फिर भाजपा पर भड़के प्रकाश राज, जानिए इस बार की वजह

अभिनेता प्रकाश राज

अभिनेता प्रकाश राज की छवि भारतीय जनता पार्टी के कट्टर आलोचक के रूप में बनती जा रही है. पिछले कुछ समय से प्रकाश राज लगातार भाजपा और उसके नेताओं पर हमलावर रहे हैं. इस बार उन्होंने एक वीडियो जारी कर भाजपा पर निशाना साधा है.

प्रकाश राज ने अपने ट्विटर अकाउंट पर भाजपा के नेता की पत्नी का वीडियो शेयर करते हुए कहा कि “देखिए भाजपा कैंडिडेट की पत्नी मंगलुरु में धर्म के आधार पर लोगों से उनके पति को वोट देने की अपील कर रही है.” प्रकाश राज ने ट्विटर पर वीडियो शेयर करते हुए इसे सांप्रदायिक राजनीति करार दिया है.

कुछ ही दिनों पहले कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर प्रकाश ने लोगों से अपील भी की थी कि वो भाजपा को वोट ना दें. प्रकाश राज ने कहा था कि भाजपा देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. प्रकाश राज ने बीजेपी को कैंसर की तरह बताया है. पिछले महीने इंडिया टुडे ग्रुप के ‘कर्नाटक पंचायत’ कार्यक्रम के दौरान भी प्रकाश राज ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी का हिंदुत्व हिन्दुस्तान में नहीं चलेगा.

राजस्थानः हनुमान मंदिर के पुजारी ने किया 7 साल की बच्ची से रेप

अजमेर। राजस्थान के अजमेर में हनुमान मंदिर के एक पुजारी पर 7 वर्षीय बच्ची से बलात्कार करने का आरोप है. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. आरोपी पुजारी ने कथित तौर पर मंदिर में ही बच्ची के साथ घिनौनी करतूत की. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, इस वारदात को बुधवार (25 अप्रैल) को अजमेर के कालीछट हनुमान मंदिर में अंजाम दिया गया.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अजमेर के बाहरी इलाके कल्याणीपुरा स्थित कालीछट हनुमान मंदिर के पास पीड़िता परिवार के मवेशियों को इकट्ठा करने गई थी. तभी 48 वर्षीय स्वामी शिवानंद उर्फ बलवंत बच्ची को फुसलाकर मंदिर के भीतर ले गया. वहां पुजारी ने कथित तौर पर बच्ची के साथ बलात्कार किया और बेहोशी की हालत में कमरे में छोड़ दिया. बच्ची को तलाशने आए आए उसके पिता को वह एक खाली कमरे में मिली. होश में आने के बाद बच्ची ने सारी आपबीती अपने माता-पिता से कही. इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई, जिस पर पुलिस ने पुजारी को गिरफ्तार कर लिया है.

Times Now Opinion poll में मध्यप्रदेश से BSP के लिए अच्छी खबर

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नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में इस साल होने जा रहे चुनाव में भाजपा को सीटों के मामले में झटका लग सकता है, तो वहीं बहुजन समाज पार्टी को बड़ा फायदा हो सकता है. ये दावा टाइम्स नाउ के एक ओपिनियन पोल में किया गया है. इस ओपिनियन पोल के मुताबिक बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले 12 सीटें कम मिलने का अनुमान है. तो वहीं सर्वे के मुताबिक कांग्रेस को इस बार 7 सीटों का फायदा होगा.

ओपिनियन पोल में मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से भाजपा को 153 सीटें मिलने की बात कही गई है. यानि ओपीनियन पोल के मुताबिक प्रदेश में भाजपा सरकार बना सकती है. टाइम्स नाउ ने यह सर्वे 15 मार्च से 20 अप्रैल के बीच किया है. इस दौरान राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर 42 हजार 550 मतदाताओं से उनकी राय पूछी गई.

इस ओपीनियन पोल में सबसे बड़ी खबर बहुजन समाज पार्टी के लिए है. सर्वे में बसपा की सीटें तीन गुना बढ़ने की बात कही गई है. सर्वे के मुताबिक पिछले चुनाव में 4 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार अपना आंकड़ा 12 तक ले जा सकती है. इस लिहाज से बसपा को 8 सीटों का लाभ होता दिख रहा है. हालांकि गठबंधन कर चुनाव लड़ने की स्थिति में बसपा के लिए स्थिति और बेहतर हो सकती है.

जिस तरह से पार्टी विधानसभा चुनावों में नई रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है, अगर मध्य प्रदेश में भी बसपा ने वही रणनीति अपनाई तो स्थिति दूसरी होगी. बसपा कर्नाटक और हरियाणा में गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. यूपी में भी समाजवादी पार्टी के साथ बसपा का समझौता हुआ है. ऐसे में अगर पार्टी मध्यप्रदेश में भी गठबंधन की राह चलती है तो 12 सीटों का आंकड़ा बढ़ सकता है जबकि भाजपा को नुकसान पहुंच सकता है.

बसपा के मध्यप्रदेश का प्रभार राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ के पास है. सिद्धार्थ कर्नाटक के भी प्रभारी हैं, जहां बसपा-जेडीएस गठबंधन भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही है. संभव है कि कर्नाटक के चुनावी नतीजों के बाद अशोक सिद्धार्थ की रिपोर्ट पर बसपा प्रमुख मायावती मध्य प्रदेश पर भी फैसला लें.

जातिवाद दूर करने के लिए अनोखी पहल

सामूहिक विवाह के दौरान का दृश्य. फोटोः NBT

पालनपुर। समाज में हर रोज जातिगत भेदभाव की खबरें आती रहती हैं. ऐसे में जाति तोड़ने की कोशिश करने या जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में उठाया गया एक छोटा सा कदम भी समाज के बीच साकारात्मक संदेश दे जाता है. गुजरात के बनासकाठा जिले से ऐसी ही एक खबर आई है. यहां के अमूर्त देसाई ने अपनी बेटी की शादी के दौरान एक ऐसा फैसला लिया, जिसने समाज को जोड़ने का काम किया है.

दरअसल देसाई अपनी बेटी की शादी कर रहे थे. इस दौरान उन्हें दलित समाज की गरीब बच्चियों का विवाद करने का भी ख्याल आया. देसाई चाहते थे कि बेटी के साथ ही मंडप में एक साथ दलित समाज की लड़कियों की भी शादी हो, ताकि समाज को एक संदेश दिया जा सके. देसाई ने पहले अपनी बेटी से और फिर बेटी के ससुराल वालों से इसकी स्वीकृति ली. फिर गांव वालों से भी इस संबंध में चर्चा की. सभी लोगों ने न सिर्फ इसको लेकर हामी भर दी बल्कि इस पूरे कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर सहयोग करने को भी तैयार हो गए.

इसके बाद करीब 3 हजार लोगों की मौजूदगी में पालनपुर के पाटन हाउस में 26 अप्रैल को यह सामूहिक विवाह संपन्न हुआ. विवाह का सारा खर्च अमूर्त देसाई ने उठाया. देसाई ने भेंट स्वरूप सभी को घर के उपयोग में आने वाला सामान भी दिया.

  • सूचनाएं नवभारत टाइम्स से भी

यूपी में एक बार फिर भाजपा VS सपा-बसपा

लखनऊ। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन एक बार फिर से आमने-सामने है. कैराना लोकसभा उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग द्वारा तारीख तय कर दिए जाने के बाद हलचल तेज हो गई है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना संसदीय सीट से बीजेपी के हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की थी. इसी साल 3 फरवरी को उनका निधन हो जाने के चलते यहां उपचुनाव हो रहा है. इस सीट पर 28 मई को मतदान और 31 मई को मतगणना होगी.

चुनाव के तारीख की घोषणा होते ही भाजपा और सपा-बसपा सक्रिय हो गए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इस सीट को जीतकर अपनी-अपनी सीटों पर मिली हार का हिसाब चुकता करना चाहते हैं. वहीं अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती अपनी जीत के सिलसिले को कैराना में भी हर हाल में बरकरार रखना चाहेंगी.

खबर है कि भाजपा इस सीट से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को चुनाव मैदान में उतार सकती है. मृगांका को पिता की मौत की वजह से सहानुभूति वोट मिल सकता है. हालांकि, मृगांका विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुकी हैं लेकिन वह सपा के नाहिद हसन से हार गई थीं.

