी नहीं थी, बल्कि यह नारी शक्ति और सामूहिक प्रयासों की ताकत का प्रमाण थी। आज जल सहेलियां केवल झांसी तक सीमित नहीं हैं। वे पूरे बुंदेलखंड और उत्तर प्रदेश के अन्य जल संकटग्रस्त क्षेत्रों में जाकर जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैला रही हैं। उनकी मुहिम अब एक आंदोलन बन चुकी है। झांसी की जल सहेलियों ने यह साबित कर दिया कि अगर संकल्प दृढ़ हो, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। यह कहानी सिर्फ झांसी की महिलाओं की नहीं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए प्रेरणा है कि यदि हम एकजुट होकर कुछ करने की ठान लें, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। उनकी मेहनत और दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है कि उनकी सफलता के किस्सों की चर्चा दुनिया भर में होने लगी है।


ट्राइबल आर्मी के एक्स पेज से साभार प्रकाशित

बुलेट चलाने पर दलित युवक का हाथ काटा

Image: Social Mediaतमिलनाडु। उत्तर भारत में जातिवाद की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों में भी जातिवाद चरम पर है। तमिलनाडु में मनुवादी जातिवादी समाज के कुछ लड़कों ने एक दलित युवक पर इसलिए हमला कर दिया क्योंकि वह महंगी बुलेट चला रहा था। घटना 12 फरवरी की तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के मेलपीडावुर की है। इस हमले में दलित युवक के हाथ पर हमला किया गया, जिससे उसका हाथ बुरी तरह कट गया। दलित युवक इय्यासामी थर्ड ईयर का छात्र है।

पिछले साल युवक के चाचा ने रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल खरीदी थी। युवक उसी से जा रहा था। दलित युवक का महंगा बुलेट चलाना जातिवादी गुंडों को रास नहीं आया और उन्होंने उस पर हमला कर दिया। हमले में युवक का हाथ काटने की कोशिश की गई। गनीमत यह रही कि युवक का हाथ अलग नहीं हुआ। गंभीर हालत में युवक को गांव से 45 किलोमीटर दूर अस्पताल में ले जाया गया।

खबर है कि जब इय्यासामी के घरवाले उसे लेकर अस्पताल जा रहे थे तो आरोपियों ने उसके घर पर भी हमला किया। दलित समाज के युवक पर हमला करने वाले युवक भी उसी के उम्र के थे। हमला करने वाले तीनों आरोपियों में 21 साल का के.आर. विनोथ कुमार, 22 साल का के. ए. अथीश्वरन औऱ 21 साल का के. एम वेल्लारसु शामिल है। पुलिस ने विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज करने के बाद तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेज दिया है।

दिल्ली में कांग्रेस से क्यों दूर रहे दलित और मुस्लिम

दिल्ली। दिल्ली चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं। आम आदमी पार्टी और उसके दिग्गज नेताओं की हार और भाजपा की बंपर जीत के बाद अब किसने किसको और क्यों वोट दिया, इसके विश्लेषण का दौर है। इस बारे में लोकनीति और सीएसडीएस ने आंकड़ा जारी कर दिया है, जिसको इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया है। रिपोर्ट में साफ है कि सवर्ण जातियों ने इस बार भाजपा को बंपर वोट किया है। तो वहीं, आम आदमी पार्टी मुस्लिम समुदाय और दलित समाज का समर्थन हासिल करने में कामयाब रही है। रिपोर्ट में हर जाति का अलग से जिक्र किया गया है। इसमें एक बड़ा सवाल कांग्रेस के लिए है कि

इसके मुताबिक 66 प्रतिशत ब्राह्मण वोटरों ने भाजपा को वोट दिया। जबकि 26 प्रतिशत ने आम आदमी को तो 5 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट किया है। बनिया वर्ग की बात करें तो बाह्मणों की तरह ही 66 प्रतिशत बनिया वर्ग ने भाजपा को वोट किया। इस समुदाय का 25 प्रतिशत वोट आम आदमी पार्टी को और 7 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिला है।

दिल्ली चुनाव में पंजाबी वर्ग भी महत्वपूर्ण भूमिका में रहता है। इनको रिझाने के लिए आम आदमी पार्टी ने पंजाब के अपने मुख्यमंत्री भगवंत मान को दिल्ली चुनाव प्रचार में उतारा। हालांकि आप को इसका फायदा नहीं मिला है। पंजाबी बनियों में सिर्फ 26 प्रतिशत ने आप को समर्थन दिया, जबकि 67 प्रतिशत ने भाजपा और 5 प्रतिशत ने कांग्रेस को चुना। इसी तरह 60 प्रतिशत ठाकुरों ने भाजपा को वोट दिया, इसके तकरीबन आधे 33 प्रतिशत ने आम आदमी पार्टी को और 4 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट किया।

जिस तरह सवर्णों ने भाजपा को जमकर वोट किया तो मुस्लिम और दलित वोटरों का साथ आम आदमी पार्टी को मिला है। 65 फीसदी मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया जबकि 16 प्रतिशत ने कांग्रेस को। हालांकि भारतीय जनता पार्टी इस वर्ग का 15 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही जो कि उसके लिए बोनस बन गया।

दलितों में जाटव और वाल्मीकि दो प्रमुख जातियां हैं। जाटव वोटरों की बात करें तो आंकड़ों के मुताबिक 58 प्रतिशत जाटवों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया, 34 प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया जबकि 4 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट दिया। दलितों की वाल्मीकि जाति में 67 प्रतिशत वोट आम आदमी पार्टी को मिले हैं, जबकि 25 प्रतिशत ने भाजपा को और 9 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट दिया। इन दोनों प्रमुख दलित जातियों के अलावा अन्य दलित जातियों में 53 प्रतिशत ने आम आदमी पार्टी को, 41 प्रतिशत ने भाजपा को और 3 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट किया।

जाट मतदाताओं में 45 प्रतिशत ने भाजपा को, 44 प्रतिशत ने आम आदमी पार्टी और 5 प्रतिशत ने कांग्रेस को, जबकि गुर्जरों में 49 प्रतिशत ने भाजपा, 44 प्रतिशत ने आम आदमी पार्टी को 5 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट दिया। यादवों समुदाय आप और भाजपा दोनों के बीच आधी-आधी बंटी दिखी। अन्य पिछड़ी जातियों ने भाजपा का साथ अधिक दिया। जबकि सिख समाज के वोट तीनों दलों में बंटे। 45 प्रतिशत ने आम आदमी पार्टी को, 43 प्रतिशत ने भाजपा को जबकि 10 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट दिया।

इन आंकड़े से साफ है कि अगर आम आदमी पार्टी की इज्जत बच पाई है तो मुस्लिम और दलित वोटों की वजह से। हालांकि यहां एक बड़ा सवाल यह भी है कि राहुल गांधी के तमाम संविधान बचाओ सम्मेलनों के बावजूद दलितों और मुसलमानों ने कांग्रेस को समर्थन क्यों नहीं दिया। जाहिर है कांग्रेस पार्टी को इन सवालों का जवाब तलाशना होगा।

दलित किशोर को इस्लाम अपनाने को किया मजबूर, चंद्रशेखर आजाद ने किया विरोध

आजमगढ़। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के रहने वाले दलित समाज के एक किशोर का बाराबंकी में जबरन धर्म परिवर्तन कराने का मामला सामने आया है। आरोप है कि पीड़ित को जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया। इसके लिए उसे न सिर्फ बंधक बनाया गया बल्कि टार्चर भी किया गया। इस घटना को लेकर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने विरोध जताया है। 

चंद्रशेखर आजाद ने इसका विरोध करते हुए इस घटना को अत्यंत गंभीर, निंदनीय और अमानवीय कहा। उन्होंने कहा कि यह संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है और इस्लाम की शिक्षा के भी बिल्कुल विपरीत है। नगीना सांसद ने बाराबंकी पुलिस से इस पूरे प्रकरण की गहन जांच कर दोषियों को शीघ्र गिरफ्तार कर कड़ी से कड़ी सजा दिये जाने की मांग की है, ताकि भविष्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।

बता दें कि पीड़ित किशोर ने अपने बयान में कहा है कि उसे लगातार टॉर्चर किया गया, बंधक बनाकर रखा गया और भोजन तक नहीं दिया गया। चंद्रशेखर आजाद का कहना था कि यह दर्शाता है कि इस कृत्य के पीछे कितनी घिनौनी मानसिकता कार्यरत है।

डॉ. अशोक सिद्धार्थ बसपा से निष्कासित, बसपा सुप्रीमों मायावती ने जारी किया फरमान

नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी में आज बड़ी हलचल मच गई। बसपा से पूर्व राज्यसभा सांसद और कई प्रदेशों के प्रभारी रहे डॉ. अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। यह फरमान बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती ने खुद जारी किया। उन पर गुटबाजी का आरोप लगाया गया है। अशोक सिद्धार्थ के साथ मेरठ के बसपा नेता नितिन सिंह पर भी गाज गिरी है। बता दें कि अशोक सिद्धार्थ बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद के ससुर हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती के इस सख्त कदम से बसपा में हलचल बढ़ गई है।

बसपा सुप्रीमों ने सोशल मीडिया में इस संबंध में जानकारी साझा करते हुए लिखा कि दक्षिणी राज्यों के प्रभारी रहे डॉ. अशोक सिद्धार्थ और नितिन सिंह को चेतावनी के बावजूद भी गुटबाजी करने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण पार्टी के हित में तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित किया जाता है।

बसपा सुप्रीमों के इस फैसले के बाद मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है। बसपा सुप्रीमों के इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कई बसपा कार्यकर्ता यह कह रहे हैं कि बहनजी ने साफ कर दिया है पार्टी का हित परिवार से ऊपर है। जबकि कईयों ने इस कदम को बसपा के लिए नुकसान वाला बताया है। हालांकि यह साफ है कि बसपा प्रमुख मायावती कोई भी कड़ा फैसला लेने से नहीं हिचकती। बसपा सुप्रीमो ने आकाश आनंद को भी नेशनल को-आर्डिनेटर और उत्तराधिकारी के पद से हटा दिया था, हालांकि बाद में उनकी वापसी भी करा दी थी। अब देखना होगा कि बसपा प्रमुख मायावती के इस कदम का आने वाले दिनों में पार्टी पर क्या प्रभाव पड़ता है।