कैराना लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से चार भाजपा के पास जबकि और कैराना विधानसभा सीट सपा के पास है. इस तरह देखा जाए तो यहां भाजपा के मुकाबले में कोई पार्टी नहीं है. लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. और सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं को लगता है कि जब वह गोरखपुर जैसे भाजपा के गढ़ को जीत सकते हैं तो फिर कैराना जितना भी मुश्किल नहीं होगा.

1962 में वजूद में आने के बाद से अब तक इस सीट पर 14 बार चुनाव हो चुके हैं. हालांकि यह सीट किसी एक दल का गढ़ कभी नहीं बन पाया. इस सीट पर 1996 में सपा तो 2009 में बसपा जीत दर्ज कर चुकी है. कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख मतदाता हैं जिनमें पांच लाख मुस्लिम, चार लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और डेढ़ लाख वोट जाटव दलित है और 1 लाख के करीब गैरजाटव दलित मतदाता हैं.

जहां तक 2014 लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन की बात है तो इसमें भाजपा को 5 लाख 65 हजार 909 वोट मिले थे, जबकि सपा को 3 लाख 29 हजार 81 वोट और बसपा को 1 लाख 60 हजार 414 वोट मिले थे. ऐसे में अगर सपा-बसपा के वोट जोड़ लिए जाएं तो भी बीजेपी आगे है. लेकिन 2014 और 2018 की कहानी अलग है.

तब मतदाताओं की मोदी और भाजपा के पक्ष में एकतरफा गोलबंदी थी. लेकिन चार सालों में मतदाताओं का भाजपा और मोदी को लेकर मोहभंग हुआ है तो यूपी में योगी भी कोई कमाल नहीं दिखा सके हैं. ऐसे में अगर सपा-बसपा गठबंधन ने गोरखपुर औऱ फूलपुर वाले परिणाम को दोहरा दिया तो यह यूपी में भाजपा के ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है.

कर्नाटक चुनावः राहुल गांधी ने जारी किया कांग्रेस का घोषणापत्र

congress manifesto for Karnataka

बंगलुरू। कर्नाटक चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है. पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी ने सभी भाजपा उम्मीदवारों से वीडियो कांफ्रेंसिंग कर उन्हें जीत का मंत्र दिया था. तो वहीं अब कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणापत्र (मैनिफेस्टो) जारी कर दिया है. इसके जरिए राहुल गांधी ने कांग्रेस का प्लान सामने रख दिया है.

पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने मैंगलोर में पार्टी मैनिफेस्टो जारी करते हुए कहा कि यह जनता से पूछकर बनाया गया मैनिफेस्टो है. उन्होंने कहा कि ‘यह घोषणा-पत्र बंद कमरे से नहीं बनाया गया है, बल्कि प्रदेश के लोगों से पूछकर तैयार किया गया है. हमने जनता को ये नहीं कहा कि हम क्या करेंगे, हमने उनसे पूछा कि आप क्या चाहते हैं.’

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए राहुल ने कहा, ‘पीएम मोदी अपने मन की बात करते हैं. लेकिन हमारे इस घोषणापत्र में कर्नाटक की जनता के मन की बात है.’ बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब बहुत ही कम वक्त बचा है. जिसके मद्देनजर प्रमुख पार्टियां अपने अंतिम दांव खेल रही हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 1 मई से कर्नाटक चुनाव प्रचार के लिए उतरने वाले हैं.

बलात्कार पर सजा-ए-मौत का कानून काफी नहीं है

कठुवा और उन्नामव में हुए गैंग रेप और उस पर देश भर की जनता के आक्रोश का असर यह पड़ा की केंद्र सरकार ने त्वरित कदम उठाते हुए 24 घंटे के भीतर ही रेप पर मौत की सजा के अध्यादेश को मंजूरी दे दी. सवाल यह है कि क्या कानून बन जाने से बलात्कार की घटनाओं में कमी आ जाएगी? एनसीआरबी के मुताबिक भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 34651 मामले दर्ज हुए. इनमें से सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले मध्यप्रदेश (4391) में दर्ज हुए हैं. इसके बाद महाराष्ट्र (4144), राजस्थान (3644) और फिर उत्तरप्रदेश (3025) का स्थान आता है. ओडिशा में बलात्कार के 2251 मामले दर्ज हुए हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा वर्ष 2015 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक, बेंगलुरु में यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम (पोकसो) के अंतर्गत किसी अन्य शहर की तुलना में सर्वाधिक मामले दर्ज हुए. वर्ष 2015 में 273 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2015 में अपराध वर्ष 2014 की अपेक्षा 23% बढ़ गए हैं. प्रकृति ने महिला और पुरुष में यौन संबंध जैसा एक अलौकिक रिश्ताल मुहैया कराया है, जिसके लिए प्रकृति का ऋणी होना चाहिए. लेकिन मनुष्य ने इसके उलट जानवरों को पीछे छोड़ते हुए यौन संबंध को बलात्कार के रूप में बदल दिया. यौन संबंध और बलात्काबर में कुछ मूलभूत अंतर हैं. जैसे एक में प्या2र है तो दूसरे में नफरत. एक में समर्पण है तो दूसरे में लूट. एक सम्माजन है तो दूसरे में घृणा और ज्यादती.

आइए आगे की चर्चा से पहले जानते हैं कि बलात्कार दरअसल है क्या?

अक्सर यह माना जाता है कि सेक्स से पीड़ित व्यक्ति बलात्कार करता है, जबकि सच्चाई यह है कि बलात्कार का सेक्स से कोई संबंध है ही नहीं. यह बलात्कारी व्यक्ति के बीमार मानसिकता की पहचान है. किसी महिला के साथ बलात्कार करने की कुछ खास मायने होते हैं जैसे-

1. उस महिला को जलील करना. 2. किसी जाति या समुदाय को नीचा दिखाना है तो उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करना नीचा दिखाने का सबसे        अच्छा उपाय माना जाता है. 3. भारत में बलात्कार को एक जीत की तरह देखा जाता है. एक इनाम की तरह देखा जाता है. इसलिए जब कोई बीमार     मानसिकता वाला व्यक्ति किसी महिला को या किसी लड़की को या किसी बुजुर्ग महिला को अकेला देखता है तो उसे      लगता है की उसके लिए एक इनाम है और उसे उसे पाने के लिए या अपना अधिकार जताने के लिए सबसे अच्छा          तरीका होता है उसके साथ यौन संबंध बनाना. चाहे उसकी रजामंदी हो या ना हो. 4. बलात्कार कमजोर को और कमजोर किए जाने वाली प्रक्रिया है. आप देखिए जितने भी बलात्कार हुए हैं, वह वंचित        वर्ग या अल्पसंख्यक वर्ग के साथ ही होते हैं.

बलात्कार एक सामाजिक समस्या है या धार्मिक समस्या बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि बलात्कार एक सामाजिक समस्या है, जबकि कम से कम भारत के लिए यह पूरा सच नहीं है. यदि आप बलात्कार को सामाजिक समस्या मान कर चलते हैं तो आप इसका इलाज कभी भी नहीं कर पाएंगे, चाहे आप कितने कानून बना लीजिए. चाहे आप कितने भी सोशल अवेयरनेस की मुहिम चला लीजिए, इस समस्या से आप निजात नहीं पा सकते. मैं इसे समझाने के लिए आपको छोटा सा उदाहरण देता हूं.

पिछले दिनों आपने देखा है की आसाराम के ऊपर बलात्कार का आरोप है वह भी छोटी-छोटी बच्चियों से. उसके जेल में बंद रहने के दौरान इस केस के 9 गवाहों पर जान लेवा हमला तथा 3 गवाहों को मार दिया गया. बावजूद इसके आप देख सकते हैं कि बड़ी संख्या में महिलाएं और पुरुष आसाराम के पक्ष में खड़े हुए हैं. उन्हें अपना तन मन धन देने के लिए तैयार हैं. इसी प्रकार आप राम रहीम के बारे में भी देख सकते हैं कि बलात्कार जैसा संगीन आरोप होने के बावजूद बड़ी संख्या में महिलाएं उनके पक्ष में खड़ी है. उन्हें इन बाबाओं के ऊपर लगे रेप के आरोप, आरोप की तरह नहीं बल्कि किसी उपाधि की तरह लगते हैं.

अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों होता है? दरअसल भारत का धार्मिक ताना-बाना इस प्रकार बना हुआ है भारत के बहुत सारे जो धार्मिक नायक हैं. उनके ऊपर बलात्कार का आरोप है. पौराणिक नायिकाओं में रानी वृंदा हो या अहिल्या इन बलात्कार पीड़ित महिलाओं को धार्मिक ग्रंथों ने निरीह प्राणी बना दिया और बलात्कारियों को देवता. इसीलिए तो बलात्काारियों को बचाने वाली महिलाएं कहती हैं कि भगवान ने भी तो वृंदा के साथ बलात्कार किया था तो वह तो हमारे देवता हैं, फिर बाबा हमारे अपराधिक कैसे हुए?

कोर्ट से बलात्कारी साबित होने के बावजूद भारत में किसी भी व्यक्ति को सामाजिक रुप से अपराधी होने का बोध नहीं हो पाता है क्योंकि समाज में उसे एक विजेता के रूप में समझा जाता है. वहीं दूसरी ओर उस महिला को या उसके समुदाय को नीचे या बेइज्जत समझा जाता है. चाहे कानून कितना भी बन जाए लेकिन इस मानसिकता को बदले बिना समाज में सुधार की संभावना नहीं है.

इस विधेयक के पास होने के पहले भी IPC की धारा 376 में बलात्कार पर 7 साल की सजा का प्रावधान है. इस प्रावधान के बावजूद बलात्कार के प्रकरणों में कोई कमी नहीं आई है. मौत की सजा इस नए कानून में तय की गई है इससे भी लोगों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि हमने अब तक इस समस्या के जड़ को नहीं पकड़ा है. इन घटनाओं के पीछे दूसरा एक सबसे बड़ा कारण भारत में बढ़ती सांप्रदायिक नफरत है.

कुछ राजनीतिक साजिशों के कारण अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए चंद लोग युवाओं में सांप्रदायिक नफरत का बीज बो रहे हैं. उसका असर यह हो रहा है कि ऐसे जातिगत एवं सांप्रदायिक हत्याएं और बलात्कारों को बढ़ावा मिल रहा है. चाहे राजस्थान में एक दलित युवक शंभू रैगर के द्वारा दूसरे दलित मुसलमान की हत्या का मामला हो और उसके बाद एक खास विचारधारा और जातियों के द्वारा इस हत्या को बढ़ावा देने का मामला हो. ठीक उसी प्रकार कठुआ में आसिफा के साथ बलात्कार और बलात्कारियों को बचाने के लिए जय श्रीराम तथा भारत माता की जय लगाने वाले खास तबके का मामला हो. इन दोनों मामले को यदि आप गौर से देखें तो यह मामला सामाजिक कम धार्मिक समस्या से ज्यालदा ग्रसित दिखाई पड़ता है.

यानि जिस महिला का नायक कोई बलात्कारी होगा वह भला कैसे अपने बलात्कारी भाई का बहिष्कार कर पाएगी? बलात्कारी धार्मिक गुरु का तिरस्कार कर पाएगी? जब धर्म की किताबों में बलात्कारियों को महान बताया जायेगा तो उस धर्म के मानने वाले आखिर कैसे एक बलात्कारी को अपराधी मान सकते हैं? या उनका अनुकरण करने से बच सकते हैं. यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है इसका जवाब हमें ढूंढना होगा तभी इसका इलाज संभव हो सकेगा.

भारत में बलात्कार की घटनाएं सिर्फ सेक्स के लिए नहीं होती है इन घटनाओं के पीछे मैंने चार मकसद आपको गिनाए हैं. आंकड़े बताते हैं कि दामिनी से लेकर आसिफा तक ज्यादातर बलात्कार पिछड़े वर्ग, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों की महिलाओं के साथ हो रहे हैं. इसका इलाज तभी संभव है जब हम गलत को गलत और सही को सही कह सके चाहे वह धार्मिक नायक हो या धर्म गुरू. धर्म उसे नायक और कानून उसे अपराधी माने इस पहेली को सुलझाना होगा.

  • संजीव खुदशाह sanjeevkhudshah@gmail.com

RSS पर फिल्म का रास्ता साफ, भागवत की हरी झंडी

नई दिल्ली। हिन्दुवादी संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पर फिल्म बनने का रास्ता साफ हो गया है. फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने फिल्म को हरी झंडी दे दी है. फिल्म में आरएसएस का पूरा इतिहास दिखाया जाएगा. फिल्म को मुंबई के प्रोड्यूसर राज सिंह के साथ मिलकर भाजपा कार्यकर्ता तुलसीराम नायडू को-प्रोड्यूस करेंगे, जिन्हें कन्नड़ सिनेमा की दुनिया में लहरी वेलु के नाम से जाना जाता है. फिल्म हिंदी, तेलगु समेत चार अन्य भाषाओं में रिलिज होगी.

इस फिल्म की स्क्रिप्ट फिल्म ‘बाहुबली’ के दोनों पार्ट्स की स्क्रिप्ट लिख चुके के.वी.वी. विजयेंद्र प्रसाद द्वारा लिखी गई है. बताया जा रहा है कि इस फिल्म को अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले रिलीज किया जा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, लहरी वेलु ने बताया कि उन्होंने इस फिल्म की सहमती के लिए दो साल पहले संघ प्रमुख से संपर्क किया था जिन्हें यह आइडिया काफी पसंद आया. यह फिल्म 180 करोड़ रुपए के बजट में बनाई जाएगी. इस फिल्म की कास्ट के लिए बॉलीवुड से लेकर साउथ की फिल्मों के कलाकारों से संपर्क किया जा रहा है.

जज की नियुक्ति के खिलाफ आएं सुप्रीम कोर्ट के 100 वकील

नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद जस्टिस के एम जोसेफ का नाम लौटा देने और इंदु मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए जाने के बाद मामला बिगड़ गया है. इसका विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन से जुड़े करीब 100 वकीलों इसके खिलाफ उतर गए हैं. इन सभी वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर तुरंत इस मामले पर सुनवाई करने और इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति पर रोक लगाने की मांग की है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है.

पूर्व सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जय सिंह ने इस मामले की पैरवी सुप्रीम कोर्ट में की. मामले में पैरवी करते हुए इंदिरा जय सिंह ने कहा कि उनका मकसद इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को रोकना या टालना नहीं है बल्कि जस्टिस जोसेफ के मामले में केंद्र सरकार के कदम से न्यायपालिका को बांटने की कोशिश से रोकना है. हालांकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अदालत ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इससे पहले कानून मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखी चिट्ठी में कहा गया है कि जस्टिस जोसेफ को प्रोन्नति देने का यह सही समय नहीं है.

उल्लेखनीय है कि इस साल की शुरुआत में 10 जनवरी को पांच जजों की कॉलेजियम ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के. एम. जोसेफ और सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट इंदु मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने के लिए सिफारिश की थी. इसके बाद कानून मंत्रालय ने प्रक्रिया शुरू की और सिर्फ इंदु मल्होत्रा की फाइल की आईबी जांच पूरी करवाई. केंद्र ने कॉलेजियम को जस्टिस जोसेफ के नाम पर दोबारा विचार करने का अनुरोध करते हुए फाइल फिर से सुप्रीम कोर्ट भेज दी.

बीमार पिता से मिले तेजस्वी, बताया कैसे हैं लालू

Tejashwi Yadavनई दिल्ली। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव के छोटे बेटे और बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव गुरुवार (26 अप्रैल) को अपने पिता से मिलने पहुंचे. नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती पिता से तेजस्वी की मुलाकात एक महीने बाद हुई है. इससे पहले दोनों पिता-पुत्र के बीच पिछले महीने 18 मार्च को रांची के रिम्स अस्पताल में मुलाकात हुई थी.

पिता से मिलने के बाद तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर लालू यादव की तबीयत को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने लिखा है, “लंबे समय बाद पिताजी से चंद मिनटों के लिए एम्स में मुलाकात हुई. उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हूं. बहुत ज्यादा सुधार नहीं दिख रहा है. इस उम्र में उन्हें लगातार देखभाल और उनके संवेदनशील एनं महत्वपूर्ण शारीरिक अंगों की निगरानी जरूरी है.” हालांकि उन्होंने देश के बड़े अस्पताल में इलाज को लेकर संतुष्टि जाहिर की.

गौरतलब है कि लालू यादव चारा घोटाले के तीन मामलों में सजा सुनाए जाने के बाद से रांची की बिरसा मुंडा जेल में सजा काट रहे थे. इस बीच तबीयत खराब होने पर पहले उन्हें रांची के रिम्स और फिर बाद में एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें किडनी में इन्फेक्शन है. इसके अलावा वो हार्ट, शूगर और ब्लड प्रेशर के भी मरीज हैं. पिछले महीने 28 मार्च को लालू यादव को ट्रेन से रांची से दिल्ली लाया गया था और एम्स में भर्ती कराया गया था.

दलित के इस्लाम अपनाने पर बजरंग दल वालों ने की मारपीट

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फाइल फोटो

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के शामली जिले से एक दलित व्यक्ति द्वारा धर्मांतरण करने के बाद उससे मारपीट की खबर है. युवक का नाम प्रमोद कुमार है और वो वेल्डिंग का काम करता है. कुछ दिनों पहले प्रमोद ने इस्लाम कबूल कर लिया था. यह खबर मिलते ही बजरंग दल के लोग उसके पीछे पर गए थे. इस बीच पवन के साथ मारपीट की भी खबर है.

इसको लेकर एक वीडियो सामने आया था जिसमें बजरंग दल के लोग पवन के साथ मारपीट कर रहे थे. एक शख्स ने पवन के सर पर हाथ मारकर उसकी टोपी गिरा दी थी. उसके बाद ही पवन ने दुबारा हिन्दू धर्म अपनाने की खबर आई. बजरंग दल के पदाधिकारी का कहना है कि उन्होंने पवन को समझाया-बुझाया, जिसके बाद वह दोबारा हिन्दू बनने के लिए तैयार हो गया. जबकि कुछ लोगों का कहना है कि पवन को धमका कर हिन्दू धर्म में वापसी करवाई गई है.

इस बारे में पुलिस का कहना है कि पवन ने मारपीट को लेकर शिकायत दर्ज कराने से इनकार कर दिया है. हालांकि पुलिस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है. दरअसल पवन के तीन हफ्ते पहले इस्लाम अपनाने की खबर मिली. इसके बाद वह टोपी पहनने लगा और उसने दाढ़ी भी बढ़ा ली. जबकि पवन ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि उसने तो मुस्लिम कैप पहनना और दाढ़ी बढ़ाना इसलिए शुरू किया, क्योंकि उसे ऐसा करना अच्छा लगता था. पुलिस का कहना है कि अगर पवन को शिकायत दर्ज कराने को लेकर डर है तो पुलिस टीम उससे दोबारा बात करेगी.

दलित के घर भाजपा का रसोईया

सीएम योगी के लिए रोटी बनाती स्वाति सिंह, चूल्हा भी ईंटों से जोड़कर अलग बनाया गया है

90 के दशक में दलितों का वोट हासिल करना सबसे आसान था. गांव के दबंग के लोग दलितों के मुहल्ले में जाकर पोलिंग बूथ तक उनके पहुंचने का रास्ता बंद कर देते थे. इस तरह कोई दलित वोट देने नहीं जा पाता था और उनके नाम के वोट कोई और डाल देता था. वक्त बदला और दलितों को वोट देने से रोक पाना मुश्किल होता गया. तब नेता दलितों के मुहल्लों में जाने लगें, उनसे हाथ जोड़कर वोट मांगने लगें.

दलित थोड़े और संबल हो गए तो अब वही नेता दलितों का वोट हासिल करने के लिए उनके घर अपनी चारपाई लगाने और खाने लगे हैं. वो दलितों के घर जाकर खा रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री इन दिनों ग्राम स्वराज अभियान चला रहे हैं. इसके तहत वो उत्तर प्रदेश के जिलों में घूम रहे हैं और दलितों के घर खाना खा रहे हैं. ऐसा कर वह उन्हें ‘उपकृत’ कर रहे हैं या फिर ‘हैसियत’ दिखा रहे हैं, यह बहस का मुद्दा है.

लेकिन गांव में रात्रि विश्राम और दलितों के घर भोज की कलई खुल गई है. जो बात सामने आई है, उसके मुताबिक घर तो दलित का है, लेकिन खाने का बर्तन और खाना कहीं और से आ रहा है. या फिर दलितों के चूल्हे में घुसकर भाजपा की महिला नेता खुद रोटियां सेक रही हैं. सीएम योगी ने 23 अप्रैल को प्रतापगढ़ के मधुपुर गांव में दयाराम सरोज के घर खाना खाया. इसको खूब प्रचारित किया गया. लेकिन इसी खाने के दौरान योगी की मंत्री स्वाति सिंह द्वारा रोटी सेकने की घटना ने मोदी सरकार और भाजपा के समरसता की कलई खोलकर रख दी है. ठाकुर बिरादरी की स्वाति सिंह ने दयाराम सरोज के रसोई में बैठकर योगी आदित्यनाथ के लिए रोटी बनाई थी. स्वाति जिस चूल्हे पर रोटी बना रही हैं, उसपर भी ध्यान देना जरूरी है. वह घर का चूल्हा नहीं बल्कि अलग से ईंटों को जोड़कर बनाया गया चूल्हा है.

भाजपा नेताओं का दलितों के घर खाने की इससे पहले भी आई कई तस्वीरें सवाल उठाती रही है. इन तस्वीरों में अक्सर बोतलबंद पानी दिख जाता है, तो वहीं दस लोगों के लिए एक से बर्तन उपलब्ध होते हैं. एक सामान्य दलित परिवार में ऐसा नहीं होता है. जो तस्वीरे मीडिया के सामने परोसी जाती है या फिर जो तस्वीरे मीडिया लोगों के सामने परोसता है, उसमें कद्दावर नेताओं के बीच बैठे हुए दलित परिवार के मुखिया का डर उसके चेहरे पर दिखता है.

देश के तकरीबन 85 फीसदी दलितों की आय 5000 रुपये महीने से भी कम है, ऐसे में एक सामान्य दलित परिवार में नेताओं के भोज का खर्चा उठाने की कुव्वत कम ही है. राजनीति के इस दौर में दलित आज भी मोहरा बने हुए हैं, जिसे सब अपने हिसाब से नचाने की कोशिश में जुटे हैं. असल में भाजपा जो भोज कर रही है, उसमें घर सिर्फ दलित का है, खाना तो खुद उन्हीं का है. अब इसमें रसोईये का भी जुड़ जाना दलितों के प्रति भाजपाईयों के घृणा को साफ कर देता है.

जानिए, आसाराम के दरबार में कौन-कौन भाजपा नेता देते थे जाहिरी

नई दिल्ली। आसाराम को अदालत ने बलात्कार के आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी है. अदालत में सुनवाई के दौरान आसाराम की ओर से 14 वकीलों की फौज थी तो पीड़िता की ओर से मजह दो वकील. बावजूद इसके वकीलों की फौज आसाराम को बचा न सकी और देश का कानून सच्चाई और कमजोर के पक्ष में खड़ा होकर जीत गया.

आज आसाराम भले ही असहाय जेल में बंद हो, एक वक्त ऐसा था जब देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक बलात्कारी बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते थे. इसमें सबसे ज्यादा भाजपा के नेता थे. आइए जानते हैं, आसाराम की अदालत में कौन-कौन नेता हाजिरी लगाने पहुंचा था.

आसाराम के आश्रम पहुंचने वाले नेताओं में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम शामिल है. मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो अक्सर आसाराम के कार्यक्रमों में हाजिरी लगाते थे. बलात्कारी बाबा का सानिध्य हासिल करने के लिए भाजपा के शिखर पुरुष एवं देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी जाते थे. वह आसाराम के कई कार्यक्रमों में शामिल हुए हैं.

आडवाणी और आसाराम एक साथ

वाजपेयी के अलावा पूर्व डिप्टीज पीएम लालकृष्णल आडवाणी को भी बलात्काररी बाबा के प्रवचनों में देखा जाता रहा था. तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी आसाराम के कई कार्यक्रमों में भाग लेते थे. हाल ही में मध्य प्रदेश में बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आसाराम के कार्यक्रम में आशीर्वाद लेने जा चुके हैं. तो मध्ययप्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीेसगढ़ की राजधानी रायपुर में जब आसाराम एक कार्यक्रम में पहुंचे थे तो इस दौरान राज्यद के सीएम रमन सिंह उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे थे.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

राजस्थांन की सीएम वसुंधरा राजे भी आशीर्वाद लेने में पीछे नहीं थीं. वसुंधरा के अलावा बीजेपी के दिग्ग ज नेता मुरली मनोहर जोशी भी आसाराम के प्रवचनों में जाते रहते थे. आसाराम पर आरोप लगने के बाद उनके बीजेपी नेताओं के करीबी होने पर विवाद शुरू हुआ था, उस समय भी अटल बिहारी वाजपेयी और आसाराम के संबंधों पर सवाल उठे थे. लेकिन तब पार्टी ने चुप्पी साध ली थी.

… तब आसाराम ने कहा था मोदी भस्म हो जाएगा

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 नई दिल्ली। आध्यात्मिक गुरु आसाराम को नाबालिग से रेप मामले में जोधपुर की अदालत ने दोषी करार दे दिया है. चाय बेचने वाले से लेकर आध्यात्मिक गुरु बनने तक आसाराम का जीवन काफी दिलचस्प रह है. असल में आसाराम का असली नाम असुमल थाउमल हरपलानी है. उसका परिवार मूलतः सिंध, पाकिस्तान के जाम नवाज अली तहसील का रहनेवाला था, लेकिन भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उसका परिवार अहमदाबाद में आकर बस गया था.

आसाराम के परिवार के बारे में जो सूचना है, उसके मुताबिक आसाराम के पिता लकड़ी और कोयले के कारोबारी थे. आसाराम को पढ़ने में मन नहीं लगता था. किसी तरह उसने तीसरी क्लास तक ही पढ़ाई की. पिता के निधन के बाद उसने कभी टांगा चलाया तो कभी चाय बेचने का काम तक किया. 15 साल की उम्र में आसाराम ने घर छोड़ दिया और गुजरात के भरुच स्थित एक आश्रम में आ गया. यहां आध्यात्मिक गुरु लीलाशाह की सेवा करने लगा. यहीं रहते हुए उसने साधना भी की. बाद में इन्हीं से दीक्षा ली. दीक्षा के बाद लीलाशाह ने ही असुमल थाउमल हरपलानी का नाम आसाराम बापू रखा था.

1973 में आसाराम ने अपने पहले आश्रम और ट्रस्ट की स्थापना अहमदाबाद के मोटेरा गांव में की. इसके बाद वक्त बीतने के साथ आसाराम का साम्राज्य बढ़ता चला गया. 1973 से 2001 तक उसने कई गुरुकुल, महिला केंद्र बनाए. इसी दौरान आसाराम के आश्रम में भक्तों की बढ़ती हुई भीड़ के कारण राजनीति में भी उसकी साख बढ़ती गई. नेताओं को लोगों के वोट चाहिए थे और आसाराम के पास लोग थे, जो उसकी सारी बातें मानते थे.

1997 से 2008 के बीच उस पर रेप, जमीन हड़पने, हत्या जैसे कई आरोप लगते गए. 2008 में जब एक बच्चे की मौत आसाराम के स्कूल में हुई तो उस पर तांत्रिक क्रियाओं को लेकर हत्या करने के आरोप लगे. इसके बाद तत्कालीन मोदी सरकार ने आसाराम के ऊपर जांच बैठाई. तब आसाराम ने कहा था कि मोदी भस्म हो जाएगा. अगस्त 2013 में एक नाबालिग ने आसाराम पर रेप का आरोप लगाया. घटना जोधपुर के आश्रम की बताई गई. इस केस की एफआईआर दिल्ली में दर्ज कराई गई. जोधपुर पुलिस ने 1 सितंबर को 2013 को आसाराम को अरेस्ट कर ही लिया. आसाराम के खिलाफ धारा 342, 376, 506 और 509 के तहत केस दर्ज हैं. इसके अलावा पॉक्सो एक्ट भी लगा. इसी मामले में अदालत ने आसाराम को उम्र कैद की सजा सुनाई है.

मायावती का योगी और भाजपा से बड़ा सवाल

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नई दिल्ली। बीएसपी सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बीजेपी के ‘दलित प्रेम’ पर निशाना साधा है. उन्होंने दलितों के घर भोज को लेकर भाजपा नेताओं और सीएम योगी पर सवाल उठाया है. बसपा प्रमुख ने कहा है कि खाना भी अपना, बर्तन भी अपने, दलितों के साथ फिर कैसा भोज?

उन्होंने सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रतापगढ़ में दलितों के घर भोजन करने के संदर्भ में यह बयान दिया है. मायावती ने कहा कि बीजेपी फोटो खिंचवाने और ड्रामेबाजी के लिए यह कर रही है. उन्होंने कहा कि साबित हो चुका है कि कांग्रेस-बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और जनता अब सच जान चुकी है, उसे गुमराह नहीं किया जा सकता. मायावती ने कहा कि बीजेपी को दलितों की कोई फिक्र नहीं है लेकिन चुनाव आने पर बीजेपी जरूर दलितों को याद कर लेती है.

उन्होंने कहा कि जब उनके मंत्री दलितों के घर जाते हैं तो अपना भोजन और बर्तन साथ लेकर जाते हैं. यहां तक कि वो दलितों की परछाई भी अपने ऊपर नहीं पड़ने देना चाहते. बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि बीजेपी को दलितों की जरा भी चिंता नहीं है. पहले कांग्रेस इसी तरह के काम करती थी अब बीजेपी उसी को दोहरा रही है.

बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने अपने नए कार्यक्रम रात्रि चौपाल के तहत लोगों से मिल रहे हैं. सोमवार को प्रतापगढ़ के मधुपुर गांव पहुंचे. यहां सीएम ने चौपाल लगाई और जनता के साथ सीधे संवाद किया. इसके अलावा योगी ने दलितों के घर पर भोजन भी किया. योगी के साथ सूबे के कई मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता मौजूद थे.

दलितों को गुमराह करती राजनीति

2019 में लोकसभा चुनाव होना अपेक्षित है. समय पर चुनाव होंगे कि नहीं, यह एक बड़ा प्रश्न है. कारण ये है कि भाजपा के पिछले चार वर्ष में सामान्यत: कुछ विकास दिखा ही नहीं है सिवाय इसके कि कभी गाय के नाम पर, कभी लव जिहाद के नाम पर, कभी देशभक्ति के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार का सर्वांगीण विकास हुआ है. देश और समाज के हित में कुछ किया गया हो, इसका भान तक नहीं होता दिख रहा. अब मोदी जी और उनकी टीम को, कोई माने न माने, पिछले चार सालों में चहुमुखी बट्टा लगा है. मोदी जी के देश और देश के बाहर दिए गए सभी भाषण बेशक चुनावी भाषण कहे जा सकते हैं. दलितों और अल्पसंख्यकों का निर्बाध उत्पीड़न, बच्चियों के साथ अनवरत बलात्कारों की तो जैसे बाढ़ आ ही गई है.

नवभारत टाइम्स (हिन्दी दैनिक 20.04.2018) में छपी रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी नेताओं के खिलाफ महिलाओं से अपराध के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हैं. क्रिमिनल बैकग्राउंड वालों को टिकिट देने में भी बीजेपी अव्वल है. बीजेपी के 12 सासंदों और 45 विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं, शिवसेना के 7 और टीएमसी के 6 विधायकों पर महिला अपराध से जुड़े मामले दर्ज हैं. जिन 1580 एमपी-एमएलए के केस की जांच की गई, उनमें 48 ने अपने ऊपर महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित केस होने की बात कबूली. इनमें 45 एमएलए और 3 एमपी हैं. 327 ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव में सभी प्रमुख दलों ने टिकट दिया. पिछले 5 वर्षों में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 47 ऐसे केस के आरोपियों को टिकट दिया है. महाराष्ट्र से सबसे ज्यादा ऐसे अपराध के आरोपी नेता हैं. इनकी संख्या 12 है. इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर है. आंध्र प्रदेश, गुजरात और बिहार के एक-एक एमएलए ने अपने खिलाफ रेप के आरोप की बात मानी है. अन्य राजनीतिक दल कमोबेश ऐसी ही हालत है.

ऐसे समय में, जब महिलाओं से जुड़े अपराध का मुद्दा पूरे देश में छाया हुआ है और इसके लिए कड़ा कानून बनाने की मांग उठने पर सरकार ने हाल ही में एक अध्यादेश लाकर कानून बनाया है कि 12 वर्ष तक बालिकाओं से साथ बलात्कार के आरोपियों को फांसी की सजा हो सकती है. इस बदलाव से किसी अपराधी को मौत की सजा मिले न मिले किंतु 12 वर्ष से ऊपर की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों के इजाफा होने का संदेह जरूर है.

महिला उत्पीड़न के मामलों में शील भंग करने के इरादे से किसी महिला पर हमला, अपहरण या बलात शादी, रेप, घरेलू हिंसा एवं मानव तस्करी के लिए मजबूर करने से संबंधित मामले भी शामिल हैं. चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली संस्था एडीआर (एसोसिएशन ऑफ डेमाक्रैटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद और विधायकों के खिलाफ इससे जुड़े केस लंबित हैं. वहीं, शिवसेना और टीएमसी दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं. एडीआर और नैशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) ने सिफारिश की है कि गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक हो. मालूम हो कि वर्तमान में यूपी के बीजेपी एमएलए कुलदीप सिंह सेंगर पर एक नाबालिग लड़की से रेप करने के आरोप में बड़ा सियासी विवाद हो रहा है. सुना है कि सेंगर ने बीजेपी को धमकी दी है कि यदि बीजेपी ने उनकी मदद नहीं की तो वो बीजेपी द्वारा ईवीएम के जरिये की गई हेराफेरी का खुलासा कर देंगे.

अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को उत्पीड़न और भेदभाव से बचाने वाले एस सी-एस टी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों में खुद को दलित हितैषी बताने की जो होड़ मची है. उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि सभी राजनीतिक दलों को दलित हितों की चिंता कम, बल्कि आगामी लोकसभा चुनावों के लिए वोट जुटाने की चिंता ज्यादा की जा रही है. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ऐसा करते हुए छलकपट का सहारा लेने से भी नहीं बचा जा रहा है. विडंबना यह भी है कि यह काम राजनीतिक दलों के बड़े नेता भी करने में लगे हुए हैं. सियासतदां महज गलतबयानी ही नहीं, बल्कि देश की जनता को खासकर दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को गुमराह करने वाला काम निरंतर कर रहे हैं. सच तो ये है कि राजनेता स्थितियों को सही तरह समझने के बजाय भ्रम का माहौल बनाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं.

यदि दलित आज भी शोषित-वंचित हैं तो उसके लिए राजनीतिक दल ही सबसे अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह है. आज बीजेपी दलित हितैषी होने का सबसे ज्यादा दावा कर रही है जबकि मोदी जी की सरकार ने पिछले चार सालों में न जाने कितने दलित विरोधी कार्य किए गए हैं. नौकरियों में दलितों के प्रमोशन पर कैंची चलाने का काम किया गया, भीम सेना के प्रमुख रावण को हाई कोर्ट से जमानत मिल जाने पर भी उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के द्वारा रासुका के तहत फिर जेल में डाल दिया गया, दो अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एस सी/एस टी एक्ट को निष्क्रिय करने के खिलाफ शांतिपूर्ण आन्दोलन करने वाले दलित युवाओं को जेलों में ठूंस दिया गया (जबकि उपद्रव करने वाले गैरदलित असामाजिक तत्वों की खोज तक न की गई), संविधान को बदलने की कवायद करना आदि आदि सब बीजेपी सरकार के पिछले चार साल का दलितों के हक में किया गया विकास कार्य है.

इतना ही नहीं 5 मार्च 2018 को यूजीसी ने आरक्षण के संदर्भ में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को जो सर्कुलर जारी किया है उसके अनुसार अब कॉलेजों को रोस्टर डिपार्टमेंट वाइज बनाना होगा, पहले कॉलेज को एक यूनिट मानकर सिनियरटी के आधार पर 2-7-1997 से 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर बनाया जाता था लेकिन अब सब्जेक्ट्स व डिपार्टमेंट वाइज, इससे यदि किसी छोटे डिपार्टमेंट 2 या 4 पोस्ट होंगी तो एससी, एसटी नहीं आ पाएगा क्योंकि विभाग की स्वीकृत पदों की संख्या 4 ही है इसमें 1 ओबीसी और 3 सामान्य वर्ग को सीटें मिल जाएंगी एससी/एसटी को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा. इसलिए 5 मार्च के सर्कुलर खिलाफ निरंतर विरोध जारी है किंतु सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है.

इतने पर भी बीजेपी अपने आप को दलितों की पक्षधर सिद्ध करने में लगी है. इस बारे में मोदी जी अपने लम्बे-लम्बे भाषणों में दलितों के हितों में किए गए कार्यों का ऐसे बखान करते हैं, जैसे उनका कोई सानी नहीं है. यह बात अलग है कि उनके भाषणों में मिथ्या बयानी ज्यादा होती है. भाजपा और कांगेस के शीर्ष नेताओं में दलित बस्तियों में जाकर दलितों के घर खाना खाने का जोरों से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है… यह सब दिखावा किसलिए? केवल वोट हथियाने के लिए. सुना तो ये भी गया है कि ऐसे नेता दलितों के घर में बैठकर खाना तो खाते है किंतु खाना बाहर से मंगाया जाता है. यह काम कांग्रेस भी कर रही है. ऐसे में गैर दलित राजनीतिक दलों के मुंह पर ताला लगा रहा है. किसी ने भी दलितों के हकों की साधना के लिए कोई आवाज नहीं उठाई… उठाते भी कैसे गुलामी की आदत जो पड़ गई है… अब केवल एक मार्ग शेष है कि आम जनता कुछ ऐसा करें कि कोई उसके हितों की अनदेखी न कर सके.

  • लेखकः तेजपाल सिंह ‘तेज’

सामंतवाद की नई परिभाषा है दलित के घर भोज

योगी द्वारा दलित के घर खाना खाना महज़ नौटंकी है. कल योगी जी ने प्रतापगढ़ में दयाराम सरोज दलित के घर जो खाना खाया है वह उनके दलित प्रेम का नहीं बल्कि दलितों को प्रति झूठा प्रेम दिखा कर उनका वोट बटोरने का प्रयास मात्र है. योगी जी को यह नाटक करने की ज़रुरत इस लिए पड़ रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश के दलित भाजपा की दलित विरोधी नीतियों तथा निरंतर बढ़ रहे उत्पीड़न के कारण भाजपा से दूर जा रहे हैं, जबकि पिछले चुनाव में दलितों के एक बड़े हिस्से ने भाजपा को बड़ी उम्मीद के साथ वोट दिया था. परन्तु भाजपा के एक वर्ष के शासनकाल में दलितों की कोई भी उम्मीद पूरी नहीं हुयी है बल्कि इसके विपरीत उनका उत्पीड़न बढ़ा है.

इसका सबसे बड़ी उदाहरण पिछले साल सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में 5 मई, 2017 को कुछ सवर्णों (राजपूतों) द्वारा दलितों पर किया गया हमला है जिसमें दलितों के लगभग 60 घर जलाये गये थे तथा 21 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. यह भी बताया गया है कि जिस दिन लखनऊ में योगी द्वारा शपथ ग्रहण किया गया था उसी दिन शब्बीरपुर में राजपूतों द्वारा जुलूस निकाल कर “यूपी में रहना है तो योगी योगी कहना होगा” जैसे नारे लगाये गये थे जिसका मूल मकसद दलितों को यह जताना था कि अब यूपी में हमारी सरकार आ गयी है और आपको सवर्णों से डर कर रहना होगा. इसके बाद 5 मई को शब्बीरपुर में महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर बिना किसी अनुमति के नंगी तलवारें तथा भाले लेकर दलित बस्ती के सामने डीजे बजा कर जुलुस निकाला गया जिसमें अन्य नारों के साथ साथ डॉ. आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे भी लगाये गये.

इस पर जब दलितों ने एतराज़ किया तो उन पर बड़ी संख्या में हमला किया गया, उनके घर जलाए गये तथा भारी संख्या में दलितों को चोटें पहुंचाई गयीं. यह उल्लेखनीय है कि दलितों पर यह हमला पुलिस की मौजूदगी में हुआ परन्तु उसने कोई कार्यवाही नहीं की थी. दलितों ने इस प्रकार के हमले की सम्भावना के बारे में पुलिस एवं प्रशासन को पहले ही अवगत कराया था परन्तु रोकथाम की कोई कार्यवाही नहीं की गयी. इससे पहले कुछ सवर्णों द्वारा प्रशासन से मिल कर दलितों को रविदास मंदिर के प्रांगण में आंबेडकर की मूर्ती लगाने नहीं दी गयी थी.

शब्बीरपुर में दलितों द्वारा 5 मई को सवर्णों के हमले के दौरान जो भी पथराव किया गया वह केवल आत्मरक्षा की कार्रवाही थी जिसका उन्हें कानूनी अधिकार प्राप्त था. परन्तु इसके बावजूद पुलिस द्वारा दलितों को ही हमले का दोषी मान कर 7 दलितों की गिरफ्तारी की गयी तथा उनमें से दो पर रासुका भी लगा दिया गया. सवर्णों की तरफ से भी केवल 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा दो पर रासुका लगाया गया. इस प्रकार पुलिस ने हमला करने वाले सामंती सवर्ण तथा हमले का शिकार हुए दलितों पर एक जैसी कार्रवाही करके दोहरा अन्याय किया.

यह उल्लेखनीय है कि शब्बीरपुर के सभी दलित अभी तक जेल में हैं. इसी प्रकार जब पुलिस ने हमले के शिकार हुए दलितों के सम्बन्ध में उचित कार्यवाही नहीं की तो भीम आर्मी के लोगों ने 9 मई को विरोध प्रदर्शन करना चाहा तो पुलिस ने बल प्रयोग करके अराजकता पैदा की जिसके फलस्वरूप शहर में कुछ पथराव तथा पुलिस से टकराव हुआ. पुलिस ने इस सम्बन्ध में भीम आर्मी के लोगों पर उसके संस्थापक चंद्रशेखर सहित 19 मुक़दमे दर्ज कर लिए. उसके बाद भीम आर्मी के सदस्यों का दमन तथा गिरफ्तारियां शुरू हुयीं. चंद्रशेखर सहित भीम आर्मी के 40 लोग गिरफ्तार किये गये जिनमें से कुछ लोग कई कई महीने जेल में रह कर रिहा हुए हैं. चंद्रशेखर को हाई कोर्ट से जमानत मिल जाने के बावजूद भी उस पर रासुका लगा दिया गया तथा वह लगभग एक साल से जेल में है जिसकी रिहाई के लिए बराबर धरना व प्रदर्शन चल रहे हैं. इस घटना से ही स्पष्ट है कि योगी सरकार दलितों की कितनी हितैषी है.

इसी प्रकार जब 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट को लेकर दलितों द्वारा देशव्यापी भारत बंद किया गया तो पुलिस द्वारा मेरठ में जानबूझ कर शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करके अव्यवस्था पैदा की गयी जिसमें पुलिस द्वारा फायरिंग से एक नौजवान मारा गया. पुलिस ने 9,000 प्रदर्शनकारियों पर केस दर्ज किये तथा अब तक 500 से अधिक गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं एक विधायक को खुले आम बेइज्ज़त करके गिरफ्तार किया गया. दलित नवयुवकों को गिरफ्तार करके कंकड़खेड़ा थाने में बेरहमी से पीटा गया. दूसरी जगह पर भी दलित नवयुवकों को बुरी तरह से पीटा गया तथा उनके हाथों में कट्टे दिखा कर गिरफ्तार किया गया. मेरठ में अभी भी अधिकतर नौजवान घरों से भागे हुए हैं. इसी प्रकार जब मुज़फ्फर नगर में कुछ असमाजिक तथा अपराधी तत्वों ने दलितों के जुलूस में घुस कर तोड़फोड़ की तो पुलिस ने उन तत्वों को न पकड़ कर दलितों पर ही गोली चलाई जिससे एक लड़का मारा गया. इस पर पुलिस ने 7,000 दलितों पर केस दर्ज किये हैं. अब तक 250 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं तथा आगे भी जारी हैं.

इसी प्रकार जब 2 अप्रैल को सहारनपुर में भीम आर्मी के सदस्यों ने जुलूस निकाल कर चंद्रशेखर की रिहाई के लिए प्रत्यावेदन दिया तो 900 लड़कों पर केस दर्ज कर लिया गया. इसके इलावा उसी दिन हापुड़ तथा बुलंदशहर में भी दलितों पर बड़ी संख्या में केस दर्ज किये गये हैं तथा गिरफ्तारियां की जा रही हैं. इसी प्रकार 2 अप्रैल को इलाहाबाद में भी 27 छात्र नेताओं पर भी गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया है. इन सभी स्थलों पर पुलिस चुन चुन कर दबिश दे रही है और दलित घर छोड़ कर भागे हुए हैं. ऐसा प्रतीत होता कि है योगी सरकार दलित दमन पर पूरी तरह से उतर आई है. यह ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी लगभग 4 करोड़ 14 लाख है जोकि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का 21% है तथा यह आबादी देश के किसी भी राज्य की दलित आबादी से अधिक है. इसमें चार बार दलित मुख्य मन्त्री रही हैं. परन्तु एक बहुत चिंता की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर सबसे अधिक अत्याचार होते हैं जिसका एक कारण तो दलितों की सबसे बड़ी आबादी है और दूसरे उत्तर प्रदेश की सामंती/ जातिवादी व्यवस्था है जो आज़ादी के 70 साल बाद भी बरकरार है. हाल में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा “क्राईम इन इंडिया-2016” रिपोर्ट जारी की गयी है जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में 2016 में दलितों पर अत्याचारों की संख्या 10,426 थी जो कि देश में दलितों पर कुल घटित अपराध का 26 % है जबकि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी 21% ही है. इससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की स्थिति बहुत गंभीर है. यही स्थिति 2015 तथा 2014 में भी थी और वह 2017 में भी है जैसाकि समाचार पत्रों में प्रतिदिन छपने वाली घटनाओं से स्पष्ट है.

दलित दमन की उपरोक्त घटनाओं के इलावा पूरे उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं. इनमें उन्नाव में बलात्कार के बाद दलित लड़की का जलाया जाना, बाँदा में दलित औरत का बलात्कार तथा बलिया में एक दलित औरत को पीट पीट कर मारने जैसी घटनाएँ प्रमुख हैं. पूरे प्रदेश में दलित हिन्दुत्ववादियों तथा सामंती सवर्णों के निशाने पर हैं परन्तु सरकार की तरफ से उन्हें कोई संरक्षण अथवा राहत नहीं मिल रही है. इसके साथ ही दलितों को फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है तथा पैरों एवं टांगों में गोलियां मार कर जख्मी करके जेलों में सड़ाया जा रहा है. ऐसी परिस्थिति में अगर दलित भाजपा से दूर जा रहे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है. यह भी निश्चित है कि अब दलित योगी अथवा अमित शाह द्वारा अपने घरों में खाना खाने के नाटक को अच्छी तरह से समझ गये हैं और वे अब दोबारा भाजपा के झांसे में आने वाले नहीं हैं.

अगर यदि योगी और भाजपा वास्तव में दलितों के शुभचिन्तक हैं तो योगी सरकार जेल में एक साल से बंद चंद्रशेखर तथा शब्बीर पुर के दलितों को तुरंत रिहा करे, 2 अप्रैल को मेरठ तथा मुज़फ्फर नगर में मारे गये दलितों को बीस बीस लाख का मुयाव्ज़ा दे, भारत बंद के दौरान गिरफ्तार किये गये सभी दलितों को तुरंत रिहा करे तथा सभी मुक़दमे वापस ले, मेरठ में दलित लड़कों की पिटाई करने वाले तथा झूठे केस दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों पर तुरंत दंडात्मक कार्रवाई करे तथा एससी/एसटी एक्ट की बहाली हेतु तुरंत अध्यादेश लाये अन्यथा अब दलित किसी भी नौटंकी से प्रभावित होने वाले नहीं हैं.

  • एस.आर.दारापुरी पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक जन मंच उत्तर प्रदेश

IIT पास 50 बहुजन युवाओं ने बनाया राजनैतिक दल

नई दिल्ली। देश के प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) से पास आउट 50 पूर्व बहुजन युवाओं ने मिलकर नया राजनैतिक दल बनाया है. इनका दावा है कि इन्होंने अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए अपनी नौकरियां को छोड़कर यह राजनीतिक दल बनाया है. इन युवाओं ने राजनीतिक संगठन का नाम ‘बहुजन आजाद पार्टी’ (बीएपी) रखा है.

इस संगठन में मुख्यत एससी, एसटी और ओबीसी तबके के सदस्य हैं जिनका मानना है कि पिछड़े वर्गों को शिक्षा एवं रोजगार के मामले में उनका वाजिब हक नहीं मिला है. पार्टी ने भीमराव आंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस और एपीजे अब्दुल कलाम सहित कई अन्य नेताओं की तस्वीरें लगाकर सोशल मीडिया पर प्रचार शुरू कर दिया है.

युवाओं के इस समूह का नेतृत्व 2015 में आईआईटी दिल्ली से स्नातक कर चुके नवीन कुमार कर रहे हैं. नवीन के मुताबिक, ‘हम 50 लोगों का एक समूह है. सभी अलग -अलग आईआईटी से हैं, जिन्होंने पार्टी के लिए काम करने की खातिर अपनी पूर्णकालिक नौकरियां छोड़ी हैं. हमने मंजूरी के लिए चुनाव आयोग में अर्जी डाली है और इस बीच जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं.’

पार्टी के बैनर पर पांच प्रमुख बातों को शामिल किया गया है, जो इस राजनैतिक दल का उद्देश्य साफ करता है. इसमें बहुत ही समझदारी से मुद्दों को चयनित कर के रखा गया है. इसमें जनसंख्या के अनुपास में बुहजनों (OBS SC ST) को निजी क्षेत्रों, उच्च न्यायालयों तथा पदोन्नति में आरक्षण, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को श्रेणी वार 33 फीसदी आरक्षण, भूमि सुधार, शिक्षा, स्वास्थ, कृषि, रोजगार, पर्यावरण तथा सामाजिक न्याय प्रणाली में व्यापक सुधार. प्रत्येक नागरिक में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करना और निजी क्षेत्रों में तथाकथित उच्च जाति को आर्थिक आधार पर विशेष अवसर देने की बात कही गई है.

हालांकि राजनीतिक पार्टी बनाने के बाद ये युवा जल्दबाजी में चुनावी राजनीति में नहीं कूदना चाहते हैं, बल्कि उनके पास बहुजन समाज के लिए अपना एक अलग प्लॉन है. इस ग्रुप ने साफ किया है कि वो 2019 के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. नवीन कुमार ने मुताबिक, ‘हम जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहते और हम बड़ी महत्वाकांक्षा वाला छोटा संगठन बनकर रह जाना नहीं चाहते. हम 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से शुरुआत करेंगे और फिर अगले लोकसभा चुनाव का लक्ष्य तय करेंगे.’

कुमार ने कहा, ‘एक बार पंजीकरण करा लेने के बाद हम पार्टी की छोटी इकाइयां बनाएंगे जो हमारे लक्षित समूहों के लिए जमीनी स्तर पर काम करना शुरू करेगी.’ यह समूह फिलहाल फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. वह जाति और धर्म की राजनीति में नहीं बंधना चाहते हैं. नवीन कुमार कहते हैं, ‘हम खुद को किसी राजनीतिक पार्टी या विचारधारा की प्रतिद्वंद्वी के तौर पर पेश नहीं करना चाहते.’

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज किया

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उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा

नई दिल्ली। राज्यसभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. कांग्रेस की नेतृत्व में 7 विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति के सामने ये प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन कानूनी सलाह के बाद वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. उपराष्ट्रपति ने महाभियोग के इस प्रस्ताव को राजनीति से प्रेरित बताया.

महाभियोग के प्रस्ताव के बाद से ही सभी की नज़रें वेंकैया नायडू पर टिकी थीं. शुक्रवार को राजनीतिक दलों से इस बारे में नोटिस मिलने के बाद नायडू 4 दिन की छुट्टी पर आंध्र गए थे, लेकिन मामला गंभीर होते देख वह रविवार को ही दिल्ली लौट आए थे. जिसके बाद उन्होंने सोमवार को इस बारे में फैसला किया. इस बीच यह भी खबर आई है कि सात पूर्व सांसदों के दस्तख्त होने के कारण संविधान विशेषज्ञों से राय के बाद इस प्रस्ताव को खारिज किया गया है.

गौरतलब है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय राज्यसभा के सभापति का होता है. फैसले के बाद अब कांग्रेस के पास इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जाने का ही रास्ता बचा है. जस्टिस मिश्रा के महाभियोग वाले प्रस्ताव को कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, एसपी, बीएसपी, एनसीपी और मुस्लिम लीग ने अपना समर्थन दिया था.

स्वामी प्रसाद मौर्या के बसपा प्रेम के मायने

बहुजन समाज पार्टी में लंबे वक्त तक रहे भाजपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या का हाल ही में दिया एक बयान काफी चर्चा में है. इसमें मौर्या ने मायावती सरकार से योगी सरकार की तुलना करते हुए कहा था कि मायावती सरकार वर्तमान योगी सरकार से बेहतर तरीके से काम कर रही थी. उन्होंने मायावती सरकार की तारीफ में कहा कि उनके शासनकाल में उत्तर प्रदेश में कार्यपालिका बेहतर काम करती है. कार्यपालिका ठीक से काम करे, इसलिए मायावती खुद उस पर नजर रखती थीं.

जाहिर है कि इस बयान से हंगामा होना था और हंगामा हुआ भी. औऱ हंगामे के बाद जो होता है, वह भी हुआ. मौर्या ने मीडिया पर सारा दोष मढ़ते हुए कह दिया कि उनके बयान को गलत तरीके से दिखाया गया. और लगे हाथ अपनी पूर्व प्रमुख मायावती की आलोचना करते हुए मौर्या ने उनपर दो-तीन आरोप लगाकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की.

लेकिन इसके पहले स्वामी प्रसाद मौर्या ने जो कहा, क्या वह ऐसे ही था. या फिर उन्हें सचमुच यह लगता है कि मायावती… योगी से बेहतर थीं. क्या मौर्या अब भाजपा में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं? पिछले दिनों हुई दो राजनीतिक हलचल पर नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि मौर्या के अंदर क्या चल रहा है.

हाल ही के दिनों में मौर्या के दो करीबी रिश्तेदार समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के दामाद डॉ. नवल किशोर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. तो इससे पहले फरवरी में स्वामी प्रसाद मौर्य के भतीजे प्रमोद मौर्य ने भी भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था. तब प्रमोद मौर्या ने कहा था कि भाजपा पिछड़े वर्ग की विरोधी है, बीजेपी सरकार में उनके समाज का शोषण हो रहा है. इसी कारण वो भाजपा छोड़ सपा में शामिल हुए.

यहां सवाल यह उठता है कि भाजपा में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्या अपने परिवार के सदस्य को न्याय क्यों नहीं दिलवा पाएं? या फिर ससुर के भाजपा मे रहते दामाद दूसरी पार्टी में कैसे चला गया? सवाल यह भी है कि क्या मौर्या खुद को भाजपा में अनफिट महसूस करने लगे हैं? और भाजपा छोड़ने से पहले उन्होंने अपने करीबियों को इशारा कर दिया है?

ऐसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्या जिस विचारधारा की उपज हैं, उनका लंबे समय तक भाजपा जैसी पार्टी में रहना संभव नहीं दिख रहा. एक दूसरी वजह यह भी है कि स्वामी प्रसाद मौर्या जब तक बसपा में थे वे मायावती के बहुत खास थे. वे बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री और नंबर दो के नेता थे. समाज और पार्टी के भीतर उन्हें एक बड़ा रुतबा हासिल था. अपने संबंधियों और समर्थकों के लिए वह सरकार में जो चाहते थे, वह करवा लेते थे.

2017 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने बसपा का दामन छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए. वे चुनाव भी जीते और योगी सरकार में फिलहाल कैबिनेट मंत्री हैं. लेकिन मौर्या को वो सामाजिक रुतबा और पार्टी में पूछ हासिल नहीं है, जैसा कि बसपा में हुआ करता था. जाहिर है कि यह बात मौर्या को कचोटती होगी.

एक जो दूसरी महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्या बहुजन समाज के बीच से निकले हुए नेता हैं. यह समाज विचारधारा के स्तर पर भाजपा से विपरीत है. ऐसे में मौर्या पर समाज का दबाव भी जरूर होगा. तो दूसरी ओऱ सपा-बसपा के साथ आ जाने से प्रदेश में भाजपा का सफाया लगभग तय माना जा रहा है. तब अगर भाजपा सत्ता से बाहर हो जाती है, तो मौर्या जैसे नेताओं की पार्टी के अंदर बहुत पूछ होने की संभावना कम है. ऐसे में इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि मौर्या वापस बसपा में आने की संभावना तलाश रहे होंगे, और मायावती के पक्ष में बयान देकर वह वापसी की जमीन तैयार कर रहे होंगे.